कांग्रेस के विधायको ने कल विधानसभा मे जमकर हंगामा किया और प्रश्न काल चलने नही दिया। जिस मामले मे हंगामा हुआ वो पिच्छ्ले महिने की आठ तारिख को हुई एक कथित मुठभेड़ है जिस मे 15 आदिवासियो की जान चली गई थी।तब से कांग्रेस इक्का-दुक्का नेताओं ने अखबारो मे बयान जारी करने के अलावा कुछ नही किया था।लगता है वे विधान सभा का सत्र शुरू होने का इंतज़ार कर रहे थे।सत्र शुरू होते ही कर दिया हंगामा।जिस काम के लिये सत्र के घण्टे तय थे वो काम नही किया निलंबित होकर अपने-आप को आदिवासियो का सच्चा हितैषी साबित करने का शायद इससे अच्छा मौका उन्हे कोई और नज़र नही आया।एक महीने बाद उन्हे याद आया कि जंगल मे नक्सली और पुलिस आदिवासियों को मार रही है। और वे यंहा बहस कर रहे है विधानसभा में।दम होता तो जाते बस्तर वहां करते आंदोलन्।जाते जंगल करते बात नक्सलियों से,करते प्रदर्शन पुलिस के खिलाफ़, मांगते समर्थन जनता से।तब पता चलता कि उनके आंसूओं मे कितना नमक है।
मगर वे अब बस्तर(सिंगावरम,)जाए क्यों?वो तो नेतागिरी करनी है इसलिए हंगामा कर रहे हैं?फ़िर बस्तर के आदिवासियो ने उन्हे जिताया ही कहां?आदिवासियों के भरोसे ही भाजपा ने दोबारा सरकार बना ली तो उनके लिये ज़ंगल मे क्यों जाये मरने के लिए?फ़िर जब उनकी सरकार थी तो भाजपाई कौन सा बस्तर हिला देते थे जन-आंदोअलन से?अब विधानसभा मे कुछ न कुछ करना है जिससे लोगो को पता चले कि प्रदेश मे विपक्ष नाम की चिड़ियाहे भी रहती है,इस्लिए यंहा चिल्ला रहे हैं?अभी-अभी सरकार बनी है,गाली देने के लिये ताज़ा-ताज़ा मामला भी नही है?पुराने मे मामले मे हल्ला करेंगे तो पहले से ही सेट मीड़िया भी उन्हे फ़्रंट पेज़ पर जगह नही देगा?भला ऐसा मौका कोई बिना कारण कैसे छोड़ सकता है?बस इसिलिय याद आ गई आदिवासियों की और जी-भर के टेसूए बहाये विधान सभा मे।
पूरा दिन खराब कर दिया।इस दिन भर मे प्रदेश की जनता के हित के कई काम हो सकते थे मगर अब किसे चिंता है जनता की?कांग्रेस को जनता ने गद्दी पर बैठाया नही और भाजपा को भी मालूम है जनता ने उन्हे कांग्रेस को कुर्सी से दूर रखने के लिए बिठाया है,सो दोनो के लिए अब अपने-अपने राजनैतिक एजेंड़े मह्त्व्पूर्ण हो गए है।फ़िर अभी पांच साल चुनाव होना नही है इसिलिए अब टोकन पोलिटिक्स चलेगी।लोकसभा चुनाव करीब ज़रूर है मगर उससे राज्य-स्तरीय नेताओ का भला होना नही है।फ़िर पार्टी की भीतरी गुट्बाज़ी का भी तो हिसाब-किताब चुकता करना है?बस अब ऐसा ही चलेगा गरीब लोगो के अमीर धरती पर्।लोग जंगलों मे मरते रहेंगे?चाहे नक्सलियों के हाथों?या पुलिस के?या फ़िर ज़ंगली हाथियों और दुसरे जानवरो के हाथों?हंगामा भी होगा ज़रुर मगर वंहा नही यंहा शहरो मे आखिर सवाल सरकार को गाली देने और अपनी नेतागिरी ज़िंदा रखने का है।
15 comments:
mudde ki baat se satra badnaam ho jayegaa yahi samjhte hai netajii
आदरणीय अनिल जी बहुत समय से इस संदर्भ पर नहीं लिखा था, आपके आनें वह कसक फिर जगायी है।
आप सही मायनों में पत्रकार हैं।
देश के लिए शायद ही कोई अब नेता बनता हो.. बहुत ही शर्मनाक है ये..
बिल्कुल सही कहा आपने.
रामराम.
कब निकलेगे हम इस समस्या से बाहर ???कब ???
बिल्कुल ठीक कह रहे हैं.
दिया।इस दिन भर मे प्रदेश की जनता के हित के कई काम हो सकते थे मगर अब किसे चिंता है जनता की??
" यही तो समस्या है की चिंता किसे है....मरती है तो मरे....नेता है भाषण देंगे अपनी जेब भरेंगे और बस....."
Regards
अनिल जी, अब तो इन्हे नेता कहते भी शर्म आती है, उठाईगिरी कही के, ओर इन के काम भी वेसे ही है, आप ने बहुत अच्छी तरह इन सब की पोल खोली,
धन्यवाद
शर्म की बात है कि प्रदेश की जिम्मेदारी ऐसे गैर-जिम्मेदार, कायर और मौकापरस्त लोगों के हाथ में है.
हमारे यहाँ जब डकैत समस्या थे तो आम ग्रामीण पिसता था रात में डकैत लूटते थे दिन मे पुलिस . यही हाल आपके यहाँ बेचारे आदिवासिओं का हो रह होगा . और माननीय नेता अपने वोट बैंक के लिए लड़ रहे है
neta hai aajkal kaha desh ke liye hote hain
कुश भाई से सहमत हूँ !
बेचारे आदिवासी। यही देखकर तो दुष्यंत ने कहा था:
न हो कमिज़ तो पाँवों से पेट ढंक लेंगे
ये लोग कितने मुनासिब हैं, इस सफर के लिए॥
राजनीतिक सफर के लिए तो ऐसे ही हथियार चाहिए ना!
जंगल के वास्तविक मित्र आदिवासियों की किसे परवाह है। दिक्कत ये है कि जम्हूरियत में सिर्फ सिर गिने जाते हैं; इसलिए राजनेताओं का ध्यान सिर्फ सिरों की तरफ रहता है; फिर चाहे वह काटकर मिलें या जोड़कर।
बिल्कुल सही कहा आपने...
Post a Comment