है कोई जो बता सके।ये सवाल हवा-हवाई नही बल्कि हक़ीक़त है।आज भी लोगों को दूसरे ज़िले से गैस सिलेण्डर मंगवाना पडता है।कलेक्टर का इस मामले मासूम सा जवाब है कि ज़ल्द ही कोई उपाय ढूंढ लेंगे। क्या कहा पहेली कठीन है?हिंत दे देता हूं।ये विचित्र किंतु सत्य गरीब लोगों की अमीर धरती का ही है।छत्तीसगढ का एक ज़िला ऐसा भी है जंहा एक भी गैस एजेंसी नही हैं।मुझे भी आज ही पता चला इस कडुवी सच्चाई का।क्या तरक़्क़ी का दावा करेंगे।ज़िला मुख्यालय का ये हाल है तो तहसिलो का आलम क्या होगा।भुक्तभोगियों के अलावा और शायद ही किसी को पता होगा,ऐसा मेरा अनुमान है। हो सकता है मैं गलत साबित हो जाऊ क्योंकी आजकल छत्तीसगढ सुर्खिया काफ़ी बटोर रहा है।चलिये जाने दिजिये मै ही बता देता हूं।वो ज़िला है बस्तर संभाग का नक्सल प्रभावित ज़िला बीजापुर्।ये हाल है । मगर मेरी हिम्मत देखिये मै फ़िर भी कहने से नही चूकूंगा्।
न धनिया न धान,
चुल्हे मे गया जनकल्यांण,
रोज़ मर रहे हैं जवान,
पलायन कर रहा किसान,
नेता हो रहे धनवान,
नशे मे द्युत नौजवान,
फ़िर भी मेरा छत्तीसगढ महान्।
18 comments:
anil ji,
पहली ऐसी पहेली देखी जिसमे उसी पोस्ट में पहेली का हल भी बिना किसी लाग लपेट के बता दिया गया
स्थिति तो वास्तव में हौलनाक है, अपने यहाँ तो होम डिलीवरी की सुविधा होने के बाद भी किल्लत बनी रहती है अगर वहां सिलेंडर ५५० में बिक रहा है तो ये तो और भी आर्श्चय का विषय है लोग ५५० रु. दे कर भी खुश होते होंगे चलो ""सस्ते"" में मिला
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं (देरी के लिए छमायाचना सहित )
वीनस केसरी
यही सचाई है। लगता है राजनेताओं को किसी से कुछ लेना देना नहीं, सिवाय अपनी कुर्सी के।
बहुत बुरा हाल है.......सुना था कि दुर्गम पहाड़ी इलाकों में शायद ये हाल होता है......मगर आपके यहाँ भी ये हाल....चलिए इसी बहाने हम भाई-भाई तो हुए....
साभार
हमसफ़र यादों का.......
जहां दिल्ली मुंबई जैसे शहरों में नल से पानी की तरह रसोई तक पाइप् से गैस दी जा रही है वहीं दूसरी तरफ बीजापुरों मे गैस सिलेंडर भी नहीं देना बस कोताही है...
न धनिया न धान,
चुल्हे मे गया जनकल्यांण,
रोज़ मर रहे हैं जवान,
पलायन कर रहा किसान,
नेता हो रहे धनवान,
नशे मे द्युत नौजवान,
फ़िर भी मेरा छत्तीसगढ महान्।
--कितने हिम्मती हैं आपको. आपको सलाम!!
अनिलजी बिल्कुल सही कहा
"न धनिया न धान..."
पर ये बातें राजनेताओं के किसी मतलब की नहीं हैं अगर इसमें उनके हित साधने वाली बात हो तो ही वे लोग इसमें दिलचस्पी लेंगे नहीं तो हम आम जनता तो बस गरियाती ही रहेगी।
किसी भी क्षेत्र के ऐसे एक दो उदाहरण भी हों तो सरकार की व्यवस्था की पोल खोलने के लिए काफी है .. पर लगभग हर क्षेत्र में जगह जगह ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे .. जनता हर तरह का संकट झेलने को विवश हैं !!
क्या कहूँ?
tippani ke liye dhanywad sir.
वाह भाऊ, इसे कहते हैं "चपराक", वैसे तो कविताओं से मैं दूर रहता हूँ लेकिन ये इसलिये समझ में आ गई क्योकि इसमें "आग" है… :) लगे रहो…
बीजापुर में सब के पास सोलर कुकर होंगे? :(
पक गया इन्सान
गलती उन शहीदों की है, जो अपने सर कटाकर सत्ता ऐसे लोगों को सौंप गये. और सही बात तो यह है कि अगर वे जिन्दा रहते तो फिर उनका एन्काउन्टर कर दिया गया होता.
जय हो . मेरा भारत महान
शोचनीय और ताज्जुब
शोचनीय और ताज्जुब
बस्तर संभाग के जिस जिले में गैस एजेंसीज की भरमार है वहां कौन से हालात बहुत अच्छे है ! वहां के कलेक्टरों से बात कीजिये सिमिलर जबाब मिलेंगे !
आप भी क्या गैस एजेंसी की चर्चा लेकर बैठ गये। रायपुर में गोल्फ कोर्स और चितरकोट में रिज़ॉर्ट तो बन रहा है ना। क्याक्या करे अकेली सरकार। आप इस मिडिल क्लास मेंटेलिटी से कब उबरेंगे, वरिष्ठ पत्रकार?
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