महफ़ूज़ भाई ने एक दिल को छू लेने वाली पोस्ट लिखी थी कल,साले पता कैसे लगेगा कि मुसलमान है।उसे पढकर एक पुराना किस्सा याद आ गया।मैने उनकी पोस्ट पर कमेण्ट कर कहा था कि वो किस्सा बताऊंगा ज़रूर और अब बता रहा हूं।दस-बारह साल पहले की बात है मै बस खरीदने नागपुर जा रहा था।मैने तब कुछ दोस्तों से कहा साथ चलो और तब संजय जो आज कांग्रेस के बड़े पदाधिकारी हैं,चंदू,गिरीश,भावेश और महमूद तैयार होकर निकल पड़े।नागपुर पंहुच कर बस देखी,खरीदी,पेमेंट दिया और ड्राईवर के हाथों गाड़ी रायपुर भिजवा दी।
उसके बाद सब आगे निकले और अमरावती और अकोला मे ट्रेव्हल एजेंट से बुकिंग की बात करके उस बस को रायपुर-अकोला चलाना तय किया और इसी खुशी मे भावेश ने कहा कि चलो शिरडी दर्शन कर आते हैं।सब तैयार हो गये और चल पड़े शिर्डी की ओर।औरंगाबाद मे संजय की ससुराल वालों के होटल मे रुके और शिरडी,शनि-शिंगनापुर के दर्शन कर के वापस लौट रहे थे।
दर्शन करने के बाद सब फ़्री मूड मे थे और खूब हंसी-मज़ाक चल रहा था।चंदू और महमूद एक दूसरे के पीछे पड़े हुये थे और एक दूसरे के गड़े हुये मूर्दे उखाडने मे लगे हुये थे।मस्ती भी हो रही थी गाडी मे और धिंगा-मस्ती के बीच अचानक़ टायर पंक्चर हो गया।सब उतरे और स्टेपनी बदलने को लेकर आपस मे विवाद करने लगे।चंदू महमूद के पीछे पडा हुआ था और जब मैने चंदू से कुछ कहा तो वो बोला पहले इस पठान को बोलो टायर बदलेगा।मैने भी हंसी-मज़ाक मे कह दिया बदल बे पठान टायर्।अब सब उसके पीछे पड़ गये।वो भी एक नम्बर का ढीठ था।सबको जवाब देता रहा और इस बीच टायर बदल कर हम लोग थोड़ा आगे बढे तो एक ढाबे के किनारे टायर वाले की दुकान दिखाई दी।मैने गाड़ी रोकी तो सबने पूछा क्यों रोक दी गाड़ी?मैने कहा पंक्चर बनवा लेते है नही तो स्टेपनी लग गई है और अगर कोई और टायर पंक्चर हुआ तो फ़ंस जायेंगे।
सब उतर गये।टायर वाले को पंक्चर बनाने के लिये दिया और वंहा फ़िर हंसी-मज़ाक का दौर शुरू हो गया।इसी बीच मैने देखा कि टायर वाले की दुकान का नाम था चांद टायर वर्क्स। बस फ़िर क्या था मैने कहा महमूद लो मियां यंहा भी कब्ज़ा।अब सब महमूद के पीछे पड़ गये और मैने कहा कि महमूद सारे हाईवे पर बेटा तुम लोगों ने कब्ज़ा कर लिया है।इस पर महमूद ने कहा कि गनीमत है हम लोग हैं वरना यंहा चांद टायर वर्क्स नही होता साले तुम लोग गरम पंक्चर बनाते रहते।पाठक टायर वर्क्स,पुसदकर टायर वर्क्स होता यंहा।सब हंसने लगे और जब कभी टायर पंक्चर होता है हम दोस्त आपस मे इस किस्से का ज़िक्र ज़रूर करते हैं।सालो बाद आज महफ़ूज़ मियां की पोस्ट पर उनके छात्र जीवन मे स्कूटर सुधारने की कोशिश देख कर उनके आदरणीय पिता जी द्वारा कि गई टिपण्णी को लिखी गई पोस्ट ने आज हम दोस्तो के बीच के किस्से की याद दिला दी।महमूद आज भी हमारा उतना ही अच्छा दोस्त है और नवरात्रि पर यंहा डोंगरगढ की प्रसिद्ध बम्लेश्वरी मैया के दर्शन के लिये हम लोग आज भी बिना उसको साथ लिये नही जाते।उसे भी मंदिर के अंदर जाने और दर्शन करने से लेकर प्रसाद ग्रहण करने मे कोई प्रहेज़ नही है।वो हमारा दोस्त नही भाई है और हर दोस्त के परिवार का सदस्य है।ये पोस्ट बस महफ़ूज़ भाई की पोस्ट पढ कर लिख रहा हूं इसका उद्देश्य किसी को बुरा कहना,किसी को नीचा दिखाना,किसी को ऊंचा साबित करना नही है।सभी से आग्रह है कि से दोस्तों के बीच हुये हंसी-मज़ाक के रूप मे ही लें और किसी भी प्रकार के पचड़े मे न घसीटें।
22 comments:
Bada hi dilchasp kissa laga is baar bhi...bhaia :)
Jai Hind
अनिल जी यह आप का लेख सच मै बहुत अच्छा लगा, यहां हमारे दोस्त जो पाकिस्तान से है बिलकुल अपनो की तरह मजाक करते है, मेरा एक जिगरी दोस्त मर गया तो हम ने उस को जन्नत मै जगह मिले इस कारण नामज भी अदा की, एक मुस्लिम ने हमारा मंदिर बनबाने के लिये खुब मेहनत कि. आम लोग सब अच्छे है बस कुछ सर फ़िरे है, ओर हम उन की तरफ़ ध्यान भी नही देते. महफ़ुज तो बिलकुल अपने बच्चो की तरह से हमे प्यारा लगता है.धन्यवाद
बहुत अच्छा लगा पढ़ कर और अपने खालिद भाईजान की याद हो आई.
अब तो ट्युब लेस का जमाना है अपने आप पिन्चर जोड लेते है .
गरम पंक्चर...लगता है गरम चीज़ों से अनिल जी का छत्तीस का आंकड़ा है....अलबेला खत्री जी अनिल जी के ढाबे
की वाट लगने की वजह पूछ रहे हैं...मेरी समझ में ये जवाब आया-
अनिल जी ठहरे मूडी और थोड़े गर्म मिजाज...
पहले ही ग्राहक ने आकर ये कह दिया...ढाबे में जो सबसे गरम है...वो ले आओ...
अनिल जी ने जवाब दिया...तवा है सबसे गरम...लाऊं...बैठेगा क्या...
बस अनिल जी के ये तेवर देखकर ग्राहक ऐसे भजे कि किसी ने दोबारा आने की हिम्मत ही नहीं दिखाई...
जय हिंद...
यही वह बुनावट है जिससे हिन्दुस्तान जीवंत है
अच्छी रचना। बधाई।
अनिल भाई, बेमिसाल हैं आप और आपकी दोस्ती।
और हाँ यह सही बात है कहने में अच्छी नहीं लगती कि सभी कामों की अपनी कीमत है बस अंतर यह है कि कोई समझता है कोई नहीं।
अनिल जी, निजी जीवन में हर एक के साथ लगभग यही कहानी है, मेरा मतलब दोस्ती से है, वह हम धर्म के हिसाब से दोस्त नहीं बनाते/ पालते ! बस , फर्क आना तब सुरु होता है जब दो ड्रम गुरु या फिर सियासी नेता बीच में आ जाते है !
हम सब भाई-भाई ही हैं..
जय हिंदुस्तान !!
आभार
प्रतीक माहेश्वरी
ताज़ा पोस्ट : धर्म से कमाई या कमाई का धर्म?
भाऊ, आपका संस्मरण ही "असली हिन्दुस्तान" है…, कुछ लोग इसे "अस्वच्छ" बनाने पर तुले हैं लेकिन सफ़ल नहीं होंगे… :)
इस देश में एक व्यवस्था है जो कुछ लोगों को फूटी आँख नहीं सुहाती और वे हमेशा आग लगाने की फ़िराक में रहते हैं . स्कूल तक कई मुस्लिम मित्र रहे लेकिन ये बात कभी उठी ही नहीं कि किसका क्या धर्म है . सही कहा महमूद ने, कई क्षेत्रों में तो लगभग एकाधिकार ही है, मुस्लिम भाईओं का .
समाज के अन्तर में झाँक कर देखा जाए तो यही अनुभव होता कि कहीं भी धर्म, जाति, पंथ जैसी दीवारें आडे नहीं आ पाती....गर राजनीति की काली छाया न पडी हो तो !!
मजेदार संस्मरण।
--------
क्या स्टारवार शुरू होने वाली है?
परी कथा जैसा रोमांचक इंटरनेट का सफर।
अनिल भाई यह ज़िन्दगी ऐसे ही सहज गति से टायर की तरह चलती है लेकिन कुछ लोग जबर्दस्ती उसे पंचर करने की कोशिश करते है और फिर वहीं पंचर बनवाने जाते है । इसलिये यह सफर प्यार से कट जायेगा बिना पंचर के बस बढिया चलता रहेगा ( बस बढिया चलती रहेगी )
मजेदार...। शुक्र मनाइए कि यह मजाक की बात ही रहे। हकीकत में यह सूरत बदलनी चाहिए।
काश! हर ‘साला मुसलमान’ महमूद और महफूज़ जैसा होता तो मज़हबी झगडे ही मिट जाय:)
hahahahahahaha.....bhaiya .....
bahut hi mazedaar sansmaran raha....
yeh yaaden hi to hain jinhe hum sanjo kar rakhte hain....
aapke pyar aur ashirwaad se main abhibhoot hoon....
bahut sahi kikha hai. DARD bhi chhipa hai aapke is sansmaran men.
" bahut hi accha laga padhker aapki yaadoan ko salaam "
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
बहुत बढ़िया! इस पोस्ट से हमने भी अपना पंक्चर ठीक करा लिया - मूड़ ठीक हो गया। :)
बहुत बढ़िया पोस्ट....
Post a Comment