Friday, October 17, 2008

इंडियन मुजाहीदिन रायपुर आओ देखो इंसानियत क्‍या होती है

हिन्‍दुस्‍तान में मुसलमानों के साथ गलत व्‍यवहार का ढपोरशंखी राग आलापने वाले लोगों के लिए बुरी ख़बर है। सांप्रदायिक सौहार्द्र के स्‍वर्ग छत्‍तीसगढ़ के रायपुर में एक मुस्लिम महिला को किडनी उसके रिश्‍तेदारों या उसके धर्म के लोगों ने नहीं दी, बल्कि उसे एक हिन्‍दू महिला ने अपनी किडनी देकर जात-पात से ऊपर उठकर इं‍सानियत का पाठ पढ़ाया है सभी समाज के लोगों को। इसके बावजूद अगर कोई कहे कि हमारे साथ ठीक व्‍यवहार नहीं होने या हमारे साथ अन्‍याय होता है, तो ऐसे लोगों की जुबान समझ में आती है कि वो किसी और की भाषा बोल रहे हैं।

छोटा-मोटा काम नहीं है। सलाम है कुम्‍हारी की श्रीमती रंजन राठौर को। ऐसे दौर में जब देश साम्‍प्रदायिकता की भंवरों में फंसता निकलता नज़र आ रहा है, तब किसी हिन्‍दू का किसी मुस्लिम को किडनी दे देना तारीफ के काबिल हैं। सलाम है श्रीमती रंजन को जिसने अपनी सहेली सलीमा को किडनी देकर अनुकरणीय उदाहरण पेश किया है। प्रणाम है सलीमा को, जिसे अपने व्‍यवहार से रंजन जैसी सहेली मिली। नमन है दोनों की दोस्‍ती को, जो बम धमाकों और नफरत की आग के ऐसे नाजुक दौर में भी प्‍यार का मीठा संदेश दे रही है।

दरअसल सलीमा धीरे-धीरे मौत के मुंह में जा रही थी। सलीमा के पति ने उसके ईलाज के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी मगर उसकी दोनों किडनियों ने जवाब देना शुरू कर दिया था। सलीमा और उसके पति ने अपने रिश्‍तेदारों से इस मामले में बात की, मगर अफसोस कि संवेदनाओं से उनकी झोलियां तो भरती रही मगर एक किडनी के लिए वे तरस कर रह गए थे। रिश्‍तेदारों, परिचितों और समाज के भी लोगों से गुहार लगाई गई मगर उसका असर सिर्फ तसल्‍ली मिलने तक ही रहा। किडनी मिलना शायद उनके लिए सपने जैसा हो गया था और उन्‍होंने सब कुछ अपने खुदा के भरोसे छोड़ दिया था।

ऐसे में उम्‍मीद की किरण, सॉरी किरण नहीं, उम्‍मीद का सूरज बनकर उनके आंगन में आई रंजन। रंजन रायपुर से मात्र 15 किलोमीटर दूर स्थित कुम्‍हारी कस्‍बे में रहती थी। उसे जब पता चला कि उसकी सहेली सलीमा की तबियत खराब है तो वो उससे मिलने रायपुर आई और जब उसने सलीमा को मौत के मुंह में जाते देखा तो उससे रहा नहीं गया। उसने तत्‍काल फैसला किया कि वो अपनी सहेली को किडनी देकर उसकी जान बचाएगी। ये फैसला सलीमा और उसके पति इकबाल के साथ उसके एकलौते बेटे के लिए शायद दुनिया की सबसे अच्‍छी ख़बर थी।

रंजन के पति मुकुंद राठौर ने अपनी पत्‍नी के इस फैसले का स्‍वागत किया और उसके अपनी सहेली के प्रति प्‍यार को महसूस भी किया। लेकिन हर कोई न रंजन होती है न मुकुंद। समाज के लोगों ने और रिश्‍तेदारों ने रंजन को किडनी के ऑपरेशन के बाद आने वाली परेशानियों को बताकर डराना चाहा। सबने उसे इस फैसले पर पुर्नविचार करने के लिए कहा लेकिन रंजन तो जैसे फैसला कर चुकी थी। उसने अपनी सहेली की जान बचाना सबसे महत्‍वपूर्ण समझा और उसके पति मुकुंद राठौर उसका हौसला बढ़ाते रहे।

रंजन के इस अनमोल दान ने सलीमा को मौत के मुंह से वापस खींच लिया है। अब सलीमा ठीक हो रही है। सलीमा ने भी अपनी सहेली की इस अनोखी और नई जिन्‍दगी देने वाली सौगात के बारे में सारी दुनिया को बताने का फैसला किया। हालाकि रंजन और उसके पति मुकुंद राठौर ने इसकी कोई ज़रूरत नहीं समझी मगर दोस्‍ती क्‍या होती है, ये सारे ज़माने को बताकर रही सलीमा। सलीमा और इकबाल जो एक किडनी के इंतजाम के लिए रिश्‍तेदारों की बेबसी और डॉक्‍टरों की लाचारी देखते-देखते थक चुके थे, अब रंजन की दोस्‍ती की वजह से फिर से उतने ही खुश हैं। दोनों परिवार ने एक साथ प्रेस कांफ्रेंस ली और सलीमा अपनी सहेली का शुक्रिया अदा करते नहीं थकी तो रंजन भी इसे अपना कर्तव्‍य बताते नहीं रूकी।

आज जब मामूली सी बात पर तनाव फैल जाता है, फसाद फड़फड़ाने लगता है, मौत के गिद्ध अच्‍छे खासे शांत शहर पर मंडराते नज़र आते हैं ऐसे दौर में एक हिन्‍दू महिला का एक मुस्लिम महिला को अपनी किडनी देकर उसकी जान बचाना देश के हर जिम्‍मेदार नागरिक के लिए अनुकरणीय उदाहरण बनकर सामने आया है। हो सकता है ये ख़बर फसाद फैलाने वाले दोनों तरफ के संगठनों को पसंद न आए, मुलायम सिंह को पसंद न आए अर्जुन सिंह और अमरसिंह के लिए भी ये बड़ी बात न हो, मगर देश की शांतिप्रिय जनता के लिए ये सर ऊंचा करने वाली बात है। यहां क्षमा सहित मैं ये ज़रूर कहना चाहूंगा कि इसी मामले में अगर मुस्लिम महिला ने हिन्‍दू महिला को किडनी दी होती तो शायद ये बहुत बड़ी ख़बर हो जाती। मैं इतनी बड़ी ख़बर को सिर्फ इंसानियत के नज़रिए से देखता हूं और चाहता हूं कि सभी वैसे ही देखें। हो सकता है कुछ लोगों को मेरी कुछ बातों पर आपत्ति भी हो और हो सकता है कुछ लोग मुझे हिन्‍दुवादी ठहराएं या मुस्लिम विरोधी घोषित करें, लेकिन मुझे उनकी रत्‍ती भर परवाह नहीं है। मुझे तो सलीमा और रंजन की दोस्‍ती अपने देश की परंपरा की मिसाल नज़र आई और इसीलिए मैं सलीमा को प्रणाम और रंजन को सलाम कर रहा हूं। आपको कैसी लगी रंजन और सलीमा की दोस्‍ती बताईएगा ज़रूर।

35 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

kya khoobsoorat baat hai, kaash aisa sabhi ke saath ho, sab ise sweekaren ki ek hi maalik ke banaye hue hain ham sab

संगीता पुरी said...

बहुत अच्छा लगा पढ़कर ... दोनो की दोस्ती काबिलेतारीफ है ही .... ऐसे और उदाहरण भी यत्र तत्र देखने को मिलते ही रहते हैं... इन घटनाओं का कुछ तो अच्छा असर समाज पर पड़ना ही चाहिए।

Anonymous said...

पुसदकर जी,
ना ही हिंदू के मन में बैर है और ना ही मुसलमान के, बैर का बीज रोपते हैं राजनेता, और इनका साथ देते हैं धर्म के ठेकेदार चाहे वो पोंगे पंडित हों या मुल्ले कठमुल्ले या पीर पादरियों की जमात, और ये वो वर्ग है जो पत्रकारिता की मदद से अपने राजनैतिक महत्वाकांक्षा पर आम जन के सौहार्द को बलि पर चढा देते हैं.
आप भी अभी कामोबेश उसी कार्य को अंजाम दे रहे हैं, जब दो लोगों ने आपस में सौहार्द दिखाया तो आप छत्‍तीसगढ़ का प्रेमालाप करने लगे,
ऊपर उठिए,
सलाम हमारे ऐसे सच्चे भारतियों को.

डॉ .अनुराग said...

इस देश को इस वक़्त इसी धर्य ओर विशवास की जरुरत है,उन लोगो का मकसद ही आपस में अविश्वास ओर घ्रणा फैलाना है ...

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत ही बढिया और प्रेरक पोस्ट है।बधाई।

दिनेशराय द्विवेदी said...

एक अच्छे इन्सान की अच्छाई को और बुरे की बुराई को जब आप धर्म से जोड़ देते हैं तो साम्प्रदायिक राजनीति कर रहे होते हैं।

RADHIKA said...

अनिल जी यही हैं सच्ची दोस्ती ,और यही हैं मित्रता का निबाह ,इन जैसी स्त्रियों के रहते भारत और भारतीयता को कोई नुकसान नही हो सकता

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सारगर्भित और प्रेरणा दायक पोस्ट ! शुभकामनाएं !

योगेन्द्र मौदगिल said...

सच्ची दोस्ती को सलाम
और पुसादकर जी
आपकी इस प्रस्तुति को भी सलाम

वर्षा said...

धर्म,जात-पात से ऊपर इंसानियत का रिश्ता होता है। ऐसे कितने ही किस्से हमारे ईर्द-गिर्द मौजूद होते हैं, पर जाने क्यों धमाके सब पर हावी हो जाते हैं।

Gyan Darpan said...

बहुत ही बढिया और प्रेरक

दीपक said...

यह खबर डेली छ्त्तीसगढ मे पढी थी आपने इसमे सांप्रदयिक सौहार्द का रंग भर दिया है !एक अच्छी पत्रकारिता और एक अच्छी ब्लागिंग !!धन्यवाद

जितेन्द़ भगत said...

उनकी दोस्‍ती वाकई एक मि‍साल है, इस प्रेरक पोस्‍ट के लि‍ए शुक्रि‍या।

Anonymous said...

इंडियन मुजाहीदिन रायपुर आओ देखो इंसानियत क्‍या होती है ....
बहुत शानदार टाईटल है
आप किसे बुला रहे हो?
इंडियन मुजाहीदिन या सिमी को?
शायद दोनो ही आपके शहर रायपुर,दुर्ग,बिलासपुर मे पहले से सक्रीय है दोनो के कार्यकर्ता उपलब्ध है!यकीन ना हो तो पता लगा लीजीये!
....... आपका लेख पढकर खुशी हुई!

खबरी! said...

बहुत बढिया..

श्रीकांत पाराशर said...

Smt Ranjan aur unke pati mukund, dono ko salam. Unka kam dusaron ke liye mishal honi chahiye.

राज भाटिय़ा said...

सच्चे दोस्त की यही पहचान है, धन्यवाद

Gyan Dutt Pandey said...

आदर्श!

PD said...

प्रेरणा दायक पोस्ट..

Vivek Gupta said...

बहुत ही बढिया और प्रेरक पोस्ट

BrijmohanShrivastava said...

दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं /दीवाली आपको मंगलमय हो /सुख समृद्धि की बृद्धि हो /आपके साहित्य सृजन को देश -विदेश के साहित्यकारों द्वारा सराहा जावे /आप साहित्य सृजन की तपश्चर्या कर सरस्वत्याराधन करते रहें /आपकी रचनाएं जन मानस के अन्तकरण को झंकृत करती रहे और उनके अंतर्मन में स्थान बनाती रहें /आपकी काव्य संरचना बहुजन हिताय ,बहुजन सुखाय हो ,लोक कल्याण व राष्ट्रहित में हो यही प्रार्थना में ईश्वर से करता हूँ ""पढने लायक कुछ लिख जाओ या लिखने लायक कुछ कर जाओ "" कृपा बनाए रखें /

Nitish Raj said...

हमारे देश की यही तो पहचान है लेकिन कुछ लोग गलत तरीके से इसको ले लेते हैं और फिर जहर उगलते हैं। एक प्रेरक लेख। धन्यवाद।

Ghost Buster said...

बढ़िया पोस्ट.

L.Goswami said...

अनिल जी ऐसी मिशाल के हमारे सामने रखने के लिए आपका बहुत धन्यवाद.कोई कितनी भी कोशिस कर ले जहर के बीज बोने की अंततः जीत सच्चाई की होती है

seema gupta said...

" a good begining which needs lots of wishes and good luck for success"

Regards

संजय बेंगाणी said...

धर्म तोड़ता है, मानवता जोड़ती है.

कुश said...

एक भी मुस्लिम ब्लॉगर की टिप्पणी नही??????

Unknown said...

@सलाम है श्रीमती रंजन को जिसने अपनी सहेली सलीमा को किडनी देकर अनुकरणीय उदाहरण पेश किया है। प्रणाम है सलीमा को, जिसे अपने व्‍यवहार से रंजन जैसी सहेली मिली। नमन है दोनों की दोस्‍ती को, जो बम धमाकों और नफरत की आग के ऐसे नाजुक दौर में भी प्‍यार का मीठा संदेश दे रही है।

मेरा भी सलाम उन को.
एक बात समझ में नहीं आई कि एक हिंदू की किडनी एक मुसलमान के शरीर में कैसे फिट हो गई? अल्लाह के बन्दे और भगवान् के भक्त इस पर रौशनी डालेंगे क्या?

प्रदीप मानोरिया said...

vry nice article

प्रदीप मानोरिया said...

मानवता की कभी पराजय नहीं होती , यह सच है की आजकल लोगो में संवेदना नहीं होती लेकिन सुसंस्कृत ह्रदय में कभी निष्ठुरता भी नहीं होती सार्थक आलेखित सूचना के लिए बधाई और धन्यबाद

Anonymous said...

बेहतरीन उदाहरण, बढ़िया पोस्ट!

شہروز said...

bhai sahab yahi hai hamara saajha-sarokaar, ise hi ganga-jamni sanskriti kahte hain.

khushi aur zyada isliye huik apun ka nata bhi wahin se hai.

agar agya dijiye to ye lekh ya iska link ek intro k saath apne saajha-sarokaar.blog par de doon.

fursat mile to mere rachna-sansaar par padhiye.
musalman jazbati hona chhoden

Smart Indian said...

धन्य हैं श्रीमती रंजन राठौर. प्रभु की असीम कृपा उन पर सदैव बनी रहे! आपको भी धन्यवाद ऐसी प्रेरणास्पद ख़बर के लिए. रही बात भेदभाव और नफरत का राग अलापने वालों की, तो आप सोते को जगह सकते हैं मगर आँख मूंदे बहानेबाज़ शैतानों को जगाना आसान नहीं है. जिन्हें बम फोड़ने हैं वह वहशी कोई न कोई बहाना ढूंढ ही लेंगे. ज़रूरत है चुन चुन कर उन्हें क़ानून के हवाले करने की.

समीर यादव said...

अनिल भाई, एक काबिल-ए-गौर मिसाल. और भी अनेक मिसाले हैं, जो आप जैसे कलमकार के निगाहें करम का इंतजार कर रही हैं. नेक इंसान की काबिल पत्रकारिता.

Vikas said...

muje bhi samajh me nahi a raha ki ek hindu ki kidney ek musalman ke sharir me fit kaise ho gai!