Wednesday, February 11, 2009

क्या कहे इसे आस्था य अंध विश्वास?

कल दोपहर मै रायपुर से अमरावती के लिये निकला।निकलने से पहले नियमानुसार मैंन ईश्वर से प्रार्थना की और घर से बाहर निकले लगा।तभी मुझे अचानक याद आई अपने मित्र ईंजीनियर रंजन प्रताप सिंह की।उसने मुझे कुछ दिनो पहले हनुमान कवच लाकर दिया था।पता नही क्या हुआ मैने कवच के पैक मे से एक लाकेट निकाला और पर्स मे डाल लिया।और फ़िर मै,आई यानी माताजी और सबसे छोटा भाई सुशील कार से निकल पड़े।

हमने नागपुर पहुंच कर छोटी बहन से मुलाकात की और उसका पुत्र आयुष भी हमारे साथ आ गया।नागपुर से निकलते-निकलते अंधेरा हो गया था। एन एच सिक्स के उस हिस्से मे फ़ोर लेन शुरु हो गई है।अच्छी सड़क मिलते ही मैने कार की रफ़्तार बढा दी।सफ़ारी की ड्राईव का हाई-वे पर मज़ा आ रहा था।कार हवा से बातें कर रही थी।

मैं एक ट्रक को ओवर-टेक कर रहा था।अचानक मेरे सामने के शीशे से कुछ टकराया और तेज आवाज हुई।मैं एक पल के लिये हड़बड़ाया मगर अगल-बगल ज़रा भी जगह नही होने के कारण मैने उधर ध्यान देने की बजाय ध्यान गाड़ी चलाने पर ही रखा और थोड़ा आगे जाकर गाड़ी रोककर देखी तो सामने के शीशे मे ठीक मेरे चेहरे के सामने कांच पर मात्र एक ईंच का क्रेक आया है।मैने काफ़ी सोचा कि ऐसा कैसे हो सकता है।तब सुशील ने कहा चलो मान कर चलें कि कोई बड़ा संकट टल गया।उसने कहा अगर जहां आवाज आई थी वंहा शीशा क्रेक होने की बजाय टूट जाता तो?

सच मे एक पल के लिये मै कांप गया।तेज़ रफ़्तार कार और ट्रक से ओवर टेक करते समय अचानक शीशा टूटा होता तो शायद हड़बड़ाहट मे बहुत गड़बड़ हो जाती।तभी मुझे पर्स मे रखे हनुमान कवच का खयाल आया।मैने मन ही मन बजरंगबली की जय कहा।तब-तक आई(माताजी)शीशा उतार कर कहने लगी अरे जंगल मे क्यों रोक कर खड़े हो।देर हो रही है।मै कहा चल रहे है और फ़िर से सफ़र पर निकल पड़ा।पर बहुत से सवाल मेरे मन मे उमड़-घुमड रहे थे।क्यों कार का शीशा टूटा नही?क्यो कार के शीशे मे सिर्फ़ क्रेक आई?आखिर क्या टकराया था शीशे से?क्यों घर से निकलते समय मैंने हनुमान कवच पर्स मे रखा?हनुमान कवच महिने भर से घर पर रखा था,क्यो उसे मैने धारण नही किया?क्या हनुमान जी ने मेरी रक्षा की?क्या ये महज़ इत्तेफ़ाक था?क्या ये मेरी आस्था थी?य फ़िर सिर्फ़ अंधविश्वास?वैसे कार के सामने के शीशे मे मात्र एक ईंच का वो क्रेक बैठने वाले के ठीक चेहरे के सामने आया है।

13 comments:

PD said...

agar aapke man me in sab baton ko lekar shraddha hai to ise aastha hi maane..
alag-alag log is savaal ke alag-alag uttar denge.. jaise agar mere saath aisa kuchh hota to main ise sadharan sa sanyog manta.. :)

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

आस्था ही है आपकी जो एक बड़ा संकट टलने के बाद हनुमान जी को धन्यबाद कहा . सड़क पर छोटी सी पथरी भी ट्रक के टायर से निकल कर गोली का काम करती है.

कुश said...

जब हम खुद को अकेला समझते है.. तब अक्सर हमारे साथ कुछ लोगो की दुआएँ भी साथ चलती है..

बजरंगबली की जय!!

Sanjeet Tripathi said...

चलिए भैया कारण चाहे जो रहा हो, सभी स्रुरक्षित रहे यही बहुत बड़ी बात है।
कोई तो है जो रक्षा करता है।

संजय शर्मा said...

आस्था आपको तेज रफ़्तार में तेज रफ़्तार से ओवरटेक को मना करेगी .अन्धविश्वास आपको सीमाए तय नही करने देता . .आस्था बनाएं रखें .

Abhishek Ojha said...

सवाल का उत्तर तो हर व्यक्ति पर निर्भर करता है. लेकिन ऐसी कई घटनाएं हो जाती हैं जो आस्था को मजबूत कर देती है !

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

pataa nahin

रंजना said...

आस्था सुख और निश्चिंतता देती है,इसलिए उसे ही ह्रदय में धारण किए रहना चाहिए..

संगीता पुरी said...

जिससे हमारा भला हो , वह आस्‍था है और जिससे बुरा हो , वह अंधविश्‍वास।

दिनेशराय द्विवेदी said...

आप का विश्वास आप की पूंजी है। अपने विश्वास को धन्यवाद दें, आप संभावित दुर्घटना से बचिए।

Anonymous said...

अंत भला, सब भला

डॉ महेश सिन्हा said...

shraddha ya aastha viswas se judi hai. andh shraddha ya andh viswas kya sahi shabd hai?

राज भाटिय़ा said...

अनिल जी आप को आस्था है अच्छी बात है, बचाने वाला तो भगवान ही है, जिस आवाज की आप बात कर रहे है, असल मे वो कोई चोटी सी पथरी थी, जो सामने वाले वाहन के टायरो के संग कभी कभी उछल कर बहुत जोर दार आवाज से समाने वाले शीशे से टकराती है, ओर जो आप ने बताया की कि एक ईंच का क्रेक आया तो वो उस पत्थर की वजह से ही आया, आप उस पर एक टेजा फ़िल्म उस साईज से बडी ओर गोल काट कर लगा दे, वरना वो बडती ही जायेगी, यह हमारे यहा आम है. लेकिन डरे नही सामने का शीशा इतनी जलदी नही टुटता.
धन्यवाद