कालेज के किस्से पढ-पढ कर कालेज के अपने दिनो को भी आपसे बांटने की इच्छा बहुत दिनो से ज़ोर मार रही थी,सो आज एक बढिया किस्सा बता रहा हूं।बात कालेज के हमारे अखिरी साल की है। चुनाव हमारे बीच से शकील ही लड़ा करता था और हम दोस्तों की अच्छी ईमेज की वजह से कभी जीत नही पाया था।सो उस साल केंडिडेट बदल दिया गया और शकील अब प्रचारक बन गया था।
चुनाव-प्रचार जोर-शोर से चल रहा था।सारे दोस्त कालेज के होस्टल नं तीन मे इकटठा होकर एक साथ निकलते थे।उस दिन भी सभी जमा हो गये थे बस चुन्नू नही पहूंचा था।देर भी हो रही थी।उसके घर मे फ़ोन लगाकर पूछने की हिम्मत भी किसी मे नही थी।सबने फ़ैसला किया थोड़ी देर बाद चाचाजी(चुन्नू के पिताजी,अब स्व) के दफ़्तर के लिये निकलने के बाद फ़ोन लगा कर पूछ लिया जाएगा,तब-तक़ सब प्रचार के लिये निकलते हैं।
तभी होस्टल के गेट पर यूनिवर्सिटी जाने वाली दीदीयों(जो उम्र मे बड़ी हो) भाभीयों(जो सीनियरो को पसंद हो)और नान दीदीयो को दूर से ही रोज़ की तरह विदा करने वाले कुछ साथियो ने वंहा से चिल्ला कर बताया चुन्नू आ रहा है। चिल्ला कर इसलिये बताया कि उसके दो फ़ायदे थे।पहला सड़क पर जा रही प्रोबेबिलिटी का ध्यान खिंचा जाता और दूसरा वहां से हट जाने पर किसी को अटैण्ड नही कर पाने से शार्ट अटेंडेन्स का खतरा भी नही था।
खैर जैसे चुन्नू अंदर पहूंचा सारे के सारे पिल पडे उस पर्। ढेरों गालिया खाने के बाद उसे देर से आने की सफ़ाई देने का मौका मिला तो उसने सबसे पहले शकील की ओर देखा और कहा भाई तू मेरे घर मत आना बस्।सब हैरान आखिर शकील ने ऐसा क्या कर दिया कि चुन्नू उसे घर आने से मना कर रहा है।उन दिनो रोज़ एक-दुसरे के घर आना जाना होता था।
सबसे पहले मै उस पर भड़का ये क्या बदतमीजी है क्या गलत किया है शकील ने।एक तो साले देर से आया है उपर से धमकी-चमकी?तब चुन्नू ने कहा कि मामला दूसरा है।दूसरा कौनसा मामला बे?अचानक बल्लू(बलबीर) उसपर भड़का। अब चुन्नू भी भड़क गया,बोला रुक जा बेटा इस बार तो शकील का नाम लिया हूं अगली बार तेरा ही नाम लूंगा। अब बारी थी शकील की,वो बोला मै क्या किया हूं बे जो मेरा नाम घसीट रहा है?बहस को रोक कर मैने उससे पूछा चुन्नू मेरे भाई आखिर हुआ क्या है?
तब चुन्नू बोला अरे कुछ नही गुरुदेव(चुन्नू आज भी मुझे गुरुदेव ही कहता है)।थोड़ा गड़बड़ हो गई इसलिये तो आने मे देर हो गई।मै बोला वो तो हम लोग समझ गये हैं,गड़बड़ क्या हुई है ये बता।सब सन्नाटे मे थे क्योंकी चुन्नू मुसीबत का दूसरा नाम था।वो बोला कल जो मैने उस वाली(नाम नही लिख पा रहा हूं)के लिये लैटर लिखवाया था ना,सब बोले हां आगे बोल।वो बोला,लैटर घर मे पकड़ा गया।अब तो सबको सांप सूंघ गया।बात अब सबके घर तक़ पहूंचनी थी और सबकी चुनाव के बहाने चल रही मस्त आज़ादी खतरेमे तो थी मार खाने का भी इंतज़ाम दिख रहा था।सब्के सब एक साथ उस पर चिल्लाए मरवा दिया साल्ल्ले।वो बोला मरवाया नही सब्को बचाया हूं।सबने पूछा कैसे?तो वो बोला मैंने अम्माजी को पटा कर बता दिया कि ये लैटर मेरा नही है शकील का है।मै बोला साले अम्माजी सब के घर मे बता देग़ी तो?वो बोला गुरुदेव अपन कच्ची गोली नही खेले है इसिलिए तो शकील का नाम ले दिया हूं।
अब शकील गरम हो गया।वो बोला मैने तेरा क्या बिगाड़ा था बे?वो बोला देख भाई मुझे अपना कालेज आना बंद तो नही करवाना था,किसी न किसी का तो मैं नाम लेता ही ना।शकील बोला मेरा ही नाम क्यो लिया कमीने?वो बोला तू क्या समझता है कि मेरी बात पर अम्मजी ने आसानी से विश्वास कर लिया था।मेरी ईंमेज भी अच्छी नही है।बड़ी मुश्किल से मानी,वो भी तब जब मैने उनसे कहा कि देख लो राईटिंग मेरी नही है।तो ?तो क्या अम्माजी ने कहा है ठीक है तू शकील के नोट्स लाकर दिखाना तभी मै मानूंगी।तो?तो क्या साले नोट्स लेने के बहाने बड़ी मुश्किल से छूट कर आ रहा हूं और तुम लोग मेरी ही ऐसी-तैसी कर रहे हो।शकील का बस रोना बाकी था।वो बोला साले चुन्नू तो जो बोलता है मै वो करता हूं।तू ही बोला लैटर लिख दे।मैने लिख कर दिया।सब्ने मना भी किया।मगर मै नही माना और लैटर लिखा और तूने मेरी ईमेज की वाट लगा दी।क्या सोच रही होगी अम्माजी मेरे बारे मे?चून्नू बोला अबे घर मेरा है,अम्मा मेरी है और बेटा तेरे को अपनी इमेज की पडी है।तेरी इमेज नही बिगाड़ता तो मेरा क्या होता पता है ना।अब सब भड़क गये साले अपनी इमेज बचाने के लिये तू किसी की भी ईमेज खराब कर देगा क्या?वो बोला एक-एक करके बोले अभी बहुत मौके आएंगे,जो ज्यादा ताव खाएगा साले का पहला नंबर लगाऊंगा।उसके बाद सब पिल पड़े थे चून्नू पर्।कैसा लगा मेरे कालेज के दिनो का किस्सा बताईगा ज़रूर,ताकी यादो के खज़ाने से निकाल कर कुछ किमती क्षण आप लोगो से बांट सकू।
30 comments:
बहुत खूब !!
वो दोस्ती ,वो यादें और शरारतें अभी भी पलकें भिगों जाती है!
बहुत मजा आया आपका किस्सा पड़कर !!
कभी मेरे घर भी आईये !!
www.yaadonkaaaina.blogspot.com
aisi hI hoti hain yaadein.
शकील, जहां भी हो, सहानुभूति का पात्र है! :)
हहा... दीदी और भाभी वाला पॉइंट ऑफ व्यू बढ़िया रहा..
बहुत मजेदार....
बहुत अच्छे ...........हमने भी अभी अभी अपना एक गुनाह सरे आम कबूल किया है
बहुत रोचक।
Bahut hasi aayi aapka kissa padhkar...likhte rahiye...
आज अनुराग भी फाग गा रहे हैं और आप भी -बसंत उफान पर है!
आपने तो प्रचलित शब्दों का उपयोग कर पूरा मजेदार शब्द चित्र ही बना दिया.
दीदियों, भाभियों, नॉन दीदियों का मतलब जान भी बड़ा मज़ा आया.
बेचारे (जी हाँ, बेचारे) शकील आजकल कहाँ हैं?
अपना कीमती खजाना लुटाते रहिये. हम लूटने को तैयार बैठे हैं.
रोचक !!!
Bechaara Sakeel......वैसे आजकल की यारी में इतनी सहनशक्ति है क्या..?
नमाज पढने लगें तो रोजे गले पड़ने की पूरी संभावना रहती है। वही शकील भाई के साथ हुआ। पर यह तो उस वक्त में सब के साथ होता है।
अरविंद मिश्र की टिप्पणी जोरदार है।
बढ़िया प्रसंग था...
bhai bas mat poocho maja hi aa gaya,didiyon ,bhabhiyon ko padh kar meri vali teri vaali ki yaad aa gai . bahut khoob
बेहद रोचक.......
बेहतरीन ब्लॉग की बेहतरीन पोस्ट में
आनंद ही आनंद
हर हर नरमदे नरमदे हर हर
शकील हम जैसे उद्दण्ड और शरारती दोस्तो की वजह से सफ़ल छात्र नेता तो नही बन पाया मगर उसने बैंक मे नेतागिरी का परचम लहरा दिया।फ़िलहाल वो कर्मचारी यूनियन का राज्य स्तरीय नेता है।
मजेदार और शानदार। और किस्सों का इंतजार है। न लिखे तो चुन्नू की अम्मा जहां भी होंगी उनको बता दिया जायेगा कि चिट्ठी शकील ने नहीं अनिल ने लिखी थी।
बहुत मजेदार रहा .....
लेकिन क्लाइमेक्स नहीं बताया। शकील का प्रवेश चुन्नू के घर में हुआ या नहीं और हुआ तो कब और कैसे।
आनन्ददायी पोस्ट। सचमुच में निर्मल आनन्द।
अरे यह प्रेम पत्र केसे मेरी नजरो से बच गया ??? पहले इसे पढुंगा, फ़िर इस से अगला.
धन्यवाद , अब इसे पढ लूं.
यह एक बात समझ मै नही आती !! दुसरो के लब लेटर लिखने वाला ही हमेशा क्यो फ़ंस जाता है??? बेचारा...
बहुत सुंदर लेख, ओर हम ने इसे आज खो ही दिया था.
धन्यवाद, अब आगे चलते है
आपने हमारे कॉलेज के दिनों का स्मरण करा दिया। दीदी, भाभी और नॉन-दीदी का वर्गीकरण वास्तव में आनंददायी हैं। साथ ही यह नवीन भी हैं। हमे इससे पहले हमे अपने कॉलेज के सीनियर छात्रो से प्राप्त ब्रम्हा ज्ञान से केवल २ ही वर्गीकरण का ज्ञान था -
१, लड़कियां तीन तरह कि होती हैं - अच्छी, बहुत अच्छी और बहुत बहुत अच्छी।
२, लड़किया दो प्रकार कि होती हैं माल और मा.ल. (माँ लायक)
ज्ञान वृद्धि के लिए धन्यवाद
Wah kya khub vakya likha aapne,
अनिल भाई, कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन क्या कॉलेज स्कूल मे अब क्या ऐसे दिन होते होंगे ? जब अपनी मस्ती और गम मे भी मे सब दोस्त एक दुसरे को साझीदार बनाते थे !! मुझे ये पढ़कर ऐसा ही लगा च जिनका जीकर हुआ सभी दोस्त यार हैं, अच्छा लगा !!
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तभी होस्टल के गेट पर यूनिवर्सिटी जाने वाली दीदीयों(जो उम्र मे बड़ी हो) भाभीयों(जो सीनियरो को पसंद हो)और नान दीदीयो
ये लाईन मुझे जिंदगी भर याद रहेगी । लगता है मैं बहुत बुरा इंसान हूं मैने कभी ऐसा वर्गी करण नही किया सबको सम भाव से ही देखा ।
कॉलेज के दिनों को याद दिलाने वाली रोचक पोस्ट!
Hahhahaha... very nice sir... Kissa toh mast tha hi.. bt d way u wrote was awesm... especially wo "Non-didiyan" and "raste me ja rahi probabilities".
wah....Khandaharein Bata Detin hain Imaarat Bulanda Thi....
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