विश्व हिन्दू परिषद के डॉक्टर प्रवीण तोगड़िया और विवाद का चोली दामन का साथ है। बोलते हैं तो बवाल न हो ऐसा नहीं होता। लेकिन रायपुर में आज ऐसा कुछ नहीं हुआ। तोगड़िया न गरजे, न उलझे और न ही आंए-बांए-शाएं बोले। हेडलाइन मिलने की उम्मीद से आए पत्रकार लगभग निराश हुए और अधिकांश का यही सवाल था कि क्या तोगड़िया खसक गया है ?
बड़ी उम्मीदें लेकर पहुँचे थे पत्रकार आज प्रेस क्लब। प्रेस से मिलिए कार्यक्रम में डॉ. तोगड़िया ने जब बोलना शुरू किया तो सहसा मुझे भी कुछ वैसा ही लगा, जैसा बाकी पत्रकारों को लग रहा था। न अमरनाथ और न कंधमाल सीधे बिहार से शुरू किया। बिहार में बाढ़ की त्रासदी पर देश की जनता से सीधे बिहार की मदद के लिए गुहार लगाई। उन्होंने कहा कि क्या हो रहा है क्या नहीं ? क्या होना चाहिए ? क्या नहीं ? ये सब कांग्रेस और भाजपा के नेताओं का चिल्लाने का काम है। जनता को चाहिए कि बिहार के लोगों के लिए एकजुट होकर मदद करें।
तोगड़िया से ऐसी शुरूआत की उम्मीद शायद किसी ने नहीं की थी। सब सन्न रह गए और तोगड़िया बोलते चले गए। उन्होंने कहा अभी जो दिख रहा है, बिहार की बाढ़ का पहला हिस्सा है। दूसरा हिस्सा इससे भी भयावह होगा। आप उसकी कल्पना नहीं कर सकते। पानी के हटने के बाद जानवरों की लाश और मृत मानव देह की सड़न महामारी को जन्म देगी। महामारी से बचना बहुत ज़रूरी है वरना बाढ़ के क़हर से ले-देकर बचे लोग महामारी से मर जाएँगे। वहाँ बाढ़ ने सब कुछ तबाह कर दिया है। गाँव के गाँव मटियामेट हो गए हैं और नक्शे पर से उनका निशान तक मिट गया है। जहाँ गाँव बचे हैं वहाँ न तो अनाज है और न रहने के लिए मकान। जाएँगे वापस लोग तो भी रहेंगे कैसे ?
तोगड़िया बोले जा रहे थे और लोग बिना टोका-टाकी खामोश सुन रहे थे। तोगड़िया ने कहा कि उनकी इकाईयाँ बिहार जाकर मृत मानव देह और जानवरों का अंतिम संस्कार करेगी। ये पुण्य का काम मोक्ष के लिए कम और महामारी को फैलने से रोकने के लिए ज्यादा होगा। हम अपनी इकाईयों से बिहार के लिए मदद इकट्ठा करने का कार्य शुरू कर चुके हैं। हम आसपास के राज्यों से अनाज गुजरात और दूर के राज्यों से नए कपड़े और मुंबई से दवा इकट्ठा कर रहे हैं।
अचानक तोगड़िया जैसे सोते से जागे और उन्होंने सवाल दाग दिया। छोटी-छोटी बात के लिए सारे देश में हड़ताल हो जाती है, सारा देश इकट्ठा हो जाता है, फिर क्या वजह है जो अपने ही देश के लोग बिहार में मर रहे हैं और बाकी देश एक साथ खड़ा नहीं है। उन्होंने तत्काल सारे देश को एकजुट होकर बिहार की मदद करने की अपील की। उनका कहना था कि इस मामले में राजनीति से ऊपर उठकर सोचना चाहिए। वे भी हमारे ही भाई हैं। असम और मुंबई में ज़रूर बिहारियों के खिलाफ अभियान चल रहे थे। लेकिन ये समय बिहार की मदद का है। और मुंबई और असम के लोग भी बिहार की मदद के लिए आगे आ रहे हैं।
तोगड़िया का ये नया रूप ही देखने को मिल रहा था पत्रकारों को। बिहार पर खुलकर बोलने के बाद तोगड़िया बोले दूसरा मुद्दा अमरनाथ का है। लेकिन अमरनाथ मुद्दे पर भी तोगड़िया के तेवर तोगड़िया जैसे न थे। तीसरा मुद्दा कंधमाल का था। इस पर भी ढके छिपे शब्दों में अपनी बात संक्षेप में कही तोगड़िया ने। और पत्रकारों को न्यौता दे दिया सवालों के लिए।
पता नहीं क्या हुआ पत्रकारों को। इक्का-दुक्का सवालों के बाद ही सब खामोश हो गए।शायद तोगड़िया के बदले हुए रूप को सम्मान दे रहे थे। बहुत ज्वलंत मुद्दे अमरनाथ और कंधमाल को तोगड़िया ने बिहार की बाढ़ में बहा दिया था। आड़े-तिरछे सवालों के ज़रिए विवादास्पद हेडलाइन की तलाश में भटकने वाले पत्रकार आज खुद उलझन में नज़र आए। सबको खामोश देखकर खुद डॉ. प्रवीण तोगड़िया ने कहा आप सभी का धन्यवाद। और सब उठकर निकल लिए। उनके जाने के बाद सारे के सारे पत्रकार मुझसे पूछने लगे भैय्या क्या तोगड़िया खसक गया है ? ये सवाल मैं आप लोगों के लिए छोड़ रहा हूँ। हमेशा आग उगलने वाले तोगड़िया के मुँह से क्या बिहार का दर्द बयान होना उसके खसक जाने की निशानी है ?
बड़ी उम्मीदें लेकर पहुँचे थे पत्रकार आज प्रेस क्लब। प्रेस से मिलिए कार्यक्रम में डॉ. तोगड़िया ने जब बोलना शुरू किया तो सहसा मुझे भी कुछ वैसा ही लगा, जैसा बाकी पत्रकारों को लग रहा था। न अमरनाथ और न कंधमाल सीधे बिहार से शुरू किया। बिहार में बाढ़ की त्रासदी पर देश की जनता से सीधे बिहार की मदद के लिए गुहार लगाई। उन्होंने कहा कि क्या हो रहा है क्या नहीं ? क्या होना चाहिए ? क्या नहीं ? ये सब कांग्रेस और भाजपा के नेताओं का चिल्लाने का काम है। जनता को चाहिए कि बिहार के लोगों के लिए एकजुट होकर मदद करें।
तोगड़िया से ऐसी शुरूआत की उम्मीद शायद किसी ने नहीं की थी। सब सन्न रह गए और तोगड़िया बोलते चले गए। उन्होंने कहा अभी जो दिख रहा है, बिहार की बाढ़ का पहला हिस्सा है। दूसरा हिस्सा इससे भी भयावह होगा। आप उसकी कल्पना नहीं कर सकते। पानी के हटने के बाद जानवरों की लाश और मृत मानव देह की सड़न महामारी को जन्म देगी। महामारी से बचना बहुत ज़रूरी है वरना बाढ़ के क़हर से ले-देकर बचे लोग महामारी से मर जाएँगे। वहाँ बाढ़ ने सब कुछ तबाह कर दिया है। गाँव के गाँव मटियामेट हो गए हैं और नक्शे पर से उनका निशान तक मिट गया है। जहाँ गाँव बचे हैं वहाँ न तो अनाज है और न रहने के लिए मकान। जाएँगे वापस लोग तो भी रहेंगे कैसे ?
तोगड़िया बोले जा रहे थे और लोग बिना टोका-टाकी खामोश सुन रहे थे। तोगड़िया ने कहा कि उनकी इकाईयाँ बिहार जाकर मृत मानव देह और जानवरों का अंतिम संस्कार करेगी। ये पुण्य का काम मोक्ष के लिए कम और महामारी को फैलने से रोकने के लिए ज्यादा होगा। हम अपनी इकाईयों से बिहार के लिए मदद इकट्ठा करने का कार्य शुरू कर चुके हैं। हम आसपास के राज्यों से अनाज गुजरात और दूर के राज्यों से नए कपड़े और मुंबई से दवा इकट्ठा कर रहे हैं।
अचानक तोगड़िया जैसे सोते से जागे और उन्होंने सवाल दाग दिया। छोटी-छोटी बात के लिए सारे देश में हड़ताल हो जाती है, सारा देश इकट्ठा हो जाता है, फिर क्या वजह है जो अपने ही देश के लोग बिहार में मर रहे हैं और बाकी देश एक साथ खड़ा नहीं है। उन्होंने तत्काल सारे देश को एकजुट होकर बिहार की मदद करने की अपील की। उनका कहना था कि इस मामले में राजनीति से ऊपर उठकर सोचना चाहिए। वे भी हमारे ही भाई हैं। असम और मुंबई में ज़रूर बिहारियों के खिलाफ अभियान चल रहे थे। लेकिन ये समय बिहार की मदद का है। और मुंबई और असम के लोग भी बिहार की मदद के लिए आगे आ रहे हैं।
तोगड़िया का ये नया रूप ही देखने को मिल रहा था पत्रकारों को। बिहार पर खुलकर बोलने के बाद तोगड़िया बोले दूसरा मुद्दा अमरनाथ का है। लेकिन अमरनाथ मुद्दे पर भी तोगड़िया के तेवर तोगड़िया जैसे न थे। तीसरा मुद्दा कंधमाल का था। इस पर भी ढके छिपे शब्दों में अपनी बात संक्षेप में कही तोगड़िया ने। और पत्रकारों को न्यौता दे दिया सवालों के लिए।
पता नहीं क्या हुआ पत्रकारों को। इक्का-दुक्का सवालों के बाद ही सब खामोश हो गए।शायद तोगड़िया के बदले हुए रूप को सम्मान दे रहे थे। बहुत ज्वलंत मुद्दे अमरनाथ और कंधमाल को तोगड़िया ने बिहार की बाढ़ में बहा दिया था। आड़े-तिरछे सवालों के ज़रिए विवादास्पद हेडलाइन की तलाश में भटकने वाले पत्रकार आज खुद उलझन में नज़र आए। सबको खामोश देखकर खुद डॉ. प्रवीण तोगड़िया ने कहा आप सभी का धन्यवाद। और सब उठकर निकल लिए। उनके जाने के बाद सारे के सारे पत्रकार मुझसे पूछने लगे भैय्या क्या तोगड़िया खसक गया है ? ये सवाल मैं आप लोगों के लिए छोड़ रहा हूँ। हमेशा आग उगलने वाले तोगड़िया के मुँह से क्या बिहार का दर्द बयान होना उसके खसक जाने की निशानी है ?
26 comments:
वाह; तोगड़िया वास्तव में खिसके प्रतीत होते हैं।
शायद ज्ञान हो गया हो उन्हे कि खिसकाने का तरीका खिसकने से निकलता है!
भईया हम तो इन साहब के बारे इतना नही जानते लेकिन इन का भाषण सुन कर अच्छ लगा, आज सभी को एक जुट हो कर बिहार की मदद करनी चाहिये,
धन्यवाद
परेशानी यही पर ही है की हमें हमेशा सुर्खियों की ही तलाश रहती है
तोगडिया जी की इस बात से सहमत हूँ कि राजनीति से ऊपर उठकर बिहार वासियो की मदद करना चाहिए .
तोगड़िया ने जो बात कही, मैंने भी यही बात कही थी, तोगड़िया से दो रोज पहले. भूकंप पाकिस्तान में आता है, दुखी भारत हो जाता है. धरती चीन में हिलती है, छाती भारत का दरकने लगती है. गुजरात के भूकंप और दंगों के पीड़ितों की मदद के लिए रातों रात सैकड़ों स्वयं सेवी संगठन खड़े हो जाते हैं, आज बिहार को भी तलाश है, चंद ऐसे लोगों और संस्थाओं की जो दुख की घड़ी में उनकी मदद कर सके.
जहां तक मीडिया का सवाल है, वह तोगड़िया के अग्निबाण की प्रतीक्षा में रहती है, वहां उसे वो नहीं मिला वो दुखी है और कह रही है कि तोगड़िया खिसक गया है क्या.
विचारणीय बात है।
पुसदकर जी आप इसको लिखने के पहले कम से कम एक बार ठंडे दिमा्ग से सोचे होते तो शायद नही लिखते। क्या केवल लिखने के लिये लिखा जा रहा है? कूडा करकट जो भी दिमाग मे है वह सब आप परोस रहे हैं। भईय़ा कुछ तो आप शर्म करो ।एक ब्यक्ति मानावता की बाते कर रहा है और आप है की "लाश रखकर विवाह गीत गा रहे है"अरे आज उन्होने हिन्दू पर हो रहे अत्याचार को नही रोया तो आप उन्हे खिसका कह रहे है "बेवक्त मल्हार नही गाया जाता"अगर बात करते है तो भी उन्हे आप जैसे लोग गाली देते है। जिस पेशे मे आप है कम से कम उसका ख्याल
क्षमा के साथ
शेष फ़िर कभी......
उमेश कुमार
www.cgno.net
भैय्या, तोगडीया जी खिसक गए तो फिर देश को कौन सम्भालेगा ! क्या इस मोहना और सोनिया से यह देश चलने वाला है ?
भाषण छोङिये बिहार की आपदा पर विचार करें।
कोई खसका हुआ अगर मुकाम पर आ जाए तो आप उसे खसका हुआ कहते हैं?
खिसके तोगडिया नहीं आप जैसे लोग हैं जो हर बात को हवा देने की फिराक में रहते हैं और बदनाम करते हैं हिन्दुओं को। यदि तोगडिया बोलते हैं तो आफत और अब जब नहीं बोले तो भी आफत। ये तो वही बात हुई (हम लोगों की भाषा में) खातव्यम तो मर्तव्यम न खातव्यम तो मर्तव्यम, ताक-धिनाधिन क्यों कर्तव्यम?
खिसके तोगडिया नहीँ खिसके हैँ तो आप .
बिन सोचे समझे ही बोले अनाप शनाप .
आप अनाप शनाप जो पहले सोचा होता .
कहते अच्छी बात,न फिर यह लोचा होता .
विवेक सिँह योँ कहेँ, चढे तोगडिया ऊपर .
नीचे आये आप चार पाय्दान खिस कर .
ये कोई नई बात नहीं है वो तो सच मैं सटियाए हुए हैं लेकिन इन तीनों मुद्दों पर नर्म कैसे ये तो सवाल है ही। पर आपने बताया नहीं की हेडर क्या दिया फिर आपने।
तोगडिया की बात तो ठीक लग रही है, अलग इसलिये लगा क्योंकि अब तक हमने उन्हें आग उगलते ही देखा था, बहरहाल तोगडिया का मन यदि धीरे-धीरे बदल रहा है तो और अच्छा....खिसके हुए को सही जगह आने पर स्वागत होना चाहिये।
अब जब तोगडिया सही स्टैंड ले बैठे तो हम उन्हें खिसका मान रहे हैं -वाह री हिदुस्तानी जनता !
वैसे अगर तोगडिया जी अपने कथन को करनी में बदलें तो मैं भी उनका समर्थन करता हूं .
भाई अनिल जी , तोगडिया जी के मुद्दे पर तो यहाँ अच्छी खासी
बहस चल रही है ! सभी मित्रों ने अपनी बात रखी ! और मैं तो
हमेशा इस बात का पक्षधर रहा हूँ की बहस होनी चाहिए ! कुछ
लोग आपसे पूछ रहे हैं की इस समय आपको ऐसे सवाल नही
पूछने चाहिए ! उनका कहना भी वाजिब ! अब चुंकी मैं काफी
सारी टिपणियो के बाद आया हूँ ! अब मेरी बात सुनिए !
१) मैं नही कहता की तोगडिया जी की नियत में खोट है या
फ़िर अन्य मुद्दे वो भूल गए हैं ! यह एक तरह का श्मशान
वैराग्य है ! और तोगडिया जी भी इंसान ही हैं , उनको भी
दुःख दर्द सताता है ! पर यकीन मानिए आप ! तोगडिया जी
आपको जल्द ही अपने पुराने फार्म में नजर आयेंगे !
२) जिन भाइयों का ये कहना है की इस वक्त ये इस तरह
का बेवक्त की मल्हार है ! तो इनका भी कहना सही है !
पर बंधुओ एक बात मेरे समझ में नही आई की अगर
अनिल जी ने जो महसूस किया वो लिखा ! और उन्होंने
बात शुरू ही तोगडियाजी से की ! और वो यहाँ सिर्फ़ बात
तोगडिया जी की ही कर रहे थे ! तो इसमे दूसरी बातें
कहाँ से आ गई ? अगर बिहार की बात है तो हम सभी
दुखी हैं और हर भारतीय अपने हिसाब से सोच और कर
भी रहा है !
पर मुझे एक बात का जबाव देदे की क्या ? जी हाँ ..क्या
सबने बिहार के गम में अपना खाना पानी छोड़ दिया है ?
क्या आज आप गणेश चतुर्थी पर लड्डू का प्रसाद नही
लगायेंगे ? भाई सिर्फ़ जो भोग रहा है वो ही जानता है !
यहाँ एयर कंडीशंड दफ्तरों में बैठ कर आंसू बहाने से कुछ
नही होगा !
धन्यवाद
उन्होंने तत्काल सारे देश को एकजुट होकर बिहार की मदद करने की अपील की। उनका कहना था कि इस मामले में राजनीति से ऊपर उठकर सोचना चाहिए।
" well read this article and found that these words are at least in favour of humanity. we all should support the bihar to come out from this disaster"
Regards
Anilji, Togdiaji bhi insaan to han hi. unke prati logon ki alag alag dharna ho sakti hain magar is samay ve jo kah rahe hain usse kisi ko bhala kya aaptti? Agar koi aadmi khisakkar bhi achhi baat karta hai to main kamna karunga ki har aadmi khisaka hua hona chahiye.
Anilji, Togdiaji bhi insaan to han hi. unke prati logon ki alag alag dharna ho sakti hain magar is samay ve jo kah rahe hain usse kisi ko bhala kya aaptti? Agar koi aadmi khisakkar bhi achhi baat karta hai to main kamna karunga ki har aadmi khisaka hua hona chahiye.
dhanyawad tau ji aapne meri taraf se jawab de diya,waise to main kisi baat ka jawab dene se jyada likhane par wishvas rakhta hun lekin aapke samarthan ke baad main bhi soch raha hun ek do line likh dun.maine jo wahan hua aur jo togadia ji bole aur us par jo pratikriya aayi use jas ka tas samne rakh diya tha,sath me ye bhi likha tha humesha aade-tirchhe sawal karne wale patrakaron ne khamosh rah kar togadiya jee ke naye rup ko samman de diya.maine ant me lilkha hai mujse ja sawal puchhe gaye togadiya ji ke khasakne ke bare me use main aap logo ke samne rakh raha hun,ye bhi likha tha ki humesha aag ugalne waale togadiya ji ka baadh par dard bayan karna kya khasak jaana hai?afsos kuch logo ne use na pura padha aur na hi samjha bus likh mara jo ji me aaya,khair mujhe is se fark bhi nahi padhta,main to likhta rahunga sach ko jas ka tas.aap sabhi ka aabhar.aapki tipanniya hausla badhane aur sudhar ki disha dene waali hai,aage bhi inka intezaar rahega
ये सब नेताओं की माया नगरी है। अगर आप इसके चक्कर में पडे, तो स्वयं खिसक जाओगे।
कम से कम इस बात पर तो तोगड़ियाजी से सहमत हो लें.
हमें सही बात से सहमत होना चाहिए ,कम से कम बिहार वाले मुद्दे पर तो मै सहमत हूँ....
कल रात खबर आ रही थी एक विमान के अचानक इंजन मे आग लग जाने की एन डी टी वी पर. उदघोषिका कह रहॊ थी एक बहुत ही अच्छी और बडी खबर आते आते रह गई , विमान को पूरी सुरक्षा के साथ सकुशल उतार लिया गया है. वैसे हमे भी इस बात की खुशी है" अब आप देखिये पत्रकारो की हालात ठीक गिद्ध जैसे है , इन्हे तो मर गया तो तेरहवी का भॊज पैदा हुआ तो नामकरण का भोज खाने वालेभुक्खे से ज्यादा ना ही समझा जाये जी :)
शायद आपने भी हेड्लाइन की तलाश मे ये भडकिली हेडींग दे दी पर लेख पढकर मुझे कही भी कुछ गलत नही लगा ॥
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