Wednesday, November 11, 2009
कर ली है नौकरी,तोड़ दी बंदूक,फ़िर छोड़ेंगे नौकरी,फ़िर खरीद लेंगे बंदूक।
बहुत समय से यूंही कलम तोड़ कर आज़ादी का जश्न मना रहा था मैं।पिछली नौकरी छोड़ने का कोई कारण भी नही था और वो नौकरी भी नौकरी जैसी नही थी।मालिकों का दोस्त होने के कारण मालिक जैसा ही ओहदा था लेकिन पता नही क्यों वो काम रास नही आया और एकाएक उसे नमस्ते कर दिया।तन्ख्वाह भी अच्छी खासी थी,मोटी भी कह सकते हैं और काम भी इच्छा हो तो करो वर्ना कोई पूछने वाला भी नही था।उस नौकरी पर जाते समय भी लोगों ने पूछा कितने दिन और तो मेरा जवाब होता था कितने साल कहो लेकिन एक साल भी पूरा नही हो पाया लोकल केबल नेटवर्क के न्यूज़ चैनल का स्टेट हैड था मैं।अब फ़िर से उस नौकरी के पहले वाली नौकरी पर जा रहा हूं।यानी उस लोकल केबल से पहले जिस लोकल केबल को छोड़ा था उसमे न्यूज़ चैनल हेड़।यानी कहा जा सकता है कि सुबह का भूला और ये भी कि लौट के बुद्धु घर को आये।इससे पहले जिस अख़बार को छोड़ा था उसके रिलांच के बाद उसमे कालम लिखने की मंज़ूरी पहले ही दे चुका हूं।अब प्रिंट और इलेक्ट्रानिक दोनो मे काम,नही तो एक मे भी नही यानी फ़ुल टाईम आराम।वैसे इस बार भी काम अपने मन-माफ़िक ही है।यानी काम भी कम और दाम मे भी दम।जिसे पता चल रहा है उसका पुराना घिसा-पीटा सवाल सामने आ रहा है नौकरी कब तक़ चलेगी और अपना भी वही जवाब है,कर ली है नौकरी तोड़ दी है बंदूक,फ़िर छोड़ेंगे नौकरी फ़िर खरीदेंगे बंदूक्।देखें कब तक़ सरस्वती पुत्र नौकरी कर पाता है लक्ष्मीपुत्र के यंहा।वैसे लिखने पढने पर कोई पाबंदी न होने की शर्त हर बार रहती है जो टूटती भी नही है लेकिन पता नही क्यों अपनी गाड़ी पटरी से उतर जाती है।कभी सहयोगी या सहकर्मियों के हितों की वज़ह से तो कभी दूसरों के दर्द की वज़ह से तो कभी बिना वज़ह खुद के अंहकार से तो कभी स्वतंत्र यानी पारिवारिक ज़िम्मेदारियों से मुक्त रहने की वज़ह से आज़ाद तबियत का होने के कारण।इस बार भी मालिकों की ओर से पुराने सवाल के साथ पुरानी रिक्वेस्ट भी सामने आई कि अब इसे अंतिम पड़ाव मान ले।इन लोगों से भी बहुत पुराने संबंध है।जब उनसे कई सालों बाद बात हुई तो उन्होने कोई गिला-शिकवा भी नही किया और घर परिवार छोड़ कर गये सदस्य की तरह ही स्वागत किया।बड़े भाई ने समझाया भी कि ऐसा करके तुम खुद का नुकसान करते हो।बाहर तक़ छोड़ने आये छोटे भाई ने मेरी गाड़ी का नम्बर देख कर पूछा कि ये वेस्ट बेंगाल की गाड़ी क्यों?तो मेरा जवाब था ये डब्ल्यू बी का मतलब है विदाऊट ब्रेक्।वो हंसा और उसने कहा कि इसका मतलब विथ ब्रेक भी होता है बस आऊट को आऊट कर दो,समझे।मैने कहा समझा और इस बार समझने की कोशिश भी रहेगी।देखें विदाऊट ब्रेक कितने दिनों,महीनो या सालों तक़ विद ब्रेक रह पाती हैं।नई नौकरी कोई नई बात नही है लेकिन इस बार मेरे साथ एक नया परिवार भी है ब्लाग परिवार सो इस बार की खुशी आप सभी से बांट रहा हूं।ये थोड़ा लम्बी चली ऐसी दुआ करना।मुझे नौकरी की ज़रुरत नही है फ़िर भी मै भी नौकरी करके नौकरी छोड़ू की ईमेज भी तोड़ना चाहता हूं।आप लोगों का स्नेह,आशीर्वाद निश्चित ही मेरा मनोबल बढायेगा।
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33 comments:
"इस बार भी मालिकों की ओर से पुराने सवाल के साथ पुरानी रिक्वेस्ट भी सामने आई कि अब इसे अंतिम पड़ाव मान ले।इन लोगों से भी बहुत पुराने संबंध है।"
पुराने सम्बन्ध का सम्मान करते हुए इस बार अन्तिम पड़ाव मान ही लीजिये।
आपका आदेश सर आंखो पर अवधिया जी।
अनिल जी हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं | पर हम तो आपके स्वतंत्र विचारों के कायल हैं | इश्वर से प्रार्थना है की आप सत्य की राह पकडे रहें .... नौकरी के लिए सत्य के पथ से ना डिगें |
बिल्कुल क्यों नहीं । हमारी भगवान से दुआ है कि ये नौकरी आपकी खूब दिंनो तक चले........
बहता पानी निर्मल होता है!
राकेश भाई स्वतंत्रता तो मैं कभी छोड़ ही नही सकता इसलिये तो नौकरी छोड़ने का रिकार्ड़ बना डाला है।विचार स्वतंत्र ही रहेंगे,नौकरी का उससे कोई लेना देना नही है और फ़िर आप जैसे शुभचिंतक़ है तो परवाह ही कौन करता है।
धन्यवाद मिथिलेश भाई।बस आपकी दुआ कबूल हो जाये।
अनिल भाई,
कहीं बार-बार रिकॉर्ड की सुई इस पर तो नहीं अटक जाती...
हाय हाय ये मजबूरी,
ये मौसम और ये दूरी...
मुझे पल-पल है तरसाए,
तेरी दो टक्या दी नौकरी,
मेरा लखां दा सावन जाए...
जय हिंद...
खुशदीप भाई अभी तक़ तो मज़बूरी,मौसम,दूरी और सावन पर तो सुई अटकी नही है आगे राम जाने।
आ पाण्डेय जी आपका कहा सर आंखों पर निर्मल बना रहने की पूरी कोशिश रहेगी।
हमारी शुभकामनाएं आपके साथ है. वही करें जो समयानुसार सही हो.
Aadarniya Anil Bhaiya.....
Meri shubhkaamnayen aapke saath hain.....
सत्य की राह से ना डिगें |
हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं |
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उज्जवल भविष्य की कामना इन उम्मीदों सहित करते है कि समय पर इन्क्रीमेंट मिले, बोनस भी समय पर मिले, कभी छुट्टी लेने पर लाला अपना थोबडा न फुलाए, सेलरी से काटी गई प्रोविडेंट फंड की रकम को समय पर खाते में जमा करवाता रहे.. इत्यादि-इत्यादि !
काम की जिम्मेदारी कुछ तो होना ही चाहिए। उस से सक्रियता बनी रहती है। फिर आप जब किसी जिम्मेदारी पर रहेंगे तो न जाने कितनों को जिम्मेदारी से काम करना भी सिखाएँगे। मैं तो बधाई देना चाहूंगा। पर इसे अंतिम पड़ाव कहना ठीक नहीं। पड़ाव तो होता ही अस्थाई है। आगे चल देने के लिए।
बस जैसे आप है वैसे ही बिना किसी दबाव के उन्मुक्त हो काम करते रहे ! हमारी शुभकामना तो हमेशा आपके साथ है.
बेबाकी तथा साफगोई का बयान ... मानव मूल्यों के संधर्ष को एक नई आवाज तथा पहचान देता है।
हमारी BAHOOT BAHOOT शुभकामनाएं अनिल जी ........ इश्वर AAPKO सत्य KAHNE KI SHAKTI DE ....
अकेले ही अकेले चला है कहां-कहेगा क्या कहेगा ये सारा जहां- अनिल भाई नई नौकरी की बधाई और उपर लिखे पर भी गौर फ़रमायें।
हीरे की चमक ज्यादा दिन तक छुपी तो नहीं रह सकती है ना अनिल जी...आपकी चमक को तो पहचान में आना ही है। नये ’एडवंचर’ के लिये समस्त शुभकामनायें! डटें रहे बगैर अपने आदर्शॊं और सिद्धांतों से समझौता किये हुए...!
waah...sundar post...badhai...
बहुत बढ़िया खबर.. और बहुत बधाई भी.. :)
"अब प्रिंट और इलेक्ट्रानिक दोनो मे काम,नही तो एक मे भी नही "
यानि दो नोवों में सवार या फिर बीच मझदार :)
शुभम् करोति कल्याणम्
अब इसे अंतिम पड़ाव मान ले।इन लोगों से भी बहुत पुराने संबंध है।जब उनसे कई सालों बाद बात हुई तो उन्होने कोई गिला-शिकवा भी नही किया और घर परिवार छोड़ कर गये सदस्य की तरह ही स्वागत किया
पुराने संबंध का भी लिहाज रखना पडता है, लेकिन अपनी आजादी गिरवी रख कर नही, आप को बधाई
अनिल भाई आप महान हो .. हम तो एक नौकरी छोड़कर ही अपने आप को महान समझ रहे थे लेकिन आप तो छोड़ने का रिकार्ड बना रहे हो । फिर तो आप महानो के महान हुए ना ।
ठण्डे मन से सोच विचार कर लिया गया निर्णय ही सही होता है।
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बहुत घातक है प्रेमचन्द्र का मंत्र।
हिन्दी ब्लॉगर्स अवार्ड-नॉमिनेशन खुला है।
अनिल भाई, "अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम" -यह पंक्तियाँ शायद "दास मलूका" ने आप जैसे पत्रकारों के लिए ही कही थीं.
ढेर दुआएँ और अनेक शुभकामनाएँ. नौकरी बरकरार रहे!
kya kahoon bhaia nayi naukri ya purani naukri??? jo bhi ho join karne par bahut bahut badhai.... aapko nahin balki un sabko jo aapse is naukri ke bahane kisi nyay ya uddeshya poorti ki aas lagaye hain...
Jai Hind...
आप लोगों का स्नेह देख कर आंसू आंखो से निकलने के लिये मचलने से लगे हैं।सभी भाईयों ने मेरे लिये दुआयें की और मेरे सुखद भविष्य की कामना की जिसका ॠण मे जीवन भर नही चुका पाऊंगा।सभी का जवाब देना मेरे लिये फ़िलहाल संभव नही है लेकिन इस पर पूरी-पूरी पोस्ट लिख कर किस्ने क्या कहा सबको बताऊंगा ज़रूर।ऐसे ही स्नेह बनाये रखियेगा।
अनिल भाई ! आपकी पोस्ट देखने में थोड़ी देर हो गई , नौकरी पर शुभकामनाएं , नौकरी पुराने ज़माने जैसी नहीं हैं ,आज तो मालिक और सेवक दोनों एक दुसरे के पूरक हैं 1 सेवक शेयर धारक भी बनने लगे हैं ,उत्तम खेती --- अधम नौकरी, भीख निदान; की बात भी ज़माने की हो गई हैं, इसलिए कलम की लाज बचाते हुए जीवन संघर्ष में आप सफल हो ,ईश्वर से मेरे यही प्रार्थना हैं 1
अब आपको हम कुछ कहे, छोटी मुँह बडी बात होगी, आप जो करेगे वो हमारे लिये मार्गदर्शन की भाति होगा।
आपके लेखनी से निकना एक-एक शब्द हमरे लिये कुछ नयी सीख ही होती है। बड़े-बड़े बहुत कुछ कह गये, हमे बहुत अच्छा लगा सभी की बातो को सुन कर।
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