एनएसजी के ऑपरेशन में सीने पर 2 गोली झेलने वाले दिनेश साहू की सादगी ने सबका मन मोह लिया। बुलेट प्रुफ जैकेट पर करीब से लगी गोलियां छिटककर दिनेश की तकदीर से नीचे भागी थी। गोलियों ने उसकी हथेली में खरोच मारकर जख्म ज़रूर दिया मगर खुशकिस्मती से गोलियां ऊपर नहीं छिटकी थी, वरना खोपड़ी को नुकसान होना तय था। दिनेश की छाती में हल्का सा फ्रेक्चर भी हुआ, मगर उसके हौसले उतने ही बुलंद नज़र आए। उनमें कोई खरोच या फ्रैक्चर नहीं नज़र आया।
बस्तर की तरह छत्तीसगढ़ का उत्तरी हिस्सा सरगुजा कहलाता है और वो भी आदिवासी क्षेत्र है। यहां के प्रेमनगर विकासखंड के चंदननगर गांव का रहने वाला है दिनेश। चंदननगर जो आज भी बिजली और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहा है। उसी चंदननगर में पला बढ़ा दिनेश स्कूली शिक्षा प्रेमनगर में पूरी की और सन् 2000 में सेना में भर्ती हुआ। 2006 में उसका चयन एनएसजी के लिए हुआ। उसके पिता पन्ना लाल कोरबा में पुलिस में एएसआई हैं। बड़ा भाई राजकुमार निजी कंपनी में कम्प्युटर ट्रेनर है। बहन गंगोत्री का विवाह हो चुका है। दोस्त अख़बारों में काम करते हैं।
दिनेश दूसरी खेप में ताज होटल भेज गया। ताज होटल में लगातार अभियान में जुटे रहने के उसके अनुभव रोमांचकारी थे। उसने बताया कि 28 तारीख की रात को कमरे खाली कराते समय आतंकवादियों से सीधी मुठभेड़ हुई। दरवाजा गिराते ही अंदर से गोलियां चली जो उसके बुलेट प्रुफ जैकेट पर लगकर छिटक गई। उसने ग्रेनेड चलाया और उसके बाद अंधेरे में गोलियां चलती रही। अंदर से चीख भी आई, शायद कोई घायल भी हुआ। दिनेश ने सारा श्रेय कमाण्डो ट्रेनिंग को दिया और उसने कहा कि मिल-जुलकर काम करने के कारण अभियान सफल हुआ।
दिनेश ने अपनी ट्रेनिंग को पर्याप्त माना और हथियारों को भी ठीक बताया। उसने बुलेट प्रुफ जैकेट की गुणवत्ता पर उठे सवालों को खारिज कर दिया और कहा कि बेहद नजदीक से चली गोलियां उसने सीने पर बुलेट प्रुफ जैकेट के भरोसे ही झेली। हां, संसाधनों को बढ़ाए जाने की ज़रूरत उसने बताई। उसने कहा, विमानतल से बस से ताज़ होटल तक जाने के सफर में लगने वाले समय को बचाने के लिए कॉप्टर का उपयोग होना चाहिए था। कॉप्टर नहीं थे मगर कॉप्टर होने चाहिए ऐसा दिनेश का मानना है।
दिनेश ने ताज़ जाने की ख़बर घरवालों को नहीं दी थी। उसका कहना था कि उसके परिवार वाले बहुत सीधे ग्रामीण परिवेश के लोग हैं, वे घबरा जाते। अभी भी चोट लगने की ख़बर के बाद उनके फोन आए, मगर वे खुश हैं दिनेश की सर्विस से। उन्हें कोई ऐतराज नहीं है।
देश पर हुए सबसे बड़े आतंकवादी हमले में अपनी जान हथेली पर लेकर गोलियों की बौछार के बीच लोगों को बचाने में दमदारी से अपना फर्ज पूरा करने वाला दिनेश बोलते जा रहा था और सब खामोशी से एक सच्चे हीरो को सम्मान दे रहे थे। दिनेश ने मेरा और प्रेसक्लब को जब आभार माना तो मुझे उसकी महानता पर गर्व हुआ। वो हमारे प्रदेश की शान है। अफसोस कि बात हमारी सरकार की ओर से उसकी बहादुरी पर कोई ईनाम घोषित नहीं हुआ। पूर्व गृहमंत्री रामविचार नेताम ज़रूर उनसे दिल्ली जाकर मिल आए, मगर सरकारी तौर पर उसका कोई सम्मान नहीं हुआ। दिनेश को इस बात का मलाल भी नहीं है और उसकी कोई ऐसी ख्वाहिश भी नहीं। वो तो खुश है वतन के लिए अपनी जान लड़ाने की जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से पूरी करने पर।
कार्यक्रम चलता रहा और मेरी नज़रें हॉल की खाली कुर्सियों के भरने का इंतज़ार करती रही। मैं दिनेश की तारीफ और उसका स्वागत कर जितना खुश था, उतना ही मुझे गुस्सा भी आ रहा था और शर्म भी खाली कुर्सियों को देखकर। जो हॉल किसी सडि़यल नेता या फटिचर स्टार के आने पर खचाखच भर जाता है, वही हॉल आधे से ज्यादा खाली पड़ा था। इक्का-दुक्का वरिष्ठ पत्रकारों को छोड़ दिया जाए सिर्फ वही लोग मौजूद थे जिनकी ड्यूटी प्रेस से मीलिए कार्यक्रम को कव्हर करने की थी। आमतौर पर मुख्यमंत्री के भोज या प्रेस कांफ्रेंस में नज़र आने वाले कथित बड़े पत्रकारों में से एक भी मौजूद नहीं था और कथित नेशनल न्यूज़ चैनल वालों का तो अता-पता ही नहीं था। मैं सोच रहा था अभी कोई अधनंगी मॉडल या लिपी-पोती हिरोइन या फिर मुख्यमंत्री का कार्यक्रम होता तो आधे से ज्यादा बैठने की व्यवस्था को लेकर ज़रूर शिकायत करते। खैर मुझे उन लोगों की परवाह भी नहीं, मुझे तो लगा कि अध्यक्ष बनकर मैंने जितने लोगों का प्रतीक चिन्ह देकर सम्मान किया उनमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण शख्स दिनेश ही है। मुझे अपना अध्यक्ष होना सफल होता नज़र आया। मैंने दिल से देश के सच्चे हीरो को सलाम किया।
17 comments:
हम असली हीरो की कद्र करना भूल गए है उसी का खामयाजा उठा रहे है इन वीरो की वजह से ही हम सुरक्षित है न की बड़बोले नेताओं से .
वीर जवान को मेरा प्रणाम
दिनेश साहू जी को हमारा भी नमन. आपकी मनःस्थिति को हम समझ पा रहे हैं. ऐसा ही है.सुंदर रिपोर्टिंग के लिए आभार.
कमसेकम आपने पहचाना तो ... आप फिक्र न करें,ये प्रयास एक रंग तो लायेगा ही कभी न कभी और ये मुल्क शायद पहचानने लगे अपने असली हीरोज को
हमारा भी सलाम… और आपका गुस्सा भी जायज है… देश इसीलिये तो गर्त में जा रहा है क्योंकि यहाँ असली वीरों का सम्मान नहीं है…
दिनेश जी का स्वागत करके आपने बहुत शानदार काम किया है ! इन वीरों को इनके काम के बाद भुला दिया जाता है अभी तो चन्द दिन ही हुये हैं और कुर्सियां खाली हैं अगर चद महिने हो जाते तब सोचिये कौन आता ?
बहुत धन्यवाद आपको !
राम राम !
मेरा भी सलाम...
मैं सोच रहा था अभी कोई अधनंगी मॉडल या लिपी-पोती हिरोइन या फिर मुख्यमंत्री का कार्यक्रम होता तो आधे से ज्यादा बैठने की व्यवस्था को लेकर ज़रूर शिकायत करते।
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सम्भवत: ऐसा ही होता; और दुखद होता।
Dinesh jaise bahaduron ki wajah se hi desh ka manobal itne aatanki hamlon ko jhelne ke baad bhi tuta nahin hai.
आज ही सांध्य दैनिक छ्त्तीसगढ मे यह खबर पढी थी ,आशा थी आपके ब्लाग पर भी यह एक प्रमुख खबर रहेगी और आशा सही निकली....
इस सच्चे जवान को हमारा दिल से सलाम साथ ही आपका यह कहना सही है कि आम जनता को ऐसे ही मौको पर मिडीया की जिम्मेदारी और संवेदनशीलता की अपेक्षा होती है मगर अफ़सोस ये सब तो नेता जी के आगे पीछे भागने मे ज्यादा व्यस्त हो रहे है !!
अच्छा लगा यह पोस्ट पढ़कर। एक तरह से अच्छा ही रहा कम लोग थे। कम से कम दिखावा हुआ। फोटॊ में सही में इस्मार्ट दिख रहे हैं।
आप ने बिलकुल सही लिखा, कोई ऎरा गेरा, नथु खेरा स्टार या नेता होता तो यही जनता भागी भागी जाती... ओर मतलबी जनता जब मोत सामने खडी हो तो किसे याद करती है... गुस्सा तो बहुत आता है, जो असली हीरो को भुल जाती है...
दिनेश साहू जी को हमारा भी नमन, ओर हमे मान है ऎसे शुर वीरो पै, जो अपनी जान जोखिम मै डाल कर इस मतलबी जनता को बचाते है, इन कमीने नेताओ को , इन नाचने वाले दो टके के मरासियओ( अभिनेताओ) बचाते है.
धन्यवाद
ये बात वाकई चुभने वाली है की असली हीरो को पब्लिक का सम्मान पुरी तरफ से नहीं मिल पाता है|
आप और आपकी संस्था को साधुवाद !!!
दिनेश साहू जी को हमारा भी नमन.
regards
अगर इसमें एक आइटम डांस होता, फिर आप भीड देखते।
अच्छी रिपोर्टिंग /ज्ञानदत्त पाण्डेय जी ने सही टिप्पणी दी है /क्या करें
आजकल यही तो हो रहा है.. नकली हीरो को सर पे बिठाते है.. और असली हीरो का नाम तक नही जानते..
सोचता हू कभी मैडम तुशाद के म्यूज़ियम में शहीदो के भी पुतले लगाए जाएँगे..
ये उनकी सजींदगी दिखाता है......की कैसे इस देश में शहीदों की फ़िक्र की जाती है जैसे अभी तक संसद में शहीद को पेट्रोल पम्प का वादा अभी तक पुरा नही हुआ है.....सुना है शर्मा जी को भी पेंशन नही मिली है अब तक.......
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