राजधानी रायपुर में कल कुछ पत्रकार और कैमरामेन शिकार करते-करते खुद शिकार हो गए। कलेक्टोरेट परिसर में एक पुलिस में नामजद लड़की को दिनदहाड़े कुछ लड़कों से बात करते देख इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के धाँसू कैमरामेन और पत्रकार ने इस हॉट ख़बर के पीछे लग गए मगर मामला उल्टा पड़ गया। इस बीच पुलिस से भी उन्होंने संपर्क किया और जब तक पुलिस पहुँचती तब तक लड़कियाँ वहीं एसपी ऑफिस में घुस गई और कैमरामेनों को छेड़खानी के आरोप में फंसा दिया। इस मामले में सबसे शर्मनाक भूमिका रही राजधानी के एसपी की। जिसने सब जानते-बूझते लिस्टेड लड़कियों की शिकायत को तवज्जो देते हुए अपने विरोधी मीडिया वालों को अपराध में फंसा दिया।
दरअसल राजनैतिक आकाओं और जातिगत समीकरणों के चलते अग्रवाल मंत्री के इलाके यानि राजधानी रायपुर में पोस्टिंग पाने वाले एसपी अपराध पर नियंत्रण करने में सवर्था असफल रहे हैं। गाहे-बगाहे मीडिया को लपेटने की कोशिश वे अरसे से करते आ रहे हैं। इत्तेफाक से कल उन्हें मौका मिल गया। आए दिन चोरी, लूट, हत्या और बलात्कार के अपराधों की ख़बर दिखाने वालों को कल उन्होंने अपराध में फंसाकर थाने के दर्शन करवा दिए। अफसोस कि बात तो ये है कि एक नहीं तीन-तीन लोकल चैनल के पत्रकार और कैमरामेन के खिलाफ एक लिस्टेड लड़की से रिपोर्ट लिखवाई गई। उस लड़की से जिसे पुलिस ने इसके पहले कई बार देह व्यापार के मामले में पीटा एक्ट के तहत गिरफ्तार किया है। उस लड़की से जिसने एक बार अपने कपड़े फाड़कर कुछ लड़कों पर इज्जत लूटने का आरोप लगाकर सड़क पर दौड़ लगाते हुए सनसनी फैला दी थी। इस मामले को नेशनल न्यूज़ चैनल वालों ने तीन दिन बाद दिखाकर सारे देश में रायपुर में अराजकता के राज को साबित कर दिया था। उस मामले में पुलिस की खुद सारे देश में किरकिरी हुई थी और शहर में तो लोग थू-थू करते ही रहे।
अब ऐसे में उन लड़कियों का सहारा लेकर पुलिस वाले साहब ने अपने विरोधियों का शिकार कर दिया। वैसे भी औरतों के पीछे छिपकर वार करने वाले या औरतों के कंधे पर बंदूक रखकर निशाना लगाने वालों को क्या कहा जाता है सब जानते हैं। बिना मूछ वाले इस पुलिस की कद-काठी और सूरत-शक्ल भी ऐसी नहीं है कि लोग उनसे खौफ खाएँ या उनका रत्ती भर भी इम्प्रेशन बने। इसलिए शायद उन्होंने लिस्टेड लड़कियों का सहारा लेकर पत्रकारों को शिकार बना दिया।
वैसे गल्ती पत्रकारों और कैमरामेनों की भी है, उन्हें मालूम होना चाहिए कि वे खुद पुलिस के निशाने पर हैं। अपराध को रोकने और उस पर नियंत्रण पाने में नाकाम रही पुलिस ने अपराध की ख़बरों को रोकने की भी भरपूर कोशिश की। एक-दो पत्रकारों को फाइनेंस करके कोशिश भी की गई मगर वो सफल नहीं रही। आखिर पुलिस ने बेशर्मी अपनाना ज़्यादा बेहतर समझा और बेशर्मी से हर अपराध पर शहर बड़ा हुआ है अपराध तो बढ़ेगें ही कहकर खी-खी-खी-खी करते रहे और सवाल पूछने वालों पर गुस्सा करते रहे।
खैर जो भी हो जितनी ताकत से पुलिसवाले साहब ने कैमरामेनों को भुगतने की वार्निंग दी और लड़की की शिकायत पर रिपोर्ट दर्ज कर जेल भेजवाने की धमकी दी, वो कुछ पल में ही फुस्स हो गई। ऐन चुनाव के समय पत्रकारों से उलझने की बजाय उनका मामला सुलझाने के लिए सभी बड़े पत्रकार और नेता एक साथ पिल पड़े और नतीजन मजबूरी में ही सही जेल में ठूंसने की हसरत की हवा निकालते हुए तीनों कैमरामेन को थाने से ही मुचलके पर छोड़ना पड़ गया। अब जो पत्रकार और कैमरामेन हॉट ख़बर के लिए जिस लिस्टेड लड़की को शिकार बना रहे थे उसी के शिकार होकर लौटे हैं।
15 comments:
निस्संदेह पुलिस ने सही नही किया है, पर मेरा व्यक्तिगत मानना है की मीडिया वाले भी कम नही होते. बहुत जादा फर्क नही है दोनों की कार्यपद्धति में. आशा है की ये बात न तो सभी मीडिया वालो के परिपेक्ष्य में ली जायेगी और न ही सभी पुलिस वाले एक से होते हैं..
kya ho gaya hai is polise ko?
क्या कहे.......पर एक बात ओर है ...पापरेजी या कुछ ऐसी ही टर्म इस्तेमाल की जाती है विदेशी मीडिया में ...उन लोगो के बारे में जो कुछ लोगो के निजी जीवन में तांक झाँक करते है ओर कई बार हदे लाँघ जाते है....ये भी ध्यान रखना होगा पत्रकारों को.
दरअसल पत्रकारों को भी कुछ सयंम बरतना चाहिए ख़बर के चक्कर में हर किसी के पीछे लग जाते है
behad afasosajanak hai .
क्या बताये अनिल जी ! यह सब बड़ा अफसोस जनक लगता है और लगता है की अभी भी कहीं ना कहीं किसी लेवल पर गड़ बड
जरुर है !
इस शिकार के मामले में सब ओर से सब जायज है?! :)
Theek kaha aapne, patrakaron ko bhi to satark rahna chahiye. sari duniya ko savdhan karne wala media khud itni aasani se fans jaye to galti media walon ki bhi hai.Police aur neta to mouka dhundhte hi hain.
चलिये आज पत्रकार तो कल शायाद यही पुलिस वाले भी तो शिकार बन सकते है, यहां सब गोल माल है ...
धन्यवाद
" ye to filmee nazara ho gya, sheekar krne ko aaye, sheekar ho ke chle...., kabhee kabhee laine ke daine bhee pd jateyn hain, "
Regards
कभी कभी दांव उल्टा भी पड जाता है।
pulis ka to kaam yahi hai, darasal apradhiyon aur pulis ke beech bahut jyada antar nahi rah gaya hai, saansad ki pitai.
Bahoot thik kiya ladkiyon ne, patrakarita bhatak gayi hai, samaj ko repair karne ka mahan karya me unki bhi hissedari hai. Lekin yeh log garam samachar ke jugad me rahaten hai. Patrakarita ka andaaj rahta to yeh janane ki koshish ki jati ki Kya paristhitiyan samaj ne paida ki hai jo unko yeh kaam karna pada aur samaaj ke thekedar ka role kya raha hai? yehan ulta kam kar rahen the.
raipur kafi aage nikal raha hai humare time me rajniti khasker jogi
ki rajniti hi charcha hoti thi.hamla to tab bhi hua aur hum log lade the.lagta hai her jagah lagatar ladna hi niyati ban gai hai.
एक डाल-डाल तो एक पात-पात वाला किस्सा दिखता है !!वैसे ये बात सही है कि चार साल सरकार के औरे एक साल पत्रकार के !!
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