पराठे तरह-तरह के होते हैं।पराठा शब्द की व्याख्या शब्दो के सफ़र के महान यात्री अजित वड़नेरकर ने भी की है।उन्होने जो बताया वो तो अलग था मै जो बताने जा रहा हूं वो एक्सक्लूसीव है।पराठे की इस किस्म का स्वाद, मेरा दावा है बहुतो ने चखा होगा मगर कोई बतायेगा नही। हां,हो सकता है ये वेरायटी कुछ लोगो के लिय नई हो,तो अब पता लगने के बाद वे कह सकते है कि भगवान न करे कभी बीबी के हाथ के वैसे गरम पराठे खाने की नौबत आये।
आज ज़रा मै जल्दी क्लब पहुंच गया था।क्लब मे काफ़ी भीड़ नज़र आई।भारी भीड़ देखकर मेरे मुंह से सालो पुराना हिट डायलाग निकला कि क्यों गिफ़्ट वाली कान्फ़्रेंस है क्या?कुछ सच्ची और कुछ कच्ची यानी खिसियानी हंसी के साथ सब ने कहा नही रोज़ जितने ही है।आज आप कुछ जल्दी आ गये ।अन्दर जाकर देखा तो गब्बर शुक्ला,शिशुपाल त्रिपाठी और प्रभुदीन गुप्ता की तिकड़ी कोने मे बैठी किसी गुंताड़े मे मगन थी।मै सीधा उनके पास पहुंचा और बिना फ़ार्मेलिटी के उनसे पूछा कि क्यों बे कमीनो किसकी वाट लगाने का इंतज़ाम कर रहे हो।तीनो एक साथ चिल्लाये आपको तो बस हरा-हरा सूझता है।यंहा सब परेशान है और आप्…………। अबे तुम लोग परेशान हो?साले तुम से तो सारा शहर परेशान है?तीनो फ़िर एक सुर मे बोले फ़िर वही बात।ये नही कि अपने छोटे भाईयो से पूछे कि क्या हाल है?सब ठीक तो है ना?तीनो मुझ पर चढने लगे थे।मैने सीधे अपने ट्रंप कार्ड़ का इस्तेमाल किया सालो सुबह-सुबह पीकर आ गये क्या?
अब क्या था तीनो दाना-पानी लेकर मुझ पर चढ दौड़े।तीनो की एकता देख कर मै थोड़ा घबराया और तत्काल उनमे फ़ूट डालने की स्कीम सोचने लगा।इधर तीनो का बड़बड़ाना जारी था।जब देखो पीकर आया है क्या बे?एक तो पिलाना-विलाना है नही और ऊपर से पिलाने वालो को गाली बकना,उनको बिदकाना और भगा देना।बस यही काम रह गया है।पूछना भी ज़रूरी नही समझते की क्या बात है भाई परेशान दिख रहा है?शिशुपाल का ये डायलाग तो मुझे अजीत अगरकर की शाटपीच बाल लगी और इस मौके को गवाये बिना ही मैने उसे हुक कर दिया।
तीनो मे फ़ूट ड़ालने का गोल्डन चांस हाथ लगा था और मैने उसे खराब होने नही दिया।मैने तत्काल सुर ढीले किये और कहा भाई शिशुपाल तू तो थोड़ा परेशान नज़र आ रहा है मगर गब्बर तो कंही से परेशान नज़र नही आ रहा है। चेहरा तो ऐसा चमक रहा जैसे बहु ने डेंटिंग-पेंटिंग करके भेजा है।वैसे इस मामले मे वो तुम दोनो से अच्छी तक़दीर वाला तो है।बस अब क्या था प्रभूदीन फ़ट पड़ा।उसका मुंह खुलते देख गब्बर बोला भी अबे ये लड़ाई करवा रहे हैं।मै बोला साले मै लडाई करवा रहा हूं, है ना?और तू उस दिन क्या बोल रहा था प्रभूदीन के बारे मे? बताऊं?
अब तो प्रभूदीन का पारा मौसम के पारे से भी ऊपर पहुंच गया।वो बोला ये क्या बतायेगा इसकी हालत जानते है हम लोग्।मै बोला लेकिन चेहरा तो चमक रहा है साले का। हूंह कहकर बुरा सा मुंह बनाया प्रभूदीन ने।मैने फ़िर से उसके नरम होते तेवर को हवा दी और कहा कि ये तो बता रहा था कि तेरे को आजकल ओव्हर टाईम भी करना पड़ रहा है।कहां?मैने कहा घर में?क्या?मै बोला ये बता रहा था काम वाली बाई तेरी हरक़तो से तंग आकर काम पर नही आ रही है तो भाभी ने उसकी ड्यूटी तेरे को दे दी है।
बस इतना सुनना था कि प्रभूदीन का ब्रेक फ़ेल हो गया।गब्बर के साथ-साथ शिशुपाल भी चिल्लाया मरवायेगा साले। आ गया ना इनके चक्कर में।पर तब-तक़ तो प्रभूदीन की गाड़ी स्पीड पकड़ चुकी थी।वो बोला आप कह रहे थे ना इसका चेहरा चमकते रह्ता है और तुम लोग फ़टीचर नज़र आते हो।तो सुनो इसके चेहरे के चमकने का राज़्।ये रोज़ सुबह गरम पराठा खाकर आता है।मैने शोले फ़िलिम का डायलाग याद करते हुये लोहा गरम देखकर चोट कर दी।मै बोला ये तो तक़दीर की बात है बे बीबी गरम-गरम पराठा खिलाये…॥मेरी बात को आधे मे ही काटते हुये वो बोला पूरा तो सुन लो गुरूजी।भगवान न करे वैसा पराठा खाने की नौबत आये।मै बोला पागल हो गया है क्या बे?एक तो बीबी गर्मागर्म पराठे खिलाये और्…वो बोला गुरूजी पूरी बात तो सुन लो।
अब प्रभूदीन गब्बर से बोला क्यों बेटा!बहुत पोक(लीक कर)रहा है आज कल।गब्बर और शिशुपाल एक साथ बोले अपन आपस मे निपट लेंगे इनके चक्कर मे मत आ।वो बोला भैया ये आज भी पराठा खाकर आया है।मै बोला क्या बड़बड़ा रहा है बे पराठा-पराठा।वही तो बता रहा हूं।ये रोज़ सुबह पराठा ही खाता है।रात को पीकर घर जाता है तो भौजी भड़क जाती और रात को खाना नही देती।सुबह रात की बची हुई सब्जी,दाल, चावल और रोटी सब को मिलाकर पराठा बनाती है और इसको देती है।बिना कुछ बोले मुंह फ़ुलाये।उसका चेहरा देखो तो समझ मे आ जाता हे जैसे कह रही हो ले खा,मर।
अब बताओ खाया है ऐसा पराठा।अब गब्बर भड़क ग़या साले सुनना है नही बस बक़-बक़ करना। अब ले,ये सारे शहर को घूम-घूम कर बतायेंगे गब्बर पराठा खाता है,गब्बर पराठा खाता है।वो बोला, तू क्यो बोला मै ओव्हरटाईम करता हूं। अबे मै नही बोला।तो शिशुपाल बोला होगा।शिशुपाल बोला भाई मै वैसे भी बहुत परेशान हूं मुझे तो बख्श दो।वो बोला अच्छा बेटा, अपना नम्बर आया तो मुझे बख्श दो।तेरे बारे मे बताऊं।मैने कहा बताओ प्रभूदीन इनसे डरने की ज़रूरत नही है।वो बोला डर और इनसे।बताऊं बे शिशुपाल्।ओरिजिनल शिशुपाल भी सौवी गलती करने के बाद इतना नर्वस नही हुआ होगा जितना ये कल्युगी नज़र आया।प्रभूदीन ने वो क्या खाता है क्या बताया, फ़िर कभी बताऊंगा।मगर आपको गब्बर के पराठे कैसे लगे बताईगा ज़रूर्।
16 comments:
क्लब की चकल्लस का आनंद लिया। ऐसा पराठा खाने की कभी नौबत आई नहीं।
गब्बर के परांठे-सब मित्रों की पोल पट्टी इसी ढिंचल में खुलती है भाई जी...मगर धबराओ मत, ले आओ..बीबी के हाथ के परांठे खाकर पछताओगे नहीं. :)
ई पराठे के भी अलग मजे हैं भैया। लग जाओ अब खोज में। जो होगा देखा जायेगा।
गबर पराठा जबर पराठा!
वाह्वा!
ha ha ha ha
mazaa aa gaya padhkar
bhai waah !!
लोग आपकी शादी के पीछे इस लिए पड़े हैं क्योंकि कहावत है छुट्टा सांड खतरनाक होता है :)
हमने तो ऐसे परांठे खाए नहीं अभी तक, भगवान् करे ऐसी नौबत ना आये.
उस पराठे को इंडियन पिज्जा का नाम देकर देखिये, खाने वाले का सब कुछ बदल जायेगा।
गगन शर्मा जी का कहना भी ठीक है और नाम जरा हाका नाका च्यंऊं पिज़्ज़ू पौरंठू जैसा कुछ हो तो क्या बात है
हा हा :-)
रोचक चर्चा
इस तरह के परांठे की दुकान खोली जाये - "लेफ्टओवर पराठे की गली"!
ghumte -ghumte aapke blog par aye ,padhkar achcha lga...wah..vaise mae bhi mahesh sinha ji ki baat se sahmat hun.
रोचक
आपकी परांठे की चिठ्ठी चर्चा समयचक्र में
haan ji khaaye hai na hostel ke mess me....kabhi kabhi ek naraz biwi ke haath ke khaane se bhi bhaanak halaat yahaan rehti hai
ऐसी पोस्ट सुबह पढ़ लें तो नाश्ता डिसाइड हो जाये भाई साहब
sanjay bhayia ki pol khol diye aaj to aap idhar boss
;)
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