Monday, November 2, 2009

सरदार पटेल बड़े या वायएसआर रेड्डी ?

एक माईक्रोपोस्ट।एक खबर दिमाग बहुत खराब कर रही है।ऐसा लग रहा है जितनी भी गंदी-गंदी गालियां जानता हू सबकी सब एक सांस मे इस सड़े हुये सिस्टम और देश के ठेकेदारों पर न्योछावर कर दूं।कमीनेपन की हद हो गई है।एक तरफ़ हम उनको लौह पुरूष कहते हैं,सरदार कहते हैं और उनकी समाधी के लिये इस देश मे जगह नही है।वो सरदार पटेल जो हमे अंग्रेज़ शासको की लात खाने से बचाने के लिये लड़ते रहे और आज़ादी के बाद भी अंग्रेज़ टाईप के राजा-महाराजाओं से निपटते रहे,उनके लिये ज़मीन नही है।जिन्होने राजघरानों के कब्ज़ो से 32 लाख वर्ग किलोमीटर ज़मीन निकाल कर देश को दी थी उनके लिये कुछ एकड़ ज़मीन भी नही है।और अभी कुछ दिनो पहले एक खबर पड़ी थी कि हेलिकाप्टर दुर्घटना का शिकार हुये वायएसआर रेड्डी की भव्य और विशाल समाधी बनायेगी आंध्र सरकार।उस समाधी के लिये पर्यावरण की ऐसी-तैसी करते हुये पूरी पहाड़ी को ही सुरक्षित कर लिया गया है।उस पर कितना खर्च होगा और वायएसआर का इस देश की और खुद के खानदान की तरक्की मे क्या योगदान है वो सुरेश चिपलुणकर डिटेल मे लिख चुके हैं।मुझे लिंक देना नही आता इसलिये क्षमा चाहता हूं और सुरेश से अनुरोध करता हूं कि वे उस पोस्ट को फ़िर से प्रकाशित करे सरदार पटेल की समाधी के लिये ज़मीन नही मिलने की खबर को लेकर।गुस्सा तो बहुत है और कहने के लिये भी बहुत कुछ है मगर गुस्से मे कंही कुछ गड़बड़ न हो जाये इसलिये सिर्फ़ ये सवाल करुंगा कि बताईये सरदार पटेल बड़े या वायएसआर रेड्डी।

20 comments:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

Aadarniya Anil bhaiya,

System ko aisa partial dekh kar mujhe bhi gussa aa raha hai....

aapke sawaal ka jawaab yahi hai....SARDAR PATEL jaisa mahaan vyaktitva YSR ka nahi tha naa hi hai...

Unknown said...

सरदार पटेल के विचार गांधी-नेहरू के विचारों से नहीं मिलते थे। स्वतंत्रता प्राप्ति तथा देश विभाजन के बाद जब पाकिस्तान ने काश्मीर पर आक्रमण कर दिया था तो उन्होंने पाकिस्तान को 65 करोड़ रुपये देने में भी अड़ंगा लगाया था जो कि गांधी जी के मुस्लिम तथा पाकिस्तान तुष्टिकरण वाले विचारों के विरुद्ध था। अब ऐसे व्यक्ति के लिये भला जगह कैसे नसीब हो सकती है?

Unknown said...

sardaar vallabh bhai patel

agar gaandhi parivaar se hote toh

aapko ye post nahin likhni padti....

aur apke is sawaal par main apna jawaab likhne jaa rahaa hoon apne blog par...kyonki tippani ko zyaadaa lambaayaa nahin ja saktaa bhai ji..

aapki desh bhakti ko naman kartaa hoon

abhi gaman kartaa hoon

अजय कुमार झा said...

आदरनीय अनिल जी
इससे पहले कि कंफ़्यूजन और बढ जाए ..मैं ये टीप भेज रहा हूं..जो ,मैंने अपनी पोस्ट पर दी है....सब गडबड हो रही है ..कंफ़्यूजन के चक्कर मे...
लिजीये इसे कहते हैं कंफ़्यूजन पे कंफ़्यूजन ..
अनिल भाई ..अब इस बात का पटाक्षेप करते हुए मैं सबको फ़िर से बता देता हूं..
कल अनिल भाई को मेरी किसी टिप्प्णी अच्छी नहीं लगा ..नहीं ये तो नहीं कह सकता ..बल्कि ये कहूं कि शायद मैं ही ठीक से अपनी टीप नहीं रख पाया ..और उसका अर्थ का अनर्थ निकल गया..अनिल भाई ने उसके बाद मुझे संबोधित करके उसको स्पष्ट करना चाहा..
मैंने भी अपनी बात रखी..मोडरेशन चालू था..सो मेरी टीप थोडी देर के लिये सो गयी...अब मुझे जब तक सारी बात पता चलती ..तब तक ..मैं दुखी होकर ये पोस्ट लगा चुका था ...अब उन्हें लग रहा है कि शायद मैंने वही बात यहां आगे बढा दी है..अनिल भाई..ये पोस्ट तो रात में ही लग चुकी थी..
आप अग्रज हैं और रहेंगे...और हां मैं तो टीपता ही रहूंगा ही...आप मना करेंगे तो भी...इतना तो हक आपने दिया ही है मुझे ..लगता है अब मुझे भी फ़ोन करन ही पडेगा..

November 2, 2009 12:46 PM

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

क्या बताएं भाई जी,
आपने भी पढी होगी यह खबर कि अहमदाबाद में सरदार पटेल की जयंती पर पटेल राष्ट्रीय स्मारक ने परेश रावल अभिनीत फिल्म "सरदार" का 'नि:शुल्क' शो रखा था। पर देखने पहुंचे सिर्फ दो आदमी।
यह तो गुजरात का हाल है, बाकि देश को क्या कहेंगे।

Anil Pusadkar said...

अजय भाई आपने कहा और मैने मान लिया।कल भी यही और आज भी यही होगा।मुझे बुरा नही लगा लेकिन मैने जब आज आपकी पोस्ट देखी तो जो अस्वाभाविक,अस्वाभाविक इसलिये के ये मेरे स्वाभाव के विपरित प्रतिक्रिया थी,मैने व्यक्त कर दी।मै मन मे कोई बात नही रखता इसलिये शायद यंहा के सबसे ज्यादा गुस्सैल स्वभाव का और कठोर भाषा का इस्तेमाल करने वाला होने के बाद भी लोग मुझे पसंद करते है सिर्फ़ और सिर्फ़ इसलिये जो दिल मे वो जुबां पे और जो जुबां पे वही दिल मे।इसलिये इस मामले मे मुझे कोई कन्फ़यूज़न नही है।आपका फ़ोन आ चुका है और मैने ये पढा नही था इसलिये मारे गुस्से के उठाया नही।और हां आप नही मै फ़ोन करूंगा लेकिन शाम के बाद क्योंकि मै थोड़ा दाना-पानी के चक्कर मे निकल रहा हुं।फ़िर एक बार अगर कोई बात बुरी लगी हो तो उसे दिल से निकाल देना बार-बार माफ़ी मांग कर खुद को बड़ा और आपको छोटा दिखाने का मेरा कोई इरादा नही है।बस एक ही फ़लसफ़ा है ज़िंदगी का प्यार बांटते चलो रे भाई प्यार बांटते चलो।

अजित वडनेरकर said...

सच्ची बात है। गुस्सा हमें भी बहुत आता है और ज़बान भी ख़राब है।
क्या करें।
गायत्री परिवार की इस सीख को हमेशा याद रखता हूं कि
हम बदलेंगे, जग बदलेगा...

सो खुद को जितना बेहतर, अनुकूल बना सकते है,बना लेना चाहिए।

Abhishek Ojha said...

सरदार पटेल की संपत्ति कितनी थी? और उन्होंने जो भी किया सिर्फ देश के लिए किया... तो इस हिसाब से बड़े तो रेड्डी ही हुए न.

Gyan Dutt Pandey said...

जुगनू और सूर्य की क्या तुलना।
सरदार को नमन।

परमजीत सिहँ बाली said...

सरदार पटेल का योगदान शायद अन्य को नजर नही आया...........बात सच मे गुस्सा होने वाली है.....लेकिन कुछ किया नही जा सकता......सही आकंलन करने वाले तो अब रहे नही......

vikas mehta said...

iss desh ki khatir jo shahid hota hai ya kuch karta hai uski samadhi nhi banai jati
parntu deshwasiyo ke dilo me sardar patel hamesha chaye rhenge sahi maino me sadar hi loh purush the
jai hind jai bharat

vikas mehta said...

sardar jindabad

Unknown said...

अनिल भाऊ, टिप्पणी में लिंक देना तो मुझे भी नहीं आता, लेकिन जो लोग इच्छुक हैं, वह इस लिंक पर जाकर राष्ट्रसन्त सेमुअल रेड्डी के बारे में जान सकते हैं… आपका धन्यवाद

http://sureshchiplunkar.blogspot.com/2009/10/ysr-memorial-land-grab-in-ap-and-anti.html

Pramendra Pratap Singh said...

बहुत कष्‍ट का विषय है कि एक देश भक्त और एक काग्रेसी में यह अंतर किया जा रहा है।

राज भाटिय़ा said...

अब क्या कहे, हम सरदार पटेल का नाम इज्जत ओर श्र्धा से लेते है.... बस यही काफ़ी है, अप ने अपने लेख मै हर हिन्दुस्तानी के दिल का दर्द लिखा है,धन्यवाद

योगेन्द्र मौदगिल said...

जनता तो फुटबाल है रहे जुगाड़ू ठेल.
राजनीत है खेलती सदा ही गंदा खेल...

Unknown said...

अनिल तुम्हारा अनुभव संसार बहुत बड़ा है, मेरे विचार से मेरे आस-पास के लोगों मे बहुत कम ही लोग होंगे जिनका अनुभव संसार ऐसा होगा, और ऐसी घट्नाओं के कार्ण तुमसे बेहतर कौन जानेगा.

दीपक 'मशाल' said...

यही होता है भैया, जितने घोटाले करो मरने के बाद उतनी ज्यादा ज़मीन, जिसने घोटाले नहीं किये वो अब कहे का नेता और उसे कैसी ज़मीन...
जय हिंद...

Anonymous said...

ईमान दारों की कोई कदर नहीं है भारत में ,
अपनी जान गवाने वाले दिल्ली पुलिस के मोहन लाल शर्मा के परिवार को की आज तक सुध नहीं ली जा रही .
जहाँ की चंद नोटों की बात है .
सरदार पटेल के लिए समाधि बनाना तो बहुत दूर की बात है जी

Anonymous said...

हम लोगों ने जितनी मस्ति की,शरारते की,अब अपने बच्चों को वो सब करने मे पूरी ताक़त लगा रहे हैं।पहले बस्ते इतने भारी नही होते थे और न होमवर्क और प्रोजेक्ट।तब बचपन खुल कर खिलखिलाता था उसपर जाने कितना बोझ लाद दिया है हमने और बचपन की हंसी छीन कर उसे अच्छे नम्बरों से पास होने के तनाव मे डबाने के अपराधी शायद हम ही हैं,कोई दूसरा नही।...................................

बिलकुल सही कहा आपने अपने जमाने में हम ने तो मस्ती ही की . इतनी जबर दस्त पढाई तो आज बच्चों को करनी पढ़ती है. आज कल मेरी बिटिया भी रात २-३ बजे तक पड़ती है . दिन में स्कुल के बाद ट्यूशन . तब जा कर कहीं कामयाबी मिलती है . और नौकरीयां तो सब कोटा सिस्टम में चली गयी है . राम जाने क्या होगा .बच्चों को मजबूर हो कर कभी कभी झूठ बोलना पड़ता है