मै भौंचक्क था।समझ मे नही आ रहा था कि अभी कुछ सेकेण्ड पहले सब कुछ टनाटन चल्ने की बात कहने वाले मेरे दोस्त को आखिर हो क्या गया है? देश मे फ़ैल रहे नक्सलवाद और आतंकवाद की तरह म्रे चेहरे पर फ़ैल रहे आश्चर्य के भावों को वो ताड़ गया और इससे पहले कि मै कुछ कहता वो बोला कि विश्वास नही आता तो इससे पूछ लो मेरा बचपन का दोस्त है।पहली बार मेरे पास किसी काम से आया है और मै मज़बूरी मे इसका काम नही कर पा रहा हूं।अचानक बीच मे अपना उल्लेख सुन कर मै भी पता नही क्यों खामोश रह गया।मेरे बाल सखा ने अचानक आये अपने दूर के ससुराली रिश्तेदार को चाय पिलाकर नाश्ता कराकर चलता किया और फ़िर मुझसे बोला !बता बे और क्या चल रहा है आजकल!
मै हैरान था!साला स्कूल् से लेकर कालेज तक़ कभी किसी नाटक मे काम नही किया और अब देखो तो हर पल नये कैरेक्टर मे ढल रहा है?वो बोला क्या सोच रहा है बे?मैने कहा कुछ नही!जब मै आया और तुझसे पूछा कि कैसा चल रहा है काम-धाम?तो तू बोला फ़स क्लास।नोट बरस रहे हैं।मां लक्ष्मी की कृपा है। और जैसे ही वो तेरा ससुराली रिश्तेदार आया तेरा हाल खराब कैसे हो गया?मेरे मित्र ने मुझे समझाया कि ये धंदे का उसूल है कि उधार मांगने वाले के सामने इतना रो दो कि वो अपना दुखः दर्द भुल कर बिना कुछ मांगे वापस चला जाये।अगर मै उसके सामने मंदी का रोना नही रोता तो वो मुझे लम्बी टोपी पहना कर चला जाता।इस्लिये उसके टोपी निकालने से पहले ही मैने मंदी का छाता खोल दिया था।मै उसे अच्छे से जानता हूं।ससुराक का रिश्तेदार है उधार दे देता तो वसुली मुश्किल थी।मैने कहा कि हो सकता है मै भी कुछ मांगने आया हूं?वो हंस कर बोला सुना है ना काठ की हण्डी एक बार ही चढती है।अगली बार तुझे भी ये सुनने नही मिलता कि चकाचक चल रहा है बे।नोट बरस रहे हैं।समझा तुझे भी मुकेश की आवाज़ मे जाने कंहा गये वो दिन गाना सुनने मिल जायेगा।और हां एक बात और सुन अगर किसी को बिना वजह रोते देखेगा तो समझ लेना वो तुझे उधार मांगने वाला समझ रहा है।समझा बे?या और समझाऊं।
मै भरपेट नास्श्ता करके अपने बाल सखा के शानदार करोड़ो रुपये की लागत से बने कामप्लेक्स से निकला।मेरे दिमाग मे एक ही खयाल आ रहा था कि किसी का दुखः दर्द दूर करना हो तो उससे बड़े दर्द का किस्सा छेड दो या फ़िर उससे भी तेज आवाज़ मे रोना शुरू कर दो।शायद यही दुनिया का कडुवा सच है।
24 comments:
भाईसाहब इसी को कहते हैं चकाचक चलना।
mazedaar !
सही लिखा है आपने।
मुझे वो गाना याद आ गया अनिल भाई " अजी रूठकर अब कहाँ जाईयेगा ,जहाँ जाईयेगा हमे पाईयेगा .. तो ठीक है हम कहीं नहीं जाते इससे ल्डते है
अजब तेरी दुनिया गजब तेरे खेल
भैया, इधर भी सब चकाचक है.. :)
भैया, इधर भी सब चकाचक है.. :)
भाई, आज की दुनिया इस सिद्धांत पर चल रही है. रोचक किस्सा रहा है आपके दोस्त का अपनी हालात का रोना रोने का.
आपके मित्र का "मंदीनुमा" स्टाईल व्यावहारिक सत्य है।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
अब तो मन्दी से बाहर निकालो प्रभो!
छोड-छाड कर द्वार-घर हम कहाँ जायेंगे।
दोस्ती का जज़्बा सलामत रहे।
मित्रता दिवस पर शुभकामनाएँ।
:)
अगली बार मैं आपसे हँसते खिलखिलाते ही मिलूंगा, ये तो तय है! :)
अब तो मन्दी से बाहर निकालो प्रभो!
छोड कर द्वार-घर हम कहाँ जायेंगे।
दोस्ती का जज़्बा सलामत रहे।
मित्रता दिवस पर शुभकामनाएँ।
रोने वालों का साथ कब कोई देता है...यूं भी
अच्छा लगा...
इस सच का बेनकाब होना कि धंधें की लाभान्विता कैसे हमें असंवेदनशील बना रही हैं...
व्यक्तिगत असुरक्षाएं किस तरह सामुहिकताओं पर असर डाल रही है...
शुक्रिया...आप तक पहुंचाने के लिए..
आजकल दुनिया इन्हीं रंगों से रंगती जा रही है
मैं आपकी बात से पूर्णत: समर्थ हूँ.. मंदी की मार ने सबकी कमर तोड़ दी है...
पर,
कभी आपने सोचा है, कि दूसरे के कष्ट के देख हमारा दुख कम क्यों हो जाता है? क्यों हम अपने को दूसरों के पैमाने से देखते हैं?
यदी हम अपने पैमाने स्वत: बनायें तो ज्याद सुख मिले शायद... मंदी में भी शायद हम.. अपने लक्ष्य को अग्रसर रहें।
अब का फ़ायदा रोने से!!!!
मंदी के दौर में अपनी सेविंग्स को बचाने का ये कामयाब तरीका है:)
यही आजकल का जमाना है.
आह..हा..हा.. अत्यंत... व्यवहारिक ! सांसारिक सम्बन्धों से विरक्त इस भक्त के बारे में क्या कहें ?
.......यदि ये प्रति दिन सवा लाख बार ~~भजकलदारम...भज कलदारम~~ मन्त्र का जाप करें तो इन्हें अखंड अर्थसिद्धि योग की प्राप्ति निश्चित है !
किन्तु ध्यान दें : - किसी अन्य देवी देवता की उपासना से अपार क्लेश की सम्भावना है ! इसके अतिरिक्त किसी भी संसारी शरीर विशेषकर स्त्री पुरुष से किसी भी प्रकार का सम्बन्ध रखने पर प्रबल निर्धनता का योग परिलक्षित होता है अतः निषेध करें !
पुनश्च :- श्री पुसदकर, इस भक्त के बारे में दो वर्ष उपरांत पुनः प्रगति विवरण देने का कष्ट करें !
सही है भाई । आप से मिलते भी डर लगेगा कहीं उधार मांगने वाला ही न समझ लें । पोस्ट बढिया है ।
सच कहा है...कुछ लोग बस rote ही rahte हैं.......... shaayed यही वजह है कोई puraana udhaar n maang ले.........
जो भी काम सरकार करना चाहती है ........... उसकी विश्वसनीयता पर संदेह होता है .....
Sach ke kareeb.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
Post a Comment