समय के बदलते मिज़ाज़ पर एक और छोटी सी पोस्ट जिसमे बात बहुत बड़ी छुपी हुई है।कालेज मे साथ पढे और अब आईएफ़एस अफ़सर मित्र ने समय मे आये इस बदलाव को खुद तो महसूस किया ही,साथ ही उसने सभी दोस्तो को इस बात को बताने के लिये एसएमएस भी किया।
उसका एसएसएस था,
Remember the time when freinds used to say"lets meet n plan something".
Now a days freinds says"lets plan n meet somaday".
freinds r same but time has changed.
दोस्तो के मिलने-जुलने मे आई कमी और सबके अपनी-अपनी दुनिया मे मस्त रहने से कभी-कभी पुराने दोस्तों के साथ गुज़रे दिन याद बनकर टीस मारते हैं।एक ही शहर मे रहकर कई-कई महीने नही मिल पाने की तक़लीफ़ तो मै भी महसूस कर रहा हूं।आप को क्या लगता है बताईयेगा ज़रूर्।
25 comments:
samay ke saath bahut kuchh balki sabkuchh badal jaata hai
yah ek vidambanaa bhi hai
aur aparihaarya bhi..........
Remember the time when freinds used to say"lets meet n plan something".
उन दिनों बहुत समय होता था हमारे पास।
Now a days freinds says"lets plan n meet somaday".
इन दिनों समय कहाँ है हमारे पास?
ये तो एक टीस है , अपनों से न मिल पाना
लेकिन एक शहर में रहने पर तो मिलना ही चाहिये
अनिल भाई,
पहले दोस्ती और रिश्ते प्यार करने के लिए होते थे और चीज़ें इस्तेमाल करने के लिए...अब चीज़ें प्यार करने के लिए हो गई हैं और दोस्ती-रिश्ते इस्तेमाल करने के लिए...यही फ़र्क आया है....
वैसे अनिल भाई तीन-चार दिन के बेक पर रहे आप...स्वास्थ्य का ध्यान रख रहे हैं न....बारह दिसंबर को मैंने बजाज स्कूटर पर.... टेढ़ा है पर मेरा है...पोस्ट लिखी थी...पढिएगा...आनंद आएगा...
जय हिंद...
समय नही हम बदल रहे है . समय को तो दोष देने क फ़ैशन सा है
समय के साथ प्राथमिकताएं बदलती ही है. नया कुछ नहीं. हमारी अगली पीढी अब भी कहती है, ets meet n plan something. फिर उनके बाद वाली कहेगी.
मित्रों से न मिल पाना दुखद जरूर है.
ऐसा तो मुझे भी महसूस होता है
बी एस पाबला
समय के साथ यह बदलाव तो होता ही है।
अनिल भाई आपने सही कहा कभी बचपन के दोस्तों से मिलने के लिए एक टीस उठती है और लगता है अभी ही मिल लें, पिछले साल मै अपने सहपाठी को ढुंढ कर अजमेर मे 28 साल बाद मिला, पुराने मित्रों और पुरानी ......का मजा और ही है, हैप्पी संडे
सही कहा अपने शहर में ही बेगाने से हो जाते है
उस हालात को क्या कहेंगे जब मित्र तो वही हैं, मगर मित्रता कहीं बाकी ना रहे?
कई-कई महीने ?
मेरे विचार से तो कई-कई अधिक उचित लग रहा है..
जीवन क्लिष्टतर होता जा रहा है
सच कहा ........ समय की रफ़्तार इतनी तेज़ है की हर कोई भाग रहा है ............. किसी पर वक़्त नही .........
really true...aapse mile bhi kitna samay ho jaata hai..carrom ki gotiyan hi achhi hain jo aapke haath har roj lagti hain..
Triambak Sharma
ये तो स्पष्ट हुआ की आपके मित्र अंग्रेज हैं , उच्चाधिकारी हैं , इसलिए एसएमएस गढ़ रहे हैं , परिवर्तन भांप रहे हैं !
पुसदकर जी इस देश में ऐसे 'सूत्र वाक्य' शाब्दिक चोंचलेबाजी और डकार मारते धनकुबेरों की मानसिक अय्याशी के सिवा क्या है ?
देश की बहुसंख्य आबादी रोज कुंवा खोदती थी और आज भी खोदती है कैसा समय परिवर्तन ?
"मिलकर कैसा प्लान ? और प्लान कर कैसा मिलन ? "
आपको बुरा लगे तो , खेद सहित टिप्पणी कर रहा हूँ !
समय के साथ दोस्तों के सम्पर्क भी बदल जाते है...दोस्त बदल जाते है... जो लंगोटिया यार थे, वो बेगाने से लगते है, जब हम एक अंतराल के बाद मिलते हैं... ये जीवन चक्र है, समय चक्र है:)
किसी ने कहा था:
"जीवन हमारा निरंतर सफ़र है
जो मंजिल पे पहुंचे तो मंजिल बढ़ा दी"
भाई, हम खानाबदोशों के सफ़र में एक पल ठहरकर मित्रों से मिलना हो जाए वही बड़ी बात है.
सच कहा अनिल जी....एकदम सच!
पुराने मित्रों से न मिल पाने की टीस...आह!
जीवन की दौड धूप के चलते रिश्ते कहीं पीछे छूटते जा रहे हैं.....
अनिल भाई दोस्ती का जज़्बा किसीको सीखना हो तो आपसे सीखे.. सच कह रहा हूँ आंखिन देखी ।
बिल्कुल ठीक लिख रहे हैं समय की कमी और भौतिकता ने लोगों को दूर कर दिया.
bahut hi sachchi baat kah di aapne...jamana kitna hi badal jaye parantu manushya ko apno ki kami hamesha salti hai.
सच ही तो है ! ऐसा ही हो गया है अब तो...
सर से पैर तक आकंठ डूबे भौतिकतावादी जीवनशैली में बिना स्वार्थ के दोस्तों-यारों से मिलने की फुर्सत कहाँ है?
आदरनीय अनिल भैया.....
आप सच कह रहे हैं.... वक़्त बदल गया है......
Time never stands still.......
Post a Comment