छत्तीसगढ के जंगल विभाग की जितनी भी तारीफ़ की जाय कम ही होगीं। निकम्मेपन मे शायद ही दुनिया मे उनकी टक्कर का सरकारी विभाग होगा।छत्तीसगढ के उत्तरी ईलाके के जंगलों मे सालों से दंतैल हाथियो का आतंक है। हाथी जब मर्ज़ी आते है जो सामने आता है उसे रौंद के वापस चले जाते है। हाथी से त्रस्त गांव वाले ही उन्हे भगाते है।कोई मर जाता है तो जंगल दफ़्तर वाले मुआवजा दे देते है,और बाकी नुकसान के मुआवजे के लिये चक्कर काटते रहते हैं। हर साल हाथियो के नियंत्रण के लिये करोड़ो रुपये की योजना बनती है और खर्च भी होता है मगर समस्या जस की तस बनी हुई है।
जंगल विभाग वालो की ही माने तो जंगली हाथियो से निपटने के लिये जितना खर्च किया जा चुका है उतने मे उस ईलाके के जंगली हाथी मार कर पालतू हाथी खरीदे जा सकते थे।पता नही जंगल विभाग क्या कर रहा है इस मामले मे।कल भी जंगली हाथियो का एक झुण्ड जशपुर इलाके मे खूटापानी डूमरटोली गांव के पास आ गया था।हाथी हर्रा खा रहे थे।तभी गांव का बुधराम उस ओर से निकल रहा था। हाथियो ने उसे वंही पटक दिया और कुचल कर चिंघाड़ने लगे। चिंघाड़ सुनकर ग्रामीण उधर दौड़े और हाथियो को भगा कर बुधराम को अस्पताल ले गये लेकिन बुधराम ने रास्ते मे ही दम तोड़ दिया।
खबर मिलते ही जंगल दफ़्तर वाले गांव पहुंचे और बुधराम के घर वालो को दस हजार रुपये मुआवजा दिया और वापस निकल लिये।यानी एक जशपुर इलाके के एक ग्रामीण की जान की किमत गाय-बैल की कीमत से भी कम है। हाथियो के हाथ मरने वाला बुधराम पहला आदमी नही है।इसके पहले भी कई लोग मारे जा चुके है और ये सिलसिला सालों से चला आ रहा है।
छतीसगढ के उत्तरी इलाके मे आदमी को जानवर ने मारा तो जंगल विभाग ने उसके परिजनो को मुआवजा दे दिया वंही दक्षिणी ईलाके बस्तर मे जंगल विभाग ने भटक कर गांव मे घुस आये तेंदुये को मारने वाले 9 ग्रामीणो के खिलाफ़ मुकदमा कायम कर लिया है। अब वनग्रामो मे रहने वाले ग्रामीण जंगली जानवर से बचने के लिये उसे मारते हैं तो मुकदमा और नही मारते है तो जान जाती है।
इस् मामले मे जंगल वालो की ईमानदारी की मिसाल कही और देखने नही मिलेगी।मरो तो मुआवजा लो और मारो तो मुकदमा भुगतो। उनको सिर्फ़ ये ही दो काम आते हैं।जंगलो मे रहने वाले ग्रामीणो की जान माल की रक्षा करना उनका नही खुद ग्रामीणो का काम है। उसमे भी उन्हे जानवर को मारना नही है।जानवरो को ये तो भगायेंगे नही और हां जानवर आते रहेंगे जान-माल का नुकसान करते रहेंगे। आप रहिये भगवान भरोसे ना कि वन विभाग के भरोसे।
10 comments:
ek kaam aur bhi karte hain yah, jangalon ko maidaan banane ka, baahar se jangal andar maidaan hota hai.
विचारणीय पोस्ट लिखी है।सरकारी नितियाँ बिल्कुल बेकार हैं। ऐसा लगता है जैसे आदमी की कीमत कुछ भी नही रह गई है।सभी सरकारें सोई हुई लगती है।ं
जंगल विभाग वालो की ही माने तो जंगली हाथियो से निपटने के लिये जितना खर्च किया जा चुका है उतने मे उस ईलाके के जंगली हाथी मार कर पालतू हाथी खरीदे जा सकते थे।
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जंगल विभाग तो ह्वाइट एलीफेण्ट है! :)
"सरकारी "शब्द अब शायद निकम्मेपण का दूसरा पर्यायवाची बन चुका है...
बहुत सोचने वाली बात है. आपने बिल्कुल सटीख बात कही है.
रामराम.
हाथी के पैर में सब का पैर....
पांडे जी ने बिल्कुल सही कहा है अनिल जी ki जंगल विभाग तो ह्वाइट एलीफेण्ट है!
गुरु ज्ञान जी से सहमत हूँ...
लेकिन बड़ी समस्या है पारिस्थितिक संतुलन और मैन-वाइल्ड कनफ्लिक्ट को कमतर करते हुए बीच का रास्ता अख्तियार करने की...
अब देख लीजिये, उत्तर प्रदेश में आतंक मचाने वाले नरभक्षी बाघ की सजा-ऐ-मौत के ख़िलाफ़ भी कई एन.जी.ओ. अदालत पहुंचे हैं..
अनिल जी,
सही कह रहे हो. इधर हरिद्वार में भी ऐसा ही हो रहा है. राजाजी राष्ट्रीय पार्क के हाथी और तेंदुए गावों में बहुत ही नुकसान पहुंचा रहे है. गन्ने की तो उन्होंने ऐसी की तैसी रखी है. अभी पिछले दिनों कुछ गाँव वालो ने मिलकर एक वन रक्षक को पीट पीटकर अधमरा कर दिया था.
me lord! budhram jangali hathiyon ke pass gaya hee kyon? uski neeyat kharab thi jo jangali hathi ke pas jane ki jurrat kee, woh toh unke dant todne ke niyat se gaya tha jo kee mulywan vastu hai aur hathiyon ne use patak diya, hathiyon ka irada use marne ka nahi tha unhone apne daant bachane ke liye yeh karya kiya "SIR FOR SELF DEFENCE". Yeh hathi aur koi nahi Forest Deptt. wale hee hai. Jinke khane ke daant Shark se bhi Tej rahten hai aur Dikhane ke daant "HATTI" jaise. Jab chahe is "HATHI" daant se kisi ko bhi patak kar "salakhon" ke pichhe phenk de, lekin ek baat hai kutton ko marne par mukadama nahi chalta.
भारत मै हर तरफ़ जंगल राज है जी, जेब मे पेसा है तो जो चाहओ करो वरना ......
धन्यवाद
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