Saturday, February 7, 2009

मेरा शेरू किसी भी टाईगर से कम नही था

कभी हम भी कुकुर पाला करते थे।जर्मन शेफर्ड़ से लेकर डाबरमैन और लेब्राडोर से लेकर पामेरियन नस्ल तक कुकुर हम पाल चुके हैं।कुकुर की ब्रीड के बारे मे आपको एक-से-एक विद्वान अलग अलग राय बताएंगे,मगर हम आपको शर्तिया बताते है कि सबसे बढिया ब्रीड होता है रोडेशियन्।इससे अच्छा और लो मेंटेनेन्स वाला कुकुर आपको सारी दुनिया मे ढुंढे से नही मिलेगा।ये सच मे जांचा परखा दावा है।

आज सुबह ही परम आदरणीय,प्रातः स्मरणीय ज्ञानदत्त जी की पोस्ट पढा।उसमे उन्होने नए कुकुर के बारे मे लिखा और उसकी ब्रीड के बारे मे सवाल भी किये।ज्ञानदत्त जी को उनकी पोस्ट पर कमेण्टस कर मैने बता दिया था कि अक्सर मैं कुकुर के बारे मे एक किस्सा सुनाया करता था,उसे आज आप सभी को बता रहा हूं।

घर मे कुकुर पालने मका सिस्टम काफ़ी समय से चला आ रहा था।उस समय एक जर्मन शेफ़र्ड़ हमारे घर मे था।जैक उसका नाम था।बहुत ही प्यारा कुकुर था वो।सबसे बहुत घुल-मिल गया था।बाबूजी (पिताजी)उस समय थे,उनका बहुत दुलारा था वो।रात को घर लौटते समय लाने वाले फ़ल से लेकर जो हर वो चीज पहले उसे मिलती थी।गर्मियो मे तो के आम और खरबूजे की खूशबू उसे दीवाना बना देती थी।उसकी तबीयत आये दिन खराब हो जाती थी।एक दिन डाक्टर की सलाह पर उसे एक मित्र के फ़ार्म भिजवा दिया गया।

उसके जाने के बाद मंझला भाई सुनील फ़िर से कुकुर रखने की ज़िद करने लगा।फ़िर इस बात पर बहस होने लगी कि अल्सेशियन रखे या पामेरियन्।ये रोज़-रोज़ का किस्सा हो गया था।एक दिन हम भी शामिल हो गए न्युज़ चैनलो की राय शुमारी वाले कार्यक्रम की तरह बह्स मे। हमारी राय को बहुत ज्यादा तवज्जो नही दी जाती थी क्योंकि हम जरा ज्यादा ही अलाल किस्म के थे और कुकुर पालना सेवा भाव के साथ-साथ मेहनत का काम हैं।सुबह-सुबह उसे घुमाने के बहाने खराब संबंध वाले पड़ोसी के घर के सामने हल्का करवाना और वो भी बिना पड़ोसी को पता लगा बड़े साहस का काम होता है। अचानक पड़ोसी के जाग कर बाहर आ जाने के समय ऐन टाईम पर कुकुर बिना कोई मौका दिए लगभग घसीटते हुए दुसरे मोर्चे पर ले जाना बड़ा कठीन काम होता है।खैर ये सब टेक्निकल परोब्लम पर अलग से पोस्ट लिखूंगा एक-दिन्।

हां तो मै बता रहा था कि किस ब्रीड़ का कुकुर लाया जाए इस पर डिस्कशन चल रहा था।एक-से-एक सुझाव आ रहे थे तभी मैने भी अपना आईडिया रख दिया।मैने सजेस्ट किया रोडेशियन ब्रीड़ का कुकुर रख लिया जाय। अब सबके चौंक जाने की बारी थी।ये रोडेशियन कौन सा ब्रीड है?सबने कहा कि इसके बारे मे तो सुना ही नही है?फ़िर सबने कहा कि जब मालुम-वालुम ना हो तो बेमतलब डींग मत हांका करो। हम भी अड़ गये। होता है रोडेशियन कहा और जब गये।हमने बताया रोडेशियन याने सड़क छाप कुकुर तो सब माथा पकड़ कर बैठ गये।

सब के सब हम पर दाना पानी लेकर चढ गये कि सड़क छाप कुकुर भी कोई पालने की चीज़ होते हैं,वो तो वैसे ही सड़क पर पल जाते हैं।हम भी आसानी से हार मानने वालो मे से नही हैं,सो भीड़ गये रोड़ेशियन की महत्ता बताने में।हमने कहा कि हमारा दावा है कि इससे ज्यादा लो मेंटेनेन्स वाला कुकुर सारी दुनिया मे नही मिलेगा।दवा-दारू का खर्च तो है ही नही।डाक्टर के पास ले जाने का भी झंझट नही है।और-तो-और खाने मे भी कोइ नखरा नही है,जो भी रात का बचा-खुचा हो दे दिजिये कोई प्रोब्लम नही है।और उसका भी खर्च बचाना हो तो उसे घर के भीतर ना बांध कर बाहर रखे तो कम्युनिटी डोगिंग मे सबके घर का बचा-खुचा कर भी वो खुश ही रहेगा।

अब-तक़ हमारे हिसाब से ज्ञान की बातें और बाकी लोगो के हिसाब से बक़वास काफ़ी हो गई थी सो उन्होने इसे पालने के फ़ायदे से ज्यादा ब्रांडेड ब्रीड के बारे मे कहना चाहा मगर हम भी नेताओ की तरह अपनी बात मनवाने पर तुल गये थे।हमने कहा नाम रखने से कोई कुकुर टाईगर नही हो जाता।आप लोगो के टाईगर से मेरा रोडेशियन कालू लाख दर्ज़े अच्छा हैं। ना उसे सोफ़े की नर्म गद्दी होना सोने के लिये और ना ही उसे ठण्ड मे गर्म कपडे चाहिये नाही गरमी मे कूलर्।चाहे तो घर के अंदर सुला लो या बाहर सड़क पर।उसे कोई फ़र्क नही पडता।बढिया से बढिया ब्रीड का कुकुर ड्राईंग रूम मे सोया का सोया रह जाता है और चोर-डाकू अपना कम कर के निकल लेते है,और एक रोडेशियन होता है चाहे आप उसे पाले या ना पाले सड़क पर अज़नबी को देख कर पुरा मोहल्ला सर पर उठा लेता है। और भी कई खासियत होती है रोडिशियन मे।और इससे पहले कि मै उन्हे कोई और गुण बता पाता कि अचानक धर्म रक्षको को देख कर वैलेंटाईन_डे मना रहे लोगो की तरह घर वाले बिदक गये ।

16 comments:

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर, ग्याण की बाते लोगो को कम ही समझ आती है, हमारे यहां रोडेशियन नस्ल नही मिलती, वर्ना मै जरुर पाल लेता, मेरे पास एक मिली जुली नस्ल का कुत्ता है, जिस का वज्न इस समय ५० किलो के आसपास है , अगर किसी की आंखॊ के सामने खडा हो जाये तो बडॆ बडॆ डर जाते है,ओर उस की आवाज हमारे पुरे गावं मै गुजती है.
लेकिन बहुत ही प्यारा, बच्चो को बहुत प्यारा है बच्चे उसे घॊडा भी बना लेते थे, ओर सभी बाते समझता है,
काम तो बहुत है, लेकिन लाभ भी बहुत है.

ghughutibasuti said...

सत्य वचन !
घुघूती बासूती

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

हम देसी लोग अपनी नस्ल देखे बिना कुत्ते की नस्ल पर ज्यादा ध्यान देते है . मेने भी आपकी बताई नस्ल पली हुई है किसी की मजाल जो बिना आवाज़ दिय आ जाए

समयचक्र said...

बहुत ही बढ़िया कूकर गाथा है मजा आ गया . धन्यवाद.

Gyan Dutt Pandey said...

रोडेशियन कुकुर हमने भी पालने का यत्न किया था, पर वह बिना वीसा-पासपोर्ट के रोडेशिया चला जा रहा था। अपने मुल्क की आबोहवा और मेरे घर की रोटी, दोनो का मोह न छोड़ पा रहा था! :(

Arvind Mishra said...

ठीक उसी समय जब आज आप मुझे पढ़ रहे थे मैं इधर आपके रोडेसियन ज्ञान पर मुग्ध हो रहा था -मेरे बाबा जी को भी केवल यही ब्रीड पसंद थी और वे बिना नागा चार पाँच रोडेसियन को कौरे दे देते थे ! बढियां लिखा आपने !

Vinay said...

aanand aa gaya, rochak

Anonymous said...

जी एक rodesian हमने भी पाला हुआ है और आपकी बात से हम बिल्कुल सहमत हें, बस उसकी भोंकने की timing ग़लत होती है बाकी तो मोहल्ला सर पर उठाता ही है। पड़ोसी उसे मांग कर ले जाते हिं की दो घंटे के लिए हमारे गेट के सामने बाँध दीजिये!

बाकी उसकी तारीफ़ में हम अपने ब्लॉग पर बहुत कुछ लिख चुके!! अब तो महाकाव्य लिखने की देर है :)

Smart Indian said...

रोडेशियन को भी उनका ड्यू सम्मान मिलना ही चाहिए.

अनिल कान्त said...

हमारे घर में भी एक कुत्ता पाला गया था ...लेकिन कुछ समय बाद उसकी अकस्मात मौत हो गई ...बहुत दुःख हुआ था मुझे ....

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

पाण्डेय जी ने सफलतापूर्वक कुकर पुराण की ओर ब्लागरों का रुख करने के लिए बधाई।

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाह... भाई जी, वाह... खूब कहा..... बेहतरीन प्रस्तुति.......... रोडेशियन सूज़ी ने पांच पिल्ले दिये हैं हमारे घर के सामने पर हमारे यहां पामेरियन सैम है.........
पर हमारे बच्चे जितना प्यार सैम से करते हैं उतना ही उन से भी... यही वजह है कि घर का गेट तो दूर गली में भी कोई घुसे तो हमें खबर हो जाती है....

Shastri JC Philip said...

क्या विशेष है रोडेशियन के साथ? देखता हूँ विश्वकोश में!

विष्णु बैरागी said...

कुत्‍ता पालने को उत्‍सुक परिजनों को केसे निरुत्‍साहित किया जाए - इसका श्रेष्‍ठ तरीका बताया है आपने, मुझे तो यही लगा आपकी यह पोस्‍ट पढकर।
मेरी समझ जो भी हो, पोस्‍ट है जोरदार और मजेदार।

मुकेश कुमार तिवारी said...

अनिल जी,

रचनाकार पर आपकई टिप्पणी का धन्यवाद. और वहीं से आप तक पहुँच पाया हूँ. एक पाठशाला की तरह हुनर सीखना के लिये काफी कुछ मौजूद है.

रोडेशियन नाम की एक नई नस्ल से परिचित होना और पडोसी के घर के सामने हल्का करवाने की मुसीबतों से बचने के तरीकों का इंतजार रहेगा.

मुकेश कुमार तिवारी

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

कमाल दी ब्रीड है जी बादशाहो - रोडेशियन