Saturday, July 25, 2009

बच्चा पकड़ना आता है?तो जाओ पकड़ कर लाओ

अपने प्रदेश की मै खुद क्या तारीफ़ करूं,समझ मे नही आता?पता नही क्या सोच कर बनाया गया था और क्या बन गया।अब बताओ इंजीनियरिंग कालेज मे पढाने के लिये बच्चा पकड़ने की कला आना तो ज़रूरी नही होना चहिये ना,लेकिन यंहा अगर आपको पढाने का शौक है तो जाओ खुद पकड़ कर लाओ बच्चे और जो जी मे आये पढाओ,लेकिन पहले बच्चे पकड़ कर लाओ।

अरे इसमे हंसने की कोई बात नही है भैया!मै मज़ाक भी नही कर रहा हूं!सीरियसली बता रहा हूं।हमारे प्रदेश मे आजकल यही चल रहा है।इंजीनिअर बनाने की इतनी दुकाने खुल गई है कि अब ग्राहक ही नही मिल रहे हैं।अभी कांऊसलिंग शुरू हुई है और कांऊसलिंग के बाहर निजी ईंजीनियरिंग कालेजों का मीनाबाज़ार लग गया है।रंग-बिरंगे बैनर और पोस्टरों से सजे स्टाल पर खड़े लोग किसी भी बैगधारी को देखते ही उस पर टूट पड़ते है जैसे रेल से उतरते यात्री पर कुली य बस से उतरने वाले पर रिक्शे वाले।आदमी लाख चिल्लाये अरे मै तो सब्ज़ियां खरीदने बाज़ार जा रहा हूं,कोई सुनने को खाली नही रहता।सारे के सारे उसे पेल देते है अपने-अपने कालेज का स्वर्णिम रिकार्ड्।

ऐसा लगता है कि कोई सेल लगी हो इसके साथ ये फ़्री की तर्ज़ पर पढाई के साथ प्लेसमेंट की गारंटी,फ़ीस मे छ्ट,सबसे नज़दीक कैम्पस,बस की सुविधा,फ़ैकल्टियओं के फ़ोटो और जाने क्या-क्या बताना पड़ रहा है दुकानदारों को।और तो और उनका स्टाफ़ घूम-घूम कर छात्रढूंढ रहा है।मास्टर तो कांसलिंग के लिये कैम्पस मे जाने वाले छात्रो के साथ फ़र्ज़ी पालक बन कर जा कर अंदर से बच्चे पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं।लेकिन कांपिटिशन इतना ज्यादा है कि दूसरी दुकान के लोग शिकाय्त कर उन्हे पकड़वा रहे हैं।कल ही बिलासपुर के तीन मास्टरो को पालक बनकर अंदर जाते समय पकड़ा गया था,उन्होने लिख कर माफ़ी मांगी की आगे से ऐसा नही होगा।बच्चा पकडने की होड मे मचने वाले हडकम्प के कारण ही इस साल कैम्पस के बाहर स्टाल लगाने की अनुमति मिली है दुकानदारों को ।

दरअसल ऐसा शुरू से नही हो रहा है।शुरूआत मे निजी कालेज एक दो ही थे।तो उनकी कमाई और अकड़ देख कर कई लोगो को उस दुकान से होने वाले मुनाफ़े के लालच मे खींचा और देखते ही देखते 48 दुकाने हो गई है इस सोलह ज़िले वाले छोटे से प्रदेश मे।हालत ये है कि पिछले साल ही करीब-करीब सत्ताईस सौ सीटे खाली रह गई थी और इस बार नई दुकानो के खुलने से आठ हजार सीटे और बढी है।कुछ दुकानो का तो अख़बारों मे फ़ुल-फ़ुल पेज विज्ञापन देने के बावज़ूद अभी तक़ खाता तक़ नही खुला है।अब बताईये भला ऐसे मे अगर दुकानदार अपने मास्टर से कहे अगर पढाने का शौक है तो जाओ बच्चा पकड़ कर लाओ! तो क्या गलत है?और अगर बेचारा मास्टर अपनी नौकरी चलाने और अपने मालिक की दुकान चलाने के लिये भेस बदलकर पालक बन कर काउंसलिग कैम्पस मे घुस कर बच्चे पकडने की कोशिश कर रहा है तो क्या गलत कर रहा है?अब इसमे हंसने की क्या बात है रोजी-रोटी का सवाल है भैया।

25 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

इस बाजार में जबरन बुलाई गई मंदी।
आवश्यकतानुसार उत्पादन पर जोर देना पड़ेगा।

Anonymous said...

बाज़ारवाद जो कराये वह कम है

P.N. Subramanian said...

ऐसा तो होना ही था. अजित जोगी के समय निजी क्षेत्र में सैकडों इंजीनियरिंग कॉलेज, विश्वविद्यालय आदि के लिए थोक में अनुज्ञा दी गयी थी. उस समय ही हमने सोचा था की यह क्या हो रहा है

अनिल कान्त said...

अब क्या होगा देश का भविष्य ....पहले तो ये इंजीनियरिंग कर पाने से रहे...दूसरा अगर कर लिया जुगाड़ लगा के तब क्या होगा :) :)

दिगम्बर नासवा said...

हमारे हरियाणा का भी यही हाल है........... ऐसे कॉलेज क्या पढ़ाएँगे आप खुद ही तय करें

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

तभी तो कई कालेजों का परमिशन रद्द करने की मुहीम चल रही है!

अन्तर सोहिल said...

यही कहा जा रहा है पब्लिक स्कूल के टीचरों को भी
और इन्जिनियरिंग कालेजों के साथ-साथ कोचिंग सैन्टरों की भी बाढ सी आ गई है।

प्रणाम स्वीकार करें

Science Bloggers Association said...

आने वाले दिनों में स्‍टूडेंट लाने का धन्‍धा जोरों पर चलेगा।

-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

BrijmohanShrivastava said...

सर जी | बाज़ार में भटका होता तो कोई घर पहुंचा देता
मैं अपने घर में भटका हूँ क्या ठौर ठिकाने जाऊंगा
आखिर भटका हुआ मुसाफिर आपके ब्लॉग पर आ ही गया
अब आपका ब्लॉग
बिलकुल हंसने की बात नहीं है ,सोलह जिले और अड़तालीस दुकान ,सेल भी लगेगी ,मीना बाज़ार भी लगेगा ,सारी सुबिधाओं का लालच देकर ग्राहक ढूंढें जायेंगेविज्ञापन का खर्चा और मास्टर की तनखा कहीं से तो निकली जायेगी | जब एक दुकानदार कोई ग्राहक पटा लेगा तो दूसरे को आपत्ति होगी हीबेगधारी को देख कर उस पर टूट पड़ना ,मज़ा आगया और वह कहे मैं तो सब्जी लेने आया था पढ़ कर पेट में बल पड़ गए ,मुझे तो मनो वह द्रश्य ही दिखने लगा बेग लिए लड़का और उस पर टूटते पंडे

उम्मतें said...

बच्चों के कैरियर को लेकर शार्टकट के मोह में लिप्त पालक......दो नंबर की कमाई को सामाजिक स्वीकृति ........नौकरशाहों पर आश्रित राजनैतिक नेतृत्व ......

पता नहीं इस सब में धरती का क्या दोष है ?

डॉ महेश सिन्हा said...

चलिए कम से कम डॉक्टर की कमी की तरह रोना तो नहीं होगा इस क्षेत्र में . धीरे धीरे न चलने वाली दुकाने बंद हो जायंगी और हमारा देश कई और लोगों को एक्सपोर्ट कर सकेगा . प्रतिभा पलायन का रोना भी नहीं होगा और जनसँख्या भी कम होगी

Smart Indian said...

काश, हर बच्चे को प्राथमिक शिक्षा दिलाने पर भी ऐसा जोर होता!

Unknown said...

इधर भी कुछ ऐसा ही हाल है भाऊ, और इन दुकानों में से ऐसे-ऐसे गधे सामने आ रहे हैं इंजीनियर बनकर, कि क्या कहें…

Kapil said...

ये कॉलेज नहीं लूट की दुकानें हैं। पिछले साल मुरादनगर, गाजियाबाद के एक निजी इंजीनियरिंग कॉलेज ने फीस बढ़ाकर गुण्‍डों के जरिए अपने छात्रों से उगाही की थी।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

यू.पी. की इन दुकानों से तथाकथित इंजीनियरिंग करके भी तो अपहरण ही करने हैं....
अच्छा है कि पहले ही ट्रेनिंग हो जाए

Udan Tashtari said...

ये धंधा भी जोरों पर है...किस दिशा में जा रहे हैं हम!

jitendra said...

शिक्षा, बुद्वि और योगयता के फेर में सारे कालेज फंस चुके है ,लगता है मीडिया की तरह शिक्षा क्षेत्र भी पैसे कमाने मे मशगूल है

ताऊ रामपुरिया said...

इन कालेजों का प्रंसिपल ताऊ को बनवादें. सब ठिक हो जायेगा?:)

रामराम.

विवेक रस्तोगी said...

इत्ती सारी दुकाने खुलने के कारण माल की गुणवत्ता में कमी आ गई है, जबकि होना इसका उल्टा चाहिये, प्रोडक्ट अच्छा मिलना चाहिये। नहीं तो अब कंपनियां इंजीनियरिंग स्नातकों, एम.बी.ए.,एम.सी.ए. को लेना बंद न कर दें और अनिवार्य कर दें कोई अंतर्राष्ट्रीय सर्टिफ़िकेशन।

जितेन्द़ भगत said...

सरकारी व्‍यवरस्‍था भी बुरी थी, प्राइवेट का तो और भी बुरा हाल है।

Gyan Dutt Pandey said...

अगर दुकानदार अपने मास्टर से कहे अगर पढाने का शौक है तो जाओ बच्चा पकड़ कर लाओ!
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यह तक्षशिला-नालन्दा का देश है! कौन था चीनी यात्री जो पढ़ने आया था?! उसी को पकड़ने जायें! :)

समयचक्र said...

पूरी तरह से व्यवसायिक हो गए है . बहुत सटीक पोस्ट. आभार.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

अब तो प्राइवेट यूनिवर्सिटियां भी खूब खुलने लगी हैं.

गौतम राजऋषि said...

सब कुछ व्यापार बन गया है...क्य किया जाये!

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

सिर्फ अकेले छतीसगढ की बात नहीं, सभी जगह लगभग कुछ इसी प्रकार का हाल है। सिर्फ पैसा कमाना ही लोगों का मकसद रह गया है।