Saturday, October 11, 2008
आखिर सस्पेंड हो ही गए नक्सल इलाके में नहीं जाने वाले 14 पुलिस अफसर
पेश है एक माइक्रो पोस्ट। छत्तीसगढ़ सरकार ने नक्सल इलाके में पोस्टिंग होने के लंबे समय बाद तक वहां नहीं जाने वाले 8 इंस्पेक्टर और 6 सब इंस्पेक्टर को सस्पेंड करने के आदेश जारी कर दिए। हम ये नहीं कहते कि सस्पेंड होने वाले पुलिस वाले नक्सल इलाके में जाने से डरते हैं लेकिन वे वहां क्यों नहीं जा रहे थे ये सवाल ज़रूर कचोटता है। ये उन लोगों में शामिल हैं जिनकी सेटिंग नहीं हो पाई और जो मोहन चंद शर्मा की तरह शहीद भी नहीं होना चाहते। 14 अफसरों का वहां नहीं जाना कहीं न कहीं मेरी लिखी पोस्ट ' बताओ मोहन चंद शर्मा की तरह शहीद होकर बेईज्जत होना अच्छा है या सेटिंग करके पोस्टिंग करवाना' को प्रमाणित ही करता है।
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17 comments:
अनिल भाई आप बिल्कुल सही कह रहे हैं ! इनकी सेटिंग नही हो पा रही है तो ये शहीद मोहनचंद जी शर्मा की तरह शहीद हो कर बेइज्जत भी क्यूँ हो ? वहाँ जाने का मतलब अपने आपको भाग्य के हवाले करना है !
bahut sahi likha hai
वैसे ठीक ही है जान है तो जहान है!!संस्पेंड है तो कल बहाल हो ही जायेंगे जब नेता जिंदा है तो इन्हे भी जिंदा रहने का अधिकार है!!
जब शहादत पर प्रश्न उठेंगे तब ऐसा ही होगा और क्या?वैसे पूलिस का एक गंदा रुप ये भी है!!
सही कहा आपने, पिछली पोस्ट का पूरक है ये माइक्रो पोस्ट।
पुसदकर जी आपका लेख कहीं न कहीं पुलिस के उच्चाधिकारियो को प्रभावित किया है।वैसे निलम्बित होने वालो मे कई तो बहुत ही काबिल सेटिंगबाज माने जाते थे इनसे ही पूछं कर अन्य टीआई,एस आई की पोस्टिंग की जाती थी ।अब यह तो समय का खेल है की ए लोग भी समयचक्र के घेरे मे आ गए। लेकिन मामला जितना आसान दिखाई दे रहा है वैसा है नही । आज भी इस तरह के अधिकारी/कर्मचारी है जो नीति के पालन न होने के कारण से नक्सल क्षेत्र मे पडे हैं।लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए की देर सबेर सबको न्याय मिलेगा।ऊपर वाला बहुत शक्तिमान हैं।
मेरी समझ से सस्पेंशन इस विकराल समस्या का समाधान नही जान पडता है, नक्सल क्षेत्र मे कोई क्यों जाना नही चाहता? शायद किसी भी सरकार व किन्ही भी अधिकारियों के पास कोई नीति-मापदण्ड नही है! नक्सली क्षेत्र मे ट्राँस्फर-पोस्टिंग के लिये सर्वप्रथम एक मजबूत नीति-मापदण्ड निर्धारित होना चाहिये ! तब कहीं ये प्रयास सार्थक हो पायेंगे अन्यथा सब बेकार है।
der se hi sahi par pulish mahkama jaga to.
dhnyabad, bahot khub
सेटिंग के खेल निराले मेरे भईया ।
आप ने बिलकुल सही लिखा, क्यो जाये, मर गये तो भी कुते सी दशा होगी कोई शहीद नही कहेगां, पीछे बच्चे दर दर भटकेगे, सब बातो से हम सहमत है.
धन्यवाद
यह तो उस सोच की पराकाष्ठा है - जिसके तहद ग्रामीण क्षेत्र में अध्यापक या डाक्टर नहीं जाना चाहते। वहां सुविधा की बात है; यहां जान की बात हो गयी है।
आज का यथार्थ है दोनोँ
मोहन शर्मा जी की यादोँ को पुन: नमन !
Aapki is shrinkhala ki sabhi post prabhavshali thi. aapne sachayee ka varanan kiya hai. aapne patrakar hone ki apni jimmedari ko imandari se nibhaya hai. achha lagta hai aapke lekh padhkar.
जो भी कहिये, स्थिति अफसोसजनक है.
३६गढ़ सरकार को त्वरित बुद्धि प्रयोग हेतु ढेरों बधाई
मां दंतेश्वरी सरकार का कल्याण करें
इति शुभम्
आपकी 'सेटिंग करवा कर पोस्टिंग......' वाली श्रृंखला पढ़कर पत्रकारों के बारे में यह ग़लतफ़हमी दूर हो गई की हर पत्रकार अपना ज़मीर बेचकर ब्लेकमेलर और तलवाचाटू हो जाता है, आप जैसे भी शायद कुछ हैं. पर भीड़ में इक्का दुक्का, आपके होने से भी अमरसिंह जैसे दलालों और उसके भी दलालों (मीडिया) का क्या उखड जाएगा, आप फ्रश्टेशन में ही जियेंगे. तीनों पोस्ट पढ़कर इतना ही पता चलता है की कोई मीडिया वाला दलाल नहीं भी है, बाकी कहानी पहले ही सबको पता थी, वो कहते है न 'ओपन सीक्रेट'.
आपकी श्रृंखलाबद्ध लेख के लिए साधुवाद अनिल भाई. दुर्गम क्षेत्र वंचितों, असहायों और मजबूरों के लिए ही होता है...चाहे वह डॉक्टर, इंजिनियर, प्रशासक, पुलिस या किसी दीगर विभाग के मुलाजिम हो. अब तो पुलिस की सेवा/प्रशिक्षण में दी गई नैतिकता और ईमान की शिक्षा का असर इन असमानता रूपी झंझावातों से इतनी निर्ममता से परास्त हो जाता है कि वर्दी की वफादारी के साथ उसे धारण करने की कशिश की महक भी जल्द धुल जाती है. आपकी लेखों का प्रभाव बना रहे...किंतु ये जनाबे आली जो निलंबित हुए हैं, इनके साक्षात्कार/सर्वे कर पता तो लगायें. कहीं ये ऊपर की तीन श्रेणियों से विलग नई जमात कि, "उधर पोस्टिंग से भला तो निलंबन ही सही" के लम्बरदार तो नहीं हैं. यह असफलता है सिस्टम की और सामान्य चेतना की. अलख जगाये रखें.
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