बस्तर के मुख्यालय जगदलपुर से महज 27 कि.मी. दूर है कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान। जैव विविधता के कारण इसे जीव मंडल (बॉयोस्फियर) रिजर्व भी घोषित किया गया है। गुफाओं और अंधी मच्छलियों के अलावा खुबसूरत झरने, घना जंगल, जीव जन्तु और कीट, पक्षी भी इसकी शान बढ़ाते हैं। वनदेवी का यौवन कांगेर घाटी में देखते ही बनता है। मंत्रमुग्ध कर देने वाले दृश्यों की श्रृंखला बांहें पसारे मानो आने वाले पर्यटकों का स्वागत करती नज़र आती है। कांगेर अपने भरपूर वनस्पति, जीवों, झरनों, झीलों और गुफाओं के कारण प्रकृति प्रेमियों के लिए अद्भूत स्थान हैं।
कुदरत के इस अनमोल खजाने को बचाये रखने के लिए जुलाई 1982 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित कर दिया गया। सरकारी घोषणा अपने उद्देश्य पर कहां तक खरी उतरी है ये बहस का मुद्दा हो सकता है लेकिन इसके प्राकृतिक सौंदर्य पर कोई सवाल नहीं खड़े किए जा सकते। वन्यप्राणियों को सुरक्षा और बेहतरीन शरणस्थल देने के साथ ही पर्यटकों और प्रकृति प्रेमियों के लिए इसे आकर्षक बनाना सरकार का मुख्य उद्देश्य था।
कांगेर तीरथगढ़ नामके खुबसूरत झरने से शुरू होकर उड़ीसा की सीमा पर कोलाब नदी तक फैला है। जंगल के बीचोबीच कांगेर नदी इठलती बलखाती अपना सफ़र करती है। लगभग 200 स्क्वेयर कि.मी. में फैला कांगेर दक्षिण पैनिंनसुलर मिक्सड डेसिडुअस जंगल, आर्द्र सागौन जंगल जिसमें साल, बीजा, साजा, हल्दू, चार, तेन्दू, कोसम, बेंत, बांस और न जाने कितनी ही वनौषधियों के पौधों को अपने में समेटे हुए है।
शेर(बाघ), तेन्दुआ(पेन्थर), कोटरी यानि बार्किंग डीयर, माउस डीयर, चीतल, भालू, जंगली सूअर, लोमड़ी, भेडि़या, पैंगोलिन, बंदर, लंगूर, सेही, सिवेट, नेवला, सोन कुत्ता, खरगोश और सियार इस राष्ट्रीय उद्यान के खजाने के रत्न हैं। इनके अलावा मगर, कछुआ, अजगर, पहाड़ी मैना, भृगराज, उल्लू, वनमुर्गी, क्रेस्टेड सर्पेंट, ईगल, श्यामा और तितलियों से भरा पूरा है ये राष्ट्रीय उद्यान।
कांगेर घाटी में खुबसूरत पहाडि़यां, रंग बिरंगी तितलियां, कल कल करते झरने, रहस्यमयी गुफाएं और कीट पतंगों के अजीबो गरीब संगीत से आप चमत्कृत हो जाएंगे। यहां की कोटमसर गुफा आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। इसे 1900 में खोजा गया और लगभग आधी शताब्दी बाद 1951 में डॉ. शंकर तिवारी ने इसका सर्वे किया। 330 मीटर लंबी और 20 से 72 मीटर तक चौड़ी गुफा में ड्रिप स्टोन, स्टेलेग्माइट और छत से लटकते यानि स्टेलेक्टाइट की खुबसूरती देखते ही बनती है। सफेद चूना पत्थर से बनाई गई कुदरत की कलाकारी का जादू यहां सर चढ़कर बोलता है। कुदरत का जादू अभी भी जारी है यानि संरचनाओं का बनना शुरू है। गुफा में कई छोटे छोटे पोखर हैं जिसमें विश्व प्रसिद्ध अंधी मच्छलियां और मेंढक पाए जाते हैं। यहां अंधेरे की जि़न्दगी के और भी कई खिलाड़ी पाए जाते हैं जिनमें झिंगुर, सांप, मकड़ी, चमगादड़ उल्लेखनीय है। गुफा के आखिरी छोर पर स्टेलेग्माइट यानि ज़मीन से उभरी संरचनाओं से बना एक शिवलिंग है। कोटमसर जैसी ही कैलाश गुफा भी है और दण्डक गुफा इनमें सबसे नई है। इसे अप्रैल 1995 में खोजा गया। यहां गुफा 2 हिस्सों में बंटी है, दूसरे हिस्से में जाने के लिए घुटनों के बल जाना पड़ता है।
यहां तीरथगढ़ जलप्रपात भी देखने लायक है। लगभग 50 मीटर की ऊंचाई से गिरने वाला झरना नीचे पहुंचने से पहले 3 चरणों में बंटता है। झरने के तीनों चरणों तक नीचे उतरने के लिए सीढि़यां बनी हुई है। यहां एक शिव पार्वती का मंदिर है। पर्यटकों के लिए शेड बने हुए हैं और घाटी और झरने खुबसूरती को निहारने के लिए वॉच टॉवर भी बनाए गए हैं। घाटी में ही कांगेर नदी पर कोटमसर गांव के पास झरनों की श्रृंखला है। पथरिली चट्टानें, उथला पानी और कलकल करते झरनों का सुमधुर संगीत यहां की वादियों को और खुबसूरत बना देते हैं। कांगेर नदी पर ही 4 हेक्टेयर में फैली हुई कुदरती विशाल झील है, इसे भैंसा दरहा कहा जाता है। चारों ओर से घने बांस के जंगलों और झूरमुटों से घिरी हुई इस झील में आकर पहाड़ों को कूदते फांदते चीरते हुए आगे बढ़ती है अल्हड़ कांगेर नदी एकदम शांत हो जाती है। ये झील आगे जाकर उड़ीसा की शबरी यानि कोलावा नदी से मिल जाती है। झील मगर और कछुओं का कुदरती ठिकाना है।
कोटमसर से कैलाश गुफा की ओर जाते समय एक तरफ कांगेर नदी का यौवन अंगड़ाई लेता नज़र आता है, तो दूसरी ओर घने जंगलों में पेड़ों से लिपटी लताएं मानो जादू सा कर देती है। ऊंचे ऊंचे पहाड़ों की खामोशी ड्राइव का भरपूर आनंद देती है। घाटी 1 नवंबर से 30 जून तक ही खुली रहती है और यहां सुबह 8 बजे से शाम 4 बजे तक ही प्रवेश दिया जाता है। यहां कोटमसर, नेतानार, तीरथगढ़ में 2 कमरों वाले जंगल विभाग के रेस्टहाउस हैं। इसके अलावा जगदलपुर में रेस्टहाउस और अच्छे होटलों की कोई कमी नहीं है। नजदीक का हवाई अड्डा रायपुर है जो देश के सभी बड़े शहरों से जुड़ गया है। रायपुर से जगदलपुर लगभग 300 कि.मी. है और ये रास्ता भी रायपुर से 100 कि.मी. दूर चारामा के बाद से जंगलों, पहाड़ों और घाटियों से गुजरता है। ये भी ड्राइव का अद्भूत आनंद देता है।
9 comments:
बस्तर और उसकी नैसर्गिकता पर यह बहुत ही सारगर्भित आलेख है।
***राजीव रंजन प्रसाद
' bhut sunder, aaj ka artical pdh kr ek gana yaad aa rha hai... "ye mausam, ye badal ndee ka keenara, ye chanchal hwa.." kitne sunder jgeh hai ye, kitne sunder vadeeyan, aisa lggta hai prkrtee ne jmeen pr hee jannat sjaa dee hai" thanks for presentation"
Regards
छतीसगढ़ अद्भुत दर्शनीय स्थलों से बना है. अनिल भइया, इस लेख के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद. अगली बार छत्तीसगढ़ ही जाऊंगा, छुट्टियों में.
ये पोस्ट एक धरोहर है.
सारा खाका आपने ऐसा खींचा है की ऐसा लग रहा है सब कुछ
आँखों के सामने घट रहा है ! आज आपने ठहरने. आने जाने
की जानकारी देकर बेहतरीन पोस्ट बना दी है ! आपको बहुत
धन्यवाद और शुभकामनाएं !
Bahut accha, jankari ke liye aabhar.
आप ने तो इतनी तारीफ़ की हे कि दिल करता हे इन नजारो को जरुर देखे, ओर जब भी प्रोगराम बना हम जरुर आयेगे इन को देखने ,
आप का बहुत बहुत धन्यवाद
पुनः बहुत ही उम्दा आलेख. छत्तीसगढ़ के विषय में जानकारी से भरपूर
बहुत ही सुंदर लेख है. आश्चर्य कि इतने बड़े कांगेर क्षेत्र को एक पन्ने में ही वर्णित कर दिया.
आपके ब्लाग का बदला हुआ कलेवर देखा ,अच्छा लग रहा है ,आप दायी कुर्सी छोड बायी तरफ़ आ बैठे है !! आपने तो सब बता दिया अब अगली छुट्टी वही बितायेंगे ईंशा अल्लाह !!
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