Thursday, October 29, 2009

अच्छा हुआ मेरा कोई दोस्त ब्लागर नही है वर्ना…………………………

मैने कल रात ईश्वर को धन्यवाद दिया कि अच्छा है उसने मेरे किसी भी दोस्त को ब्लागर नही बनाया।ईश्वर को धन्यवाद तो मैं रोज़ रात देता हूं मगर इस मामले मे कल ईश्वर पहली बार याद आये।वैसे याद तो बहुत दिनो से आ रहे थे मगर ऐसा लगा नही कि दोस्तों का ब्लागर नही होना कोई खास बात है उल्टे मै एक दो लोगों क पीछे पड़ा हुआ था कि वे लोग भी ब्लाग लिखना शुरु कर दें।पर शुकर है भगवान का मैं अभी तक़ सफ़ल नही हो पाया और ईश्वर ने उनकी सदबुद्धि मे ज़रा भी असर नही डाला।

आप सोच रहे होंगे सरक गया है लगता सुबह-सुबह्।एक तो सुबह-सुबह पहली बार कोई पोस्ट लिख रहा है और लिख भी रहा है तो अनाप-शनाप।लेकिन ऐसा कुछ नही है मैं पूरी ज़िम्मेदारी से कह रहा हूं कि अच्छा हुआ मेरा कोई दोस्त ब्लागर नही है।अब आप कहेंगे कि दोस्त के ब्लागर होने मे क्या तक़लीफ़?तक़्लीफ़ आज तक़ तो पता नही थी लेकिन ये जब से ईलाहाबाद सम्मेलन हुआ है तब से पता चल रहा है और रोज़ उस ज्ञान मे कोई न कोई भाई वृद्धि ही कर रहा है।

हम दोस्तों का भी रोज़ सम्मेलन होता है।कई बार लोकल तो कई बार स्पेशल जिसे आप रिज़नल और कई बार नेशनल भी मान सकते हैं।अब हमारे सम्मेलन मे जो सामने मिलता है उसे मौखिक सूचना दे दी जाती है और फ़िर ये उनकी ज़िम्मेदारी होती है कि वो चाहे जिसको उस मौखिक निमंत्रण को बांटे।अब इसमे किसी को फ़र्स्ट हैण्ड निमंत्रण मिलता है किसी को सेकेण्ड है और किसी किसी को कई लोगो से मुंह से ट्रांसफ़र होता हुआ मिलता है।जिसे जैसे सूचना मिलती है,जो वेन्यू बताया जाता है,वो अपनी सूविधा के आधार पर जैसे हो सकता है और जब संभव होता है पंहुच जाता है।निमंत्रण के टाईप पर कोई शिकायत नही।

फ़िर कोई ज़ल्दी पंहुच जाता है तो कोई बहुत देर से आता है।कभी मेहमान लेट तो कभी मेज़बान लेट,कभी कोई अकेला बोर होता है तो वो खुद मेहमान बनकर लोगो की पोज़िशन लेने लगता है,लेकिन किसी को इस मामले मे कोई प्राब्लम आज तक़ नही आई है।अब कल की ही बात लिजिये एक साथी मणी भाई पटेल को स्वास्थ्य की रूटीन जांच के लेने मुम्बई जाना था।इस मामले मे कुछ दिन पहले ही लम्बा डिस्कशन हुआ फ़िर तारीख तय हो गई और मणी भाई के साथ डाक्टर अजय,राकेश और गोपाल का जाना तय हुआ।सत्येंद्र ने पहले ही व्यस्त रहने की बात बता दी थी और राकेश के भी घर मे अचानक़ कोई काम आ गया सो उसका जाना ऐन टाईम पर कैंसिल हो गया मगर मणी भाई अकेले नही गई उनके साथ उनके परिवार का कोई नही गया सिवाय दोस्तों के,क्योंकि दोस्त भी परिवार का सदस्य होता है और उनके परिवार वाले इस बात पर भरोसा भी करते हैं।वैसे भी मुम्बई मे उनके हार्ट के आपरेशन के दौरान भी डाक्टर और गोपाल मौज़ूद थे।किसी ने और खुद मणी भाई ने भी राकेश के कैंसिलेशन का बुरा नही माना,डाक्टर और गोपाल के साथ जाने का आभार नही माना,किसी से साथ चलने के लिये कहा भी नही था ,बस इतना कहा था कि मुम्बई जाना है एक सम्मेलन वंहा होना चाहिये।मुम्बई मे भी डाक्टर राजेश ने पूरी तैयारी कर रखी थी।उसे भी फ़ोन पर आने की सूचना अजय ने दी मणी भाई ने नही।डाक्टर राजेश मुम्बई का बडा डाक्टर है उसने भी बुरा नही माना और वो भी मुम्बई सम्मेलन का हिस्सा रहेगा और वो जब यंहा आता है तो हमारा लोकल सम्मेलन भी बढकर रिज़नल हो जाता है।उसके आने पर भी कोई निमंत्रण नही बंटते,बस सूचना दे दी जाती है,जिसे मिलना होता है वो पंहुच जाता है।

कहने का मतलब ये कि अभी तक़ सारे दोस्तो का सत्संग मज़े से हो रहा है और रोज़ हो रहा है।कभी कोई नही आता तो कभी कोई।मगर ग्रुप मे से कुछ दोस्त रोज़ मिलते हैं।उसके बाद सत्संग मे भी जिसे जो पसंद वही पीता है-खाता है।मणी भाई की बीयर ठंड मे भी नही बदलती तो डाक्टर अजय,राकेश,लक्ष्मण और मैं वोदका से टस से मस नही होते।गोपाल,राजकुमार,संतोष,सत्येंद्र,प्रभुदीन और बहुत सारे है जिनको विस्की के अलावा कुछ नही चलता।गोपाल ब्राह्मण नही है लेकिन शुद्ध शाकाहारी है तो मै और लक्ष्मण सेमी शाकाहारी।मै ठंड मे कभी-कभार अंडा खा लेता हूं और लक्ष्मण को उससे परहेज नही है।सत्येंद्र,राकेश और संतोष ब्राह्मण है मगर बिना मांस के मदिरा उनके मैनिफ़ेस्टो मे नही है।डाक्टर और मणी भाई को फ़िश होना तो राजकुमार को फ़िश और मटन दोनो लेकिन उसे चिकन नही चाहिये और एक प्रशासनिक अफ़सर को सिर्फ़ चिकन चाहिए और कुछ नही।संडे दोपहर खुद चिकन बना कर बैठ जाता है जिस्को आना है आओ जिस्को नही आना मत आओ।किसी को कांग्रेस पसंद है तो किसी को भाजपा।कोई घोर हिंदूवादी है तो कोई सर्वधर्म समभाव वाला।संतोष को मुर्गा-मटन और शराब से लेकर सब कुछ चलता लेकिन वो बापू का दीवाना है और उनके खिलाफ़ कुछ नही सुन सकता,राजकुमार और दो तीन लोगो को लगता है बंटावारे के समय उन्होने सख्ती नही दिखाई वरना सूरत कुछ और होती।लेकिन कोई किसी के सामने अपनी बिना टांग वाली मुर्गी नही नचाता।कुछ लोग न्यूट्रल हैं,सबकी सुनते हैं।बहस रोज़ होती है किसी न किसी मामले मे लेकिन बेतुकी नही।

अरे ये तो लम्बा पेले जा रहा हूं मै।बात कंहा से निकली और कंहा पंहुच गई।कहने का मतलब ये था कि अगर मेरे सारे दोस्त या हमारा पूरा ग्रुप ब्लागर होता तो क्या हमारा रोज़ सम्मेलन हो पाता?कल तीन लोग मुम्बई मे थे वंहा से किसी ने फ़ोन करके नही बताया जांच मे क्या हुआ?आपको गरज़ है तो फ़ोन लगाईये।वैसे रोज़ डाक्टर मुझे फ़ोन लगाता है लेकिन कल मैने उसे फ़ोन लगाया।तो क्या मैं छोटा हो गया?क्या डाक्टर बड़ा हो गया?मै मुम्बई नही गया तो क्या मेरा प्यार कम हो गया?कुछ दिनो से मेरी लक्ष्मण से अनबन चल रही थी और ग्रुप का सहदेव यानी सबसे छोटा सदस्य है,मेरा पार्टनर भी।तीनो के बाहर होने पर उसको मैने अपने स्वभाव के विपरीत फ़ोन लगाया, तो क्या मैं छोटा हो गया?वो कल रात एक दूसरे साथी के साथ कार मे घूमते हुये बीयर पी रहा था।वो उसे निपटा कर मेरे पास पंहुचा और बिना किसी लाग लपेट के बोला चलो भैया आज कार मे ही बीयर पी लेते हैं?मै भी तैयार हो गया,तो क्या मै छोटा हो गया?पीने के बाद जब लौट रहे थे तो राजकुमार का फ़ोन आ गया।हम लोगो ने कहा कि हम लोगों का हो गया है तो वो बोला आ ना भाई आज यंहा कोई नही बाकि लोग भी मुम्बई है।हम लोग आधे रास्ते से लौट कर उसके साथ बैठे?तो क्या हम लोग छोटे हो गये?कहने का मतलब ये है कि आप निमंत्रण का टाईप मत देखिये उसमे छिपा प्यार देखिये।आप मेज़बान की सेवा मत देखिये उसमे छीपा प्यार देखिये?आप किसी भी सम्मेलन या समारोह मे व्यवस्था मत देखिये उसका उद्देश्य देखिये?कौन आ रहा है कौन नही इस पर मत जाईये,आप जा रहे है या नही ये देखिये?किसे दाल-रोटी मिल किसे हलवा-पुरी ये देखने की बजाये आपको अगर कोई प्यार से अचार रोटी भी खिला रहा है तो उसके साथ चुपड़ा हुआ प्यार ही देखिये बस और कुछ नही।शायद ब्लागर मीट मे ठिक इससे उल्टा हुआ और हमारे सम्मेलन मे ऐसा नही होता इसलिये हमारा सम्मेलन बराबर ज़ारी है।ऐसा भी नही कि कोई किसी से कमज़ोर है,सब एक से बढ कर एक हैं।कोई डाक्टर है तो कोई इंजिनीयर है,कोई बिल्डर है तो कोई नेता है,कोई अफ़सर है तो कोई पत्रकार है,कोई पुलिस वाला हे तो कोई ठेकेदार है।कहने का मतलब सभी अलग-अलग खोपड़ी के है मगर सबमे कामन एक ही बात है सब सिर्फ़ और सिर्फ़ प्यार देखते है उसके अलावा कुछ नही।इसिलिये मैने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि अच्छा हुआ मेर कोई दोस्त ब्लागर नही है वर्ना………………………

31 comments:

रवि रतलामी said...

दरअसल, कुछ लोग अपनी संकुचित सोच से ऊपर उठ ही नहीं पाते. समस्या तब होती है.
ऐसे संकुचित सोच वालों का जमावड़ा अभी हिन्दी चिट्ठाकारी में जरा ज्यादा इसलिए दिख रहा है कि वे ज्यादा हो हल्ला मचा रहे हैं. और इसीलिए नेगेटिव प्रोपोगंडा ज्यादा हो रहा है. भले लोग कन्नी काट रहे हैं, जो एक तरह से वाजिब भी प्रतीत होता है.

धैर्य रखें, चिल्ल-पों मचाने वालों की दुनिया साबुन के बुलबुले की तरह होती है.

अपने मित्रों को सार्थक ब्लॉगिंग करने के लिए दिली निमंत्रण दें. वे आएंगे, सार्थक सामग्री से नेट को समृद्ध करेंगे तो आपको भी - यकीन मानिए, बहुत सुकून मिलेगा.

Ashish Shrivastava said...

अनिल जी,
काश लोग इन बातो का मर्म समझे ! बहस हो लेकिन छीछालेदारी नही !

Khushdeep Sehgal said...

अनिल भाई,
आपकी पोस्ट से एक बात तो साफ हुई आप यारों के यार हैं...

दूसरी बात निमंत्रण या बुलावे की जहां प्यार हो या हक समझा जाता हो वहां ये औपचारिकताएं नहीं चलतीं...

खुद को कलफ लगा कर कड़क कर लेना या हर बात को मूंछ का सवाल बना लेना अंतत खुद को ही दुखी करता है...

फरीदाबाद में ब्लॉगर मीट हुई थी...मैं तब ब्लॉगिंग में रंगरूट की तरह नया नया ही था...अविनाश जी की पोस्ट से स्नहे भरा निमंत्रण सभी ब्लॉगर के लिए था...बस ठान लिया कि कितनी भी व्यस्तता क्यों न हो फरीदाबाद जाना ही जाना है...वाहन के नाम प अपने पास तो 91 मॉडल चेतक महाराज (राणा प्रताप का नहीं, बजाज का) ही है...उस पर इतनी दूर जाया नहीं जा सकता था...इसलिए बस पर ही लद लिया...गया... वहां से आकर त्वरित रिपोर्टिंग भी की...लेकिन सब अपनी खुशी के लिए...इसमें नाक ऊंची या नीची होने का सवाल ही कहां आता है...

जय हिंद...

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

अनील भैया-प्यार बांटते चलो-यार बांटते चलो
यही तो जिन्दगी है,ये फ़लसफ़ा ही सही है, लेकिन कभी-कभी तो कोई बात किसी को खटक ही जाती है।
इसलिए भीड़न्त भी हो जाती है।

दिनेशराय द्विवेदी said...

अनिल भाई! बहुत प्यार है आप में। बस इस प्यार को जीवित रखें। हर हालत के लिए। इस दुनिया में सब कुछ न हो और प्यार हो तो चल जाएगी। लेकिन सब कुछ हो और प्यार न हो तो एक दिन नहीं चलेगी।
प्यार तो इलाहाबाद में भी बहुत था। बहुत नजर भी आया। लेकिन थोड़ी थोड़ी अहमन्यता जो बंटी सब में उस ने गुड़ गोबर कर दिया। अनिल भाई जो यह अहमन्यता थोड़ी थोड़ी चिपका रखी है सब ने इस से जल्दी छुटकारा पा लें लोग।

Unknown said...

जोरदार पोस्ट है अनिल भाई!

पर नो कमेन्ट्स।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

खोदा पहाड़ निकली चुहिया... हा-हा-हा अनिल जी, बस इतनी सी बात के लिए आप भगवान् से यह दुआ मांग रहे थे कि मेरा कोई दोस्त भी अगर ब्लोगर हो गया तो इधर उदार पार्टियों में मिलने के लिए वक्त नहीं निकाल पायेगा! मै तो इसके विपरीत कहूंगा कि भगवन करे मेरे सरे दोस्त ब्लोग्गर बन जाए ताकि वक्त वे वक्त मेरी जेब ढीली करने ना पहुचे !

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया आलेख लिखा आपने .. मैं तो यही मानती हूं कि .. किसी भी आधार पर एक परिवार या एक समाज का गठन किया जाए .. इसमें विचारों की जितनी ही अधिक विभिन्‍नता होगी .. उतना ही प्रगतिशील परिवार या समाज तैयार होगा .. सबों का एक दूसरे की विचारधारा पर तर्कसम्‍मत विरोध करना बिल्‍कुल गलत नहीं .. पर गाली गलौज कर माहौल खराब करना या संबंध खराब करना तो एकदम से अनुचित है !!

श्रीकांत पाराशर said...

anilji, jo kuchh bhi hua ho parantu agar aap aisa kahenge to hamare jaise logon ko lagega ki aap hamein abhi dost nahi samjhte. jo dost blog ke madhyam se bane kya unhen mitra ki shreni mein nahin rakhenge aap ?

Anil Pusadkar said...

ऐसा नही है कि हम लोग नाराज़ नही होते।हमारे पूरे ग्रूप मे सबसे खसकी मुझे माना जाता है और मै हूं भी,लेकिन मै जिससे नाराज़गी हो उसको तत्काल विरोध जता कर वंही खत्म कर लेता हूं।यंहा भी एक राष्ट्रीय संगोष्ठी जैसा कुछ हुआ था जिसकी सूचना मुझे पाब्ला जी से मिली और उसमे रवी जी के आने का पता चला।आयोजक जिनसे मेरी आये दिन बात होती थी उनका एक फ़ोन भी नही आया।मैने अपनी नाराज़गी ज़ाहिर ज़रूर कि और अपने शहर मे हुये आयोजन मे बिना आयोजक की सूचना के दूसरे शहर के ब्लागर के निमंत्रण पर वंहा पहुंचा।जिस बात को लेकर बहुत से ब्लाग पर ईलाहाबाद मीट छाई हुई है उससे कई गुना ज्यादा लिखने लायक मसाला था यंहा।गुस्से के मामले मे तो अपना रिकार्ड बहुत खराब है मगर सब कुछ अपने घर का मामला है सोच कर खामोश ही रहे।मै यंहा तारीफ़ करूंगा रवि रतलामी भैया की जो उस आयोजन मे एक इवेण्ट के मुख्य अतिथी थे और उन्हे कैसा सत्कार मिला ये उन्होने किसी को नही बताया।मैने नाराज़गी के साथ उन्हे अपने साथ चलने के लिये कहा और मजाल कि जितने वंहा पंहुचे थे,चाहे वो पाब्ला जी हो राजकुमार ग्वालानी हो या कोई और हो,किसी ने घर के मतभेद या मनभेद सार्वजनिक नही किये,होता है घर के मंगल कार्यो मे भी ज़रूरी नही कि हर कोई संतुष्ट हो।बस इस्लिये लिख दिया किसी को खराब बताना या खुद को अच्छा साबित करना उद्देश्य नही था,उद्देश्य था बस कि आपस मे प्यार होना चाहिये।हां एक बात लिखना शायद भूल गया था वो अब लिख रहा हूं भगवान का लाख-लाख शुक्र है कि मेरे दोस्त ब्लागर नही है मगर उससे ज्यादा खुशी की बात ये भी है कि बहुत से ब्लागर मेरे दोस्त बने हैं और ये सिलसिला ज़ारी है।मै किसी का नाम लेकर फ़िर प्यार को कम ज्यादा साबित करने के लफ़ड़ें मे फ़सना नही चाहता,चाहता हू बस प्यार का सिल्सिला चलता रहे।

Unknown said...

अच्छा? ये मुद्दा अभी तक चल ही रहा है क्या? हम तो इसे भूलकर आगे भी बढ़ चुके, एक पोस्ट भी लिख चुके इस विवाद के बाद… आप काहे इसमें अटके हुए हैं…। सेल्फ़ डिस्क्लेमर भी दे चुके, कि कृपया भविष्य में किसी भी ब्लागर सम्मेलन के लिये हमारे नाम पर विचार न किया जाये… बल्कि अगले ब्लागर सम्मेलन का उदघाटन राखी सावन्त, या अजय जडेजा से भी करवा दिया जाये तो हमें कोई आपत्ति नहीं होगी, न उस पर कोई पोस्ट लिखेंगे… बात खत्म…

गौतम राजऋषि said...

सही कहा अनिल जी...यहां ब्लौग में हम सबको आदत हो गयी है व्यर्थ के विवाद में पड़ने की।

डॉ महेश सिन्हा said...

चलती रहे जिन्दगी , चलना ही जिन्दगी है . तुम्हे ब्लॉग जगत में लाकर छोटू कहाँ छुपे हैं :)

Unknown said...

वाह !
आनन्द आ गया,,,,,,,,,,,,,,,

आलेख की धार ..असरदार है..........

अभिनन्दन आपका !

वैसे आपके दोस्ती वाले अज़ीम जज्बे को तो सभी सलाम करते हैं अनिलजी, लेकिन अब सभी तो आप जैसे घुटे घुटाये दोस्तीकार नहीं होते न ? ( अरे ये दोस्तीकार शब्द भी नया पैदा हो गया ) इसलिए "तुलसी इस संसार में भांति भांति के लोग, सबसे हिल मिल चालिए नदी नाव संयोग" ......

मज़ा आया ...अच्छा आलेख !

संजय बेंगाणी said...

कहा सुनी माफ हो अब. प्रेम है इसलिए कह जाते हैं लोग.

राज भाटिय़ा said...

अनिल जी मै बस इतना ही कहुंगा कि जिस दिन हमारी समझ मै यह सब बाते आ गई उस दिन सारे झगडे ही खत्म हो जायेगे.... लेकिन यह दिन कब आयेगा.... पता नही, आप ने बहुत सुंदर बात लिखी, उस के लिये धन्यवाद

PD said...

क्या भैया, हमको रायपुर बुला लिये और हमारे आने से पहले ही बिलोगिंग-बिलोगिंग खेलने लगे? हमको भी आने दिया जाये फिर साथ बैठकर खेलेंगे.. :)

अनिल कान्त said...

आपने सही लिखा
प्यार अगर शामिल हो तो फिर किसी अन्य चीज़ की जरूरत ही नहीं पड़ती. कुछ परेशानियों पर अच्छी पोस्ट

प्रमोद ताम्बट said...

जब ऐसे ऐसे बढ़िया दोस्त एकदम आस-पास है तो फिर ब्लॉगरों से दोस्ती की जरूरत क्या है जनाब ?

प्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in

महेन्द्र मिश्र said...

भाई मै आपकी इस बात से सहमत हूँ ... बस प्यार बांटते चलो .....

मनोज कुमार said...

अच्छा है उसने मेरे किसी भी दोस्त को ब्लागर नही बनाया ... ऊपर जो 110 लोगों के फोटो दिख रहे हैं वे क्या दोस्त नहीं हैं ?

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

अरे भैया, इलाहाबाद में भी प्यार ही प्यार था। बीवेयर आफ़ रूमर मांगर:) जिसे जो देखना है, वही देख रहा है॥

शरद कोकास said...

प्रतिदिन होनेवाला आपका यह मित्र सम्मेलन तो हमने भी एक दिन अटेंड किया है और उसमे आपके मित्रो के साथ कुछ ब्लॉगर भी थे मज़ाल है उसमे किसी ने ब्लॉगिंग की बात की हो सभी को आपकी और आपके मित्रों की प्यार भरी बातों मे मज़ा आ रहा था ..यकीन न हो तो अलबेला भाई,पाबला जी और ललित शर्मा से पूछ लीजिय । इन सभी मित्रों को हमारा नमस्कार कहिये ।

परमजीत सिहँ बाली said...

हम तो ब्लोगर मीट की रिपोर्ट पढ़ कर ही खुश हो लेते हैं।.....आपने बहुत बढिया पोस्ट लिखी आभार।

दीपक 'मशाल' said...

Ek aur sashakt dhamakedar, chuteeli post ke liye shukriya bhai saab.

Jai Hind

Udan Tashtari said...

अरे भाई जी, इतना विचलित न हों. और मित्रों को लाना जारी रखे...निमंत्रित करें. अभी तो और ज्यादा अवश्यक्ता है.

विवेक रस्तोगी said...

अनिलभाई,
दमदार पोस्ट, और पीड़ा भी झलक रही है, परंतु परिवार को बड़े के बड़प्पन और बेवकूफ़ी में अन्तर करना सीखना चाहिये जो चीज बड़ा बड़प्पन में छोड़ देता है सब उसको बेवकूफ़ी समझते हैं और जब तक यह बड़प्पन की बात परिवार को समझ में आती है तब तक संबंधों में आँच आ चुकी होती है या फ़िर बड़ा फ़िर बड़प्पन दिखा देता है और परिवार फ़िर वही कहानी शुरु कर देता है यह तो प्रकृति का नियम है।

चलो हम भी खुशी मना लेते हैं कि हमारा भी कोई दोस्त ब्लॉगर न हुआ पर यहाँ ब्लॉगर्स के बीच में ऐसा ही लगता है कि हम एक परिवार की तरह हैं, तो यह सब तो चलता ही रहेगा।

ताऊ रामपुरिया said...

जाकी रही भावना जैसी की तर्ज पर जिसने चढाया चश्मा जैसा.

रामराम.

अनूप शुक्ल said...

अच्छा हुआ मेरा कोई दोस्त ब्लागर नही है वर्ना…………………………
वर्ना का कल्लेते?

सारी गलती तुम्हारी है। सब किया धरा तुम्हारा है। जहां कोई ब्लागर दिखा नहीं फ़ौरन उसे भाई साहब बना लिया, अनुजवत मान लिया। ये मान लिया वो मान लिया। सब ब्लागर को मिटाकर तो पारिवारिक संबंध बनाते रहते हो। फ़िर कहां से बचेंगे ब्लागर दोस्त!

मौज करो। मस्त रहो। जो हैं बहुत खूबसूरत हैं। झकास!

योगेन्द्र मौदगिल said...

ये ठीक काम किया दादा... इस पोस्ट की जरूरत थी..

Gyan Dutt Pandey said...

ब्लॉगरी में लोग छद्म इण्टेलेक्चुअल बनते हैं। छद्म बुद्धिजीवी शब्दों से खिलवाड़ करता है। सच्ची दोस्ती नहीं निभाता! :-)