चुनाव आयोग की छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव की घोषणा का जवाब नक्सलियों ने दंतेवाड़ा के बिजली सप्लाई टॉवर को उड़ाकर दिया है। नक्सली चुनाव की घोषणा से पहले ही बस्तर के इलाकों में बहिष्कार की पोस्टर लगाते आ रहे थे, और आज चुनाव की घोषणा होते ही दंतेवाड़ा इलाके के 250 गांवों को अंधेरे में डुबोकर अपने इरादों का नमूना पेश कर दिया है। डीजीपी विश्वरंजन बस्तर का दौरा कर वापस लौटे हैं और नक्सलियों ने आज उन्हें सलामी दे दी।
चुनाव के पूर्व बस्तर में सारी तैयारियां ठीक-ठाक रखना और सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम पुलिस की जिम्मेदारी है। डीजीपी विश्वरंजन ने बस्तर में दावा किया था कि चुनाव के दौरान वहां पुख्ता सुरक्षा इंतजाम किए जाएंगे। उन्होंने ये भी कहा कि इसके लिए अर्धसैनिक बलों की 500 से ज़्यादा कंपनियां मांगी गई है। नक्सलियों से निपटने के लिए बस्तर इलाके में सीआरपीएफ के विशेष दस्ते कोबरा के 6 प्लाटून तैनात किए गए हैं और इनकी संख्या बढ़ाई जाएंगी। डीजीपी विश्वरंजन दौरा पूरा कर रायपुर वापस लौटे हैं और नक्सलियों ने बता दिया कि उनके इंतजाम उतने पुख्ता नहीं है जितना वे समझ रहे हैं।
चुनाव अभी दूर है लेकिन बस्तर के नक्सल प्रभावित बस्तियों में चुनाव बहिष्कार के पोस्टर लगने शुरू हो गए हैं। ये उनकी चेतावनी का पहला चरण है और इससे पहले उनकी कागजी चेतावनी का सरकारी जवाब सामने आता, उन्होंने एक बार फिर बिजली सप्लाई को अपना निशाना बनाया और टॉवरों को उड़ाकर 250 से ज़्यादा बस्तियों को अंधेरे में डुबोकर सरकार को चेतावनी तो दी ही साथ ही बस्तर में अपनी ताकत का जलवा भी दिखा दिया।
अब प्रशासन के साथ दोहरी दिक्कत तय है। उसे चुनाव शांतिपूर्ण ढंग से कराने की तैयारियां करना है और दूसरी ओर सबसे सॉफ्ट टार्गेट साबित हो चुकी बिजली सप्लाई लाइन को ठीक भी करना है और उसे बचाए भी रखना है। दरअसल बस्तर की भौगोलिक संरचना नक्सलियों के लिए स्वर्ग से कम नहीं है और यही संरचना पुलिस के लिए मौत का जाल साबित होती है। जंगल के चप्पे-चप्पे से नक्सली वाकिफ हैं और उन्हें कोई कुछ भी कहे लोकल सपोर्ट मिलता ही है। सरकार ये दावा ज़रूर करती है कि बस्तर में उनकी सरकार है लेकिन बस्तर में नक्सलियों को मिलने वाले भरपूर जनसमर्थन से कहानी कुछ और नज़र आती है।
एक बात ज़रूर है कि नक्सलियों का बार-बार बिजली सप्लाई ठप करना उनके जनसमर्थन को कमजोर ही कर रहा है। आम जनता नक्सलियों और सरकार की लड़ाई में पिस रही है। उसे बेमतलब अंधेरे में रहने की सज़ा भुगतनी पड़ रही है। अब सवाल ये उठता है कि दंतेवाड़ा इलाके की 250 से ज्यादा बस्तियों में रौशनी वापस कब लौटेगी। पिछली बार भी दंतेवाड़ा के साथ-साथ बस्तर के जिला मुख्यालय जगदलपुर की भी बिजली सप्लाई टॉवर गिराकर नक्सलियों ने ठप कर दी थी। तब खुद मुख्यमंत्री रमन सिंह ने अपनी देखरेख में बिजली सप्लाई ठीक करने का काम करवाया था जो 7 दिनों में पूरा हुआ था। 7 दिनों तक बस्तर अंधेरे में डूबा रहा। अस्पताल से मरीजों को दूसरे शहर भेजना पड़ा था। पानी की सप्लाई तक नहीं हो पा रही थी। जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया था। एक बार फिर वैसी ही हालत नक्सलियों ने कर दी है।
चुनाव के पूर्व नक्सलियों के बहिष्कार के पोस्टर तो हर बार लगते रहे हैं लेकिन बिजली सप्लाई ठप करने का ये पहला मामला है। खासकर चुनाव की घोषणा होते ही और पुलिस के सबसे बड़े साहब डीजीपी विश्वरंजन के दौरे से लौटते ही नक्सलियों की इस वारदात ने सरकार की चिंता को शायद और बढ़ा दिया है।
14 comments:
Ramansingh ke liye badi chunouti hai. chunav men apni party ki jeet tay kare ki naxalion se nipte.
और आपने आपके सम्मान के बदले ये पोस्ट लिखकर अपनी सलामी दर्ज करायी !!
बस्तर मे चुनाव पुलिस और शासन के लिये टेढी खीर बनता जा रहा है।
ह्म्म्म, देखते हैं हमारे शायराना मिज़ाज़ के डीजीपी साहेब कैसे निपटते हैं।
वैसे हम कई महीनों से बस देखते ही आ रहे हैं।
नक्सलियों को जन समर्थन मिल रहा है, यह चिंतनीय बात है। इस का हल पुलिस के पास नहीं। राजनीति में इतना दम नहीं कि कोई राजनैतिक हल निकाल ले। क्या होगा इस का अंत?
वोट के जरिए दो निकृष्ठों में से किसी को चुनना पड़ रहा है। इस निराशा को नक्सलवादी भुना रहे हैं। अंडरवर्ड का जो भी धुरंधर पकड़ा गया है वही जमानत के बाद चुनाव लड़ कर एम पी बनने का ख्वाब देख रहा है। क्या है इस का इलाज?
डीजीपी विश्वरंजन बस्तर का दौरा कर वापस लौटे हैं और नक्सलियों ने आज उन्हें सलामी दे दी।
.... डीजीपी को सलामी की आदत पड गयी है, उन्हे सलामी मे मजा आ रहा है तभी तो पुलिस विभाग के सबसे मजबूत मोहरे सब-इंसपेक्टर के पद को विलुप्त करने मे लगे है और बचे-कुचे सब-इंसपेक्टरो को भी प्रमोट कर इंसपेक्टर बनाने का प्रयास कर रहे है, अब सब-इंसपेक्टर के पद स्वीकृत पदो से भी मात्र बीस प्रतिशत बच रहे है, और निकम्मे इंसपेक्टर की भरमार का प्रयास किया जा रहा है, ऎसी स्थिति मे नक्सली, सिर्फ नक्सलियो का ही बोलबाला रहेगा, बिस्फोट तो होते रहेगे और सलामी का दौर भी चलते रहेगा।
जब सरकार हिजडो की हो तो ऎसा ही होता है
धन्यवाद
sarkar ko in naksliyoin se sakhiti se nipatana chhiye.
a very well researched & well reflected write up. Keep it up !
-Archana
अब सवाल ये उठता है कि दंतेवाड़ा इलाके की 250 से ज्यादा बस्तियों में रौशनी वापस कब लौटेगी। पिछली बार भी दंतेवाड़ा के साथ-साथ बस्तर के जिला मुख्यालय जगदलपुर की भी बिजली सप्लाई टॉवर गिराकर नक्सलियों ने ठप कर दी थी।
जब हालत इस कदर खराब हैं और जन समर्थन भी मिल रहा है तो विकास की बात तो हमें छोड़ ही देनी चाहिए बल्कि वहाँ तो जिंदा रहना भी किसी चमत्कार से कम नही होगा ?
sarkaren chahti hi nahi ki samasyayen kam hon, mujhe taajjub is baat ka hai ki ye poora desh naxali kyon nahi bana ab tak
" sarkar se shantee sheet kaise bhee suraksha kee umeed tk krna baikar hai, pitty on common man... janey kaise jee rhen hain..'
regards
बड़ी विचित्र स्थिति है देश में चारों तरफ़, जो भी देश के पक्ष में आवाज़ लगाये उसे ही दोषी ठहरा दो… चैनलों को अमिताभ की बीमारी से ही फ़ुर्सत नहीं हैं ऐसे में जनता उपेक्षित महसूस न करे तो क्या करे… भारत स्पष्ट रूप से दो भागों में विभक्त हो चुका है, "इंडिया" और "भारत"…
कई बार तो समझ में नहीं आता कि ये छत्तीसगढ़ हमारे ही देश का हिस्सा है ना। बस्तर सात दिन तक अंधेरे में डूबा रहा किसी को पता ही नहीं। चुनाव आयोग का ये कदम सही है कि छत्तीसगढ़ में ही सिर्फ दो फेज में चुनाव कराए जा रहे हैं।
सरकार को चाहिए कि वह इस समस्या के सम्पूर्ण समाधान के लिए प्रस्तुत हो, ताकि जनता को इन आए दिनों के जंजालों से मुक्ति मिल सके।
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