वो देश के लिये मर-मिटने को हर-दम तैयार रहने वाला एक जाबांज कमाण्डो है। हर पल उसके दिल-दिमाग मे देश के दुश्मनो से निपटने के विचार उमडते रहते थे। थे यानी थे,है नही समझे। अब उसका दिमाग अपने देश के भीतर बैठे दुश्मन से निपटने के आईडिया ढूंढता रहता है।वो सालो से एन एस जी मे तैनात है और अपने शहर से जैसे उसका नाता टूटा हुआ सा ही है।वो रोज़ मौत का पैगाम लाने वाले कश्मीर मे तैनात है।रायपुर शहर मे उसके बुज़ुर्ग पिता रहते है।उसका बड़ा भाई देवेन्द्र मेरा बहुत अच्छा दोस्त हुआ करता था। मै ये पोस्ट इस्लिये नही लिख रहा हूं कि ये मेरे दोस्त के परिवार का मामला है।बल्कि इसलिये लिख रहा हूं कि देश के लिये मर-मिटने वाले को ऐसे दिन देखने पड़ रहे हैं।वो संघर्ष कर रहा है सालो पुरानी अपनी ज़मीन वापस पाने के लिये जिसे भूमाफ़िया ने बेच दिया है बिना उसकी जानकारी के।बताईये ऐसे मे कौन मर-मिटना चाहेगा देश के लिये?
अंग्रेज़ी के रिटायर प्रोफ़ेसर यदुवंशी सर को जो साईंस कालेज मे पड़ा है जानता ज़रुर है।ईमानदार मास्टर की तरह रिटायर हुए और बेहद सादा और सरल जीवन गुज़ार रहे हैं।उनका एक पुत्र जाबांज कमाण्डो बनाकर देश सेवा मे लगा हुआ है।उनकी सालो पुरानी ज़मीन उनकी बिना मर्ज़ी और बिना जानकारी के सरकारी दस्तावेजो मे हेर-फ़ेर कर बेच दी गई।उन्हे जैसे पता चला उनके पैरो तले की ज़मीन भी खिसक गई।राज्य बनने के बाद अब उस ज़मीन की किमत काफ़ी ज्यादा हो गई है।जैसे ही उस देश्भक़्त को पता चला कि इस बार उस पर हमला बाहर के नही बल्की अपने ही लोगो ने किया है वो हैरान है। अब काट रहा है सरकारी दफ़्तरो के चक्कर अपनी ही ज़मीन वापस पाने के लिये॥
प्रशासन को भी जैसे ही इस बात की ज़ानकारी मिली ,वो भी सक्रिय हो गया है। जांच शुरू हो गई है और सरकारी प्रक्रिया के बाद शायद उस जाबांज को उसकी ज़मीन वापस मिल जाये क्योंकि प्रशासन भी इस मामले को सार्वजनिक होने से रोकने मे जी जान से भीड़ गया है और अपनी किरकिरी होने नही देना चाहता। हो सकता है उस जाबांज कमाण्ड़ो की तक़दीर अच्छी हो तो उसे ज़मीन वापस मिल भी जाये,मगर उसकी ज़मीन बिना उसकी मर्ज़ी के बेच देना देश के भीतर बैठे दुश्मनो के बुलंद होते हौसलो का सबूत है।
15 comments:
आप की बात देश के भीतर छुपे दुश्मनॊं की तरफ इशारा करती है।सब से बड़ा खतरा भी देश को भीतर से ही है। इस के लिए जिम्मेदार हैं हमारे भ्रष्ट नेता। पता नही ऐसे कितनें परिवार होगें जो इसी तरह के षडयंत्रों के शिकार हो रहे होगें।
अपने ही देश मै भी बहुत से कमीने है जो हमे अन्दर ही अन्दर खा रहे है, आप ने सही लिखा है.
धन्यवाद
पुसदकर जी यह एकदम से तय ही मत मान लीजिये कि वह जमीन मिल ही जायेगी भ्रष्ट तंत्र काफी फैला और गहरा गया है -जहाँ आप जैसी आवाजों के अब निरंतर उठने रहने की जरूरत है !
देश को जो परेशानी है वह अपनों से ही है , बेचारे फौजी देश की सीमाओं की रक्षा मे लगे रहते है और उनकी घर मे ही सेंध लग जाती है हमारे यहाँ भी ऐसे कई मामले हुए है
कब आयेगा वह दिन जब मामला सार्वजनिक होना नहीं बल्कि भ्रष्टाचार होना ही किरकिरी माना जायेगा. वो सुबह कभी तो आयेगी...
अनिल जी, एक घर में दस लोग हों और खाने को पाँच का ही हो लेकिन खाने का न्यायपूर्ण बंटवारा हो तो घर की एकता टूटती नहीं है। इस लिए आंतरिक सुरक्षा का सब से मजबूत हथियार न्यायपूर्ण व्यवस्था है। इसे किसी भी कीमत पर स्थापित किया जाना चाहिए। सीमाओं और बाहरी शत्रुओं से रक्षा तो हो जाएगी। लेकिन देश अंदर से टूटने लगा तो उसे कोई नहीं बचा पाएगा।
आप ने महत्वपूर्ण बात उठाई है। यह मुद्दा एक कमांडो का नहीं है। पूरे देश में न्याय के प्रति विश्वास कायम होना जरूरी है।
बहुत सटीख और बेबाक लिखा आपने !
रामराम !
देश की आस्तीनो में कई साँप छुपे है.. बहुत बढ़िया लेख
..और अंत में सबसे बड़ी बात "हम कुछ नही कर सकते "
पर इसे हम दिवास्वप्न देखने वाले भारतीय लोग स्वीकारना ही नही चाहते.
desh ko bhrashtachar ne kha liya jiske liye congress jimmedar hai, bhookh, garibi, bhrashtachar, badhti huyi jansankhya yahan bhi n jaane kitne somalia bana dengi.
"घर का भेदी लंका ढाए.... किसी ने सोच कर ही ये कहावत बनाई होगी..."
Regards
यह देश तो उन्हीं डॉन जैसे लोगों के लिए ही तो बना है वर्ना पद्मविभूषण विष्णु प्रभाकर जैसे स्वतंत्रता सेनानी और प्रसिद्ध साहित्यकार को अर्ध सदी तक एक किराएदार को खाली कराने में नहीं लगते।
Hamare desh me aisa bhi hota hai!
sahi likha hai, antule aur Digvijay singh isaki misal hain. jab desh mushkil me hain tab bhee ye apani roti senkate najar aate hain.
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाए, अलविदा २००८ और
2009 के आगमन की हार्दिक शुभकामनायें स्वीकार करे,
Welcome to the Cg Citizen Journalism
The All Cg Citizen is Journalist"!
Post a Comment