Saturday, November 29, 2008

बच्चन साब यू पी चले जाओ,क्योंकि जुर्म वहां कम है

बचपन से जिस हिरो को अकेले जुर्म और जुल्म से लड़ते देखा था,जिस विजय को हमेशा अन्याय पर विजय पाते देखा था,जिस विजय की फ़िल्में स्कूल और कालेज से भाग-भाग कर देखा करते थे,जिस विजय को लाखो-करोडो लोग दिवानो की तरह चाहते हो,उस विजय का अचानक डर जाना अच्छा नही लगा।वो भी ऐसे समय मे जब सारा देश मुम्बई मे आतंकवाद से लड़ रहे जांबाजो की सफ़लता की कामना कर रहे थे,तब बच्चन साब का डर जाना और किले की तरह सुरक्षित अपने बंगले मे तक़िये के नीचे रिवाल्वर लेकर सोना और सारी दुनिया को अपना डर बताना कुछ अच्छा नही लगा।ये समय सही नही था डर के इज़हार का। सारे देश के महानायक को अगर वाकई मे डर लग रहा है तो उन्हे यू पी चले जाना चाहिये,क्योंकि जुर्म वहां कम है।मगर अब तो वहां भी नही जा सकते क्योंकी वहां उन्हे सुरक्षा की गारंटी देने वाले मुलायम की सरकार भी नही है,और उनके गारंटर अमर सिंह का भी कोई सुरक्षित ठिकाना भी नही नज़र आ रहा। अपने हिरो को इस तरह डरते देखना अच्छा नही लगा। हो सकता है मेरी बात उन्हे अपना हिरो मानने वाले कुछ लोगो को बुरी भी लगे मगर मुझे जैसा लगा मैने आपके सामने रखना ज़रुरी समझा।

22 comments:

sarita argarey said...

बहुत सही कहा आपने । सदी के महानायक ने अपना डर ज़ाहिर कर क्या साबित करना चाहा ,ये समझ से परे है । जिन की एक आवाज़ पर आज भी देश के बच्चे बूढे तक उनके पीछे आ खाडॆ होने का जज़्बा अखते हों . उन जैसे महानायक का ये नया रुप घिनौना सा लगता है । इन जैसे खुदगर्ज़ों के लिए तो यूपी तो क्या चूहे के बिल में भी पनाह की गुंजाइश नहीं है । अपनी जान की हिफ़ाज़त की परवाह करने वालों को देश के जांबाज़ सिपाहियों का पल भर को भी ख्याल तक नहीं आया । ये सब राष्ट्रीय शर्म के प्रतीक हैं धिक्कार है इनके होने पर ।

Anonymous said...

सही कहा.. अब युपी में भी जुर्म बढ़ गये.. उनके दोस्त जो नहीं रहे..

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सटीक लिखा ! रामराम !

सतीश पंचम said...

गलती हमारी है जो फिल्मी दुनिया को असल मान बैठे हैं। वैसे भी जब सुनहरा कलेवर उतरता है तो भीतर से असल झाँकता है, यही बात यहाँ भी लागू होती है।

roushan said...

माना आप डर गए थे बच्चन साहब पर यूँ ही दिल रखने को कुछ बयान बाजी कर देते. आपकी घबराहट से हमें आप से सहानुभूति नही आती
आप पर क्रोध आता है
अनिल जी ने बिल्कुल सही कटाक्ष किया है
अमरीका चले जाएँ बच्चन साहब वैसे भी आप नागरिक हैं वहाँ के क्यों पड़े हैं यूँ डरावनी जगह पर

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

मन क्षुब्ध है,अमर सिंह आते ही होंगे, बडे भैया के पास. साथ ही यह भी बयान देंगे कि यह लोग अपनी पोस्टिंग के लिये सांसदों से मिलने होटल गये थे, जहां इनके ही साथियों ने इन्हें गोली मार दी,पूरी घटना की न्यायिक जांच हो.

दीपक said...

किसी व्यक्ती को पहचानना हो तो उसके दोस्तो से पहचनना चाहिये !! इसलिये अमीत जी को अमर सिंग के द्वारा ही पहचानीये !!

इनमे दम वम नही है जी और इस भेडीया धसान पबलीक का क्या करे जिन्हे इनका पेट दर्द बडा चिंतीत कर रहा था !! सब के सब मुर्दे है अनिल जी क्या कहियेगा !!

Arvind Mishra said...

bilkul sahee farmaayaa aapne !

राज भाटिय़ा said...

अजी मेने इस महा ना.... की एक विडियो देखी थी सन १९८७-८८ मै लोग (जनता) जुतीया मार रही थी बस उस दिन से हम ने इन साहिब की फ़िलमे देखनी बन्द कर दी थी, पेसे का यार कभी भी हिम्मत वाला नही हो सकता, बाकी आप की बात ठीक है यु पी मै जुर्म कम है वही चलेजाये,
धन्यवाद

Gyan Dutt Pandey said...

यहां कहां भेज रहे हैं जी, यहां वैसे ही बहुत भीड़ है! :)

कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra) said...

आपकी बात से सहमत हूँ पुसदकर जी. इन्हें सिर्फ़ अपनी ब्रांड वैल्यू की चिंता होती है, कोई सेंटीमेंट्स नहीं, कोई राष्ट्रवाद नहीं.

@ COMMON MAN
सही कहा, इसी नेता-अभिनेता-माफिया गठबंधन का सब किया करा है.

परमजीत सिहँ बाली said...

बढिया पोस्ट लिखी है।

Unknown said...

अगली बार जब भी अमिताभ के स्वास्थ्य की कामना के लिये यज्ञ किया जाये तो उसमें एक किलो घी उनकी "हिम्मत" बढ़ाने के लिये भी डाला जाये, ऐसी माँग मैं अमर भैया से करता हूं…

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

का कह रहे हो भैइया, बहिन जी इंतजारे ना कर रहीं हैं कि आयें आउर दबोचें। आउर फिर छुटकू भी तो नहीं हैं। पता नहीं कहां दुबके बैइठे हैं, ससुर।

फ़्र्स्ट्रू said...

अमिताभ बच्चन वो आदमी है जो अपनी ही शख्सियत के होने की ऐसी कीमत चुका रहा है. २, २ कौडी के फिल्म विवेचक से लेकर आप जैसे पत्रकार महासंघ के अध्यक्ष तक सब मुंह खोल के आलोचना करने को आतुर, उसके बारे में कुछ बुरा लिख दो तो दुकान चल पङे. माना कि अमर और मुलायम जैसे छिछोरे लोग उनके नजदीक हैं, इसका मतलब ये नहीं कि हर बात में उनको लपेट लिया जाये. जब राज ठाकरे के गुंडे उनके घर पे बीयर की बोतलें फेंक सकते हैं तो आतंकवादी क्या नही कर सकते? अमिताभ इस देश की पैहचान भी हैं, मुम्बई की किसी भी पुरातत्व महत्व की इमारत से ज्यादा पुख्ता पैहचान. अगर ऐसे में उनको अपनी सुरक्षा के लिये डर लगा तो गलत क्या है ? और जो उन्होने मैहसूस किया वो लिखा, अगर आपमें जरा भी समझ है तो आप समझेंगे कि उनका डर गलत नहीं था. और अगर आपको उनका ये सब लिख्नना गलत लगा तो ये कहिये कि ऐसा नहीं लिखना चाहिये था, यूपी जाने जैसी वाहियात सलाह अपने पास रखिये. आपका आत्म मुग्ध परिचय पढ के आपके बारे में काफी जानकारी मिली और ये भी समझ में आया की ब्लोगिंग की दुनिया में मशहूर होने के लिये कितने बेकरार हैं आप. कैसा संजोग है कि अपने इस ब्लोग पोस्ट मे आपको "अमिताभ बच्चन" के अलावा कोई और शब्द ऐसा नहीं मिला जो बतौर लेबिल आप उपयोग कर पाते. ब्लोग पे भीङ जुटाने का कोई और तरीका ढूंढिये पत्रकार महोदय.

Sarvesh said...

आप बिना नाक पुंछ का लिखावट लिखे हैं। मुझे बड़ा ही घटिया लगा । बच्चन साहब ने रिवावल्वर कि बात से ये कह दिया कि इस राज्य मे एक आम आदमी सुरक्षित नहीं है । आप बहुत दिन से ब्लाग लिख रहे हैं। आप बच्चन साहब के ब्लाग को distant learning कि तरह प्रयोग किजिये. कैसे कम शब्दो मे बिना चिल्लाए हुए आप अपनी बात एक बुद्दिजीवी कि तरह कह सकतें है । सच पुछिये तो उबकाई सी आई आपका लेख पढ कर

सचिन मिश्रा said...

sach kaha aapne, hakikat ki duniya me dar to lagega hi!

दिनेशराय द्विवेदी said...

बच्चन साहब एक श्रेष्ठ अभिनेता हैं। बाकी जिन्दगी में केवल एक आम धनी आदमी। उन्हों ने नेता बनने की कोशिश की लेकिन असफल रहे जिसे वे स्वीकार करते हैं। वे भी और धनिकों की तरह डरते हैं इसे भी उन्हों ने स्वीकार किया है यह उन का सकारात्मक पक्ष है, नकारात्मक नहीं। यह जरूरी नहीं कि वे नेपोलियन का चरित्र अदा करें तो उस की तरह बहादुर भी हों। करना ही है तो उन के अभिनय की आलोचना करें, या नागरिक के रूप में उन की सामाजिक भूमिका की।

Anonymous said...

बहुत सटीक लिखा !

Anonymous said...

anil ji
raajniti karnaa aur baat hai jubaane chalaana dusri
log jinhe devta samjhe baithe hai unke baare me hamaare abhimat sankirn kahlaayenge fir raj , uddhav yaa bal thaakre se aap ke influence ko jaa samjhenge. ham hondi bhashi ilaakon me rahte hai yahaan ki sanskruti ka samman karte hain log hamaari hame bad jabaan se fark nahi padnaa chaahiye hamaari sakaaratmakta isi baat se siddh ho jaati hai ki ham apni post rashtr bhaashaa ke samman ke sath thik prakaar likhte hain . mahaan log mahaan baate karte hain aalochanaa kar khabar nahin banaa karte.

Anonymous said...

Anil ji

yeshe lekhak ko hamara namskar

Anonymous said...

sadi ka mahanaayak dalal ke changul mo ho to kya hoga