मैं अपनी मस्ती मे चला जा रहा था कि अचानक ऐसा लगा जैसे कोई आवाज़ दे रहा हो।फ़िर आवाज़ आई, भाई साब रुकिये तो,कहां चले जा रहे हैं?पहचान नही रहे है क्या?मै प्रदेश का सबसे बड़ा अस्पताल्।मै उस वक़्त सात सौ बिस्तरो वाले छत्तीसगढ के सबसे बड़े अस्पताल के सामने से गुज़र रहा था।मै एक पल के लिये हड़बड़ाया मगर फ़िर जब आवाज़ आई तो समझ गया वो अस्पताल ही है जो मुझसे बात करना चाह रहा था ।
मैंने उस आवाज को अनदेखा कर आगे बढने की कोशिश की तो आवाज़ थोड़ी कड़क हो गई।क्यो बे क्या बड़े-बड़े नेताओ की ही बात सुनेगा क्या?हमारी बात सुनने मे तक़्लीफ़ हो रही है क्या?अब तक़ मै सम्भल गया था।मै भी दिल कड़ा कर बोला, क्या बात है?बात क्या है?क्यो खबर नही है क्या?पत्रकारिता छोड़ दी है क्या?मै बोला फ़ाल्तू की बात नही,काम की बात कर?उधर से आवाज़ आई,हम फ़ाल्तू हो गये?प्रदेश की गरीब जनता के सुख-दुख का साथी फ़ाल्तू?और वो लोन लेकर गरीबो का खून चूसने के लिये बनाया गया प्राईवेट 5 स्टार अस्पताल,वो फ़ाल्तू नही है,क्यो?
मुझे थोड़ा खराब लगा,मगर बात मे दम था।मैने कहा,मुझसे गल्ती हो गई। अब बताओ बात क्या है?अस्पताल बोला कि आपने मुझे बनने से लेकर शुरू होते तक़ देखा है?मैने कहा ,हां।उसने कहा कि उस समय कहा गया था कि मै प्रदेश के गरीबो की जान बचाऊंगा?मैने कहा हां।वो बोला क्या मेरा ठेका सिर्फ़ गरीबो की जान बचाने का है?मैने कहा कि मै समझा नही।वो बोला समझोगे कैसे?गले तक़ तो एडवर्टाईज़्मेंट ठूंस चूकी है सरकार। अब दूसरो की बात कहां सुनाई देगी।मैने खामोश रहने मे भलाई समझी।
वो मेरी मनःस्थिती भांप चुका था।फ़ौरन बोला कहां से आ रहे हो?मै खामोश ही रहा?वो बोला अपने दोस्त के आलीशान फ़ाईव स्टार अस्पताल से?मै चुप ही रहा।वो बोला क्यो दोस्ती निभा रहे हो या सरकार की दलाली?मेरा दिमाग भन्ना गया।इससे पहले मै कुछ कहता,वो बोला कैसी है नेताजी के रिश्तेदार की तबियत?मैने उल्टे सवाल किया तुम्हे पता है क्या?वो बोला पता क्यो नही रहेगा।सारे प्रदेश के लोगो को बता दिया गया है कि नेताजी की रिश्तेदार की तबियत अचानक बिगड़ी और उन्हे इलाज के लिये प्राईवेट अस्पताल मे भर्ती कराया गया है।मैने कहा कि इसमे बुराई ही क्या है?वो बोला कि बुराई कुछ् नही है।मगर बाकी लोगो को क्यो उस अस्पताल मे भर्ती नही कराया जाता?गरीबो को क्यो वंहा भर्ती नही कराते,आखीर क्यो गरीबो को मरने केलिये सरकारी अस्पताल मे भर्ती कराया जाता है?
मुझे खमोश देख कर उसके हौसले बढ गये थे शायद?वो बोला कि अगर मै गरीब का इलाज़ करने मे सक्षम हूं तो नेताजी की रिश्तेदार को इलाज़ के लिये यहां क्यो नही भर्ती कराया गया?और अगर नेताजी की रिश्तेदार के इलाज के लिये सरकारी अस्पताल सक्षम है तो नेताजी ने अपने रिशतेदार को प्राईवेट अस्पताल मे क्यो भर्ती कराया?मैने चुप रहने मे ही भलाई समझी?वो बोला मेरा सवाल ये ही कि नेताजी को अगर अपने रिश्तेदार का इलाज़ करवाना है तो सब सरकारी अस्पताल मे भर्ती करा देना था?और अगर ऐसा नही कर सकते तो सरकारी अस्पातालो को बंद करा देना चाहिये।
मैं उसकी बातो को अनसुनी करके खामोश खड़ा रहा ?उन्हे भगवान भरोसे नही छोड सकते थे तो अमीरो के अस्पताल मे भर्ती कराने की क्या गरज़ थी। उसने कहा या तो इस प्रदेश मे अमीर-गरीब दोनो का इलाज़ सरकारी अस्पताल मे होना चाहिए। ऐसा नही हो सकता तो, क्यो नही ऐसे ही लोगो को प्रदेश से बाहर कर दे।उसने कहा की गरीब की रिश्तेदार भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी नेताजी कि रिश्तेदार। क्यो सही कह रहा हूं ना।
मेरे पास शब्द ही नही थे।मै भी उसी की तरह सोचने लगा आखिर नेताजी को हक़ ही क्या है जो अपनी रिश्तेदार को प्राईवेट अस्पताल मे भर्ती कराये।वे बड़े नेता हैं इस नाते उन्हे अपनी सरकार के अस्पतालो पर भरोसा करना चाहिये?वे अगर सरकारी अस्पताल मे अपनी रिश्तेदार को भर्ती कराते तो लोगों का सरकारी व्यवस्था पर विश्वास बना रहता। अब जब वे खुद अपने रिश्तेदार को प्राईवेट अस्पताल मे भर्ती करा रहे हैं तो लोग क्यो मरने के लिये अपने रिश्तेदारो को सरकारी अस्पताल मे भर्ती कराएंगे।
15 comments:
बिलकुल सही लिखा आप ने लोग क्यो मरने के लिये अपने रिश्तेदारो को सरकारी अस्पताल मे भर्ती करायें।
धन्यवाद
विचारपरक !
सत्य चिंता व्यक्त की आपने .
अब जब वे खूद अपने रिश्तेदार को प्राईवेट अस्पताल मे भर्ती करा रहे हैं तो लोग क्यो मरने के लिये अपने रिश्तेदारो को सरकारी अस्पताल मे भर्ती करायें।
आपका सवाल तो लाख टके का है पर समस्या ये है कि नेताजी के पास प्राईवेट अस्पताल का बिल चुकाने को अनाप शनाप माल है जब्की जनता को खाने के लिये भी जोगाअड करनाअ पडता ह्तोइलाज कहां से करवाये ? अगर बडे अस्पतालो की दवा खरीदी आदि मे कमैशन खोरी ही खाली बन्द हो जाये तो जनता का अच्छा इलाज हो सकता है !
पर बीच मे ये रक्तबीज हैं सो क्या किया जा सकता है !
राम राम !
वह तो ग़रीबों की मजबूरी है कि सरकारी अस्पताल में जाते हैं. उनके पास काली कमाई होती तो वे भी पाँच सितारा अस्पतालों कि ओर रुख़ करते.
नेताजी अपने रिश्तेदार को सरकारी अस्पताल में तभी भर्ती करवाएंगे, जब उन्हें उससे कोई बदला निकालना होगा।
खैराती अस्पताल की दशा की क्या कहें। एक जगह तो नवजात शिशु को मोटे मोटे चूहे ही कुतर गये! :(
yahI satya hai, garib ka mar jaana hi jyada behtar hai.private me jaayega to bik jaayega, sarkari me jaayega to ghisat ghisat kar marega.
तेरहवीं के भोज के खिलाफ मैं भी हूं, लेकिन इसे एक परम्परा मान कर स्वीकार करना न करना हर किसी व्यक्ति के हाथ में है. दिक्कत तब होती है जब सौ में से निन्यानबे लोग इस के विरुद्ध जाने वालों के ऊपर छींटाकशी करने लगते हैं.
दिनेश जी के सम्मान के बारे में पढकर अच्छा लगा. कपटी राजनीतिक नेता भी ऐसे नायकों का सम्मान भी तभी करते हैं जब उन्हें लगता है कि इसके करने से उनकी पापुलरिटी बढेगी तथा वोट बैंक में भी बढोत्तरी होगी. आप भी पत्रकार हैं आप तो स्वयं जानते हैं कि निन्यानबे पत्रकार किस मानसिकता के होते हैं.
इस देश का यही दुर्भाग्य है अनिल जी जो प्राथमिकताये स्वस्त्थ्य सेवाओ को मिलनी चाहिए ,वो सिर्फ़ कागजो में पुरी हो रही है ,इस देश का गरीब इसलिए मजबूरी में प्रिवेत अस्पतालों का खर्च अपना घर बेचकर उठाने को विवश हो रहा है.....इस मामले में मै गुजरात सरकार की प्रशंसा करना चाहूँगा वहां के सरकारी अस्पताल में महंगी दवाये भी उपलब्ध है ओर विशेषग भी...सी एच .सी भी सुचारु रोप से कार्यरत है..... उत्तर प्रदेश का तो भगवान् ही मालि
सटीक विचारणीय उम्दा पोस्ट. यह पोस्ट बहुत कुछ सच सच बयां कर रही है .आभार.
सरकारी अस्पताल सच कह रहा था। लेकिन हम प्राइवेट की तरह सोचने लगे हैं।
नेताजी ने अपने रिश्तेदार को प्रायवेट अस्पताल में क्यों भर्ती कराया ? यह सवाल सदैव ही अनुत्तरित रहेगा ।
सरकारी अस्पताल की व्यथा कथा के बहाने आपने वास्तविकता का सुन्दर चित्रण किया ।
सरकारी अस्पताल हो या सरकारी स्कूल, सबका यही हाल है.
बहुत सही बॉस!
neta bhashan dete hain doctor ko gaon hejenge khud wahan jhakne nahi jate.Log doctor banana chate hain neta college nahi kholte
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