दिल्ली मे स्वाईन फ़्लू के एक नही दो संदिग्ध मरीज मिले।इस खबर को लेकर सारे देश मे बखेडा किया जा रहा है।ऐसा बता रहे है जैसे स्वाईन फ़्लू के मरीज पहली बार मिल रहे हों। अरे,ढंग से जांच करोगे तो स्वाईन फ़्लू चारो ओर फ़ैला मिलेगा! वो भी वाईट नही ब्लैक स्वाईन फ़्लू के मरीज मिलेंगे।
ये तो पहली बार जांच कर रहे हो इस्लिये पहली बार पता चल रहा है।अपने यंहा ब्लैक स्वाईन फ़्लू कब से फ़ैला ठीक-ठीक तो नही बताया जा सकता मगर इतना तय है कि आज़ादी मिलने के एकाध दशक बाद ही इसने दस्तक दे दी थी।शुरुआती दौर मे ज़रूर इसे फ़लने-फ़ूलने के लिये अनुकूल वातावरण नही मिला मगर पिछले दो-तीन दशको मे तो इसने अपने पांव मेट्रो से लेकर ग्राम पंचायत लेवेल तक़ फ़ैला लिये हैं।
इसकी गिरफ़्त मे अब बडे-बडे लोग आ गये हैं।पहले ज़रूर ये स्कूलो मे ही पाया जाता था,जहां डाक्टरो को कम मास्टरो को ये नज़र आ जाता था कुछ छात्रो मे, और उन्हे वे सुअर बुखार या स्वाईन फ़्लू के लक्षण के आधार पर सीधे-सीधे सुअर कह कर पुकार थे।उस समय भी इस्के संक्रमण से बचने के लिये मास्टर से लेकर घर वाले यार-दोस्त,रिश्तेदार सुअर बुखार से ग्रस्त सुअर टाईप के लडको/लोगो से बचने की सलाह देते थे।
उस दौर मे सुअर बुखार से बचने की सलाह दी जाती थी मगर धीरे-धीरे उसे बंद कर दिया गया।दरअसल देखने मे ये आया कि सुअर टाईप के लोगो ने तरक्की के मामले जबर्दस्त पर्फ़ार्मेंस दिखाया और साथ हीसाथ ये इतनी तेज़ी से फ़ैला की हर किसी मे इसके थोडे बहुत लक्ष्ण नज़र आने लगे थे।या यूं भी कहा जा सकता है कि इस्के मरीज़ आम आदमी से इतने घुल-मिल गये थे कि उनमे कोई फ़र्क़ करना बहुत कठीन हो गया था।वैसे भी तक़नालाजी के मामले मे अपना देश जरा ज़रूरत से ज्यादा तरक्की किया है।यंहा जांच करो सुअर बुखार की ओर रिपोर्ट मे आता है कि ये देश के जाने-माने नेता हैं ।
इसलिये शायद अपने देश मे ब्लैक स्वाईन फ़्लू की जांच मे कभी दिलचस्पी दिखाई ही नही गई,वर्ना अगर ढंग से जांच की जाती तो मेरा दावा है कि जितने अभी सारी दुनिया मे मरीज़ मिले है,उससे ज्यादा तो अकेली दिल्ली मे सालो पहले मिल जाते। अब तो इसके मरीज़ महानगरो से लेकर गांव-गांव और गली-मुहल्ले मे तक़ मिलने लगे हैं।साधारण से परीक्षण मे ही ये पह्चान मे आ जाते हैं।उसके लिये किसी भी खास प्रकार के टेस्ट की ज़रूरत नही पड़ती।पहली नज़र मे ही समझ मे आ जाता है।इसकी मोटी चमड़ी इस बीमारी का पहला लक्ष्ण है।दुसरा लक्षण है इसे सुअर कि तरह कुछ भी खाने से परहेज नही होता फ़िर चाहे वो देश की रक्षा के लिये हथियारो की खरीदी मे कमिशन हो या कफ़न का कमिशन,ये कुछ भी खा लेते हैं।गंदगी मे भी ये असली सुअर को मात कर देते हैं।इनके आसपास चाहे खुलेआम हो या चोरी छीपे समाज की गंदगी याने असमाजिक तत्व ज़रूर नज़र आते हैं।मेरे खयाल से इतने ही लक्षणो के आधार आपको अपने आस-पास एक नही ढेरो मरीज देखने को मिल जायेंगे। अगर नही मिले तो लिखयेगा,कुछ और बारीक लक्षण भी बता दूंगा। और यदि इस माम्ले मे आपके पास कोई जानकारी हो आमजनो के हित मे जारी ज़रूर करियेगा।
19 comments:
अगर बिना किसी कारण आपको कपकपी लगने लगे और उलटी जैसा लगने लगे तो तुंरत वहां से दफा हो जाईये.
वैसे इस रोग से समाज का कोई वर्ग नहीं बचा है . बड़ी छूत की बीमारी है . WHO को इसकी भी सूचना जारी करनी चाहिए . वैसे तो उसने(WHO) बीमारी का नाम आनन फानन में बदल दिया है . शायद अपने यहाँ से कोई अप्रोच लगी होगी या स्विस बैंक से थोडा माल ढीला हुआ होगा.
स्वाइन फ्लू को पढ़ कर व्यंगाइन फ्लू ही गया |
सही कहा अनिल जी आपने. न जाने कितने सालों से न जाने कितने सालों ने स्वाइन फ्लू फैलाया है. लेकिन वही बात है न. जब तक बीमारी भी इम्पोर्टेड न हो, उसके बारे में कोई बात नहीं करता. ये तो अमेरिका से न आता तो कोई बात भी नहीं करता.
स्वाइन लोगों ने फ्लू तो फैला ही रखा है. उसकी वजह से न जाने कितने लू के शिकार हो गए.
अरे भैया! अपने देश में जान की कुछ हो, तब ना जांच होगी। यहां तो पापुलेशन एक्सप्लोजन है तो जन संख्या घटेगी तो ही नेता खुश होंगे :)
waah kya baat hai
kya andaaje bayaan hain !!
बता तो इसलिए रहे हैं कि दवा बिके...वरना रहा होगा जमाने से.
Sir, it’s nice to speak on such issue but result is Zero, it’s a dilemma of our country in present perspective. Such big issue not only bother single person but shakes entire Nation. But keep on converse over shaking values.
--Kindly visit your old well-wisher too I invite you. Your shiv sagar, Meerut
वाह क्या बात कही है! वैसे पिताजी भी कभी नाराज होने पर पदवी दे देते हैं.
जनता ही कोई इलाज कर पाएगी इस स्वाईन फ्लू का।
करारा व्यंग !
... अत्यंत प्रभावशाली अभिव्यक्ति है।
I agree with Sameer bhai aka Udantashtri !
एक 'महामारी' को दूसरी 'महामारी 'की नज़रों से देख कर खूब करारा व्यंग्य लिखा है.
मेरे को तो मल्टीनेशनल्स की दवा बेचने की चाल लगती है.
रामराम.
achche post lagi.. india walo ko satarkata baratane ki jaroorat hai....
जब तक सूअर स्वाइन न बने, उसपर पेटेण्ट दर्ज नहीं हो सकता!
आदरणीय अनिल pusadkar जी,
मेरे ब्लॉग "हमसफ़र यादों का......." पर पधारने तथा मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, चलिए इसी बहाने आपके ब्लॉग से परिचय हो गया। अभी ब्लॉग जगत में नया हूँ, अतः आपके सभी लेख नहीं पढ़ पाया हूँ परन्तु जो भी पढ़े सब सामाजिक सरोकारों का प्रतिनिधित्व करने वाले हैं। आपका उपनाम अंग्रेजी में लिख दिया है, कृपया बताएं हिन्दी में कैसे लिखा जाता है। पधारते रहिएगा। पुनःश्च धन्यवाद!!!
प्रभावशाली अभिव्यक्ति...
are "Bhaiyya" asli Suar/Dukkar/Swine toh gandagi ko saaf karten ( kha kar) hai, a very social work, par yeh "Swine Flue" wale toh Samaj me gandagee failaten hai, a anti social work.
"swine Flue" pakda.. pahli nishanee "Pure white" apar se niche tak kurten me nazar aayenge.
Rog aur badha seer ke upar jaise Murge kee kalgi "Lal" rahti hai na vaise hee "Pure White" Kalgi ug aatee hai jisko infected log "Topi" ka nam deten hai.
Yeh Rog yehan thoda complicated ho jata hai halke se "Bird Flue" ke lakshan ka ahsas hota hai lekin rahata "Swine Flue" hee hai.
Theek yehi par iska upchar ho gaya toh yeh infection sudhar sakta hai. Der ho gayi toh gaya kam se "Kayam" ka yeh rog jadeet ho jata hai.
Fir inko aap PWD,IRRIGATION,POLICE DEPTT, FOREST, MNTRALAY etc.jaise jagahon par ghumate paoge kahee blackmailing, kahi "Bodee Bhaskaing" me bheede rahten hai,fir inko "Swine Flue" ke highly infection logon ke bulave aane lagten hain aur inka kaam nikal padta hai.
election ke samay toh yeh sidhee aapke "Pichhwade me lag jaten hai" inki yehan tak haalat ho jaati hai.
Fir majboor samaj in "Infected Logon" ke saamne jhookna shuru karta, hai jisko jo mila us-se dosti ganthee aur gande tarike se paisa banate hai, compition badhta hai toh "swine Flue" ke A to Z type ke infectected market me uplabdha rahten hai. Samaj me gandagi failti hai, kahi bhee nazool kee jamin me "Jhuggi-Jhopadee" raton raat khadee hotee hai "GANDAGI MAINTAIN" karen hai.
Gandagi me inka jeevan chalta hai kabhee kabhee iska positive side effect bhee dikhaie deta hai yeh "Gnmanya","Rajshree","Raj-durbar" me jagah paa jaten hai, lekin inki root Gandagee badhane me hee rahten hai.
Swine & "Swine Flue" walon me yehi ek antar hai kee ek gandagee saaf karta hai toh infected "Gandagee Maintain" karta hai..Desh Bhad me Jate inka infection kahta hai.
Bhagwan se yeh roj Prarhna karen hai ke yeh humara rog maintain rahen.
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