साध्वी प्रज्ञा को एटीएस वालों ने अश्लील सीडी दिखाई और धमकाया। ये बयान है साध्वी का कोर्ट में दिया गया। ये एटीएस की फर्जी रिपोर्ट नहीं है। फिर इस पर क्यों नहीं मीडिया वालों ने ड्रामा बनाकर दिखाया। दम था तो दिखाते उसी लड़की को फिर से साध्वी बनाकर, जिसने साध्वी बनकर एटीएस की रिपोर्ट के हिसाब से बयान दिए थे। बताती वो डुप्लिकेट साध्वी मीडिया कि किस तरह उसे रात के 2 बजे अश्लील सीडी दिखाकर धमकाया जाता था। बताते मीडिया वाले कि किस तरह अन्य आरोपियों को शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी गई थी।
एटीएस के इस ड्रामे में पूरी तरह शामिल मीडिया अब लगता है उसका साथ छोड़ता जा रहा है। वैसे भी इस मामले में उसकी जो किरकिरी हुई है उससे उसकी हालत काफी पतली है। एक तरफा साध्वी विरोध या एटीएस प्रेम उसकी विश्वसनीयता पर पहले ही सवाल खड़े कर रहा था और अब साध्वी के बयान को ड्रामा बनाकर नहीं दिखाने से उसकी एटीएस से साझेदारी सबको पता चल गई है।
मीडिया ने इस मामले में अप्रत्याशित रूप से यू-टर्न लिया तो ज़रूर है लेकिन वो अप्रत्यक्ष रूप से एटीएस के साथ ही खड़ा नज़र आता है। हालाकि अब वो एटीएस के कंधे से कंधा मिलाकर कथित रूप से हिन्दू उग्रवाद को स्थापित करने से बचता नज़र आ रहा है लेकिन वो साध्वी के बयानों का ड्रामा न दिखाकर अप्रत्यक्ष रूप से साध्वी के खिलाफ उगले गए अपने ज़हर का असर उल्टा होने से बच रहा है।
निष्पक्षता और ईमानदारी के साथ किसी भी कीमत पर ख़बर दिखाने का दावा करने वाले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की निष्पक्षता और ईमानदारी तब समझ आती, जब वे साध्वी को भी एटीएस के खिलाफ आग उगलते दिखाते। दम होता तो दिखाते एक डुप्लिकेट साध्वी को और उसे गालियां बकते, धमकी देते और अश्लील सीडी दिखाते एटीएस के जवानों को। दम होता तो दिखाते परेशान-हैरान साध्वी को रोते हुए। दिखाते एटीएस वालों को दूसरे आरोपियों को धमकाते-चमकाते। दिखाते एटीएस वालों को गालियां बकते और कोरे कागजों पर दस्तखत करवाते। दिखाते एटीएस वालों को आरोपियों को जुर्म कबूल नहीं करने पर धमकियां देते।
पर मीडिया ने ऐसा नहीं किया, क्योंकि ऐसा ड्रामा दिखाते तो हो सकता है उनके हथियार का इस्तमाल साध्वी के फेवर में हो जाता। हो सकता है, सारे देश में साध्वी के प्रति सहानुभूति की लहर दौड़ जाती। हो सकता है कथित हिन्दू उग्रवाद और उग्र होकर सामने आ जाता। हो सकता है कि पहले से ही विवाद में रही एटीएस की जांच पर से लोगों का विश्वास ही टूट जाता। हो सकता है कि इस मामले में अलग-थलग पड़े हिन्दूवादी नेताओं को व्यापक जनसमर्थन मिल जाता। और ऐसा शायद एटीएस के इस स्पॉर्न्सड प्रोग्राम के मीडिया पार्टनर कभी नहीं चाहते। शायद इसीलिए साध्वी के मालेगांव ब्लॉस्ट में शामिल होने को पुख्ता करने वाली रिपोर्ट का ड्रामा तो बनाकर दिखा दिया गया, मगर इस मामले में एटीएस की काली करतूतों को सामने लाने वाले साध्वी के कोर्ट में दिए गए बयानों का ड्रामा बनाकर नहीं दिखाया गया।
19 comments:
अगर ऐसा कर दिया तो अपने आकाओ को कैसे खुश करेंगे
भारतीय मिडिया का क्या है... ४ दिन तक चिल्लाते रहेंगे की प्रलय होगा और फिर चौथे दिन कहेंगे की हमारे चैनल ने आपको सबसे पहले बताया की प्रलय नहीं होगा !
इनके किसी बात पर भरोसा नहीं रहा... हर ख़बर सनसनी होती है और किसी पर विश्वास नहीं रहा...
bike huye log apne aaka ko khush karne ke liye jo kuchh bhi kar len wo kam hai, baharhaal aapne kaaphi tarkpoorn likha hai.
सरजी, उपलब्ध जानकारी के हिसाब से भारत कि पूरी मीडीया विदेशी या चर्च के नियंत्रण में है (पूंजी निवेश). आभार आपका.
लीद तो काफी कर दी है इन सब ने। साफ कैसे करेंगे?!
अभिषेक ओझा जी ने बिल्कुल उदाहरण सहित बात सपष्ट कर दी है ! मीडिया का तो भगवान् भी मालिक नही है ! बहुत सटीक आलेख ! शुभकामनाएं !
बार-बार हो रहे नार्को टेस्ट और ए टी एस के नये हथकंडे ने ए टी एस को ही शक के घेरे मे लाकर खडा कर दिया है !रहा सवाल मिडिया का तो उससे हमारा पहले ही पंगा है मेरी सलाह है कि उन्हे किलो तलाबो मे जाकर भूत खोजना चाहिये यही काम वो बढिया करते है !!
यह कुते( मीडिया वाले ओर इन के आका) जिस थाली मै(भारत)खाते है उसी मै छेद कर रहै है.
धन्यवाद
BEHAD DUKHD STHITI HAI..apne hi desh mein parayon ki tarah ka bartaav ka udaharan hai sadhvi pragya ke saath kiya gaya salook--Jis ki laathi us ki bhains--jis ki sarkar usee ka raaj--andha kanoon hai-badey sharam ki baat hai-media ek puppet hai aur kuchh nahin
पैसा-सत्ता-बाहुबल,और मीडीया साथ.
पांचों घी-सिर कङाही में, इन्डिया की क्या बात.
इन्डिया की क्या बात,लात मारे भारत को.
धर्म-शक्तियां पस्त,बचाये कौन भारत को?
कह साधक यह दर्द निरन्तर बढता जाता.
कब लेगी सुख की सांसें मेरी भारत माता.
midia saidhantik na hokar total vavsaik ho gaya hai rajim
स्वागत और बधाई सत्य को उजागर करता आलेख
आप बहुत बिंदास होकर लिखते हैं , बहुत शर्मनाक नाटक है ये देखें आगे क्या होता है ...
Regards
@लीद तो काफी कर दी है इन सब ने। साफ कैसे करेंगे?!
साफ किसे करना है? ऐसा यू टर्न मारेंगे की आप दाँतों तले उँगली दबा लोगे. ये फरेबी मीडिया है.
वाह बहुत खूब लिखा है आपने.
नमस्कार, उम्मीद है की आप स्वस्थ एवं कुशल होंगे.
मैं कुछ दिनों के लिए गोवा गया हुआ था, इसलिए कुछ समय के लिए ब्लाग जगत से कट गया था. आब नियामत रूप से आता रहूँगा.
वाह भाऊ, कमाल है, बेहतरीन लेख… इसीलिये अभी प्रिंट मीडिया की थोड़ी साख बची है, इलेक्ट्रानिक मीडिया की तो पूरी इज्जत उतर चुकी है… प्रिंट मीडिया को "सबसे तेज" कहलाने का शौक भी नहीं है और अभी भी जमीनी पत्रकार (अरुण शौरी जैसे) अपना ईमान बचाये हुए रखे हैं, इलेक्ट्रानिक मीडिया की तुलना सिर्फ़ "वेश्या" से हो सकती है…
सच्ची बात तो यह है कि सच्ची बात निकलने में देर लगेगी जब तक मीडिया और तंत्र की यह धूल सेटल नहीं हो जाती !
अच्छा लिखा आपने ......
सहीं कहा है भईया । ये पब्लिक है सब जानती है ....
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