Wednesday, April 29, 2009

मैं उपनिरीक्षक की विधवा!क्या मेरा सुहाग लुटना,क्या मेरी दुनिया उजड़ना,क्या मेरे बच्चों का भविष्य बर्बाद होना महज़ इत्तेफ़ाक़ हैं?

छत्तीसगढ मे अचानक बड़े-बडे लोगो की बढती दिलचस्पी और बडे-बडे नामधारियों के दौरे देखकर मुझे लगा कि मेरे भी दिन फ़िर जायेंगे! मगर ऐसा कुछ नही हुआ! वे लोग आये तो मगर रटे-रटाये तोते की तरह सिर्फ़ और सिर्फ़ पढाई हुई बात कह कर चले गये।मुझे उम्मीद थी कि उनमे से एक तो कम से कम औरत होने के नाते ही मेरा दर्द समझेगी मगर सब सपनो की तरह टूट गया। और मज़बूर होकर मेरे दिल से सिर्फ़ आह ही निकल सकी कि मैं उपनिरीक्षक की विधवा!क्या मेरा सुहाग लुटना,क्या मेरी दुनिया उजड़ना,क्या मेरे बच्चों का भविष्य बर्बाद होना महज़ इत्तेफ़ाक़ हैं?

मेरी भी अपनी खूबसूरत दुनिया थी।मेरे पति को रिश्वत के भूत से ज्यादा देशभक्ती के ज़ूनून ने जकड़ रखा था।नई-नई नौकरी और नई-नई शादी।राजधानी के मलाईदार इलाके की पोस्टिंग के बाद उसी थाने बने रहने के लिये मोटी रकम की फ़रमाईश के बाद बस्तर की पोस्टिंग की धमकी पर हमने मिलकर चर्चा की।सब दोस्तो ने कहा कि सिद्धांत छोडो और कमाओ,कमाने दो का रास्ता पकडो,मगर उन्होने साफ़ मना किया।मैने भी खुशी-खुशी पति का हौसला बढाते हुये हर-हाल मे ईमानदारी की सूखी रोटी खाकर सुखी जीवन जीने का संकल्प दोहरा दिया,और हम राजधानी की चमक-धमक से दूर बस्तर के जंगल मे फ़ेंक दिये गये। ऐसे की चाह कर भी वापस निकल न सके।

शुरू के दिन तो बड़े मज़े से गुज़रे।वंहा जाकर एक बार और हमारी बगिया मे फ़ुल खिलाऽब हम दो और हमारे दो थे।बडी लड़की नर्सरी जाने लायक हो गई थी,और जहां हमारी पोस्टिंग थी वहां नर्सरी एक सपने के समान थी।तब पहली बार लगा था कि देशप्रेम और राष्ट्रभक्ति जैसी बाते किताबों मे ही ठीक लगती है।बच्चो के भविष्य को ध्यान मे रखते हुये मैने इनसे कहा कि वापस किसि अच्छे शहर चल्ते हैं।उन्होने भी बेहद थके हुये स्वर ने कहा था कि ट्राई करते हैं।उस दिन मुझे लगा था कि वे बस्तर के जंगलो मे मौत से रोज़ जंग लड़ते हुये हुये जवानी मे ही बूढे हो चले हैं।वो जोश वो जुनूं सब बस्तर के हने जंगलो मे गुम होता नज़र आया।

मै रोज़ उनसे पूछ्ती कि क्या हुआ?और रोज़ उनका जवाब होता सब ठीक हो जायेगा।फ़िर एक दिन गुज़र जाता,ऐसा करते-करते साल गुज़र गये। हमे ऐसा लगने लगा कि हम बस्तर के लिये ही बने है। छोटू अब चलने लगा था और तुतली भाषा मे बात करने लगा था। अब मैने ज़िद पकड़ ली थी कम से कम बच्चो को पढा लिखा तो लूं।मेरी ज़िद भी उन्हे अंदर से तोड़ रही है ये मुझे पता ही नही चला।रोज़ सुबह बच्चो की पढाई के सवाल के साथ उन्हे घर से ड्यूटी के लिये विदा करती थी और रात को घर मे घुसते समय फ़िर से उन्ही सवालो के साथ स्वागत करती थी।


रोज़-रोज़ के सवालो से लगता है वे भी त्रस्त आ गये थे,एक दिन उन्होने कहा कि मै कुछ न कुछ करता हूं,मुझे तंग मत किया करो,कुछ दिनो की मोहलत दो। और कुछ दिनो बाद उन्होने मुझ्से कहा कि तैयारी करो। हम वापस जा रहे हैम्। मै हैरान थी।मैने पूछा सच और उन्होने कहा हां!कैसे ?इसका जवाब तो जैसे रुला देने वाला था।उन्होने मेरी ज़ीद से परेशान होकर वापस शहर मे पोस्टिंग के लिये अपना पुशतैनी मकान बेच कर एडवांस दे दिया था।मै भी वापसी की तैयारियो मे जुटी हुई थी कि एक रोज़ ये गश्त से लौटे नही।सुबह काफ़ी देर होने के बाद भी जब इनकी कोई खबर नही आई और थाने के अलावा दूसरे लोग घर के आस-पास मंडराने लगे तो माथा ठनका और जो मेरा शक़ था वो सच निकला।

मेरी दुनिया उजड़ चुकी थी।उनका चेहरा होता तो शायद आखिरी बार देख भी लेती।लोथड़ो को बटोर कर लाश का शकल देने की कोशिश की गई थी और पता नही किस हवलदार का हाथ य किस सिपाही का पैर भी शामिल था उनकी लाश में।पता नहि कितनी बार मै बेहोश हुई हूंगी और जब होश मे आई तो मुझे अनुकंपा की भीख मे सिपाही की नौकरी दे दी गई। अब मै उप निरीक्षक की बीबी नही एक सिपाही हूं,जिसका जवान जिस्म साब लोगो की भूखी आंखो की आग मे झुलस कर कब बूढा हो गया पता ही नही चला। अब मुझे ज़रूरत भी नही मह्सूस होती किसी अच्छी प्राइवेट नर्सरी की।मेरे बच्चे सरकारी स्कूल मे पढ रहे हैं।उन्का भविष्य बनने से पहले ही बिगड़ गया है।मेरे सपने सज़ने से पहले ही उजड़ चुके हैं।

कभी-कभी आप लोगो की बड़ी-बड़ी बाते सुनती हूं तो ऐसा लगता है कि कभी कोई हमारे बारे मे भी बोलेगे मगर आप लोगो को तो सिर्फ़ छतीसगढ मे एक आदमी ही नज़र आता है।कभी दिल्ली की महिलाओ को छत्तीसगढ पर रोते देखती हूं तो लगता है कि अब वो हम लोगो के लिये भी बोलेंगी। हमारा क्या दोष हमे सिपाही क्यों बनाया गया?अनुकम्पा देना ही था उसी पद पर देते जिस पद पर हमारा पति था?मगर अफ़्सोस इस मामले कोई नही बोला। हवाई जहाज मे दुनिया घूमने वालि औरते भी नही बोली और ना ही कानून के बड़े-बड़े जानकार बोले और देश-विदेश के महान लोगो को तो इस बारे मे मालूम ही नही,क्योंकी उन्हे बताया गया ही नही।उन्हे तो सिर्फ़ ये मालूम है कि छत्त्तीसग़ढ मे सिर्फ़ एक आदमी के साथ अन्याय हो रहा है और जो हमारे साथ या हम जैसे और लोगो के साथ हुआ वो क्या न्याय है?

17 comments:

Raravi said...

anil ji
kya aisa ho sakta hai ki aapki baaten english me anoodit ho kar logon ke saamne laiee ja sake taki hawai jahaaj me ghoomne wale/aur waliyon ne jo ek pakshpaat poorn galat pariprekshya me paristhitiyo ko prastut kiya hua hai, unki sachchai ko un logogn ke saamne laya ja sake jinhe bewakoof bana kar wo awaard aur wah wahi loota karte hain.
dhanyawaad.
rakesh

Udan Tashtari said...

अनुकम्पा देना ही था उसी पद पर देते जिस पद पर हमारा पति था?

-ये बात तो कुछ हजम सी नहीं होती..अनुकम्पा नियुक्ति तो जिसे नियुक्त किया जा रहा है, उसकी शैक्षणिक एवं अन्य योग्यता के आधार पर ही दी जाती है.

आलेख विचारणीय है एवं शायद अगर जल्दबाजी में पढ़ने से कुछ सोच में फरक पड़ा हो तो कल एक बार फिर पुनः ध्यान से पढ़ने वाला हूँ.

अनूप शुक्ल said...

पढ़कर मन दुखी हो गया। ट्रांसफ़र के लिये पैसा। यह देश की सबसे अच्छी नौकरी मानी जाने वाली नौकरी की कहानी है। बाकी का क्या हाल होगा? हमारी संवेदनायें शहीद के परिवार के साथ हैं।

Arvind Mishra said...

बेलौस बेखौफ -पुसड़कर की कलम है आग उगल देती है !

ताऊ रामपुरिया said...

आपने बिल्कुल सही लिखा है. ये खुले आम इस देश मे हो रहा है.

रामराम.

अनिल कान्त said...

जब हम लो पुलिस कालोनी में रहते थे ...तब वहां भी एक दो बार ऐसा हुआ जब ...अंकल लोगों की पुलिस ड्यूटी के दौरान म्रत्यु हुई ...लेकिन उन आंटी लोगों को क्या मिला ....सिर्फ चपरासी की नौकरी ...या उनके बेटों के बड़े होने तक ..इंतजार ...सिर्फ इंतजार ....होता क्या है ...सिर्फ आधी तनख्वाह देते हैं ...और छोड़ देते हैं उनके बीवी बच्चों को मरने के लिए ...भाद में जाएँ ...जिए या मरे ...हमारी बला से .... और कहते होंगे कि हमने कब कहा था कि ईमानदारी दिखाओ ...

हाँ मैंने देखा है करीब से इस पुलिस सिस्टम को .....लाचारी, और मरे हुए पुलिस वालों के बच्चों का दर्द और बुरे हालात .... पर क्या है न कि जनता और देश के बाकी के लोग तो बस एक ही रूप जानते हैं पुलिस का .....

पर जो ईमानदारी दिखाते हुए शहीद हो जाते हैं ...या ड्यूटी पर रहते हुए मर जाते हैं ....उन्हें कौन याद रखता है ...न उन्हें पेट्रोल पम्प जैसा कुछ मिलता ...न कोई जमीन ...क्या वो शहीद नहीं हुए ...देश को, समाज को गुंडों से ...अनैतिक तत्वों से बचाने के लिए ...

हाँ मैंने देखा है करीब से ...क्योंकि मैं इसी पुलिस समाज का एक बच्चा रहा हूँ .....

गौतम राजऋषि said...

ये तमाम बातें तो इस वर्दी का हिस्सा बन जाती हैं...परिवार भी अलग नहीं होता इस हिस्से से...कहानी का दर्द यूं भीतर तक चीरता है लेकिन सोचने के बाद पाता हूं कि ऐसे कितने किस्से और हैं जिन पर तो नजर तक नहीं पड़ती...

कुश said...

हर ईमानदार आदमी की कहानी कुछ ऐसी ही है..

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

जो मैनेज कर लेता है वो नक्सलियों के इलाके में पोस्ट नहीं होता है. मैनेज करने के लिये साम और दाम चाहिये. पुलिस में रहकर जो घूस न कमा पाये वो बेवकूफ. सीबीआई क्लीन चिट दे ही देती है. या खून चूसो या चुसवाओ, इस देश में यही सम्भव है. बाकी अरण्य रोदन है.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

जो मैनेज कर लेता है वो नक्सलियों के इलाके में पोस्ट नहीं होता है. मैनेज करने के लिये साम और दाम चाहिये. पुलिस में रहकर जो घूस न कमा पाये वो बेवकूफ. सीबीआई क्लीन चिट दे ही देती है. या खून चूसो या चुसवाओ, इस देश में यही सम्भव है. बाकी अरण्य रोदन है.

डॉ महेश सिन्हा said...

राकेश रवि जी विचार अच्छा है , मेरे ख्याल से इसमें अनिल को कोई आपत्ति नहीं होगी बल्कि आप उनके इस अभियान में सहभागी बनेगे . गरीब और नारी , अत्याचार की कल्पना नहीं की जा सकती , ऐसी कितना दर्द विदारक घटनाएं है जिनपर सफेदपोश मानवतावादियों की नजर नहीं पड़ती, क्योंकि उधर देखने भर से उनके कपडे मैले हो जायेंगे . इसके लिए उनके कोई विदेशी आका थोड़े ही सहयोग देंगे . इनके तो धन के स्त्रोत और कार्यों की जांच होनी चाहिए.

डॉ .अनुराग said...

ईमानदारी इस देश में केंसर की माफिक है ....कई स्टेज पर पहुंचकर लाइलाज हो जाती है...

हरकीरत ' हीर' said...

मैं उपनिरीक्षक की विधवा....

मुझे उम्मीद थी कि उनमे से एक तो कम से कम औरत होने के नाते ही मेरा दर्द समझेगी मगर सब सपनो की तरह टूट गया.....

कभी-कभी आप लोगो की बड़ी-बड़ी बाते सुनती हूं तो ऐसा लगता है कि कभी कोई हमारे बारे मे भी बोलेगे मगर आप लोगो को तो सिर्फ़ छतीसगढ मे एक आदमी ही नज़र आता है।कभी दिल्ली की महिलाओ को छत्तीसगढ पर रोते देखती हूं तो लगता है कि अब वो हम लोगो के लिये भी बोलेंगी। हमारा क्या दोष हमे सिपाही क्यों बनाया गया?अनुकम्पा देना ही था उसी पद पर देते जिस पद पर हमारा पति था?

आपने सही प्रश्न उठाए हैं.....!!

L.Goswami said...

अनुकम्पा वाली बात पर समीर जी से सहमत हूँ ... पर दोष हमारी व्यवस्था का है इसमें कोई संदेह नही है ..जब उच्च पद पर स्थित अधिकारयों का यह हाल है तब बेचारे कर्मचारियों का क्या होता होगा.लानत है ऐसी व्यवस्था पर

NIRBHAY said...

Police kee "Karya Shailee" British Hukumat ke Bharat Chhod jane ke baad "Uttaradhikar " me mili hai. Pahle yeh British Govt. ke Isharon par kam karti thi ab yeh ruling party ke isharon par karti hai. Koi parivartan nahi hua hai in ke karyashaili me, "Munshi Premchand" ki kaljeyi rechana padhiye aur Ghulam bharat me police ki karya paddhti ki vyakhya ho jati hai. Koi sahanubhuti inko janata ke taraf se nahi mil sakti jab tak kee yeh apni karya padhdhati me Indian citizen ko sahi mayne me Indian citizen manegi. Inki karya shaili me abhi bhee aisa lagta hai ke hum ghulam hai, jabki Democracy yeh nahi kahti. Aazadi ke 62 saal me yeh Janta ka vishwas jitne me asamarth rahi hai jiska fayda Naxali utha rahe hain. Jo man me aaya dhara laga do samne wala court me case niptate niptate budha ho jayega aur inka kuchh bhi nahi kar payega.
Aise me inko koi sahanubhuti nahi mil sakti, jab samanya condition me inse public darti hai toh inke boore vaqt me samne kaise aayegi.

दिनेशराय द्विवेदी said...

जिस राजा की फौज के सिपाही की ये हालत हो उस राजा का क्या कहना?

रवीन्द्र दास said...

badi mushkil hai.
shanti kahin bhi nahi bada aapa-dhapi hai.
mujhe to lagta hai bas shasan paapi hai.