पैसा-पैसा-पैसा!इसके सिवाय सोचने के लिये शायद हमारे पास कुछ बचा ही नही।पैसा कैसे कमाया जाये?कमा रहे है तो कमाई कैसे बढाई जाये?और सब ठीक-ठाक है तो कैसे बचत की जाये बैलेंस कैसे बढाया जाये?या खर्च कैसे कम किया जाये?बचत बढाने के लिये खर्च कम करने का चक्कर तरह-तरह के जुगाड़ ढूंढने पर मज़बूर कर देता है और ऐसा ही एक जुगाड़ है कार को गैस से चलाना।मै उसकी गुणवत्ता या फ़ाय्दे पर बहस नही करना चाहता मगर जो कल यंहा राजधानी के पड़ोस के ज़िला मुख्यालय धमतरी मे हुआ उसने इस मामले मे सोचने पर मज़बूर कर दिया।
धमतरी की नौ साल की शब्बा को पता नही था कि अपने अब्बू कि जिस कार को वो बहुत प्यार करती थी,जिस कार मे बैठ कर खेलना उसे बहुत अच्छा लगता था,वही कार एक दिन उसकी मौत का कारण बन जायेगी।शब्बा सोमवार की सुबह घर के सामने खड़ी मारूति वैन मे खेलने के लिये जाकर बैठी,और वो उसकी ज़िंदगी का आखिरी खेल साबित हुआ।ज़िंदगी और मौत के खेल मे मौत जीत गई और ज़िंदगी हार गई।फ़ुल जैसी शब्बा को जब वैन से बाहर निकाला गया तो वो ……………………………….…।
शब्बा के पिता सलीम रज़ा वैन घर के सामने खड़ी करके घर के भीतर गये थे।शब्बा वैन मे बैठ कर खेलने लगी और पता नही कैसे वैन मे आग लग गई।शब्बा वैन का दरवाज़ा खोल नही सकी और वैन मे आग लगने के बाद मचे शोर को सुनकर सलीम और शब्बा की अम्मी बाहर आये।उन्होने जो देखा तो उनके होश उड़ गये।उन्होने पड़ोसियों की मदद से आग बुझाने की कोशिश की और जब तक़ फ़ायर ब्रिगेड आकर आग बुझाती शब्बा कि ज़िंदगी का चिराग बुझ चुका था।
मारूति वैन मे आटो एल पी जी गैस सिलेंडर लगा हुआ था। आग कैसे लगी इसकी जांच रायपुर से फ़ोरेंसिक एक्स्पर्ट करेंगे मगर अब सलीम रज़ा के आंगन मे शब्बा की मुस्कान की धूप कभी नही खिलेगी,वंहा शायद उसकी मौत के खौफ़नाक मंज़र का डरावना साया पसरा रहेगा।शब्बा जा चुकी है इस दुनिया को छोड़ कर। पता नही उसे किसकी गलती की सज़ा मिली।मगर इतना तय है कि गलती उसकी नही थी।वैन तो उसका प्यारा सा खिलौना था,जो शायद गैस सिलेंडर लगने की वजह से मौत का सामान बन गया।
मै सलीम को भी दोष नही दूंगा।उसने वैन मे गैस सिलेंडर क्यों लग्वाया ये तो वो ही जाने?गैस से चलने वाली कार कितनी सुरक्षित् होती है ये तो इसकी गारंटी देने वाले जाने?मगर आये दिन होने वाले हाद्से भी बहुत कुछ कह्ते हैं?आखिर सलीम ने पेट्रोल से चलने वाली कार को गैस से चलने वाली कार मे क्यों बद्ला?इसका शायद सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही जवाब हो सकता है कि पेट्रोल से कार चलाना महंगा पड़ता है और गैस से चलाओ तो काफ़ी बचत हो जाती है।मेरा सवाल ये है कि पेट्रोल वाली कार को गैस मे कन्वर्ट करा कर आखिर सलीम ने कितने रुपये बचा लिये होंगे क्या शब्बा की ज़िंदगी की कीमत से ज्यादा…………………………………………………………?
15 comments:
किसी की जिंदगी की कोई कीमत नहीं चुका सकता .....जब किसी का बच्चा न रहे तो उससे दुखदायी क्या हो सकता है
बहुत दर्दनाक घटना। पैसा बचाने की चक्कर में एक परिवार ने अपना सबसे कीमती हीरा खो दिया :(
maine to dar ke kaaran hi lpg/cng gaadi nahi kharidi
सब आफ़त की जड ही पैसा है. पत नही किस कमीने ने ये पैसा बनाया होगा जिसने इस खूबसूरत दुनियां की ऐसी तैसी करके रखदी?
रामराम
थोड़े से फायदे बड़े नुक्सान को न्योता देते है आज साबित हो गया
ओह सदबुद्धि दे इश्वर !
न जाने कितने रिस्क, कितने शॉर्टकट्स अपनाता है आदमी। पर जब यह संस्थान के लेवल पर होता है तब और दुखद है। बड़े बड़े संस्थान जब अग्निषमन के इन्तजाम में लापरवाही करते हैं तब बुरा होता है।
अनिल जी, मर्मस्पर्शी घटना!
देखते हैं क्या कहती है फोरेंसिक रिपोर्ट
मेरे घर के बाहर हो कर बिजली की लाइन निकल रही है। पड़ौसियों ने रौस निकाल रखी है, जहाँ से लाइन को छुआ जा सकता है। मैं ने बहुत दबाव होते हुए भी रौंस निकालने से मना कर दिया। अभी या इस मकान के जीवन काल में कभी एक भी घटना घट जाए तो मुझे जरूर कोसा जाएगा।
2003 में वाहन लिया तब से उसे गैस पर चलाने का दबाव है। लेकिन अभी तक पेट्रोल से चल रही है। इन वर्षों में कमाई खर्च से कम भी हो गई पर बचत का यह नस्खा कभी रुचिकर नहीं लगा।
बहुत भयानक घटना है...
दर्दनाक है, पर दोष गैस का नहीं, लापरवाही का है.
बहुत दुखद घटना है. बची न जाने कितनी तकलीफ और दहशत से गुज़री होगी.
दसेक साल पहले तक तो खरीदने के बाद वाहन में इस तरह की कोई भी परिवर्तन करना/कराना गैर-कानूनी होता था, क्या अब ऐसे बदलाव कानून सम्मत हैं?
मारुति स्वयं गैस किट फिट कर के देती है जो सुरक्षित भी है और प्रमाणित भी. लेकिन बहुत ही लोग जान को दाव पर लगाकर घरेलु एल पी जी लगवा लेते हैं जो गैरकानूनी भी है और असुरक्षित भी.
भगवन शबा की आत्मा को शांति दे.
बेहद दर्दनाक हादसा।
आम बोलचाल की भाषा में, लाल टंकी कहे जाने वाले घरेलू एलपीजी सिलेंडर से चलाये जाने वाले वाहनों में ही ऐसे हादसे देखे गयें हैं। इस तरह की फिटिंग में मूल अवधारणा ही गलत होती है। लाल टंकी को स्थिर अवस्था में, खड़ा रखने के लिए डिजाईन किया जाता है, जिससे 'मुँह' ऊपर रहता है, जबकि वाहनों में इसे लिटा कर रखा जाता है और हिलने डुलने पर, मुँह किनारे होने पर द्रव एकाएक ही अधिक प्रवाहित हो सकता है।
इसके अलावा इसमें लगे रेग्यूलेटर से इंजिन तक गये पाईप के आखिरे सिरे पर इसे प्रवाहित करने वाला स्विच लगा होता है। मतलब सामान्य अवस्था में गैस का दबाव स्विच तक बना ही रहता है, वाहन चले या न चले। यदि बीच में कहीं पाइप में छेद हो जाये या ऐसा ही कुछ हो तो खड़ी गाड़ी में भी,नुक्सान ही होगा।
कानून सम्मत, आरटीओ से मान्यता प्राप्त टैंक, जिसे काली टंकी कह पुकारा जाता है, में 'मुँह' ऊपर ही रहता है तथा मुहाने पर तथा पाईप के अंतिम छोर पर स्विच रहता है, जो तभी कार्य करते हैं-गैस तभी प्रवाहित होती है, जब जब वाहन का इग्नीशन ऑन हो। दोहरे स्विचों की वजह से, बंद वाहन में उपरोक्त हादसे की गुँजाईश ही नहीं होती।
दोनों तरह की फिटिंग में आरटीओ का खर्च मिलाकर बमुश्किल औसतन 5-6 हजार का अंतर रहता है।
मेरे विचार में इस हादसे के मूल में लाल टंकी ही रही होगी।
gas chalit vahano mein aag bahut jaldi failati hai. aisi durghatna haal hi mein dilli mein bus mein hui thi jiske darwaje bhi band ho gaye the, logon ko kaanch todkar apni jaan bachani padi. Dilli mein jahaan CNG uplabdh hai log apni luxury gaadiyon mein bhi gas kit lagane se nahi chookte, iska najaara kisi bhi gas pump pe kiya ja sakta hai.
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