एक बात समझ मे नही आ रही है कि ये कथित नेशनल न्यूज़ चैनल वाले लोगों को शिक्षित करने पर क्यों तुले हुये हैं,खासकर हिंदूओं को।सब के सब चिल्ला रहे है ग्रहण के बारे मे धार्मिक या पारंपरिक मान्यताएं बकवास है।सब पानी पी-पी के ग्रहण और ज्योतिषियों के खिलाफ़ आग उगल रहे हैं लेकिन क्या कभी इतनी जागरूकता किसी दूसरे धर्म के अंधविश्वासों के खिलाफ़ दिखाई है।हिंदू मंदिर मे अगर बलि चढ जाये तो सारे देश के नैतिकता और सुधारवाद के ठेकेदार वंहा पंहुच जायेंगे और बतायेंगे सारे हिंदू गलत हैं,सारी मान्यताऐं गलत है।सिर्फ़ वे सही है।तो मेरा अनुरोध है कि एकाध बार ज़रा किसी त्योहार विशेष पर काटे जाने वाले सबसे निरीह प्राणी का बहता हुआ खून भी दिखा दे।अगर दम है तो ये बता दें कि किसी बेज़ुबान जानवर की जान लेकर आपको पुण्य कभी नही मिल सकता।दम है तो उसे भी बलि प्रथा कह कर विरोध करके दिखायें।अगर नही कर सकते तो काहे हिंदू धर्म के पीछे पड़े हुये स्वयंभू ठेकेदारों।कृष्ण को रसिया कहते समय ज़रा नही हिचकने वाले किसी दूसरे धर्म मे बिन-बाप के बच्चे और बिन ब्याही मां के बारे मे वो सब कह कर दिखाओ,जो समाज मे कहा जाता है।
नही आप लोग ये सब कह ही नही सकते क्योंकि मै जिस प्रथा के बारे मे कह रहा हूं वो आप लोगों के हिसाब से बलि नही कुर्बानी है शायद्।मैं जिस के बारे मे बात कर रहा हूं उसे आप एक त्योहार विशेष पर रात को महिमा मंडित करते हैं क्योंकी वो मां या माता नही है मदर है। है ना।वंदे मातरम के शाब्दिक अर्थ पर घण्टो बहस कर सकते हैं क्योंकि वंहा मदर या अम्मा नही है मां है।हिंदू धर्म के लोग यदि नदी मे डुबकी लगा दें तो अंधविश्वास,किसी पत्थर की पूजा करने लगे तो अवैज्ञानिक दृष्टिकोण,अज्ञान,अशिक्षा और पाखण्ड,जाने क्या-क्या।खुलकर बक़वास करते हैं आप लोग्।लेकिन आप लोगों से पूछा जाये कि भैया अगर ये सही है कि हिंदू अनपढ,अज्ञानी,अतार्किक,अवैज्ञानिक है तो एक जगह विशेष पर पत्थर फ़ेंक कर शैतान को मारने वाले कितने वैज्ञानिक हैं।कितने लोगों का पत्थर डाय्रेक्ट शैतान को लगता है और वो शैतान रहता कंहा है और क्या उतनी दूर तक़ आदमी का हाथों से फ़ेंका हुआ पत्थर जा सकता है?
छोड़ो गैर हिंदू धार्मिक मान्याताओं को उसके बारे मे पता है बात करने से ही…… है।अगर कोई बोला तो दफ़्तर मे घूस कर मारेंगे और कोई धर्मनिरपेक्ष नेता भी मुंह तक़ नही खोल पायेगा।आप लोगों की औकात सबको पता है।शांत और सहिष्णु हिंदू के खिलाफ़ ज़हर उगलो और अपने आपको समाज सुधारक,जागरूकता के होलसेल डीलर साबित करो।जो जितना दम है उतनी बात कर रहा है आज्।कोई किसी वैज्ञानिक को खाना खाते दिखा रहा है तो लोगों को खुले मे घूमते हुये।कोई ग्रहण को देखते हुये वैज्ञानिको से बतिया रहा है तो ज्योतिषियों और हिंदू धर्म या दर्शन शास्त्रियों का मज़ाक उड़ा कर अपने आपको महान तर्क शास्त्री या विद्वान साबित करने पर तुला हुआ है।इनमे से आधे से ज्यादा लोगों के घरों मे उनके परिवार वाले,माता-पिता,दादा-दादी,नाना-नानी वही सब कर रहे होंगे जिनका ये कथित पढे लिखे विद्वान बच्चे मज़ाक उडाते नज़र आ रहे हैं।दम है तो दिखाते अपने घरों का हाल।दूसरे के घर का तमाशा तो हमेशा अच्छा ही लगता है।
खैर जाने दिजिये ये तो सब जानते है अपने आप को प्रगतिशील,सुधारवादी,विद्वान और धर्मनिरपेक्ष साबित करने के लिये हिंदूओं को गाली देने से सस्ता कोई उपाय नही है।मेरा ये सवाल है कि ठीक है हम आपको वो सब मान लेते हैं जो साबित करने के लिये आज आप दिन भर ग्रहण के नाम पर बकवास कर रहे हैं।लेकिन क्या इस देश मे सिर्फ़ सूर्य ग्रहण और उससे जुड़े अंधविश्वास के खिलाफ़ ही जनजागरण अभियान ज़रूरी है?क्या सूर्य ग्रहण से ज्यादा दुष्प्रभाव आपको नशे का नज़र नही आता?क्या आपको नही लगता कि देश की युवा पीढी गुमराह हो रही है उन्हे नशे की राह पर ढकेला जा रहा है?क्या आपको नही लगता कि इस देश मे पानी और कैसेट्स के नाम पर आप लोगों के मालिक सीधे सीधे शराब कंपनियों का विज्ञापन दिखा कर जनता से धोकाधड़ी कर रहे हैं।क्या आप को नही लगता कन्या शालाओं के सामने गर्भनिरोधक गोलियों के विज्ञापनो के होर्डिंग क्या बालमन पर क्या दुष्प्रभाव डाल रहे हैं?क्या आपको नही लगता कि सारे देश मे स्कूलों के अगल-बगल ही पान ठेले खुलें हुए हैं,जंहा बिकने वाली सिगरेट,पान मसाले,तम्बाखू,गुटका स्कूली बच्चों को मौत के मुंह मे ढकेल रहे हैं?क्या ये सब हमारी युवा पीढी पर ग्रहण नही है?क्या इनके खिलाफ़ आप लोगों को आवाज़ नही उठाना चाहिये?क्या इन सब के खिलाह जागरूकता अभियान नही चलाना चाहिये?
अभियान चलाना तो जाने दिजिये ये बताईये कि क्या तोड़-मरोड़ कर दिखाये जाने वाले शराब कंपनियों के विज्ञापनो पर रोक नही लगनी चाहिये?क्या शराब कंपनियों को अपने ब्रांड का विज्ञापन करके दूसरे उत्पादों से ज्यादा शराब बेचने मे आप लोगों को मदद करनी चाहिये?सरकारी रोक के बावज़ूद कभी क्रिकेट मैच के प्रायोजकों के रूप मे तो कभी किसी अन्य रूप मे शराब मे ब्राण्ड दिखाने पर आप लोगों को जनहित मे रोक नही लगानी चाहिये?क्या इस बारे मे अभियान नही चलाया जाना चाहिये कि शराब बनाने वाली कंपनी दूसरे कई उत्पादों के लिये भले ही एक ही नाम रखे मगर शराब के लिये सिर्फ़ एक ब्राण्ड का उपयोग करे और उसे दिखाये जाने पर प्रतिबंध लगे?ये सब आप लोग कर ही नही सकते क्योंकि शराब कण्डोम और गर्भनिरोधक गोलियों के विज्ञापनो से होने वाली मोटी कमाई से ही तो चैनल चल रहा है और फ़िर इसके दुष्प्रभाव मे आने वाली युवा पीढी से आप लोगों के चैनलों की किमत तो कई गुना ज्यादा होगी,है ना?आप लोगों के लिये तो यही ठीक है जब हिंदूओं का कोई त्योहार आये,अपना भोंपू निकालो और चिल्ला कर कथित धर्मनिरपेक्षता और जागरूकता बेचो।गालियां बको हिंदूओं को हिंदूओं के देश मे और नक्सलियों,आतंकवादियों के साथ होने वाले व्यवहार को अत्याचार साबित करके सच्चे मानवाधिकारवादी बनकर अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कार(खैरात) बटोरो।आप लोग इस ग्रहण के बारे मे ही बोल सकते हो। आप लोग सिर्फ़ हिंदू धर्म के खिलाफ़ ही बोल सकते हो अगर है दम तो फ़िर दिखा दो वो सब जो हमारे सवालों का जवाब है।मेरे सवाल आप लोगों के हिंदू विरोधी रवेये के खिलाफ़ है ना कि किसी अन्य धर्म के। मैं आप लोगों जैसा पाखण्डी धर्मनिरपेक्ष नही हूं।मैं सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करता हूं।यंहा उठाये गये सवाल किसी धर्म विशेष का विरोध करने के लिये नही बल्कि ये साबित करने के लिये उठाये गये हैं कि मीडिया सिर्फ़ हिंदू धर्म को सुनियोजित ढंग से टारगेट कर रहा है।
36 comments:
सही कह रहे हैं.
"धर्मनिरपेक्ष साबित करने के लिये हिंदूओं को गाली देने से सस्ता कोई उपाय नही है।"
हिन्दू का हाल तो "गरीब की लुगाई सबकी भौजाई" जैसा है।
इनके पास आजकाल कोई खबर भी तो नहीं है अनिल जी, आपने बहुत सटीक प्रश्न उठाए है ! इनकी मिलीभगत का एक और उदाहरण मैं आपको देता हूँ ! मैं नहीं कहता कि बीजेपी और एनडीए वाले नेता महान थे वे भी इनकी ही विरादरी के थे मगर अगर एन डी ये का दौर याद करे तो मुझे याद है कि ये तथाकथित सेकुलर मीडिया वाले जब-तब किसी राष्ट्रीय स्तर की बात पर तत्कालीन प्रधानमंत्री , बाजपाई जी के पास पहुच उनके विचार और प्रतिक्रया जानने हेतु पहुँच जाते थे ! लेकिन इस महंगाई की हाय-तौबा को चलते करीब साल-डेड साल गुजर गया, कितनी बार हमारे ये मीडिया वाले, महंगाई का मुद्दा उठाने प्रधानमंत्री के पास गए ? श्रीमती सोनिया गांधी के पास गए, शायद ही कभी आपने ऐसा करते इन्हें टीवी पर देखा हो ! हां, कोई तारीफ़ करने वाली बात हो तो उसे जरूर दिखायेगे, कि राहुल बहिया किस दलित की झोपडी में रुके और क्या खाया !
हिंदू धर्म के सहनशीलता, प्रगतिशीलता और तार्किकता जैसे भले गुण कुछ साइड इफ़ेक्ट्स को भी आमंत्रित करते हैं. कायरता उनमें से एक है.
इस्लाम और ईसाइयत जैसी कट्टर, अतार्किक और हठी विश्वास प्रणालियां जिस भुरभुरी बुनियाद पर खड़ी हैं, यदि उस बारे में चर्चा शुरू हो जाए तो इनके रेत के महल भरभरा कर गिर पड़ेंगे. इसी लिये वहां ज्यादा तर्क-वितर्क की गुंजाइश नहीं है.
गोदियाल जी के कमेण्ट में आगे जोड़ते हुए कहना चाहता हूं कि "कोलकाता के रिज़वान मामले पर रवीश-पुण्यप्रसून-दिबांग-विनोद दुआ जितना सामूहिक रूप से रोये होंगे… उसका 10% भी कश्मीर के रजनीश मामले पर रोकर दिखाते तो हम उन्हें "मर्द" मान लेते… लेकिन प्रणय "जेम्स" रॉय के नौकरों से इतनी हिम्मत की उम्मीद न करिये…। एमएफ़ हुसैन को भारत रत्न दिलवाने के लिये SMS मंगवाते हैं ये बेशर्म लोग…
सटीक पोस्ट-आभार
अनिल जी, आप भी किन लोगों की बात लेकर बैठ गए, ये तो वो प्राणी हैं जो पैसे के लिए कुछ भी कर सकते हैं। मेरी एक लघुकथा है जिसमें मैंने यह कहा कि हाथी के पीछे कुत्ते इसलिए भौंकने की हिम्मत करते हैं क्योंकि हाथी शाकाहारी है। समझ गए न आप।
आप से इस बात पर सहमति है कि मीडिया सिर्फ़ हिंदू धर्म को सुनियोजित ढंग से टारगेट कर रहा है।
उस का कारण है कि मीडिया आज एक व्यवसाय है। उसे हिन्दुओं में व्यवसाय करना है। बाजार बनाना है। हिन्दुओं को ग्रहण के समय क्या क्या करना चाहिए? इस के लिए भी घंटों पर घंटे मीडिया ही खर्च कर रहा है। भारतीय जनता को सब तरफ से टारगेट बनाया जा रहा है। धार्मिक रीतियाँ बता कर उन के विश्वासियों को ठगा जा रहा है और विज्ञानियों से आलोचना करवा कर भारतीय जनता के एक दूसरे हिस्से को ठगा जा रहा है। जम कर ठगाई चल रही है। हम ठगे जा रहे हैं।
ye taslim ke zakir ne bhi naak me dam kar rakha hai..jab dekho hindu dharm ki kamiya...are bhai aapke muslim dharm me bhi to buraiya hain unhe pehle door karo phir hame sikhana...inki bhi khabar leni chahiye...
अनिल जी सही कहा है। हमारे धर्म में ठेकेदार जो कोई नहीं है पर भई 33 करोड़ देवी देवता हैं कोई कुछ कह देता है तो पता भी नहीं चल पाता क्योंकि 50-100 के आगे तो कोई भी शायद ही जानता होगा। और रही दूसरे धर्मों की बात तो उनके धर्म में इतनी लिबर्टी कहां कि दिखा सकें। वो तो पहले से ही कट्टर होते हैं।
धर्मनिरपेक्ष साबित करने के लिये हिंदूओं को गाली देने से सस्ता कोई उपाय नही है।
सही विषय उठाया है आपने।
बहुत सही लिखा है,आप ने हम अपने ही देश मै विदेशी है.
ऐसा ही है हिन्दू को गाली खाने की आदत पड़ चुकी है. हिन्दू मजारों दरगाहों पर दिखाई दे जाता है और नेता चादर चढ़ाकर फोटो खिंचवाते हैं, एक भी मुसलमान नेता को मन्दिर, गुरुद्वारे में देखा है. ईसाई (रेड्डी जैसे) हिन्दुओं को बेवकूफ बनाने के लिये नाटक करते रहते हैं.
यंहा उठाये गये सवाल किसी धर्म विशेष का विरोध करने के लिये नही बल्कि ये साबित करने के लिये उठाये गये हैं कि मीडिया सिर्फ़ हिंदू धर्म को सुनियोजित ढंग से टारगेट कर रहा है।
सौ प्रतिशत सहमत.
आज यही सोच रहा था
वाह क्या बात है लाज़वाब
मुस्लिम धर्म को मानने वाले ईद मानते हैं , ईसाई क्रिसमस , सीखो के भी अपने गुरु हैं । जो धर्म को नहीं मानते वो भी कोई श्री रवि शंकर जी कि आर्ट ऑफ़ लिविंग मै जाते हैं या शिव खेरा को पढते हैं और आगे चले तो साई बाबा का पाना महातम हैं । किसी भी व्यक्ति को ले लीजिये वो किसी न किसी प्रकार से धर्म , आध्यात्म या जो आप कहना चाहे कहे उससे जुडा हैं । सबके यहाँ उनके त्योहारों पर एक विशेष प्रकार का भोजन बनता हैं । लेकिन जब भी बात होती हैं तो सिर्फ हिन्दू धर्म को ही रुढ़िवादी कहा जाता हैं । कल नारी ब्लॉग पर संगीता पुरी के ऊपर पोस्ट दी , जाकिर ने फ़रमाया कि ये सही नहीं अंधविश्वास ना फेलाए । अब संगीता पर लिखने से कौन सा अंधविश्वास फेल जाता जाता हैं ?? हिन्दू धर्म और उसके बाद स्त्री लोगो को बस यही दो मुद्दे मिलते हैं जहां वो अविश्वास और पतन कि बात कर लेते हैं ।
सब किसी ना किसी आस्था से जुड़े हैं माने या माने , अंधविश्वास हटाना हैं तो अपने को लकीर पर चलने से रोकना होगा ये किसी धर्म को मानने या ना मानने कि बात नहीं हैं । अंधविश्वास मन मे होता हैं और सबके मन होता हैं ।
बाकी चैल केवल रोजी रोटी कमाते हैं उनपर बात करना ही व्यर्थ हैं । आज कल तो एक भी चैनल एसा नहीं हैं जहां समाचार दिखते हो बस केवल जो बिकता हैं वो दिखता हैं
इन बेचारे गरीब , जी हाँ गरीब ही तो हैं रोजी रोटी के लिए मालिक को खुश करने के लिए तरह तरह के नट नर्तन करते हैं . असली दोषी तो इनके मालिक हैं जो हैं तो रीढ़ विहीन लेकिन दूसरों के घर में झांकना इनकी बीमारी बन गया है. जब इनकी कमाई का श्रोत ही गंदा है तो कितना भी साबुन लगा लें दाग तो रहेगा ही .
खबरें कैसे दबाई और पैदा की जाती है कोई इनसे सीखे .
आइन्सटाइन के बाद इनसे बड़ा कोई वैज्ञानिक नहीं पैदा हुआ .
आपका क्षोभ सराहनीय है जी और सटीक प्रश्न उठाये हैं आपने मीडिया के नजरिये पर।
लेकिन हिन्दु धर्म इतना भी थोथा नही कि इन के दुष्प्रचार कमजोर हो जाये।
प्रणाम स्वीकार करें
मुद्दा तो सही है ... और अपनी आस्था से जुडा सवाल है ... विचारणीय पोस्ट.
अच्छा मुद्दा,
हिन्दू कभी भी कट्टर नहीं रहा है, इस लिए उसके बारे मैं जो जी मैं आये लोग बोल लेते हैं, किसी और धर्म (मुष्लिम और इसाई) अपने धर्म मैं कट्टर होते हैं , ये बात उन्हें पता हैं, अगर मीडिया ने उनके खिलाफ कुछ कहा तो क्या पता फतवा जारी हो जाये , या क्या पता सोनिया जी उनके उपर प्रतिबन्ध लगा दे। और एक बात तो सच है की मीडिया अब इमानदार नहीं रही। आज के रिपोर्टर सिर्फ और सिर्फ पैसे ( दो नम्बर का ) के लिए काम करते हैं, जिसने पैसा नहीं दिया उसकी खबर सबसे पहले।
यही सारे रोज सबेरे आज का भविष्य भी दिखाते हैं
लोगो ने हिन्दुओ को सहिष्णू कह कह कर नपुंसक मान लिया गया . और १५ % वोटो की चाह ही तुष्टीकरण को बढावा दे रही है . धर्म को अफ़ीम मानने वाले भी मुस्लिम और ईसाईयो पर जोर नही डालते
आपकी व्यथा सर्वथा उचित है। सज्जनों का ही लोग उपहास व आलोचना करते हैं । किन्तु, सहनशीलता इस हद तक नहीं होनी चाहिए कि अस्तित्व ही संकट में पड़ जाये।
एक गाने की तर्ज़ पर इतना ही कहना चाहेंगे.........
ये हिन्दू बड़ा जहरीला है,
रात दिन सताए.
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देख भी लीजिये, जय श्री राम कहिये या फिर राम-राम......हो गए सांप्रदायिक और यदि कह दीजिये अस्सलाम वालेकुम तो धर्मनिरपेक्ष...
ये देश है वीर जवानों का...................
खिलाफत शब्द को मुखालफत कर लिजिये, बाकी आप बहुत कुछ ठीक कहते हैं अन्धविश्वास हर तरफ है हमारी तरफ देखो चाँद तारा का कहीं नाम व निशान नहीं फिर हमारी लगभग हर चीज पर यह निशान नजर आता है, इतने बडे-बडे फतवे लिये घूम रहे हैं फिर भी कोई सुनने को तैयार नहीं
उलेमाओं का फतवा चाँद तारा मसलमानों का निशान नहीं है
http://umarkairanvi.blogspot.com/2009/09/blog-post.html
इस्लाम के मानने वालों में अन्धविश्वास से इन्कार नहीं उपरोक्त मिसाल से आप समझ लेंगे, पर आपने अच्छी मिसाल नहीं दी, जिस पत्थर की आप बात कर रहे हो वह केवल शैतान की सांकेतिक मुखालफत होती है, उसमें हँसी की बात यह होती है कि अक्सर तो वह पत्थर रास्ते में हज करने वालों के ही लग जाते हैं लेकिन नियत देखी जाती है, लगना जरूरी नहीं संकेत आवश्यक है
रही बात मिडिया की आप कहते हो हिन्दू विरोधी है तो मैं कहता हूं यह इस्लाम की दोस्त भी नहीं, यह कोई और धर्म या पैसे वालों के खेल हैं, कोई मिडिया हितैषी बता सके कि कौन सा चैनल अखबार, टीवी इस्लाम की तरफ हो तो मुझे बताओ अहसानमन्द हूंगा
रघुपति राघव, राजा राम,
सबको सम्मति दे भगवान...
जय हिंद...
अनिल जी, ये तो मदारी हैं, जो तमाशे हमारे समाज को पसंद हैं ये दिखायेंगे ही, इसके अलावा जैसे कुछ संस्थानों में रिसर्च व डेवलपमेंट पर खर्च किया जाता है वैसे ही आने वाले समय का बाजार तैयार करने में भी ये अपने कार्यक्रमों तथा विग्यापनों द्वारा प्रेरित करते हैं। हमारी साफ्ट स्टेट की जो छवि है, उसका दुरुपयोग तो होना ही है। और ये मौका इन्हें सभी राजनैतिक दल देते हैं। जितनी आजादी यहां तथाकथित अल्पसंख्यक वर्ग को है, इसका १० प्रतिशत भी दूसरे देश स्वीकार नहीं करते हैं। आपका कोई संपर्क यदि गल्फ देशों में हो तो मालूम कर देखियेगा कि रमजान के महीने में गैर-मुस्लिमों को वहां पानी की क्या-क्या दिक्कतें आती हैं। आपकी भांति हमारे भी कई मुस्लिम मित्र हैं लेकिन अपनी बिरादरी में ऐसों की संख्या बहुत कम हैं जो सही को सही और गलत को गलत कह सकें। सच्चाई ये है कि अल्पसंख्यकों में गुमराह किये जाने वाले और गुमराह हो जाने वाले बंधुओं की संख्या कहीं ज्यादा है। आपकी लेखनी बहुत प्रभावित करती है।
आपका आलेख बढ़िया है और ये पहला कदम है ..आगे मीडीया की पहुँच और राजतंत्र के चंगुल से
आम जनता को छुड़ाने के लिए क्या प्रयास किये जाएँ ..उस पर भी सिचार करें और लिखें
सद्भाव सहित
- लावण्या
मीडिया की तो कहिए मत , ऐसे-ऐसे लोग है यहाँ पर जो कि हिन्दू कहने पर कतराते हैं । बढिया पोस्ट लगी आपकी
सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं, कुछ कहना बेकार है।
.... बहुत सारे ज्वलंत विषयों को एक साथ समावेष कर अभिव्यक्त किया गया है जबकि इन विषयों को अलग-अलग लेख कर अभिव्यक्त किया जाता तो प्रस्तुति सार्थक होती, एक तरह से कहा जाये 'खिचडी' बन गई है!!!!
bhaiya kya mudda uthte ho ,,,,,,,
aapko loksabha me hona chahiye
aatankvad ,se ladne ke liye loksabha me mard nahi hai ,,,,
Bhawan Singh
meri uper waly bhagwan se prathna hai ki aap jaisy log higher lavel per ay our hamary desh, dharm k lea kush aisa kare ki aap ki kahi hue baat kabhi hame is tarha blogs main na pedni pade......
good louck
jai hind-vandy matrum
ek muslim leader ka kahna hai ki hindu dharti ko mata kahte hai cow ko mata kahte hai kyoki dharti ann deti hai cow bachhe paida karti hai to inko mata kahte hai " to kuttia bhi to bachha deti hai use mata kyo nahi kahte ye hindu"
to mai kahta hu ki ek muslim family me kai saari aurte hoti hai jo beti bhi lagti hai maa bhi lagti hai bahan bhi lagti hai aur bibi bhi lagti hai to mai puchta hu jo wo apni bibi ke saath kar sakta hai kya apni bahan,maa. beti ke saath kar sakta hai kyoki ye bhi to aurat hi hai
BHUT DHUK HOT HAI,JAB KOI NASMJH AOUR BEAQAL HINDU DHARMA K BARE MAIN ANAP -SNAP BAKTE HAIN.....LEKIN KHUN TAB KHOLTA H JAB KOI HINDU APNE NIJEEE SWRTHO K LIYE HI APNE DHARMA KI BEIJATTI KRNE PER UTARU HOTA HAI.
Mere khyal se sabhi hinduo ko ab action lena hi padega.
apne hi desh me ham pangu ban gaye hai.
sabse pahle Dr. Jakir naik ko yaha se baghao.
Wo jabardasti ki bate karta hai.
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