सुभान शाह,यही नाम बताया उसने अपना।बजरंगबली का मंदिर बहुत प्रसिद्ध है और नागपुर से करीब सौ किमी दूर है।मैं आई,छोटे भाई,बहु,भतीजे-भतीजी,छोटी बहन-बहनोई और भांजो के साथ एक तारीख को नागपुर-काटोल रोड़ पर 40 किमी दूर स्थित आदासा मे गणेश जी के दर्शन के लिये गया।लौटते समय देर हो गई सो दूसरे दिन बजरंगबली के दर्शन के लिये निकल पड़ा।बाकि लोग दूसरी कार मे रामटेक के लिये रवाना हो गये।मैं पहली बार महारूद्र मारूती के नाम से प्रसिद्ध बजरंगबली के मंदिर मे अकेला गया था।बजरंगबली के मंदिर मे सीने स्टार मनोज कुमार और हेमामालिनी भी गये थे।यंहा बताया जाता है कि हेमा मालिनी को बजरंगबली ने खुद दर्शन दिये थे उसके बाद हेमामालिनी को बहुत तलाश के बाद एक छोटे से गांव मे बने इस मंदिर का पता चला था।उन्होने तत्कालीन पीड्ब्ल्यूडी मिनीस्टर नितीन गड़करी से बात करके मंदिर तक़ रोड बना कर देने का प्रस्ताव रखा और उसके बाद से वंहा तक़ की सड़क बनी और आज तक़ अच्छी हालत में है।
खैर जैसे ही मैं मंदिर पहुंचा तो मेरा ध्यान एक आवाज़ ने खींचा,बच्चा सालों से यंहा आता है कभी तो दान-पुण्य कर।मैनें देखा एक अच्छा खासा तगड़ा जवान फ़कीर मुझे देख रहा था।मैं सालों से उस मंदिर मे जा रहा हूं और साल मे एक नही कई कई बार जाता हूं।उस फ़कीर को देखकर मुझे आश्चर्य ज़रुर होता था और उससे बात करने की इच्छा भी,मगर रायपुर लौटने की ज़ल्दी के कारण मैं हमेशा उसे टालता रहा।इस बार मैं अकेला था और वंहा से 450 किमी दूर सीधे रायपुर भी नही आना था।यानी मेरे पास काफ़ी समय था।मैने जेब मे से कुछ सिक्के निकाले और फ़कीर की कश्ती,शायद यही कहा था उसने अपने भिक्षापात्र को,में डाले और उससे कहा कि बाबा दर्शन करके आता हूं आप जाना नही।वो हंसा और बोला मैं कंहा जाऊंगा बच्चा,जाना तो तुम्हे है।
मैं मंदिर गया और दर्शन करके जब बाहर लौटा तो सुभानशाह उसी जगह पर बैठा पाया।तब मैने ध्यान से देखा उसका एक पैर कटा हुआ था।इससे पहले मेरे दिमाग मे जो हट्टे-कट्टे लोगों को भीख मांगते देख कर नफ़रत उफ़नती थी वो नफ़रत उफ़ान मार रही थी।मैने सुभान शाह की कश्ती मे फ़िर से कुछ रूपये डाले और उनसे पूछा बाबा आप मुस्लि……………हां बच्चा मैं मुसलमान हूं और यंही पास के गांव मे रहता हूं।मैने उनसे पूछा बाबा आप पहनावा भी फ़कीर्……………फ़कीर हूं तो फ़कीर का नही तो बादशाह का पहनावा पहनूंगा।मैने कहा वो बात नही है।तो इस पहनावे मे मुसलमान नज़र आता हूं,यही ना?मैने कहा हां।उसने कुछ फ़र्क नही पड़ता बच्चा,फ़र्क इस कपडे का हो शरीर का,जो आया है उसे अंत मे जाना तो वंही है।मैंने सीधे अपनी शंका का समाधान चाहा और पूछा आप यंहा बजरंगबली के दरबार मे मांगते किसके नाम पर हो?वो एक बार फ़िर हंसा और बोला मेरा काम मांगना है जिसे देना है वो देता है।मैने कहा कि अल्लाह के नाम पर?यंहा तो सब हिंदू आते हैं?उसने कहा मुझे देख कर क्या लगता है कि मैं हिंदू हूं?मैने कहा नही आप तो साफ़-साफ़ मुसलमान नज़र आते हैं।फ़िर जब मै दिखता ही मुसलमान हूं फ़िर बजरंगबली के नाम पर मांगू या अल्लाह के नाम पर क्या फ़र्क़ पड़ेगा?मैने कहा वो बात नह्……………सुभान शाह एक बार फ़िर ज़ोर से हंसा और उसने पूछा कंहा रहते हो,ईधर के दिखते तो नही हो।मैने कहा रहने वाले तो यंही के है लेकिन रायपुर शिफ़्ट हो गये हैं।वो बोला इसिलिये।मै खामोशी से उसे देखता रहा।
सुभान शाह ने अपने बारे मे बताना शुरू किया।उसने बताया कि ये उसकी चौथी पीढी है जो इस दरबार मे मांग रही है।कुल 80 सालों से ये सिलसिला चला आ रहा है।उसने अपने पात्र को दिखा कर कहा कि ये कश्ती जिसके पास होती है वही असली फ़कीर होता है।मैं यंहा बचपन से आ रहा हूं।मेरा एक्सीडेंट हो गया था जिसमे मेरी टांग चली गई।हम लोगों मे पाक साफ़ हो तो नहाना ज़रूरी नही होता लेकिन तुम लोगों मे बिना नहाये मंदिर नही जाते इसलिये मैं रोज़ नहाता हूं।मैने कुछ कहना चाहा मगर मेरी बात बीच मे काट कर उसने बाहर बैठने के लिये नहाना क्यों ज़रूरी है,यही पूछना चाहते होना?मैं हैरान रह गया मेरे मन मे ठीक वही सवाल उमड़ा था।उसने कहा मैं नहा कर आता हूं तो सीधे यंहा नही बैठता।मंदिर मे जाता हूं और दर्शन करके बाहर बैठ जाता हूं।मै आज तक़ शाम की आरती हुये बिना वापस नही लौटा हूं।दोपहर खाना मुझे मेरी बहन खिला देती है।उसने एक तरफ़ ईशारा करके कहा।मैने उस ओर देखा तो मुझे उधर कोई मुस्लिम महिला नज़र नही आई।मैने सवालिया निगाहों से जब उसे देखा तो उसने कहा अरे वो जो सामने खड़ी है ना,मैने कहा वो तो हिंदू है?वो फ़िर ज़ोर से हंसा तो और पलट कर सवाल्म किया तो क्या वो मेरी बहन नही हो सकती?
सुभान शाह ने कहा एक दिन ऐसा नही गया जिस दिन इसने मुझे दोपहर का खाना ना खिलाया हो।मैने कहा कि बाबा इस इलाके के मुसलमान आपत्ति नही करते,मेरा मतलब है फ़तवा…………उसने फ़िर ज़ोरदार ठहाका लगाया।मंदिर गये थे ना?मैने कहा जी।वो अंदर गदा है ना,वो किसी हिंदू ने नही यंही पास के शहर के एक मुसलमान ने चढाई है?बहुत से लोग यंहा आते हैं और इस दरबार से खाली हाथ नही जाते।वैसे ये सब बातें तो तुम बड़े लोगों की बड़े शहर मे रहने वालों की बड़ी-बड़ी बातें हैं।हम फ़कीर छोटे-मोटे लोग इस बात पर ध्यान नही देते।और फ़िर मेरा काम मांगना है जिसे देना है वो देता है,अब चाहे वो बजरंगबली के नाम पर दे या अल्लाह के नाम पर क्या फ़र्क़ पड़ता है?मैं खामोश हो गया और मैने उससे कहा कि मैं एक पत्रकार हूं।वो हंसा।मैने उससे पूछा कि आपकी तस्वीर ले लूं।उसने कहा ले लो।मैने कहा कि कंही छपने से कुछ गड़बड़……………वो बोला,बच्चा ये सब सोचना तेरा काम नही है।कुछ उसके लिये भी छोड़ दे।उसने ऊपर की ओर इशारा किया और आंखे मूंद ली।मैने उससे इज़ाजत ली और सोचते हुये निकल आया कि अच्छा है धर्म के नाम पर बखेड़ा खड़ा करने वालों की बुरी नज़र वंहा तक़ नही पंहुची वरना क्या पता पीढीयों से चले आ रहे सिलसिले पर …………………।मैने एक गहरी सांस ली और कहा बजरंगबली सुभानशाह का खयाल रखना और वापस निकल आया।नये साल पर ये नया अनुभव था जो सालो की कडुवाहट के बाद अमृत जैसा लगा।सोचा आप लोगों के साथ भी इस अच्छी खबर को बांट लूं और नये साल की शुरूआत तो कम से कम अच्छी करूं।
29 comments:
bhaut hi badiya experience hai anil ji padne laga toh poora hi pad gaya accha hai chaliye naye saal ki mubarak ho aapko
bhaut hi badiya experience hai anil ji padne laga toh poora hi pad gaya accha hai chaliye naye saal ki mubarak ho aapko
अच्छी खबर दी आपने भाऊ…। हिन्दू तो वैसे भी पैदाइशी सहनशील और स्वभावतः "सेकुलर होता है, दिक्कत तो "दूसरे" लोग पैदा करते हैं। अंग्रेजी नववर्ष की शुभकामनाएं आपको… :) :)
जय हो। हम दुआ करते हैं बच्चा मस्त रहे हमेशा। जल्दी से जोड़े से घूमे।
काश दुनिया में हो रही इस प्रकार की बातों से भी हम कुछ सीख ले पाते !!
बहुत ही सुंदर संदेश दिया है आप के इस संस्मरण ने.
मंदिर के बाहर मुस्लिम फकीर या मस्जिद के बाहर हिंदू भिक्षुक ...ग़रीब को इससे क्या फरक पड़ता है हिंदू दे या मुस्लिम..
दो वक्त की रोटी के लिए जो जुगाड़ कर दे वही ईश्वर है.
ऐसे उदाहरण मिसाल है धार्मिक एकता के ..जो यही संदेश देते हैं की मानवता धरम से बढ़कर कुछ नहीं.
वैसे इस दुनिया में सभी भिक्षुक हैं ... स्तर सब के अलग अलग हैं ..कोई उच्च स्तर का है तो कोई निचले स्तर का...
एक भजन के बोल हैं--
लाए क्या थे जो लेके जाना है...नेक दिल ही तेरा ख़ज़ाना है....!
देखें इस पोस्ट से कितनो तक को यह संदेस पहुँचता है...
wah man khush ho gaya aapki ye post padhkar....sach...kaash ye jazba sab hindustaniyon main hota.bahut shukriya ye anubhav bantne ka.
बहुत सुंदर लेकिन तीन पीढीयो से एक ही धंधा? मै भी मंगने वालो से कभी उन का धर्म नही पूछता, क्योकि सभी लोग बराबर है, कोई अल्लाह के नाम से दे या भगवान के नाम से इन बेचारो को तो अपना पेट भरना है, बहुत सुंदर
धन्यवाद
नववर्ष की शुभकामनाएं। मांगने वाले हाथ कभी नहीं देखते कि हम किस से मांग रहे हैं लेकिन देने वाले हाथ जरूर देखते हैं कि हम किसे दे रहे हैं?
ांच्छा लगा संस्मरण नये साल की शुभकामनायें
विडम्बना तो यह है कि जो बातें एक फकीर को समझ में आती हैं वही बातें बहुत लोगों को समझ में नहीं आतीं।
असली सेकुलरिज्म आपने दिखा दी. अब देखना यह है कि ये बेचारे कितने दिन बच पाते हैं फतवों से.
सुभान शाह तो दिख गए. बजरंग बली भी दिख जाते तो सुभान अल्लाह. फोटो में कश्ती नहीं दिख रही है.
आपका संस्मरण आशा की उमीद जगाता है ........ शांति का संदेश देता है अपने देश के उन लोगों को जो मज़हब के नाम पर मर मिटने को तयार हैं ........... आपको नव वर्ष की बहुत बहुत बधाई ..........
नव वर्ष में आपके और सुभान शाह के माध्यम से जो संदेश मिला..आशा है उसको विस्तार मिले. लोग समझें.
बहुत आभार.
--
’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’
-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.
नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'
कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.
-सादर,
समीर लाल ’समीर’
सही बिल्कुल सही, कोई भी दे अपने को तो लेने से मतलब है।
नववर्ष की शुभकामनाएँ।
वाह जी क्या बात है , बहुत बढिया लगा जानकर ।
हिन्दुस्तान में एक ही है जो धर्मो से परे है वह है पैसा
बहुत अच्छा संदेश।
मोतियों की कमी नहीं इस जहाँ में
जरूरत है तो सिर्फ उन्हे पहचानने की
दाता एक राम भिखारी सारी दुनिया.....
काश इतनी सी बात को हम लोग समझ पाते तो आज ये धरती स्वर्ग होती!!!
प्रेरणात्मक संस्मरण.
नए साल की राम राम। हम भी अनूप शुकुल जी वाली दुआ रोज सुबह और शाम करते हैं। आज खड़े गणेश मंदिर गए थे। वहाँ ये दुआ नहीं कर पाए। अब यहाँ से बैठे बैठे कर रहे हैं। जब रायपुर आएँ तो आप को जोड़े में ही देखें।
जो समझदार है वो जानता है सारी माया एक है, भेद तो सियासत पैदा करती है।
पैसा सब धर्मों से ऊपर है उसी तरह जैसे भाईचारा और सद्भावना । अच्छी प्रस्तुति ।
क्या बात है अनिल सही आदमी सही जगह पहुंच जाये तो सार्थक बातें निकल हि आती है, लग रहा था जैसे कोई लघुकथा पढ़ रहा हुं.
बहुत पहले लिखी एक लाईन याद आ गयी.
" जाने किसकी बद-दुआयें हमको असर लगी,
सदियों पुराने प्यार को
किसकी नजर लगी"
अनूप शुक्ल जी की बात को समर्थन, जोड़े वाला आशीर्वाद इसी साल पूरा हो...
बाकी सुभान शाह से मुलाकात अच्छी लगी...
न अमीरों से बदलेगा, न वज़ीरो से
ज़माना बदलेगा तो बस फ़कीरों से...
जय हिंद...
हिन्दू तो वैसे भी पैदाइशी सहनशील और स्वभावतः "सेकुलर होता है, दिक्कत तो "दूसरे" लोग पैदा करते हैं।
भैया आपके इतनी प्रभावशाली और प्रेरक पोस्ट को इस कमेन्ट ने , अब क्या कहूं !
मलिन हुआ मन!
पैदाईशी सभी एक से होते हैं .चाहे आप उन्हें सहनशील कहें या क्रूर!
इस धारणा का मैं हमेशा विरोधी रहा हूँ और ये भ्रामक भी है कि फलां ऐसे होते और फलां ऐसे होते हैं.
यही मानसिकता साम्प्रदायिकता का पोषण करती है,
सुभान अल्लाह जैसे लोग सिर्फ फकीर नहीं होते , वो दर असल उस परमशक्ति को जान चुके होते हैं और फिर हिन्दू-मुस्लिम का भेद ख़त्म होता हो जाता है.हमारे देश में भक्ति आन्दोलन में यही संस्कृति परवान चढ़ी और इसमें अमीर खुसरू से लेकर कालान्तर में रायपुर के बंजारीबाबा तक ये सिलसिला इसी गंगा-जमनी और साझी विरासत की गवाही दे रहा है.
अनील भैया कभी बंजारी वाले बाबा par भी लिखिए.उनके इस नाम से ही ठेठ भारतीयता की सोंधी महक आती है.
मज़हबी फ़ितुर पढे-लिखे और तथाकथित बुद्धिजीवी फ़ैलाते हैं ॥ बढिया संस्मरण॥
सार्थक संस्मरण है, और आंख खोलने वाला भा।
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बारिश की वो सोंधी खुश्बू क्या कहती है?
क्या सुरक्षा के लिए इज्जत को तार तार करना जरूरी है?
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