दफ्तर में मैं कल दोपहर एक महिला मिलने आई। मैं उन्हें पहचानता नहीं था। वो एक एनजीओ चलाती है। मैंने उन्ासे दफ्तर आने का कारण पूछा और उसके बाद जो कुछ हुआ उससे ऐसा लगा कि मेरा ब्लॉग लिखना सफल हो गया।
जो महिला मुझसे मिलने आई थी उनका नाम था सुनीता टिकरिया। उन्होंने अपना परिचय देने के बाद मुझसे बताया कि उन्हें मेरी मदद की ज़रूरत है। मदद की बात सुनते ही शायद मेरा चेहरा कुछ बिगड़ा होगा जिसे वे पहचान गई। उन्होंने कहा कि मुझसे जो कुछ बन पड़ता है मैं लोगों की सेवा करती हूं और आज जो समस्या है उसका समाधान मेरे बस का नहीं है। एक पत्रकार विवेक साहू ने आपके बारे में बताया इसलिए आपके पास आई हूं और मदद मुझे नहीं चाहिए एक ज़रूरतमंद को चाहिए जो अस्पताल में मौत से जूझ रही है।
एनजीओ के बारे में मेरी धारणा बहुत अच्छी नहीं है इसलिए शायद मैं उन पर विश्वास नहीं कर पाया और शक से भरी पूछताछ शुरू कर दी। उन्होंने बिना विचलित हुए बताया बिलासपुर की एंजिला सिंह एक निजी अस्पताल में भर्ती है और रूपयों के अभाव में उनका ईलाज रूक रहा है। उनकी दोनों किडनी में इन्फेक्शन है और ईलाज में भारी रकम खर्च होगी। मैंने उनसे पूछा आप मुझसे क्या चाहती हैं। उन्होंने कहा आप दो-चार भले इंसानों के नाम दे दीजिए। मैं उनसे मिलकर मदद मांग लूंगी। मेरे दिमाग में शक का कीड़ा कुलबुला ही रहा था। मैंने उनसे कहा कि शाम को आप फोन कर लीजिएगा मैं कुछ लोगों से बात कर आपको नाम दे दूंगा। उन्होंने कहा कि आप उन लोगों को बता दीजिएगा मदद मुझे नहीं सीधे अस्पताल में जमा करा देंगे।
अचानक मुझे एक शख्स की याद आई। उन्होंने यहां प्रकाशित होने वाले अख़बार आज की जनधारा में मेरी लिखी एक ख़बर को पढ़कर मुझे फोन कर कहा था कि जब कभी किसी ज़रूरतमंद को मदद की ज़रूरत पड़े तो मुझे याद कर लीजिएगा। ख़बर मेरे ब्लॉग पर लिखी एक पोस्ट थी जिसे पत्रकार बबलू तिवारी ने पढ़कर मुझसे उसे अख़बार में प्रकाशित करने की अनुमति मांगी बबलू मेरे साथ कुछ समय काम कर चुके थे और वो मुझे बहुत प्रिय भी हैं। मैंने उनसे कहा बबलू ये मेरा नहीं तुम्हारा ही ब्लॉग है जैसा चाहो कर सकते हो।
बबलू तिवारी ने आरती नाम की डेढ़ साल की बच्ची की ईलाज के अभाव में हुई मौत पर लिखी पोस्ट को प्रमुखता से प्रकाशित किया था। तब से बबलू मेरे ब्लॉग पर लिखी पोस्ट लगातार प्रकाशित करते आ रहे हैं। उस पोस्ट को पढ़कर जिन सज्जन ने मुझे फोन किया उन्होंने अपना परिचय हार्डवेयर वाले गुप्ताजी के रूप में दिया था। बस इतना ही जानता था मैं उन्हें। वे मुझे नाम से जानते थे लेकिन हमारी मुलाकात नहीं थी।
कई महीनों बाद अचानक मुझे वो गुप्ताजी याद आ गए और मैंने बला टालने के लिहाज से उस महिला को गुप्ताजी का नाम बता दिया। पता पूछने पर मैंने उन्हें बताया कि बाम्बे मार्केट में उनकी दुकान है। वो महिला उठी और मुझे धन्यवाद देकर चली गई। मैंने भी राहत की सांस ली और वापस काम पर लग गया।
लगभग आधे घण्टे बाद मोबाईल पर उस महिला का फोन आया। थोड़ा कंझाते हुए मैंने पूछा कहिए क्या बात है। महिला ने कहा ये गुप्ताजी से बात कर लीजिए। मैं एक पल के लिए हैरान रह गया। आखिर उस महिला ने गुप्ताजी को ढूंढ ही निकाला। मैं सोच ही रहा था कि क्या सोच रहे होंगे गुप्ताजी मेरे बारे में। इतने में उधर से आवाज़ आई क्या हाल है अनिल। मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था। उधर से गुप्ताजी ने कहा कि ये महिला तुम्हारा नाम लेकर आई थी मैंने सोचा कंफर्म कर लूं इसी बहाने तुमसे बात भी हो जाएगी। उन्होंने कहा कि अब किसी और बात मत करना मैं सब देख लूंगा। मुझे खुद पर शर्म आई। फिर मैंने सोचा चलो ट्राई करने के नाम पर ही सही ज़रूरतमंद को मदद तो मिली।
महिला ने मुझे फोन पर धन्यवाद देना शुरू किया तो मैंने उन्हें टोका और कहा कि मुझे नहीं गुप्ताजी को धन्यवाद दीजिए। उन्होंने कहा कि गुप्ताजी तक मुझे आप नहीं भेजते तो मैं उनसे मिलती कैसे। इस बार मेरे दिमाग में शक का कीड़ा नहीं कुलबुलाया। उसकी दुआ मुझे दिल से निकलती लग रही थी। मैंने गुप्ताजी से बात की और कहा कि शाम को आपकी दुकान आकर आपको धन्यवाद दूंगा। गुप्ताजी से मैंने नाम और पता पूछा। उनका नाम प्रदीप गुप्ता और उनकी गुप्ता हार्डवेयर के नाम से राज टॉकिज के सामने बाम्बे मार्केट में 9 नंबर की दुकान है।
शाम को मैं उनकी दुकान पहुंचा। वे कहीं जा चुके थे। उनसे मुलाकात नहीं हो पाई। उनकी दुकान से लौटते समय मैं सोच रहा था कि आखिर मेरा, प्रदीप गुप्ता, सुनीता टिकरिया और एंजिला सिंह के बीच रिश्ता ही क्या है। सुनीता टिकरिया आज मुझसे पहली बार मिली थी। इससे पहले मैं उनसे नहीं मिला था। मैं प्रदीप गुप्ता और एंजिला सिंह से भी नहीं मिला था। प्रदीप गुप्ता हम तीनों से नहीं मिले थे। सच पूछा जाए तो हम चारो एक-दूसरे को जानते तक नहीं थे। मैं सोच ही रहा था पता नहीं कौन कैसे किसके, कब काम आ जाता है। बहुत सोचने पर मुझे लगा कि एंजिला को मदद दिलाने वाली मुख्य कड़ी मेरा ब्लॉग ही था। मुझे लगा मेरा ब्लॉग लिखना सफल हो गया। मैं मन ही मन प्रदीप गुप्ता की इंसानियत को बार-बार सलाम करता वापस चला आया।
34 comments:
ऐसे कहते है ना सूचना क्रान्ति !
insaaniyat ke jajbe ko naman
इसमें कोई शक तो नहीं कि ब्लाग आपस में लोगों को एक दूसरे के करीब लाने का एक माध्यम तो बन ही गया है ।
देखिये यह है वर्चुअल जगत का वास्तविक जगत से सार्थक मिलन!
याद रहेगी यह पोस्ट।
slam-slam-slam.
ye bahut badhiya baat huyi,kabhi kabhi anjane insaan bhi ek dhage se jud jate hai,sachblog likhna safal raha badhai
दुआ करते हैं कि आगे भी आप ऐसे ही लोगों के काम आते रहेंगे और आपका ब्लॉग उत्तरोत्तर तरक्की करेगा…
neknaami milanee hai to wah milegi hii. chaahe jaise bhee ho.
यही मानवीयता है और सुचना की तकनीक ने तो दुनिया को एक मुठ्ठी में समेट ही दिया है ! ऐसे ही नेक काम आप करते रहे ! बहुत शुभकामनाएं !
badhai
मानवता का रिश्ता बडा असरकारक होता है अनिल जी !! ईश्वर कृपा और आप सबो के प्रयास से किसी को जिंदगी मिली इससे बडी बात और क्या होगी !! बधाई
वैसे आपके ब्लाग के तेजतर्रार तेवर से हमारे महज टिपीयाने के लिये बनाये गये ब्लाग को भी नयी दिशामिल गयी इस लिहाज से भी आपका ब्लाग लेखन सफ़ल हो गया मानीयें ॥ये अलग बात है मैने पत्रकारो को भी नही छोडा वैसे उन्हे आपने भी तो नही छोडा !! हा हा हा
badhai
यह एक माध्यम है और इसका सही उपयोग होना चाहिए ..सच में सफल हुआ ब्लॉग लिखना
जब अच्छे दिल से और अच्छे मन से कोई काम किया जाता है तो इस तरह से लोगों को आपस में मिलना होता ही है फिर ब्लॉग तो एक साधन मात्र है। यादगार पोस्ट।
परमात्मा आपको सुखी रखे. आभार.
http://mallar.wordpress.com
chaliye aaj pata chala, blog se kisi ka bhala bhi ho sakta hai.
gupta ji ne bhale hi ek punya kiya ho... par aapne ek mouka gava diya... aapko bhi kuchh madad karni chahiye thi..
मुझे और मेरे अखबार को इस पुण्य कार्य में सहभागिता देने के लिए आपको कोटिश धन्यवाद। दरअसल बाकी सब तो इसमें माध्यम हैं, असल मेहनत तो आपकी ही है। मैंने अपने अखबार के माध्यम से वही किया जो अब तक आप जैसे सीनियरों से सीख सका हूं कि हमेशा अच्छी, सत्य तथा सामाजिक जागरूकता वाली बातों को अखबार के माध्यम से सामने लाना। इस कड़ी में अपना और अपने अखबार का नाम पाकर मैं बहुत खुशी महसूस कर रहा हूं, एक बार पुनः आपको धन्यवाद। बबलू तिवारी, आज की जनधारा, रायपुर
बहुत सुंदर,धन्यवाद आप का, आप के दुवारा किसी का उपकार हुआ , ओर गुप्ता जी को भी हमारी तरफ़ से धन्यवाद कहे.
ये अच्छा चुटकुला है
कई सालों पहले सुना था, आज फिर आनंद दे गया
परन्तु ये भी सच है कि आज हमको पुलिस संदिग्ध लग रही है
जब वे निर्दोष मुसलमान युवाओं को पकड़ते थे तब हम कहाँ थे?
ख्वाजा युनुस का मामला हो या हाल में हैदराबाद के युवकों पर टार्चर जो अदालत से bekasoor siddh हुए
किसी ने आवाज़ नही उठाई जब कि pahle रिमांड अवधि महीनों बढ़ती रही
सच्चाई ये है की तथा कथित बौद्धिक समाज भी
अपने सहूलियत, अपने धर्म और अपने पूर्वाग्रहों से ग्रस्त है
आम आदमी और गरीब आदमी के लिए कोई आवाज नही उठाता
सब बँटे हुए हैं
हम में से कितने लोगों ने बाबू बजरंगी के घृणित कार्य जो उसने स्टिंग ऑपरेशन में स्वीकार किए
(जैसे स्त्री के पेट को चिर कर बच्चा निकालना) की निंदा की?
सेकुलरिज्म तो योरप से आया
मानवता की यहाँ बात अब कितने लोग करते है?
हम में से कितने लोग दूसरों की लड़ाई लड़ते हैं?
बहुत अच्छी पोस्ट, सुनीता जैसे लोग बहुत से लोगोने के लिए आशा की किरण है ! आज के व्यस्त समाज में कोई किसी को बचाने नही आता !
अनिल जी, पढ़ते हुए मन और आंखें नम हो गई। कुछ तो इसलिए कि चलो जिसे जरूरत थी उसे मदद मिली। दूसरी की हम कितना कन्फ्यूज हो गए हैं एक दूसरे पर शक का कीड़ा हमेशा कुलबुलाता रहता है। तीसरा, आपकी लेखनी सफल हुई अनिल जी। धन्यवाद।
असली बात अच्छी नियत की है. माध्यम तो निकल ही आते है. ब्लॉग जिन्दाबाद.
ब्लॉगिंग के कारण आप एक नेक कार्य में निमित्त बने, निश्चय ही आपकी चिट्ठाकारी सार्थक हुई।
स्वांत: सुखाय लेखन के साथ यदि कुछ सरोकार जुड़ जाएं तो चिट्ठाकारी सोने पर सुहागा जैसी विधा है।
बहुत अच्छा लगा पढ़ कर ...बधाई
सचमुच मानवीयता से बढकर कोई धर्म नहीं. निस्वार्थ सेवा से उपजा आत्मिक आनन्द कुछ अलग ही होता है
मेरे चिठ्ठे (कुछ ईधर की, कुछ उधर की) एवं (ज्योतिष की सार्थकता)पर आप सादर आमंत्रित हैं
" apne insaneeyt or manvata ka dharam neebhaya hai sach mey aapka blog likha safal ho gya....is naik kaam ke liyee na jane kitne dua milenge apko..or yhee humaree sacche kmaee hai"
regards
आपकी यह पोस्ट बताती है कि ब्लॉगिग तमाम सभावनाओं से युक्त है।
wah bhai ji wah
aap sabhi ko badhai...
अच्छा लगा .लेखनी सफल हुई अनिल जी. .ब्लॉग जिन्दाबाद धन्यवाद..
यह पढ़ने के बाद कोई क्या कुछ कहने की मनोस्थिति में भी रह पायेगा ?
ये बात तो बहुत अच्छी बताई आपने
ज्योत से ज्योत जलाते चलो...
बहुत अच्छा लगा पढ़कर. . . अब कैसी हालत है एंजिला सिंह की?
बहुत ही प्रेरणास्पद है आपका ये अनुभव. आशा करता हूँ कि मेरे जैसे नए चिट्ठाकारो का प्रयास भी इसी भांति लोगो का जीवन छुए. अपना अनुभव हमारे साथ बांटने के लिए धन्यवाद.
- अनुराग
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