Thursday, May 7, 2009

ब्लागर हो तो ऐसा!

बहुत सोचा कि इस बारे मे लिखूं या ना लिखूं।सुबह से ही दिमाग मे उथल-पुथल मची हुई थी।दिन भर काम के दौरान मे भी कश्मकश के बीच एक अंजान इंसान के सीधे-सपाट बोल रगो मे दौड रहे खून का एक्सलरेटर दबाते रहे और अब जाकर जब सो नही पा रहा हूं तो दिमाग पर दिल हावी हो गया है।रात सवा बारह बजे मैने अपने दिलोदिमाग मे चल रही हलचल को शब्दो की शकल मे ब्लोग पर उतारने का फ़ैसला किया है।

मामला सुबह शुरू हुआ जब मैने हमेशा की तरह देर से उठने के बाद ब्लोग जगत का हालचाल जानना शुरू किया।एक पोस्ट पढ कर मुझे कुछ दिनो पहले अनूप शुक्ल जी से हुई अपनी बातचीत याद आ गई। हुआ यूं था कि एक दिन दोपहर को फ़ुरसत मे बैठा था कि अचानक फ़ुरसतिया भैया यानी अनूप जी का फ़ोन आ गया।फ़ोन पर बात-चीत के दौरान आवारा बंजारा संजीत त्रिपाठी का ज़िक्र आया और अनूप जी ने कहा कि उसका ब्याह-व्याह करवाओ।बेवजह टाल रहा है।इतना सुनते ही हमको तो जैसे सांप सूंघ गया। हमने साफ़-साफ़ मना कर दिया कि ये काम हम से न हो सकेगा।वो बोले क्यों तो हमने उन्हे बताया कि भैया जब हम खुद ब्याह नही किये है तो उससे किस मुंह से ब्याह करने के लिये कहे।इतना सुनने के बाद अनूप जी का लक्ष्य बदल गया और वो हमसे ब्याह करने के लिये कहने लगे और एक बेहद करीबी दोस्त,भाई या रिश्तेदार की तरह हमे समझाने लगे।काफ़ी देर इस सिलसिले मे बात हुई और हम हमेशा की तरह जांचा परखा नुस्खा इस्तेमाल कर बैठे। हमने कहा कि ठिक है कर लूंगा और फ़िर कुछ औपचारिकताओ के बाद फ़ोन बंद हुआ।

उस बात को मै लगभग भूल चुका था कि आज ताऊ की पोस्ट पढ कर वो याद आ गई।मैने ताऊ के खूंटे पर भोले शंकर से गिटार मांगने वाले किस्से को पढ कर अनूप जी से बात चीत का ब्यौरा कमेण्ट के रूप मे लिख मारा।मैने कमेण्ट किया ही था कि उधर से फ़ोन आ गया।फ़ोन था ताऊ जी का। हालचाल पूछ्ने की औपचारिकता पूरी होते ही सीधे और सपाट शब्दो मे ताऊजी ने पूछा कि तुम ब्याह क्यो नही कर रहे हो?मैने कहा ऐसी कोई खास वजह नही है,कुछ पारिवारिक परेशानिया थी।पिताजी के असमय निधन के बाद घर की ज़िम्मेदारी मुझ पर आ गई थी और फ़िर छोटी बहन और भाईयो के ब्याह कराते कराते समय निकल गया।उन्होने कहा कोई फ़र्क नही पडता तुम ब्याह कर लो अभी तो सब ठीक है बुढापे मे तक़्लीफ़ होगी।

ये शब्द पिघले सीसे की तरह मेरे कान से उतर कर मेरे कलेजे तक़ उतरते चले गये।यही बात शायद रोज़ बिना नागा मेरी मां कहा करती थी अब वो थक़ गई है और कभी कभार टोक देती है।सारे दोस्त उनकी पत्निया,सारे रिश्तेदार भाई बहन बहूएं दामाद साथी यहां तक़ की घरेलू कर्मचारी भी यही बात किया करते थे।उनकी बातो मे और एक अंजान ब्लाग की दुनिया के साथी की आवाज़ मे ज़रा भी फ़र्क़ नही महसूस हुआ मुझे।मुझे तत्काल अनूप जी से हुई बात भी याद आ गई।उस समय मैने सोचा था कि इत्तेफ़ाक़ से विषय निकला है तो अनूप ने कह दिया होगा।फ़िर मुझे याद आया उनका परसाई जी के लिखी बातो का उदाहरण देना।उस समय तो नही मगर आज मुझे मह्सूस हो रहा है कि अनूप जी ताऊ जी मेरे मामा चाचा ताऊ बुआ मौसी मामी बहन भाईयो की समझाईश और ब्लोग परिवार की साथियो की समझाईश मे रत्ती भर भी फ़र्क़ नही था।

उसमे भी उतना ही प्यार था दुलार था अपनापन था चिंता थी और मंगलकामना थी।ताऊजी का फ़ोन रखने के बाद मन बेचैन हो उठा।सोचा इसे लिख डालूं फ़िर लगा निहायत निजी बातो को सार्वजनिक करने का कोई मतलब नही है।उसके बाद तो दिमाग मे जैसे विचारो का भुचाल आ गया।दिमाग मे तर्क़ और कुतर्को के बादल उमड़ते-घुमड़ते रहे।दिन भर की भागा दौड़ी के बाद शाम को मुख्यमंत्री से भी चर्चा के लिये गया तो साथियो को मुझमे पुराने तेवर नज़र नही आये,बाहर आकर कुछने असंतोष भी जताया। हमेशा की तरह मै उनसे भीडा नही बल्कि खामोशी से उनकि सुनकर चला आया।रोज़ की पार्टी मे भी इस बात का ज़िक्र निकला और तब तक़ मैने मन बनाना शुरू कर दिया कि मुझे इस पर लिखना ही चाहिये कि आखिर ब्लागर हो तो ताऊजी जैसा,फ़ुरसतिया जैसा।उन्होने ये साबित कर दिया कि हम सिर्फ़ देखा-देखी तारीफ़ करने या महज़ आभासी दुनिया के साथी नही बल्कि हम वाकई एक दूसरे के दुःख दर्द के साथी भी हैं।मैने पहले भी लिखा था जब दिनेशराय द्विवेदी जी रायपुर आकर हम लोगो से मिलकर लौटे थे।तब भी मैने लिखाथा कि उनसे मिलकर लगा कि अपने पुराने रिश्तेदार से मिल रहे हो।सच मे ये एक नई तरह की रिश्तेदारी बन रही है।ईश्वर करे इसे किसी की नज़र न लगे और ये खूब फ़ले-फ़ूले।

28 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

भैया, अब कर भी डालो। हम भी फुरसतिया और ताऊजी की ही लाइन में हैं। उन की सलाह गलत नहीं है। संजीत तो आप ही लाइन में आ जाएंगे।

ghughutibasuti said...

अनिल जी,
विवाह बिल्कुल निजी मामला है किन्तु यदि मन में विवाह के प्रति कोई दुर्भावना न हो और विवाह न करना केवल एक समय व हालात के कारण हो तो अब अवश्य कर लेना चाहिए। जब तक अपनी कामकाज की व्यस्तता में लगे हैं शायद इतना बुरा न लगे किन्तु उम्र का एक ऐसा पड़ाव आता है जब किसी बहुत अपने की कमी खलती है।
यदि हो सके तो इस विषय पर अवश्य सोचिए।
यह ब्लौग परिवार सच में बिल्कुल अपनों से भरा पड़ा है। आपके मित्र आपको सही सलाह दे रहे हैं। संजीत को तो हम यह सलाह देते ही रहते हैं।
घुघूती बासूती

Udan Tashtari said...

वैसे यह बात तो है कि जब इतने लोग समझा रहे हैं तो कर ही डालो.

हमने भी बहुत सुखद अहसासा है यहाँ जन्में रिश्तों को.

Anonymous said...

एक बेहद निजी उथल-पुथल।

सतत चलने वाली प्रक्रिया में एक जैव संरचना पर, अपनी पूरक संरचना के साथ, अगली पीढ़ी को जनम देकर उसे संसार के अंग के रूप में विकसित करना जिम्मेदारी मानी जाती है। उसके बाद उसका कार्यकाल खतम हो जाता है और वही जिम्मेदारी उसी का अंश संभालती है।

इसी प्रकिया में उन दोनों जैविक संरचनायों को इस कार्य के लिए उत्प्रेरित करने के लिए 'सुपर प्रोग्रामर' ने अलग अलग कारक निश्चित किये हैं। एक कारक सामाजिक ताना-बाना भी है। एक सामाजिक प्रणाली में आप उस प्रणाली से अलग होने की चेष्टा करेंगें तो आपको कुछ ना कुछ तो सुनना ही पड़ेगा।

व्यक्तिगत रूप में एक मानव का किसी के साथ लगाव/ जुड़ाव/ झुकाव या फिर यादें, उम्र के साथ बनी रहती हैं तो एक खास पड़ाव पर महसूस होता है कि कुछ अधूरापन सा है।

अब अगर हास्य व्यंग्य की बात की जाए तो जब पछताना ही है तो लड्डू खाकर क्यों ना पछताया जाये:-)

वैसे (शायद मंटो या कृश्नचंदर रचित) कहानी 'रबड़ की गुड़िया' तथा विनोद खन्ना-शत्रुघन सिन्हा-मीना कुमारी अभिनीत 'मेरे अपने' पढ़ देख लीजियेगा।

संगीता पुरी said...

सारे दोस्त ,उनकी पत्निया,सारे रिश्तेदार भाई बहन बहूएं दामाद साथी .. यहां तक़ की घरेलू कर्मचारी और एक अंजान ब्लाग की दुनिया के साथी की आवाज़ मे ज़रा भी फ़र्क़ नही होना .. सचमुच ये साबित करता है .. कि हम सिर्फ़ देखा-देखी तारीफ़ करने या महज़ आभासी दुनिया के साथी नही .. बल्कि वाकई एक दूसरे के दुःख दर्द के साथी भी हैं .. तो आज जब सब जवाबदेहियों से मुक्‍त हो चुके हैं तो .. फिर सबकी बात मान ही लेनी चाहिए।

अनूप शुक्ल said...

पढ़कर हम थोड़ा भावुक टाइप के हो लिये। मुझे लगता है कि अगर व्यक्ति कोई बहुत बड़ा ऐसा सामाजिक काम नहीं कर रहा है जिसके चलते उसके लिये परिवार बसाना और चलाना मुश्किल तो व्यक्ति को विवाह अवश्य कर लेना चाहिये।

संयुक्त परिवार वाले मध्यमवर्गीय परिवारों में पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते अपने बारे में नहीं सोच पाते। लेकिन परिवार के लिये भी यह जरूरी है। अच्छा जीवन साथी खोजकर झट से शादी कर लो भैया। सबको खुशी होगी।

ताऊ रामपुरिया said...

भतीजे फ़ौरन से पेश्तर बैंड बजवाने का इंतजाम करो. संजीत भी आपसे पीछे नही रहेंगे. आखिर खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदल लेता है.

अब जल्दी करिये, ये एक पंथ दो काज हो जायेगा.

रामराम.

Kulwant Happy said...

KUCHH DIN PAHEL AAYA EK SMS AAPKI POST KO SMARPIT

HAR INSAN KO SHADI JAROOR KAR LENI CHAHIYE..
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AKHIR KHUSHI HI TO ZINDGI MAIN SAB KUCHH NAHI HOTI...

SHABD KA TANA BANA.. BAHUT KHOOB BHITHAYA HAI..

Sanjeet Tripathi said...

क्या कहूं बातें लिखी है आपने गंभीर, और गंभीरता से हमारा नाता नई।

अपने इस्टाइल में कहूं तो भैया जब इत्ते बड़े (बूढ़े नहीं) लोग कह रहे हैं तो कर ही डालो अब। लेकिन मुझे किनारे ही रखो ;)

जे बुजुर्गां लोग तो मन्ने हमेशा इसी मुद्दे पे घेर लेते हैं अक्सर जब भी जी टॉक पर ऑनलाईन चैट होती है तो ;) फिर मैं रास्ता ढूंढता रहता हूं कल्टी होने का ;)

Shikha Deepak said...

विवाह एक निजी मामला है पर जब आपने इसकी चर्चा करी और वो हमने पढ़ी तो आपसे यह कहने का मन किया............आपके दोस्त आपको सही सलाह दे रहे हैं........यह सच है की किसी के होने न होने से जिंदगी नही रूकती पर जीवन एक ऐसा सफर है। जिसमें यदि कोई साथी.......जीवन साथी शामिल हो तो यह सफर और भी सुहाना हो जाता है। एक बार इस पर फ़िर से नए सिरे से सोचिये।

prabhat gopal said...

acha raha. maja bhi aaya. hamare hisab se shadi niji mamla hai.

admin said...

ब्‍लॉगर हो तो आपके जैसा।

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SBAI TSALIIM

मोहन वशिष्‍ठ said...

सोच समझ कर फैसला लेना क्‍योंकि ये ऐसा लडडू है जिसे लोग खाकर भी पछताते हैं और ना खाकर भी पछताते हैं बाकी फिर भी पछताना दोनों ही सूरत में है तो क्‍यों ना खाकर ही पछताया जाए

प्रवीण त्रिवेदी said...

अरे रे रे रे रे रे रे !!

जब इतने बड़े बुजुर्ग सलाह दे रहे हैं तो डर कहे का ?? माने देर किस बात की ??
वैसे भी लादू का स्वाद सुनने से अच्छा खाने में ही है !!
फिर एक और गारंटी की कभी भी ब्लॉग मुद्दों की कमी न होगी !!
बकिया आप जैसा निष्कर्ष निकालें!!


प्राइमरी का मास्टरफतेहपुर

Abhishek Ojha said...

अनूप जी के बारे में तो अपना भी यही ख्याल है. ताऊ से तो कभी बात नहीं हुई पर जिनसे भी हुई ऐसे ही लोग मिले. शादी के मामले में जब इतने बड़े लोग सलाह दे रहे हैं तो हम क्या कहें ! हम तो निमंत्रण का इंतज़ार कर रहे हैं :-)

डॉ महेश सिन्हा said...

संगीता जी आप भी कुछ अपने हुनर का कमाल दिखाएं , ज्योतिष का :)

समयचक्र said...

भैय्या आप भी अब जल्दी निपट लो गर बुरा न माने तो हा हा

Gyan Dutt Pandey said...

कर ही डालो मित्र।

Ashok Pandey said...

हमारी सामाजिक संस्‍थाओं में परिवार का काफी महत्‍व है। व्‍यक्ति और समाज के बीच की कड़ी परिवार ही है। जब ब्‍लॉग परिवार बढा रहे हैं तो फिर नर-नारी वाले परिवार से क्‍यों भागना। कर डालिए शादी....हम सभी बारात चलने आएंगे।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

बहुमत की सुनिए

रंजन said...

सब कह रहे है तो चढ़ जाओ... घोडी पर..

अविनाश वाचस्पति said...

मेरी मानना सिर्फ
शादी न करना

अविनाश वाचस्पति said...

गर कर लो शादी
तो नाम बदल देना
गरीब धरती अमीर लोग
अवश्‍य कर देना
पर मेरी मानना तो
शादी मत करना।

sandeep sharma said...

भैया मेरी तो समझ में नहीं आ रहा, आपको क्या बताऊँ... जैसा मन करे, करो...

गौतम राजऋषि said...

कर भी लीजिये सरकार...ब्लौगिंग में तनिक और मजा आयेगा...

NIRBHAY said...

jab har bhagwan kee "Patniyan" hai,ek,do,ya jyada.. matlab kya hai.. yeh hindu mythology ka indication hai sansaar chalta rahna chahiye, creation nirantar chalega aap yehan duniya me aaye ho jis tarah usi tarah aap ka bhee dayitva banta hai kee iski nirantarta ko banaye rakhe. Sab ke sab Pagal nahi hai ya aap ke dushman nahi hai, jo Prakriti ka satya hai use hee repeat karten hai. Prakriti ke khilaf jaoge toh har aadmi kahata hai, agar kadake kee thand me bina sweater ke nikloge toh har aadmi tokega Kyon bhaie thand nahi lag rahi kya? ya fir Kyon bhaie Barsat me bheeng rahe ho geele nahi ho jaoge? itni kadee dhoop me kam se kam sar par roomal toh rakh lete? yeh prakriti se jude hai, iska vyaktigat roop se aapko aahat karne ka aashay nahi hai. yeh kisi dharma se nahi bandha hai.
Khair vivah kar dalo, abhee makar ke guru ne kaie poorane/pending cases niptae hai.( vivah hetu guru ka bal dekha jata hai jyotish ke anusar).
Jo chuk gaya uska mat socho, uska kuchh bhee nahi kar sakte, jo hath me hai & aage kee socho.
Vivahbaddh ho jao.
yeh woh bumbai mithai hai jo khae woh pachhtaye, jo na khae voh pachhtaye.

"NA GHABRAO GUMNAM DEEL APNA KHOLO,
NA GHBRAO GUMNAM DEEL APNA KHOLO,
AAJ CHUKA DO SABHEE KE HISAB-E MOHABBAT"

नीरज मुसाफ़िर said...

अजी बडों-बडों की सलाह मान लेने में ही भलाई है. तो अब ये बताओ की हमें दावत इसी सीजन में मिल जायेगी या अगले सीजन का इन्तजार करना पड़ेगा?

दिलीप कवठेकर said...

अंत भला तो सब भला...

भोपाल पास ही में तो है. बुलायेंगे ना?