वो बस्तर के घने जंगलों में रहती है और बोलती है बिल्कुल इंसानों सा ही है। दिनों-दिन उसके संख्या कम होती जा रही है। मुश्किल से अब उसकी संख्या सैकड़ों तक पहुंचेगी। धीरे-धीरे शायद वो विलुप्त हो जाए। उसकी संख्या बढ़ाने के सरकारी प्रयास भी लगभग असफल ही हुए हैं।
जी हां। सही पहचाना आपने, हम बात कर रहे हैं बस्तर की दुर्लभ पहाड़ी मैना की। पहाड़ी मैना छत्तीसगढ़ की राजकीय पक्षी भी है। बोलती है तो ऐसा लगता ही नहीं कि कोई पक्षी बोल रहा हो। आप जो बोलिए आपकी बोली की हू-बहू नकल हाजिर कर देगी वो। खुले आसमान में चहचहाती, उड़ती, स्वच्छंद पीली चोंच वाली काली मैना की खुबसूरती ही उसकी दुश्मन बनी। बस्तर के वनवासियों का प्रिय भोजन होने के कारण उसकी संख्या लगातार घटने लगी है। सरकार को देर से सही उसके विलुप्त होने का खतरा नज़र आया और उसने लगभग 2 दर्जन पहाड़ी मैना जंगलों से लाकर उसका प्रजनन बढ़ाने की योजना पर काम शुरू किया है।
इस बात को भी सालों हो गए लेकिन अब तक कोई सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आया है। जगदलपुर से महज 3-4 कि.मी. दूर वन विभाग ने साल के कुछ पेड़ों को चेनलिंक फेन्सिंग के जरिए प्राकृतिक रूप से पिंजरे का आकार दिया है और उसमें कुछ पहाड़ी मैना को रखा गया है। यहां बताते हैं कि छत्तीसगढ़ के एक प्रभावशाली नेता ने उन्हें देखा और जब वे लौट रहे थे तो किसी पहाड़ी मैना ने गाली दे दी थी। सब हक्के-बक्के रह गए थे और इस बीच पेड़ों पर से दोबारा वो गाली की आवाज़ आई। तब सबको मामला समझ में आया। पहाड़ी मैना वन कर्मचारियों की गालियां सुनकर सीख चुकी थी और उसे दोहराती भी थी। नेताजी नाराज़ भी हुए और पहाड़ी मैना की नकल करने की क्वालिटी से प्रभावित भी हुए। उन्होंने सबको जमकर फटकार लगाई और ठीक से इंतजाम करने के निर्देश दिए।
बस्तर के साल वनों में काफी भीतर कभी-कभार पहाड़ी मैना दिख ज़रूर जाती है, लेकिन ये अब लगता है विलुप्त होने की कगार पर है। यही हाल रहा तो बहुत ज़्यादा दिन बाकी नहीं रहे जब लोग कहा करेंगे कि बस्तर में पहाड़ी मैना मिला करती थी। वो हू-बहू इंसानों की तरह बोलती थी। हालाकि राजकीय पक्षी घोषित होने के बाद उसकी सुध ली जा रही है, मगर सरकारी काम कैसा होता है ये सबको पता है। लगभग 39 हज़ार वर्ग किलोमीटर में फैला बस्तर जि़ला 1999 में 2 हिस्सों में बांटा गया था और अब ये बस्तर, कांकेर, बीजापुर, नारायणपुर और दंतेवाड़ा जिलों में बंटा हुआ है। पहले दक्षिण बस्तर के जंगलों के अलावा भी पहाड़ी मैना दिख जाया करती थी, लेकिन अब सरायपाली, बसना और सिहावा नगरी के इलाकों से ये विलुप्त ही हो चुकी है।
प्रकृति की अद्भूत देन इस पहाड़ी मैना को विलुप्त होने से पहले देखने की इच्छा अगर आपकी है तो चले आईए बस्तर। तकदीर अच्छी रही, तो आपको पहाड़ी मैना आपकी तरह ही बोलती दिखाई दे जाएगी।
3 comments:
यह हम सब की बद किस्मती ही हे हम ने ऎसे कई जानवर, पक्षी अपनी बेब्कुइयो से खो दिये ओर खो रहे हे.
धन्यवाद
अब तो अबकी बार पक्का बस्तर !!मां दंतेश्वरी के भी दर्शन करेंगे !!
हालाकि राजकीय पक्षी घोषित होने के बाद उसकी सुध ली जा रही है, मगर सरकारी काम कैसा होता है ये सबको पता है।
"bhut dukh hua hai jankr, asie janver pakshee desh ke drohr hoten hain, apne aap mey ek ajuba hoteyn hain, inkee raksha krna sub ka dharam hona chaheye, pr jaisa kee apne likha hai sarkar jaag rhee hai, umeed hai ye pakshee velupt hone se bach jayega"
Regards
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