Thursday, July 30, 2009

कैसे चल रहा है काम-धंदा?चल रही दाल्…सारी अचार रोटी!

कल पुराने पडोसी पप्पी भैया घर आये।बातचीत मे उनसे पूछा कैसा चल रहा है गैरेज तो उन्होने कहा कि चल रही है दाल-रोटी।बस इसके बाद जो इस मुहावरे पर मैने उनकी खिंचाई की तो उन्होने हार के कहा ठीक है चल रही है अचार रोटी अब तो खुश!
पप्पी भैया और हम सालो अडोस-पडोस मे रहे।उस समय पूरे इलाके मे एक ही कार हुआ करती थी स्टैंडर्ड,जो उनके घर मे थी।ट्रांसपोर्ट का काम था।बस और ट्र्के भी थी। हम लोग बहुत छोटे थे उनके पापाजी अचानक चल बसे।फ़िर तरक्की की गाड़ी रूक गई लेकिन सम्पत्ती काफ़ी छोड़ गय्र थे इसलिये सघर्ष नही करना पड़ा।पप्पी भैया से मै काफ़ी छोटा था और उनका पिछलग्गू भी।उनकी कुशल ट्रेनिंग मे मैने सायकिल चलाना सिखा और पतंग उड़ाने से लेकर भौरा यानी लट्टू चलाना भी।अचानक हम लोगो को दूसरे घर शिफ़्ट होना पड़ा और कुछ समय बाद उन्होने भी घर छोड़ दिया।

घर भले ही दूर-दूर हो गये थे मगर रिश्तों मे दुरी नही आई थी।कल भी उसी रिश्ते के आधार पर घर आये और बोले यार तू अपने भतीजे का एडमिशन करवा ले वो मेरी जान खा रहा है।मैकेनिकल ब्रांच चाहिये और कालेज जो चाहे लेकिन पैसा कम लगना चाहिये।मैने हमेशा की तरह उन्हे छेड़ा क्या पप्पी भैया जब देखो रोते रहते हो।निकालो माल सब दबा कर बैठे हो,क्या ऊपर लेकर जाओगे।भैया का रिकार्ड कई साल से एक ही जगह अटका हुआ है और एक ही डायलाग रिपीट करता है।तेरे को हरा-हरा सूझ रहा है।मेरी हालत बहुत खराब है।मै समझ गया कि फ़िर सुई अटक गई है।मैने सब्जेक्ट बदला और पुछा गैरेज कैसा चल रहा है।सुदामा टोन पकड चुके पप्पी भैया ने आवाज़ को और ए के हंगल स्टाईल मे डाऊन किया बुरा हाल है।बड़ी मुश्किल से दाल रोटी चल रही है।

मैने पुछा रोज़ दाल रोटी खा रहे हो ना।वेबोले हां ।मैने कहा फ़िर कंहा से बुरा हाल है।उन्होने कहा तेरा दिमाग खराब हो गया है दाल का हाल से क्या लेना देना।मैने कहा है पप्पी भैया जिसकी हालत खराब हो वो रोज़ दाल खा ही नही सकता। अब तक़ उनकी समझ मे आ गया था कि दाल के भाव को लेकर ये घसीट रहा है।उन्होने कहा देख हमारे ज़माने तो ये ही मुहावरा था इस्लिये इस्तेमाल कर लिया अब अगर तुम लोगो ने कोई नया बनाया हो तो बताओ।मैने कहा दिल्ली सरकार को दाल सस्ती करके बेचना पड रहा है।दाल 80 रूपये किलो हो गई है और आप रोज़ दाल खा के कैसे गरीब हो सकते हो ये बताओ?वो बोले तू सही बोल रहा है।अब मै घर पर चाहे जो खाऊं मुझे बोलना क्या है ये तू ही बता दे।मैने कहा सब्जी-रोटी बोला करो।भैया बोले कभी गया है बज़ार?कभी खरीदी है सब्ज़ी?पता भी है दाल-आटे का भाव?मैने कहा देखा आ गये ना लाईन पर्।दाल सिर्फ़ हमारे ज़माने मे नही आपके ज़माने मे भी दुर्लभ चीज थी।उसका भाव हर किसी को नही मालूम था।जबरन हमारे ज़माने को कोस रहे है लोग्।वे बोले मेरा दिमाग मत खराब कर।सब्जी-रोटी भी नही अब कोई पूछेगा तो बताऊंगा चल रही है अचार-रोटी!बस अब खुश!वो सब छोड़ आज अपने भतीजे का एड़मिशन कन्फ़र्म करवा लेना।मै सीरियसली बोल रहा हूं हालत बहुत खराब है बड़ी मुश्किल से दाल नही नही अचार रोटी चल रही है!

20 comments:

Unknown said...

"सुदामा टोन" और "एके हंगल"… हँसते-हँसते मजा आ गया भाऊ… दाल के भाव का गम भुला दिया इन दो शब्दों ने… :)

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

सही कहा आपने. जो दाल खा पा रहा है वो गरीब नहीं हो सकता.

डॉ. मनोज मिश्र said...

सही कह रहें है सर जी.

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत लाजवाब लिखा जी.

रामराम.

अनिल कान्त said...

हाँ अब तो आचार रोटी ही बोलना पड़ेगा :)

डॉ महेश सिन्हा said...

इसका नया क्या होगा " दाल रोटी खाओ प्रभु के गुण गाओ " :)

Gyan Dutt Pandey said...

अब आपने बता दिया कि अचार सस्ता है! अचार ट्राई कर देखते हैं!

निर्मला कपिला said...

बिलकुल सटीक सही व्यंग आभार्

P.N. Subramanian said...

पप्पी भैय्या ने सही कहा. बड़ी मुश्किल है. दाल चावल भी नहीं बोल सकते. दाल ८० रुपये है तो १८ रुपये वाला दुबराज आज ३५ रुपये है. घांस फूंस ही खाना पड़ेगा.

डॉ .अनुराग said...

सही ठेला है इस बार

Anonymous said...

सटीक व्यंग्य

अनूप शुक्ल said...

दाल रोटी को बाईपास करके प्रभु के गुन गाना चाहिये। लक्ष्य तो वही है न!

Smart Indian said...

सत्तू-पानी कैसा रहेगा? या फिर हवा-पानी?

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

भैया, दाल-रोटी के दिन लद गए ... अब तो मिर्ची-रोटी मिली तो गनीमत समझो:)

Science Bloggers Association said...

Dukhti rag par haath rakh diya.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

नीरज मुसाफ़िर said...

ham to ji achar bhi nahin kha rahe.
namak kee roti or dahi ka raayta. waah waah!! kya maja aata hai/

दिगम्बर नासवा said...

सही कहा आज के हालत के अनुसार मुहावरे में परिवर्तन कर देना चाहिए............

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

अचार रोटी क्या बात है ? वैसे सच है दाल तो दूर हो ही रही है .

Dr. Ravi Srivastava said...

सचमुच में बहुत प्रभावशाली लेखन है... कठोर यथार्थ झलक रहा है...... आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी… बधाई स्वीकारें।
Ravi Srivastava
From- www.meripatrika.co.cc

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

आज न दाल-रोटी का ज़माना है न नून-तेल का...आज तो बस हवा खाने का ही ज़माना रह गया है.