Tuesday, January 20, 2009

चिदंबरम डाल-डाल,नक्सली पात-पात

होम मिनीस्टर चिदंबरम नक्सल समस्या का जायजा लेने पहली बार छत्तीसगढ आये। उनके आगमन पर नक्सलियो ने उन्हे बाकायदा लाल सलाम किया। चिदंबरम छत्तीसगढ मे थे और नक्सलियों ने बस्तर बंद करा कर अपनी ताक़त का एहसास करा दिया। इधर राजधानी मे चिदंबरम कहते रहे नक्सलियो से सख़्ती से निपटा जायेगा और उधर बस्तर मे नक्सलियो के आव्हान पर यातायात ठप रहा। चिदंबरम अगर डाल-डाल थे तो नक्सली पात-पात।

फ़िर एक बात समझ मे नही आई चिदंबरम स्साब यंहा आये थे तो उनको कम से कम नक्सल प्रभावित क्षेत्र का दौरा तो करना था। ना सही घने जंगलो मे बसे गांव मगर कम से कम बस्तर के मुख्यालय जगदलपुर तक़ तो जाना था।इससे कम-से-कम पुलिस वालो का मनोबल तो बढता।जो बक-बक पत्रकारो से राजधानी मे की वही जगदलपुर जाकर करते तो कोई खास फ़र्क नही पड़ता,हां बल्कि उससे बस्तर का कुछ भला ज़रुर हो जाता।

मगर ऐसा हुआ नही।बस्तर मे सिंगारम की कथित मुठभेड़ के बाद से नक्सली काफ़ी आक्रामक हो गये हैं।उन्होने ओरछा मे एक एस डी एम समेत तीन लोगो को ज़िंदा जलाने की कोशिश करके सरकार को अपने ईरादे पहले से ही जता दिये थे।संभवतः इसिलिये चिदंबरम को छत्तीसगढ प्रवास के दौरान राजधानी से ही वापस लौटा दिया। अगर ऐसा नही होता तो चिदंबरम को कम से एक सलवा-जुडूम के शिविर का ज़रुर मुआयना करा दिया जाता।

अब चिदंबरम के प्रवास को देख कर ये भी कहा जा सकता है कि चिदंबरम साब शहर मे बैठ कर जंगलो मे छिपे नक्सलियो का सफ़ाया नही किया जा सकता।उसके लिये ज़रूरी है जंगलो मे जान हथेली पर लेकर नक्सलियों से लड़ रहे जवानो का मनोबल बढाना और उनका मनोबल इस तरह दिल्ली से रायपुर आकर बयानबाज़ी करने से नही बढ सकता।

अब चाहे कोई कुछ भी कहे सच तो ये है की चिदंबरम के आगमन पर नक्सलियो के आवहान पर बस्तर का अंदरूनी इलाका बंद रहा। यात्री बसों के अलावा परिवहन के साधन उनके जाने के बाद दूसरे दिन भी बंद रहे। अब इसे नक्सलियो की ताक़त मानिये या मत मानिये मगर को नक्सलियों ने इस बात को साबित करने मे कोई कसर नही छोड़ी की बस्तर मे उन्हे इस बात से कोई फ़र्क़ नही पड़ता कि कौन आ रहा है या कौन जा रहा है। वैसे भी नक्सलियो ने राष्ट्रपति के बस्तर प्रवास से लौटते समय रोड माईन्स ब्लास्ट करके अपने इरादो से सरकार को वाकिफ़ करा दिया था।

12 comments:

Dev said...

सकता।उसके लिये ज़रूरी है जंगलो मे जान हथेली पर लेकर नक्सलियों से लड़ रहे जवानो का मनोबल बढाना और उनका मनोबल इस तरह दिल्ली से रायपुर आकर बयानबाज़ी करने से नही बढ सकता।

Aaapne bilkul sahi bat kahi hai....
Aasha hai es tarah ke vishayo par aur lekh hame padhane ko milega....

Regards...

राज भाटिय़ा said...

चिदंबरम हो या कोई ओर सब को अपनी अपनी जान प्यारी है, या फ़िर वोट, पुलिस, फ़ोज के जवान नही.
धन्यवाद

ताऊ रामपुरिया said...

बिल्कुल सत्य और सटीक कहा आपने.

रामराम.

seema gupta said...

फ़िर एक बात समझ मे नही आई चिदंबरम स्साब यंहा आये थे तो उनको कम से कम नक्सल प्रभावित क्षेत्र का दौरा तो करना था। ना सही घने जंगलो मे बसे गांव मगर कम से कम बस्तर के मुख्यालय जगदलपुर तक़ तो जाना था।इससे कम-से-कम पुलिस वालो का मनोबल तो बढता।

"जान जोखिम में डालने का काम या तो पुलिस का है या फ़िर आम जनता का जो नक्सलियो के आतंक का शिकार होती है.....इनका क्या है.....?"
Regards

sarita argarey said...

नेता तो भई नेता होता है , उसे देश की समस्याओं से क्या लेना देना । हवा में उडो < खबरों में छाओ और रुपए की चमक पा कर मुस्कराओ ....।

Udan Tashtari said...

चलिये, कम से कम सुध तो ली.

Science Bloggers Association said...

यह एक गम्‍भीर समस्‍या है, जिसका हल निकालने के लिए गम्‍भीर प्रयासों की आवश्‍यकता है।

Anonymous said...

वहाँ की प्रदेश सरकार की असफलता है यह

विवेक सिंह said...

चिदम्बरम ऐसे ही तोपची होते तो पहले न आजाते !

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

netaon ko vote chahiye, unki bala se koi jiye ya mare.

BrijmohanShrivastava said...

आपका लेख व्यवस्था पर ""? "" है

Ashutosh said...

गणतंत्र दिवस पर आपको ढेर सारी शुभकामनाएं