एक माईक्रोपोस्ट के बहाने छोटा सा सवाल सामने रख रहा हूं,अगर जवाब मिला तो अच्छा लगेगा वरना ब्लागिंग तो मज़बूरी हो ही गई है।आज मूड़ बहुत खराब है!लिखने का मन नही कर रहा था इसलिये आज दूसरों का लिखा पढता रहा और जैसा समझ मे आया उस पर कमेण्ट भी करता रहा।ये काम तो चल ही रहा था मगर दिल-दिमाग ठिकाने पर नही थे।वंहा रह-रह कर सवालों के अंधड़ उठ रहे थे।सवाल तो बहुत से हैं मगर फ़िलहाल सिर्फ़ एक ही,इस देश मे शहीदों को याद करने के लिये मोमबत्ती तो सब जला सकते है मगर वंदे मातरम नही गा सकते,आखिर क्यों?बस इससे ज्यादा कुछ नही लिखूंगा,आज मेरा मूड बहुत खराब है।
27 comments:
आज जमाना दिखावा करने का है और मोमबत्ती जलाना दिखावा करना है। लोगों के भीतर दिखावे की भावना कूट कूट कर भर दिया है हमारी कुशिक्षा ने। फिर मोमबत्ती जलाने में मजा भी आता है।
किन्तु वन्देमातरम् गाने के लिये आस्था की आवश्यकता होती है जिसकी आज के लोगों में बहुत ही कमी है।
का कही भैया? इहे तो अपन देस का परलोकतंत्र है, जियादा सोचिबै त मुड़ खराब होईबे करी, तनी फ़ेर सौचो के सौचना चाही के नाही? हमहु सोच रहे है, परलोकतंत्र का बारे मा।
शहीदों को याद करने के लिये मोमबत्ती तो सब जला सकते है मगर वंदे मातरम नही गा सहते?
sach kah rahe hain aap..... aapki naaraazgi jaayaz hai....mombatti jalana to paashchaatya sanskriti hai.... aur hum apna VANDE MATRAM nahi gaa sakte? is desh mein pseudo-secularists zyada hain.....
shaheedon ko shraddha suman...
JAI HIND...
JAI BHARAT....
VANDE MATRAM...
मोमबत्ती ब्रिगेड और इस अवसर पर चैनलों/अखबारों/कम्पनियों की घिनौनी धंधेबाजी को देखकर दिमाग तो अपना भी खराब है भाउ, इसलिये इस खौलते खून को थोड़ा ठण्डा करने के लिये रक्तदान करने जा रहा हूं… मुझे तो यही एक तरीका सही लगा… श्रद्धांजलि अर्पित करने का…
इस देश में ऐसे भी मिल जायेंगे जो मोमबती भी नहीं जलायेंगे, याद करने का सबका अंदाज़ जुदा, आप मूड खराब न करो, दो शब्द ठीक कर लों
देख मे शहीदों में देख को देश कर लो
नहीं गा सहते में सहते को सकते कर लो
जिस देश में शहीदों का सम्मान भी दिखावा है वहाँ सब संभव है . रही बात मूड की तो इसका भी एक समय चक्र है मासिक धर्म की तरह चिंता न करें . थोडा सा झटका देना पड़ता है विचारों के jhanjawat को
जब जीवन के हर क्षेत्र का राजनैतिक-करण हो जाता हैं जब ऐसी ही विरोधाभासी स्थिति होती है... आज धर्म जैसे व्यतिगत, गरीबी एवं पिछड़ेपन जैसे सार्वजनिक, पर्यावरण जैसे मानवीय और राष्ट्रप्रेम जैसे मौलिक मुद्दे भी राजनैतिक चश्मों से ही देखे जाते हैं
बिल्कुल सही कहा आपने ।
जय हिन्द
।
वन्दे मातरम् ।
बात तो आपकी सही ही है. पर मूड को अभी खराब मत किजिये..यह मूड ही है जो क्या किया जाये का डिसीजन लेगा.
रामराम.
शुकिया उमर भाई।मैने तो अपनी गलती आपके कहे अनुसार सुधार ली।देख को देश और सहते को सकते कर दिया मगर उनको कौन सुधारेगा को जो देश को देश नही समझते और सब समझते हुये भी कुछ नही समझते।जिनकी गलतियों का खामियाजा वो लोग सहते हैं जो बेचारे चाह कर भी कुछ कह नही सकते बस सिर्फ़ सहते रहते हैं।आपने पढा भी और टंकण की गल्तियों को पकड़ा भी इसके लिये आभारी हूं,उम्मीद है आप और भी जो गल्तियां नज़र आ रही है,उनपर भी रौशनी डालेंगे।
अनिल जी,
आपका मूड ठीक करने के लिए सरकार की ओर से कल ही सुनाए दो चुटकुले रिपीट कर रहा हूं...
मुंबई हमले सुनियोजित साज़िश थे...
जब तक दोषियों को सज़ा नहीं दिला देते, चैन से नहीं बैठेंगे...
जय हिंद...
यार, अनिल साहब आप कैसे बेतुके सवाल करते है :) सीधा सा जबाब है मोमबत्ती की जितनी ज्यादा खपत होगी, उनका उतना ही फायदा क्योंकि जो ये वन्देमातरम से परहेज करते है, वही तो इस मोमबत्ती बनाने के धंधे में लिप्त है ! जहाँ फायदे का धंधा , वहाँ बन्दा ! देश जाए भाड़ में उनकी बला से ! उनकी बला से पूरा देश ही शहीद हो जाए !
एक फिल्म देखी थी " अलबर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है ?" अभी अचानक याद आया यह जिनके नाम मे ए. और पी . है उन्हे गुस्सा आता ही है ..अलबर्ट पिंटो हो या अनिल पुसदकर ..। बाकी नाम आप बतायें... ।
लोग भी इस तरह की नौटंकियां करके अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझने लगे हैं....
डाक्टर महेश सिन्हा से सहमत !
अनिल जी,
बहुत देर ऐसे ही बैठा रहा। समझ नहीं पा रहा हूं, क्या कहूं।
चलिये मूड ठीक होने की प्रतीक्षा की जाये!
साहब, मोमबत्ती जलाने से धर्मनिरपेक्षता झलकती है और वन्देमातरम से साम्प्रदायिकता. आज के जमाने में कौन चाहता है सांप्रदायिक होना? आज 26/11 के शहीद याद आ रहे हैं पर इससे पहले आतंकी हमलों में मारे गए लोगों की याद में दियासलाई की एक तीली जलाना भी किसी ने बेहतर नहीं समझा.
ये देश है वीर जवानों का, अलबेलों का, मस्तानों का.........................इस देश का यारो??????
जिस तरह हर कोई आइ ए एस या इंजिनियर.... नहीं बन सकता क्योंकि उसमें उतनी समझ नहीं होती, उसी तरह जिसे वंदेमातरम का अर्थ ही नहीं पता वो कैसे इसका उच्चारण करेगा?
एतनी छोटा सा बात के लिए मूड को मूढ़ बनाना :)
सोचता हूं कि क्या अगला जन्म ऐसा हो सकेगा जब किसी मोह माया से मुक्त होकर कहीं पैदा हो सकूंगा और ऐसे कसाबों को बिना किसी कायदे कानून के सीधे गोली से उडा सकूंगा ...काश कि ऐसा हो पाता ..
anilji aapki baat main tartamya nahi hai. vande matram ke baraks mombatti jalane ka jikr dono hi baato ke mahtav ko kam kar deta hai.
अनिल जी पी.सी.गोदियाल जी ने सारी बात साफ़ साफ़ कह दी है,ओर हम उसी से सहमत है.चलिये अब मुड ठीक कर ले
मूड खराब होने वाली बात ही है.
मोमबत्तियो से शहीदो के घर तो रौशन नही होंगे
आज तक मुआवजे की रकम नही मिली शहीदो को
अरे बाप रे मुड खराब है तो इतना भयानक सवाल सही होता तो.........
टीवी वाले खूब मोमबत्तियां जलवा रहे हैं , २६/११ की बरसी पर ! मोमबत्ती की रौशनी से आतंकी घबरा जायेंगे जैसे ड्राकुला उजाले से डर कर भाग जाता है !
*कोई कॉल करवा रहे है राष्ट्र के नाम ....... और ये पैसा देंगे भारतीय पुलिस को ! लगता है सरकारी फंड कम पड़ गया है !
*जगह-जगह पर गीत-संगीत के कार्यक्रम प्रस्तुत किये जा रहे हैं ! यह बताने के लिए कि कुछ भी कर लो हमें कोई फर्क नहीं पड़ता !
शायद आज, केवल दूसरे की थाली में ही बढ़िया देखने की मानसिकता के अंधे दौर से गुजर रहे हैं हम...अपना जो कुछ भी है वह घटिया है पश्चिम को जो कुछ भी है सो अच्छा है... पर भाई मैं विचलित नहीं.
दिल्ली सरीखे महानगर में पलने-बढ़ने और हाय-बाय व हाथ मिलाने की संस्कृति (जिससे मुझे कोई परहेज़ भी नहीं) के बीच भी अपने से बड़ों को दोनों हाथ जोड़ कर नमस्कार करना मुझे आज भी सुहाता है. विदेशी अधिकारियों से मिलना होता है ...प्राय: पाता हूं कि कई, हाथ जोड़ कर नमस्कार करते हैं,नितांत आत्मीय भाव से. तब मुझे भी ये मोमबत्तीबाज़ ठीक यूं ही याद आते हैं...शायद ये भारत में रह कर भी विदेशियों से ज़्यादा विदेशी हैं...
Post a Comment