मालेगांव बम धमाके की जांच में साध्वी प्रज्ञा ने क्या बयान दिया, ये एक न्यूज़ चैनल ने नाट्य रूपान्तर करके बताया। कहीं से एक लड़की पकड़कर लाई गई, उसे साध्वी का रूप दिया गया और फिर उससे साध्वी के अंदाज में बयान लिए गए। पता नहीं कितनी बार में रिकॉर्ड हुआ होगा एटीएस के ड्रामे का ड्रामा। कितनी परेशानी के बाद उसे न्यूज़ चैनल ने एडिट कर एयर किया होगा। एटीएस को चाहिए कि न्यूज़ चैनल वालों की इन सब परेशानियों का ख्याल रखते हुए खुद ही जांच करते समय वीडियो रिकॉर्डिंग कर ले और फुटेज एक-एक कर सारे न्यूज़ चैनल को बांट दे।
मीडिया को सीधे वीडियो रिकॉर्डिंग उपलब्ध कराने से एक फायदा और होगा। लोग उसकी विश्वसनीयता पर सवाल नहीं उठा पाएंगे। अभी तो हम जैसे बहुत से उजबक कह सकते हैं कि ड्रामे की साध्वी का बयान फर्जी हो सकता है। डायरेक्ट जब लोग साध्वी को बोलते सुनेंगे तो उनकी बोलती ही बंद हो जाएगी।
हां! इसमें एक प्रॉब्लम है। वीडियो फुटेज में साध्वी अगर वो सब नहीं बोलते नज़र आएगी जो एटीएस के ड्रामे की साध्वी बोल रही है तो फिर पूरा ड्रामा ही फेल हो जाएगा। लगता है इसी प्रॉब्लम के कारण एटीएस साध्वी के बयान की रिकॉर्डिंग देने की बजाय उसकी स्क्रिप्ट उपलब्ध करा रही है। जिसका ड्रामा बनाकर न्यूज़ चैनल वाले दिखाते आ रहे हैं।
इस प्रॉब्लम से इनकार नहीं कर सकते एटीएस वाले। जभी तो विश्वसनीयता का खतरा मोल लेकर रिपोर्ट लीक करते रहे हैं। वैसे इस प्रकरण में एक बात समझ नहीं आई कि एटीएस इस मामले का ट्रॉयल कोर्ट में कर रही थी या मीडिया में। जिन सबूतों को और बयानों को आरोपियों के खिलाफ जुर्म साबित करने के लिए कोर्ट में पेश किया जाना चाहिए था वो सब मीडिया के सामने पहले ही रख दिए गए। ऐसा लग रहा है कि आरोपियों को कोर्ट में अपराधी साबित करने से ज़्यादा एटीएस की दिलचस्पी उन्हें मीडिया ट्रॉयल के जरिए जनता के सामने अपराधी साबित करने में नज़र आ रही है।
वैसे भी मालेगांव काण्ड के आरोपियों के खिलाफ जांच के बीच में मकोका लगाना उसकी नियत पर सवाल खड़े कर देता है। मकोका लगाना ही था तो गिरफ्तारी के साथ ही लगा देते तो समझ में आता कि ये मामला मकोका के लायक था। जांच के बीच ठोस सबूतों के अभाव की ख़बरें उसके अपने प्रवक्ता मीडियावाले देते रहे हैं। उसके बाद नार्को टेस्ट में भी खास सफलता नहीं मिलने की ख़बरें भी शुरू में उसी मीडिया ने दी और उसके बाद अचानक सब बदल गया। जो मीडिया ठोस सबूत नहीं मिलने की बात करता था उसने नार्को टेस्ट की गोपनीय रिपोर्ट धड़ल्ले से दिखानी शुरू कर दी। उन रिपोर्ट की असलीयत क्या है ये एटीएस ही जानता है।
इस पूरे मामले में एटीएस ने जो तेज़ी दिखाई है और गिरफ्तारियों का रिकॉर्ड बनाया है वो भी दूसरे किसी भी बम काण्ड की तुलना में बहुत ज्यादा है और संभवत: संदेह को जन्म देने के लिए काफी है। इतने बड़े प्रकरण की जांच की रिपोर्ट का लीक होना पूरी जांच को विवाद का विषय बना चुका है।
वैसे भी एटीएस कोर्ट ट्रॉयल में क्या कर पाता है ये तो समय बताएगा लेकिन मीडिया ट्रॉयल में उसने ज़रूर मालेगांव प्रकरण के आरोपियों को अपराधी साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
16 comments:
किसी अल्पसंख्यक (तथाकथित) धर्मगुरु के साथ ऐसा हुआ होता तो पूरी दुनिया में तहलका मच गया होता, भारत में सभी नेता गला फाड रहे होते, पता नहीं कौन कौन सा आयोग नोटिस भेज रहा होता, कितने अफसर निलम्बित हो गये होते.
एटीएस वाले तो अब संदेह करने लायक भी नहीं रहे.
शुरू में तो मैं संशय मे था। पर अब यह प्रकरण ड्रामा लगता प्रतीत होता है।
जो मीडिया ठोस सबूत नहीं मिलने की बात करता था उसने नार्को टेस्ट की गोपनीय रिपोर्ट धड़ल्ले से दिखानी शुरू कर दी। उन रिपोर्ट की असलीयत क्या है ये एटीएस ही जानता है।
आज तक किसी भी घटना की निष्पक्ष जांच रिपोर्ट आई है क्या ? तो यहाँ भी हम क्या उम्मीद कर सकते हैं ? बहुत सटीक लिखा आपने ! धन्यवाद !
ओह तो आपने भी वह घटिया प्रस्तुति देखी थी?
मैंने भी चैनल सर्फिग के दौरान बस एक झलक देख ली थी, लेकिन सिर्फ 10 सैकन्ड के लिये, क्योंकि मैं अब वो सारे चैनल जिसमें इस तरह की घटिया प्रस्तुति हीती है नहीं देखता यहां तक कि अपने साथ वाले लोगों को भी एसा करने के लिये कहता हूं.
जब इनकी टीआरपी खत्म हो जायेगी तब तो इनको होश आ जायेगा.
किसी मुक़द्दमे के निर्णय से पूर्व टी.वी. चैनलों पर इस प्रकार की प्रस्तुतियां जनता के समक्ष परोसना मेरी दृष्टि में किसी अपराध से कम नहीं. इतना ही शौक़ है तो ये चैनल अपने प्राइवेट जासूस नियुक्त कर लें और फिर अपनी ज़िम्मेदारी पर ठोस सुबूतों के साथ अपनी बात रखें. किंतु उनकी यह प्रस्तुतियां हर उस मुद्दे पर होनी चाहियें जिस से देश को चोट पहुँचती हो. ए.टी.एस. की जांच का लीकेज भी निश्चित रूप से अधिकारीयों की कार्य-पद्धति की दरारों का संकेत करता है.
आज तक किसी भी घटना की निष्पक्ष जांच रिपोर्ट आई है क्या ? तो यहाँ भी हम क्या उम्मीद कर सकते हैं ?
ये प्रज्ञा की गलती है कि वह "नन" नहीं है, वरना राजदीप सरदेसाई से लेकर अरुंधती रॉय सब उसके साथ खड़े होते…
अनिल भाई,
आपका विश्लेषण सोच को
नई दिशा देता है.
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शुभकामनाएँ
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
इस बारे मुझे कुछ नही पता, लेकिन अगर ऎसा है तो बहुत ही घटिया राज नीति है यह.
धन्यवाद
धीरे-धीरे तो ये नाटक लगने लगा है... मीडिया को जो मशाला चाहिए वो खूब मिल रहा है. बाकी तो वक़्त ही बतायेगा.
" seedhe recording agare dey dee to sara raj nahee khul jayega.... fir shurkiyon mey rehne ka ek accha bhana bhi mila hua hai.... yhee rajneeti hai"
regards
मीडिया उस बन्दर जैसा है जिसके हाथ में उस्तरा लग गया है.
हमारे तंत्र का भी राजनीतिकरण हो गया है। सभी लोग -राजनेता से लेकर अधिकारी अपना थोबडा टीवी पर दिखाने के लिए उतावले हो रहे हैं।
जांच न सिर्फ़ निष्पक्ष होनी चाहिए, निष्पक्ष नजर भी आनी चाहिए. इस जांच के शुरू से ही लग रहा है कि यह सब किसी विशेष उद्देश्य से किया जा रहा है. इस जांच के शुरू होते ही बाकी सारी जांचों पर परदा डाल दिया गया. अब तो ऐसा लगता है जैसे कोई और बम धमाका हुआ ही नहीं था. यह सरकार, जांच एजेंसियां, मीडिया, सब की विश्वसनीयता पर शक करने के लिए मजबूर करता है. साध्वी, एक स्त्री, पर किए गए बर्बरता पूर्ण आत्याचार पर सब चुप हैं, कोई मानवतावादी नहीं बोल रहा. इस से यह शक पैदा होता है कि यह चुप्पी इस कारण से तो नहीं है कि साध्वी एक हिंदू है, क्योंकि हिन्दुओं पर हुए अत्त्याचार तो मानव अधिकारों का उल्लंघन होते नहीं.
किसी आदमी को अफ़ज़ल बनाकर तो कभी नही बिताया मीडिया वालो ने..
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