अब तो लगता है कि बस हम सब लाश गिनने वाले चीरघर के चौकीदार हो गये हैं।संजीत ने फ़ोन कर कहा कि भैया कुछ लिख रहे हो क्या?मैने कहा कि आखिर क्या होगा लिख कर भी?मुझे कल ,अब तो आज कहेंगे जबलपुर जाना है।संजीत ने ज़िद पकड़ ली कुछ तो लिखो।मैने कहा ठीक है,और इतना कहते ही बिजली गिल हो गई।बरसात शुरू थी।बेहद मनहूस और डरावना मौसम हो चला था।मैने फ़िर सजीत से फ़ोन कर कहा कि बिजली नही है।उसने कहा ठीक है जब आये तब लिख देना,मै सुबह पढ लूंगाऽब राके डेढ बजे बिजली आई है और मै लिखने बैठा हूं।सुबह ज़ल्दि उठना है और जबलपुर जाना है।घूमने का मज़ा अब कसैला सा हो गया है।
लिखने को बहुत कुछ है मगर हाथ कांप रहे है।अभी तेरह दिन पहले ही तो नक्सलियों ने तीन दर्ज़न से ज्यादा जवानो का शिकार किया थ।आज फ़िर दो दर्ज़न को निशाना बनाया है।गश्त करने वाले जवानो को पता ही नही चलता कब किस पेड की ओट से निकल कर मौत आ जाती है और उनका काम तमाम कर जाती है।हम रह जाते है स्तब्ध्।शहीद जवानो के लाश के लोथड़े बिनते और शहीदो की संख्या गिनते हुये श्रद्धांजलि सभा मे काले चश्मे के भीतर रोती हुई आंखो का नाटक करते हुये शहीदो की कुर्बानी व्यर्थ नही जाने देने का रटा रटाया डायलाग बोलने वाले मंझे हुये एक्टर की तरह।
क्या इस खून खराबे का कोई अंत है या किसी प्रधानमंत्री जैसे बड़े आदमी की शहादत के बाद आतंकवाद से निपटने का रिकार्ड दोहराने का इंतज़ार हो रहा है।रोज़ कोई मर रहा है किसी न किसी का बेटा खो रहा है तो किसी का सुहाग उजड रहा है,क्या ये सब उन नकसलियो को समझ मे नही आता या फ़िर उनके सीने मे दिल ही नही होता।आखिर किस अन्याय और शोषण की बात करते है वे।वे लोग जो कर रहे है क्या न्याय है?क्या ऐसे ही खून खराबे से बस्तर का विकास हो सकता है?पता नही आज बड़े बड़े नामधारी विद्वानो ने क्या -क्या कहा?मुझे भी जाना था लेकिन सुरक्षित कमरो मे बेसिरपैर की बक़वास सुनकर सिर्फ़ खून ही खौलता है,इस्लिये आज वंहा गया भी नही।सारे विद्वान अपने अपने विचार उंडेल कर शाम को और सुबह के हवाई जहाज से अपने शहर के लिये उड़ गये होंगे। अगले सेमिनार के लिये कुछ नये पाईंटस भी उन्हे यंहा मिल गय होंगे।उन्हे तो शहीद जवानो के घर ले जाना चाहिये।अंतिम यात्रा पर रवाना होने वाले जवानो का करूण क्रंदन उन्हे सुनाना चाहिये तब शायद वे अपना पक्ष ईमानदारी से रख सकें।पता नही सड़ी सड़ी बात पर मानवाधिकार के हनन का हल्ला मचाने वाले कंहा सो रहे हैं।शायद उनकी नींद किसी अल्पसख्यक या कश्मीर या फ़िर किसी पेज थ्री के प्रोटोकाल को मेंटेन कर रही है।बहुत रात हो रही है।लिखने को बहुत कुछ है।फ़िर कभी ,क्योंकि ये सिलसिला तो लगता है थमने वाला है नहीए प्रभू ण शहीदो को अपनी शरण मे लेना।उनके परिवार को इस असीम दुखः को सहने की शक्ति देना!
13 comments:
लगता है अब हमारी नियति बन चुकी है कि हम रोज चुपचाप शहीदों को श्रद्धांजली दें और अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लें?
उन जवानों को नमन.
रामराम.
शहीदों के प्रति नमित होने का मौका सा प्रदान करते नजर आते हैं ये.
रोज रोज ऐसी घटनाएं .. फिर भी सरकार के कानों में जू तक नहीं रेंगती !!
जो सिर्फ बहस करते हैं वे सिर्फ बहस करते हैं। पर इस लड़ाई को जनता की लड़ाई क्यों नहीं बनाया जा रहा है? या बन नहीं पा रही है?
सड़क के बीचोंबीच गहरी-चौड़ी खाई है
,
जिसके दोनों ओर रहते हैं सपने देखनेवाले।
कुछ लोग इसलिए देखते हैं सपने -
कि उन्हें इसकी कीमत मिलती है
,
कुछ लोग इसलिए देखते हैं सपने
-
क्योंकि उन्होंने इसकी कीमत चुकाई है।
लाल झण्डा पहले ही खून से लाल था, अब पता नहीं और कितना "लाल" होगा…। &*^&%&^$*
राजधानी तो होती ही है केवल बहस करने के लिए और पुलिस होती है जान देने के लिए और ह्यूमन राइट होता है फ़ेक एन्काउंटर चिल्लाने के लिए और परेशानी होती है आम जनता को...इसे ही तो डेमोक्रेसी कहते हैं:)
हमारे आक्रोश को आपने सटीक शब्द दिए, आभार
… और क्या कहूँ?
प्रभू ण शहीदो को अपनी शरण मे लेना।उनके परिवार को इस असीम दुखः को सहने की शक्ति देना.........आमीन ............ हमारी भी यही दुआ है ............
नक्सलवाद बहस का कम कार्रवाई का विषय ज्यादा है!
कब होगी वह? :(
भाई ,
अगर ये 'विद्वान' लोग कुछ दिन भी बस्तर के किसी गांव में रह जायें तो दाल भात इस नाचीज की तरफ से फ्री !
बात यह है कि कोई नेता, कोई धर्मनिरपेक्षी, कोई बड़ा इनका शिकार नहीं बनता.
देश का क्या होगा....?
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