छत्तीसगढ़ की गरीबी का फायदा उठाकर यहां सारे देश से इंसानों के सौदागर मुनाफा कमाने आतें है। अभी बस्तर की बाला को हरियाणा में बेचने का मामला ठंडा भी नहीं हुआ कि बस्तर के ही 35 नाबालिग बच्चों को तमिलनाडु ले जाते हुए पकड़ा गया।
23 सितम्बर की रात प्लेटफार्म पर नाबालिग आदिवासी बच्चों की भीड़ देखकर युवक कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ताओं को शक हुआ। उनमें से घनश्याम तिवारी राजू ने बच्चों से पूछताछ करनी चाही जिस पर एक आदमी ने आपत्ति की। यहां से मामला बिगड़ता चला गया और जब खुला तो पता चला कि उन बच्चों को तमिलनाडु ले जाया जा रहा है। बच्चों के पालकों के साथ में नही होने से युवक कांग्रेसियों का शक गहराया और उन्होंने पुलिस बुलवा ली।
सारे बच्चे बस्तर के अबुझमाड़ के नारायणपुर इलाके के निकले। सभी नाबालिग थे और आदिवासी। किसी को कुछ नहीं पता था कि वे कहां जा रहे है। बस उन्हें इतना मालूम था कि उन्हें कपड़ा कारखाना में काम करना है। सारे बच्चे दिनभर से भूखे-प्यासे थे और उनकी हालत खराब हो रही थी। पूछताछ में ही उन्होंने बताया कि उनके साथ आये 12 बच्चे पता नहीं कहां भाग गये है।
23 बच्चों को रेल से साथ ले जाने वाले संपतलाल को धर दबोचा गया तो उसने बताया कि वो मजदूरों का दलाल है और वो इन्फ्रास्टकचर नामक कंपनी के लिये इन मासूम बच्चों को तमिलनाडु ले जा रहा था। उसे ये बच्चे रेल्वे स्टेशन पर नारायणपुर के दलाल ने डिलीवर किये थे और उसके बाद वो वापस चला गया था। यहां से बच्चों की जिम्मेदारी उसकी थी।
35 बच्चों की खेप लेकर जाने वाले दलाल के पकड़े जाने से ये मामला सामने आया कि यहां के बच्चे भी मजदूरों की मंडी में बिक रहें है। अभी दो दिन पहले ही दंतेवाड़ा जिले की 20 वर्षीय युवती को उसके प्रेमी हरियाणा के हिसार जिले में मात्र 63 हजार रूपये में बेच दिया था। वो तो युवती ने मौका पाकर परिचितों को टेलीफोन पर सूचना दे दी वरना इस खरीद फरोख्त का पता ही नही चल पाता।
वैसे भी दीवाली के बाद यहां खेती किसानी के काम खत्म हो जाते है और सारे खेत मजदूर खाली हो जाते है। पिछले साल ही कंटेनरों में ही भेड़-बकरियों की तरह भरकर मजदूरों को मुंबई ले जाने का मामला पकड़ाया था। कंटेनरों में सीलन और बदबू तो थी ही खुला न होने के कारण उसमें सांस लेना भी मुश्किल था। कागजात देखते समय ट्रैफिक पुलिस को कंटेनरों पर शक हुआ और जांच में उसमें आदमी निकले।
ये पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी मजदूरों की तस्करी के मामले सामने आते रहे है। यहां के मजदूर उत्तरप्रदेश के ईंट भट्ठों में बंधुआ की तरह काम करते रहे है। सरायपाली और बसना क्षेत्र के बंधुआ मजदुरों की मुक्ति के लिये स्वामी अग्निवेश ने उल्लेखनीय कार्य किया है। इसके बावजूद उन इलाकों से मजदूरों का पलायन थमा नहीं है। जो पार्टी सत्ता में होती है वो इसे परंपरागत रोजी-रोटी की तलाश बला टालती है और जो पार्टी विपक्ष में रहती है वो गला फाड-फाड़कर चिल्लाती है कि रोजगार के अभाव में मजदूर पलायन कर रहे है। कारण चाहे जो भी हो इतना तय है कि गरीबी ने छत्तीसगढ़ को देश में मजदूरों की सबसे बड़ी मंडी के रूप में स्थापित कर दिया है।
14 comments:
अफसोसजनक स्थितियाँ....
garibee to hai hee par uska fayda uthakar apni zolee bharane walon ki bhee kami nahi.
दास युग आजाद भारत में जीवित है।
बाप रे !इंसान क्या इतना गिर सकता हे,मुझे तो यह पढ कर अजीब सा लगता हे, सीधे साधे आदिवासीयो को भेड बकरियो की तरह से बेचना.
आप का धन्यवाद, इस अनोखी जान कारी देने के लिये
इसके बावजूद उन इलाकों से मजदूरों का पलायन थमा नहीं है। जो पार्टी सत्ता में होती है वो इसे परंपरागत रोजी-रोटी की तलाश बला टालती है और जो पार्टी विपक्ष में रहती है वो गला फाड-फाड़कर चिल्लाती है कि रोजगार के अभाव में मजदूर पलायन कर रहे है।
बिढ़या शब्दिचत्र। बधाई।
www.gustakhimaaph.blogspot.com
भारत अनेक शताब्दियों में एक साथ रह रहा है!
'very very strange and shocking to know about it, how it could happen, very shameful ..... great efforts of yours to make everybody aware abt this shameful act"
Regards
Such a shame! क्या हम अब भी अपने को इंसान कह सकते हें?
दुखी और क्रोधित करने वाली घटना.
maanyavar, jansankhya aise hi badhti rahi to ek din khane ke liye becha jaayega aadmi
गरीबी जो न करा ले।
कितना दर्दनाक है ,बस्तर की पीडा बढती ही जा रही है कब थमेगा ये !कपडे के कारखाने मे स्थितीया इतनी खराब होती है कि ये मासुन बिना जवान हुये बुढे हो जाते !!हाय कितना अफ़सोसजनक ।
अनिल जी मुझे तो बहुत विभत्स लग रहा है यह सब !
विकट मामला है।
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