दक्षिण बस्तर के बीजापुर जिले के मद्देड़ थाने से निकली सीआरपीएफ की रोड ओपनिंग पार्टी के 12 जवानों को पता भी नहीं था कि वे जिन्दा वापस नहीं लौट पाएँगे। उनके साथ गए 6 और जवान मौत से जूझ रहे हैं। आखिर उन सबकी गल्ती क्या है ? क्या परिवार पालने के लिए सीआरपीएफ की नौकरी करना पाप है ? क्या परिवार को जिन्दा रखने के लिए खुद की जान खतरे में डालना ज़रूरी है ? पता नहीं क्यों मार रहे हैं नक्सली बेकसूर जवानों को ?
दिन दहाड़े भरी दोपहरी में आज नक्सलियों ने घात लगाकर पुलिस पार्टी को निशाना बनाया। उन्होंने दिन में भी हमला करके ये साबित कर दिया कि वे सिर्फ रातों के ही राजा नहीं हैं। चुनाव की घोषणा के बाद आज से ही नामांकन दाखिले का सिलसिला शुरू हुआ है। और आज ही नक्सलियों ने वारदात कर अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं। दोपहर लगभग 12 बजे मद्देड़ थाने से 15 किलोमीटर दूर मोदकपाल और कुंगपल्ली के बीच रोड ओपनिंग पार्टी को माइन्स ब्लॉस्ट कर घेरा नक्सलियों ने। इससे पहले कि वे कुछ समझ पाते, चारों ओर से फायरिंग शुरू हो गई। अचानक हुए धमाके और फिर हुई गोलाबारी से डेढ़ दर्जन जवान उनका निशाना बन गए। 12 तो घटनास्थल पर ही मारे गए और 6 बुरी तरह घायल हुए, जिसमें 1 की हालत काफी गंभीर है। घायलों को ईलाज के लिए हेलिकॉप्टर से राजधानी रायपुर भेजा गया है। इस वारदात में सत्रहवीं बटालियन के शैलेन्द्र कुमार, पप्पू कुमार, चुम्मन सिंह, मति-उर-रहमान, कमलेश कुमार और अभिजय कुमार समेत 12 जवान शहीद हो गए। विक्रम रेड्डी, जी आर नाथ, मोनीकांत मजूमदार, लक्कीचंद दास, सदन डेकर और पवन कुमार बुरी तरह घायल हुए हैं। इस वारदात के बाद नक्सली जवानों की 8 एस.एल.आर. रायफल भी लूटकर ले गए हैं। बस्तर रेंज के आई.जी. ए.एन. उपाध्याय ने घटना की पुष्टि की है।
नक्सली दक्षिण बस्तर में वैसे भी बहुत मजबूत है, खासकर आंध्रप्रदेश और उड़ीसा की सीमा से लगे इलाकों में। यहां चुनावी कार्यक्रम के शुरू होते ही नक्सलियों ने अपना कार्यक्रम शुरू करके सरकार को चुनौती दे दी है। नक्सली वैसे भी चुनाव का बहिष्कार करते आए हैं और चुनाव के पहले उन्होंने अभी से पर्चे लगाकर बहिष्कार की चेतावनी देना शुरू कर दिया है। कागजी चेतावनी के साथ-साथ आज के धमाके के साथ उन्होंने मैदानी चेतावनी भी जारी कर दी है।
बस्तर की हरी-भरी धरती फिर एक बार निर्दोष जवानों के खून से लाल हो गई है। बस्तर लगता है धीरे-धीरे खुबसूरत चुड़ैल बनता जा रहा है जिसे आए दिन जवानों का खून चाहिए। दर्जन भर जवान आज बेमतलब अपनी जान गंवा बैठे हैं। सभी अपने परिवार से दूर उसी परिवार के जीवनयापन के लिए अपनी जिन्दगी दांव पर लगाकर नौकरी कर रहे थे। अब कभी वापस नहीं लौटेंगे 1 दर्जन जवान। आखिर उनकी गल्ती क्या है ? क्या अपने परिवार के लिए रोजी-रोटी कमाना पाप है ? आखिर थमेगा भी या नहीं ये सिलसिला ?
9 comments:
अनिल जी बड़ी गंभीर समस्या बन गई है ये नक्सलाईट्स की ! उन ६ जवानो की आत्मा की शान्ति की प्रार्थना करते हुए सरकार से इस दशा में अब कुछ ठोस कदम की अपेक्षा है ! धन्यवाद !
anil ji, ek din poora desh hi grahyuddh me fans jaayega, dekhte rahiye, netaon ko ghatiya raajniti se fursat nahi hai, afsaro ko ghar bharne se
जवानो की इस देश में पड़ी किसे है अनिल जी....सरकार को अपनी कुर्सी की फ़िक्र है ओर नौकरशाहों को अपनी नौकरी की.
बहुत ही दुखद है। नक्सलवाद गरीबी का समाधान नहीं, माफिया सा प्रतीत होता है।
samsya badi gambhir hai.
अब तो एक ही रास्ता है इन मन्त्रियो को राईफ़ल दे कर भेजो भाई तुम खुद ही सम्भालो अपने जमाईयो को, जो जवान मरते है उन पर भी यह अपनी वोटो का चक्कर चलाते है.
भगवान उन जवानो की आत्मा को शान्ति दे, ओर उन के परिवार को इस दुख सहने का होस्सला दे
बहुत दुखद और घुटन भरी स्थितियाँ हैं.
" kya is beemaree ka koee ilaaj nahee, kitne dardnak sthee hai.."
Regards
अनिल जी
छत्तीसगढ पुलिस तथा सरकार का ढाँचा नक्सल क्षेत्र मे नीतिगत तौर पर चरमरा गया है खासतौर पर पुलिस का कार्य सम्पादन की दृष्टिकोण से मजबूत पद सब इंसपेक्टर का माना जाता है जो पूर्ण निष्ठा तथा निडरता के साथ कार्य करते है किंतु वर्तमान पुलिस अधिकारी तथा सरकार के नुमाईन्दे इस पद को समाप्त करने मे लगे है। वर्तमान मे सब इंसपेक्टर के जो पद शासन द्वारा स्वीकृत है उनकी पूर्ती ही नही है बचे कुचे सब इंसपेक्टरो को भी इंसपेक्टर बनाने की कबायद चल रही है । एक समय था 15-20 सालो मे प्रमोशन होता था आज ऎसी क्या जल्दी है कि 6-6, 7-7 सालो के सब इंसपेक्टरो को प्रमोट किया जा रहा है? नक्सल समस्या पर ध्यान केन्द्रित न कर प्रमोट करने पर पूरा ध्यान केन्द्रित है ऎसा क्यो? क्या निकम्मे इंसपेक्टर नक्सल समस्या से निपट पायेगें? आई.पी.एस. / डी.एस.पी. जब इतने कम समय मे प्रमोट नही होते तो फिर सब इंसपेक्टर के प्रमोशन के पीछे क्या मकसद / लाभ है?
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