छतीसगढ की राजधानी मे कल शाम पुलिस की हिरासत मे एक युवक की मौत हो गई।ये पहला मौका नही है हिरासत मे मौत का,ऐसा पहले भी हो चुका है,मगर इस बार घटना के सामने आने के चंद घण्टो के भीतर ही थानेदार समेत थाने मे मौजूद रहे स्टाफ़ को निलंबित कर दिया गया।मुझे याद नही आता कि कुछ ही घण्टो मे इतने सारे पुलिस वालो को एक साथ पहले कभी निलंबित किया गया हो।हां एक बात और बड़ी से बड़ी घटना हो जाने पर भी शांत रहने वाला विपक्ष कभी इतना एक्टिव हुआ हो कि थाने पर पथराव और लाठी चार्ज़ की नौबत आई हो।
बहुत सोचा मैने।आखिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि जांच कमेटी बनाने,जांच करवाने,रिपोर्ट बनवाने,उसका परिक्ष्ण करवाने और फ़िर इच्छा हुई तो कार्रवाई करने वाली सुपर स्लो-स्पीड सरकार इतनी तेज़ी से कार्रवाई कर रही है।वही हाल फ़िलहाल के विपक्ष यानी कांग्रेस(भाजपा भी विपक्ष मे स्लो-स्पीड़ ही रही है)के तेवर का रहा है।सारा प्रदेश पिछली भाजपा सरकार के कार्यकाल मे नेता प्रतिपक्ष को सरकार के अघोषित मंत्री के रूप मे पहचानता था।उसकी सुस्ती,उसकी खामोशी भाजपा सरकार को मनमानी करने का पूरा-पूरा मौका देती रही है।
वही सुस्त कांग्रेस और गुटबाजी की भूलभूलैया मे उलझी कांग्रेस घटना की जान्कारी मिलते ही न केवल मरने वाले के घर पहुंच गई बल्कि उसके नेताओ ने बाकायदा थाना घिरवा दिया।कांग्रेस के दिगगज नेताओ के जमावाडे ने एक नाबालिग को भगाकर ले जाने और बलात्कार जैसे माम्ले मे गिरफ़तार हुये युवक की हिरासत मे मौत के बाद भी उस युवक के प्रति और उसके परिवार के प्रति हमदर्दी जुटाने मे सफ़लता हासिल कर ली।पता नही भीड़ उग्र हुई या चुनावी माहौल को भुनाने के लिये कांग्रेस के कार्यकर्ता ने थाने पर पथराव कर दिया।मज़बूरन पुलिस को लाठी चार्ज़ करना पड़ा।कुछ पुलिस वाले घायल भी हुये। और मज़बूरन सरकार को भी एक्टिव होना पड़ा।
कांग्रेस अगर एक्टिव हो तो भला भाजपा कैसे एक्टिव नही होती आखिर समय चुनाव का जो है।फ़टाफ़ट सरकार ने थानेदार समेत कई पुलिस वालो को सस्पेंड़ कर दिया गया। आखिर वे भी इस मुद्दे को चुनाव मे कांग्रेस के हाथ जाने नही देना चाह्ती थी।
खैर अच्छा हुआ जो उस युवक ने चाहे शर्मिंदगी मे कहो या पुलिस के डर से या फ़िर युवती से अलग होने से आत्महत्या चुनाव के समय की वर्ना उसकी मौत के बाद सिर्फ़ और सिर्फ़ अख़बार वाले और उसके परिवार वाले ही चिल्लाते।विपक्ष के नेता भी पेपर टाईगरो की तरह बयानबाज़ी करते रहते। ना ऐसा घेराव होता और ना ही थाने पर पथराव होता और ना ही पुलिस वाले सस्पेंड होते।
ये सब देख कर यही लगा कि चुनाव के समय हर कोई एक्टिव रहता है,क्या सरकार,क्या विपक्ष,क्या पुलिस और क्या जनता। सभी को एक साथ एक्टिव देखना दुर्लभ होता है और ये मौका छत्तीसगढ को मिला है तो शायद चुनाव की वजह से मिला है,इस्लिये अच्छा हो कि साल भर चुनाव ही होते रहें।
15 comments:
आप की बात सही है।चुनाव के समय ही पार्टीयों को अपना प्रभाव दिखाना या फिर मुस्तैदी से काम करनें की ललक दिखाई पड़ती है।कारण साफ है सामने चुनाव जो नजर आता है।लेकिन चुनाव का माहौल हमेशा कैसे बना रह सकता है।
अगर कुछ ऐसा हो जाए जिससे जनता की कीमत पूरी साल बनी रहे तो भी ये नेता और सरकारी काम काज ठीक चले ....फिलहाल तो चुनाव ही ऐसा एक जरिए है जिससे जनता की कीमत बनती है
बिल्कुल सही कहा... चुनाव के समय हर कोई एक्टिव रहता है ... क्या सरकार ... क्या विपक्ष ... क्या पुलिस और क्या जनता ।
सही बात तो यह है कि जनता इन दिनों सक्रिय हो जाती है। यदि जनता सदैव सक्रिय रहे तो पूरा तंत्र भी सदैव सक्रिय हो सकता है।
ye tabhi sambhav hoga jab janata apne adhikaaron ko sahi roop mein pehchanegi. rahi baat gherao karne waalon ki to ye ek naya dhanda banta jaa rahaa hai . jahaan kahin bhi koi sensitive baat hui to ye pahunch jaate hain bhadkaane ya ugahii karne
बिल्कुल सोलह आने सही बात कही आपने.
रामराम.
लेकिन चुनाव के समय जो यह अबसर वादी नेत ऎसी हरकते करते है इस का नुकसान हम सब को देश को होता है, इस लिये इस दिखावे को करने वालो को तो कभी भी वोट मत दो , कुत्तॆ पांच सल तो हमारे टुकडे खा कर हमे ही काटते है, ओर फ़िर हमारे अपनो की मोत पर भी अपनी चुनावी रोटिया सेकंते है, इन्हे तो कभी भी आधी वोट भी मत दो.
धन्यवाद
कार्रवाई भले ही फ़टाफ़ट हो रही हो मगर निर्दोष जान तो चली ही गयी. न जाने वह सोच कब आयेगी जब मानव-जीवन का मोल कीडे-मकौडों से ऊपर उठ पायेगा.
आपने सही कहा, इसलिए शायद दिल्ली वि.वि. में भी इम्तिहान के लिए सेमेस्टर सिस्टम लागू करने की बात चल रही है। साल भर बाद पेपर के नाम पर शिक्षक भी सुस्त रहते हैं और छात्र भी:)
जिस हालत में हमारी राजनीति चल रही है, लगता है आपकी मुराद पूरी होगी और जनता को वार्षिक चुनाव का खर्चा सहन व वहन करना पडेगा। दादाओं और बाहुबलियों की तो चांदी ही चांदी समझो:)
100% baat sahi hai ki chunav hai is liye yeh case "HIGHLIGHT" hua.
iska sidha sambandh isse hai ki abhi rajnitik sargrmiyan top par chal rahi hai, chunav aayog se dar hai hukmarano ko.
Arthat yeh humari Pilice ka "Rajnitikaran" ka Jeeta Jagta udaharan hai yeh, agar aap ke pass political approch nahi toh fir aapko koi Dhanwan aadmi/pahunchwala Police ko paisa khila kar "rapist", "chor" kuchh bhi jhuthe mamle me phansa sakta hai.
Policewalon se samanya janta is liye nahi darti ki woh beiman janta hai balki apni ijjat bachane ke liye darti hai, kahin jhuthe Iljam na laga de.
sahi likhtey hain Elcetions ke samay hi janta ki yaad aati hai aur sare kayede kanoon sahi ho jaatey hain.
achcha ho sare saal hi chunaav hote rahen to!kam se kam agle 4-5 saal..
बहुत सच लिखा आपने. इन्सान की जान का क्या मोल?
ठीक कहा, काश कि हमेशा ही इतनी तेजी हो और उस थानेदार को सजा मिल सके वरना निलम्बन कोई सजा नहीं है.
सही सवाल।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
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