Friday, April 24, 2009

चंद सिक्कों के लालच मे प्यास तक़ बेच रहे हैं लोग!

दो दिनो पहले रायपुर रेल्वे स्टेशन मे चल रहे गोरखधंधे का जब खुलासा हुआ तो लगा लालच ने इंसान और शैतान के बीच का फ़र्क़ लगभग खतम कर दिया है।मिनरल वाटर की बिक्री जमकर हो सके इसलिये प्लेटफ़ाएम के सारे वाटरकूलर बंद कर दिये जाते थे।44-45 डिग्री से की भीषण गर्मी मे उबलता पानी छोड यात्री मज़बूर हो कर मिनरल वाटर खरीदने लगे थे। ये गोरखधंधा खूब फ़ल-फ़ूल रहा था मगर बुरा हो दैनिक भास्कर के युवा रिपोर्टर सुदीप त्रिपाठी का जिसने पूरे खेल का भंडाफ़ोड दिया।

काफ़ी दिनो बाद अख़्बारो मे आमजनता के हितों से जुड़ी कोई खबर देखी। हाल के चुनावी मौसम मे विज्ञापनो के आधार पर सिवाय राजनैतिक कूड़ा-करकट के कुछ और नज़र नही आ रहा था अख़बारो मे। ऐसे मे दैनिक भास्कर मे छपी खबर ने ध्यान खींचा।खबर क्या थी भौतिकवाद की गर्त मे डूब रही इंसानियत की जीती-जागती तस्वीर थी।युवा सुदीप त्रिपाठी काफ़ी समय बीमार रहे,नौबत अस्पताल मे भर्ती करने की भी आई और जब वो ठीक होकर वापस काम पर लौटे तो उन्होने लालच मे डूबे लोगो के प्यास के धंधे का खुलासा कर दिया।

सहसा विश्वास नही हुआ कि आदमी इतना भी गिर सकता है।लोग पीने के लिये मिनरल वाटर की बोतल खरीदे इस्लिये प्लेटफ़ार्म के एक नही सभी वाटरकूलरों को योजनाबद्ध ढंग से बंद कर दिया जाता था।ये सिलसिला पता नही कितने दिनो से चल रहा था और कितने दिनो तक़ चलता,अगर सुदीप की नज़र उस पर नही पड़ती।

लोग शायद इसे तकनीकी खराबी मान रहे थे और भीषण गर्मी मे प्यास से व्याकुल यात्री जब प्लेटफ़ार्म आने पर डिब्बो से उतर कर कूलर तक़ पहूंचते तो उबलता-खौलता पानी उनकी बेचैनी और बढा कर उन्हे बोतल मे बंद पानी खरीदने पर मज़बूर कर देता।शायद नही निश्चित ही लालच मे डूबे मे प्यास के इस बेरहम धंदे मे रेलवे के लोग भी शामिल होंगे। अगर ऐसा नही होता तो सुदीप की रिपोर्ट छपने के बाद दूसरे दिन रेल्वे प्रशासन बेशर्मी से सारे वाटरकूलर गलती से बंद रह जाने की बात नही कहता।इतना ही नही सिर्फ़ गलती हो गई कह कर रेल्वे प्रशासन ने इस पूरे मामले को बिना जांच किये ठण्डे बस्ते मे भी डाल दिया जो इस बात का सबूत है कि यदी जांच होती तो शायद कोई न कोई फ़ंसता और रेलवे के चेहरे पर कालिख मल देता।

खैर जो भी हो सुदीप की मेहनत रंग लाई और अब रायपुर रेलवे प्लेटफ़ार्म के सारे के सारे वाटरकूलर चालू हो गये है।यात्रियों को शीतल पेयजल मिल रहा है और अब जिसे बोतलबंद पानी खरीदना है वही खरीद रहा है,मज़बूरी मे कोई नही खरीद रहा है।हो सकता है सुदीप ने रायपुर के जिस गोरखधंदे पर से पर्दा हटाया है वो गंदा धंदा दूसरे स्टेशनो पर भी चल रहा हो।अगर कही कूलर बंद मिले तो समझ लिजिये लालची लोग चंद सिक्कों के लालच मे प्यास तक़ बेच रहे हैं!

27 comments:

अनिल कान्त said...

are sahab kai railway station par to paani hi band kar diya jata hai ...water cooler to door ki baat hai ...wo bhi sikkon ki khanak ki khatir ....aur poonchhne par kisi ke kaan par joon tak nahi rengti

अनिल कान्त said...

aur pol khulne par bhi unhein sharm nahi aati

Anil Kumar said...

अत्यंत खेदजनक!

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

धंधा है पर गन्दा है यह . जब आदमी अपना ईमान बेच रहा है आप तो प्यास पर चिंतित है

डॉ महेश सिन्हा said...

सुदीप वाकई बधाई के पात्र हैं

Unknown said...

उज्जैन में इस समय भीषण जलसंकट है, लेकिन नेता-पहलवान और पत्रकारों के यहाँ रोजाना मुफ़्त टैंकर डलवाये जा रहे हैं, जनता धूप में पानी भर रही है, रोज के झगड़े हो रहे हैं, पानी के लिये चाकू चल रहे हैं, जबकि उधर सब मिलकर पैसा खा रहे हैं…। प्रायवेट टैंकर 2400 रुपये रोज से किराये पर लिये गये हैं, जिन्हें 8 चक्कर रोजाना के हिसाब से पैसा दिया जा रहा है, लेकिन हकीकत में हर टैंकर सिर्फ़ 6 चक्कर लगाता है (बाकी के दो फ़ेरे सिर्फ़ कागज़ पर), सातवाँ चक्कर किसी नेता या अफ़सर के यहाँ और आठवें चक्कर के 2400 रुपये सीधे जेब में, जिसमें पार्षद, पत्रकारों और अफ़सरों का हिस्सा बँधा हुआ है… रायपुर की घटना इसके सामने कुछ भी नहीं है भाऊ। हमारे देश में तो लोग चिता की लकड़ी में पैसा खाने को देखते हैं… और सैकड़ों धार्मिक प्रवचन सुनकर भी ये सुधरने वाले नहीं है, जब "पिछवाड़े" पर चार डण्डे पड़ेंगें, तभी भ्रष्ट भारतीय ठीक हो सकता है…

Udan Tashtari said...

चंद सिक्कों की लालच में क्या क्या नहीं हो रहा है..दुखद.

Water Community India said...

ठीक कहा आपने। लेकिन शर्म न आने का मतलब यह तो नहीं कि हम भी सब कुछ जानते हुए मुंह फेर लें। हो सके तो ऐसे चेहरों को उजागर जरूर करना चाहिए।
hindi.indiawaterportal.org ऐसे कारनामों को उजागर करने के लिए आपके साथ है। यह नोलेज पोर्टल राष्ट्रीय ज्ञान आयोग की अनुशंसाओं पर अर्घ्यम् नामक संस्था के सहयोग से वाटर कम्युनिटि इंडिया द्वारा चलाया जाता है। पोर्टल का लक्ष्य नोलेज के साथ साथ साफ सुरक्षित जल सदा सबके लिए मुहैया कराने के लिए साधन जुटाने में मदद करना भी है। ऐसी कोई भी शिकायत या घटना को आप पोर्टल पर पोस्ट करके अधिकारियों तक अपनी बात पहुंचा सकते हैं।
मीनाक्षी अरोड़ा
http://hindi.indiawaterportal.org/

hempandey said...

सुदीप के पत्रकार कर्म हेतु साधुवाद और इस पोस्ट द्वारा जागरूकता फैलाने हेतु आपको धन्यवाद.

Water Community said...

hindi.indiawaterportal.org

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत धन्यवाद सुदीप जी को. पर भारत के हर शहर मे एक एक सुदीप पैदा करना होगा तब जाकर कुछ राहत मिलेगी. बेचारा एक सुदीप क्या करेगा? इतने सारे राक्षसों से कैसे लडेगा?

रामराम.

संगीता पुरी said...

कभी प्‍यासे पथिक को पानी पिलाना सबसे बडा धर्म माना जाता था .. अब लालच में उन्‍हें ही निशाना बनाया जा रहा है .. पता नहीं कहां तक गिरेगा इंसान ?

L.Goswami said...

दुखद!!

Abhishek Ojha said...

सुदीपजी को सलाम है !

दिनेशराय द्विवेदी said...

सुदीप जैसे पत्रकारों की जरूरत है। कोटा में भी मुझे कुछ ऐसा ही लगा।

Anonymous said...

हर जागरूक नागरिक में सुदीप छिपा है, लेकिन
हर सुदीप को वह मंच नहीं मिलता जि्ससे वह अपनी बात कह सके।
हर मंच से कही बात का नोटिस लिया जाये यह भी ज़रूरी नहीं

और जहां ऐसा होता है उसे आजकल का भारत कहते हैं

समयचक्र said...

सुदीप वाकई बधाई के पात्र हैं और देश को उन जैसो नवजवानों की जरुरत है जो अव्यवस्था के खिलाफ आवाज बुलंद कर सके . आभार.

गौतम राजऋषि said...

पढ़ कर क्षोभ हुआ कि स्थिति इतनी गिर चुकी है मुल्क...लेकिन फिर आशा की एक किरण भी दिखती है इन "सुदीपों" की बदौलत

Pankaj Narayan said...

आपको पढ़कर अच्छा लगा। आप मेरे ब्लॉग क्या आए मेरे नालेज की लाटरी लग गई। मिलेंगे अगले पोस्ट पर।
पंकज नारायण

कुश said...

शर्मनाक है ये..

Gyan Dutt Pandey said...

इस तरह की शिकायतें मिलती रहती हैं हमें। और कुछ मामलों में छुद्र स्तर की नीचता लगती भी है।

सतीश पंचम said...

सचमुच इस तरह की खबरें छापना तो अखबारों में कब का बंद हो चुका है।
सुदीप जी को हमारी ओर से धन्यवाद जरूर कहें।

दर्पण साह said...

CHI CHI CHI CHI.....

....PEHLE TO SUVIDHA NAHI AUR AGAR HAI TO USPAR BHI BEIMANI !!
:(

शेफाली पाण्डे said...

is desh mein jo naa ho vo kam...

अनूप शुक्ल said...

बहुत दुखद है यह सब बदमाशी!

NIRBHAY said...

Chand Sikko ke liye "Pyas" nahi log toh "Insaniyat" ko bech rahe hain jin par kee yeh jimmedari hai. Lagatar "Insaniyat " ka khoon ho raha hai uske aanek "roop" roj saamne aa rahen hai.
Sudeep nishchit roop se Badhaie ka patra hai. Sabhi logon ne bhi kaha par hum sab kab "Sudeep" banenge, ya sirf "chal chhod yaar 12/- me badhiya thanda Bisleri kharid lo" ki mansikta se niklenge.
Bahoot boora laga tha hume, jab Arundhati Roy hume kaha suna kar chal dee, kya usne kuchh galat kaha tha? NAHI.
Wohi GONDIA ka Railway station hai jahan gadi rukte hee kuchh samaj ke log thanda paani le kar doudte har khidki tak aaten hai har GARMI KI dophar ko aanewali train ke yatriyon ki seva karten hai.
Insaniyat ke sikke hamesha deel ke jeb me rahten hain aur apni chhap banae rakhten hai. Insaniyat ko mar kar Sikke banane walon ko marte waqt pani bhi nasib nahi hoga.

Shamikh Faraz said...

aaj ke daur me jab aadmi apne iman bech raha hai to phir pyas kya cheez hai. aik achhe lekh kelie badhai. agar waqt mile to mere blog par bhi aayen. dhanyavaad.