कल दोपहर को मिथिलेश दुबे का एसएमएस आया और उसमे उन्होने एक सवाल किया था सबसे ज्यादा दर्द किससे होता है।10 आप्शन थे और साथ ही मे ज्वाब ज़रूर देने का आग्रह भी।मिथिलेश को अक्सर पढता रहा हूं और उसके बारे मे मेरी राय अच्छे इंसान की है।उसके सवाल ने मुझे बेचैन कर दिया क्योंकि हाल ही मे सिर्फ़ मोहतरमा लिख देने से उन्हे बेवजह विवाद मे घसीट दिया गया और उस दर्द से बेचैन होकर उन्होने ब्लागिंग को ही नमस्ते करने की घोषणा कर दी थी।मुझे लगा कि कंही उसीसे जुड़ा सवाल तो नही है,मैं उस सवाल का जवाब एसएमएस से नही फ़ोन करके देना चाहता था मगर उसी समय उस सवाल का जवाब मेरे सामने आ खड़ा हुआ।मेरे लिये बात करना बहुत कठीन हो रहा था,सो मैने मिथिलेश को फ़ोन करने के बजाय एसएमएस किया और जवाब दिया "गरीबी"।
कल दोपहर मैं प्रेस क्लब मे बैठा था और उसी समय वरिष्ठ फ़ोटोग्राफ़र शारदा दत्त त्रिपाठी,महासचिव गोकुल सोनी,नरेन्द्र बंगाले दीपक पाण्डे आ गये और चर्चा शुरू हुई यंहा हर साल लगने वाले सरकारी कुम्भ मे आये नागा बाबाओं की।तभी एक मरियल, दुबली-पतली लड़की अंदर आई और डरते-डरते सामने रखी कुर्सी पर बैठ गई।डर के साथ-साथ दर्द उसके चेहरे पर फ़ैला हुआ था।उस समय मैं सरकारी कुम्भ के खिलाफ़ गुस्से से ज़हर उगल रहा था।मैने उस लड़की से पूछा किससे मिलना है?तो उसने आफ़िस असिस्टेंट पवन साहू का नाम लिया।मैने ईशारे से उसे बैठने के लिये कहा और हम लोग फ़िर से चर्चा मे जुट गये।
तब तक़ पवन लगभग दौडते हुये आया और उस लड़की को अलग ले गया और कुछ फ़ोटोग्राफ़रों से मिलवा दिया।हम लोग सरकारी रूपये का नकली कुम्भ के नाम पर दुरूपयोग का रोना रो ही रहे थे कि पवन उस लड़की को लेकर आया और बोला भैया इसकी समस्या है आप मदद कर दोगे तो भला हो जायेगा बेचारी का।मैने घूर कर पवन को देखा तो उसेए समझ आ गया कि एक तो मैं लड़कियों से बात करने से कतराता हूं और दूसरे जब किसी मुद्दे पर चर्चा होती है तो व्यवधान पसंद नही करता।पवन तत्काल खिसक लिया लेकिन वो मासूम लड़की वंही खड़ी रही।उसे भी समझ मे आ गया था कि मामला गड़बड़ है।उसके मुंह से आवाज़ चाह कर भी नही निकल पा रही थी।वो थूक निगलती खड़ी थी।आखिर मैने उससे पूछा क्या बात है?
पता नही उसे मेरी एकदम कर्कश और बेरूखी से लटपट आवाज़ मे कौन सी सहानुभूति महसूस हुई,वो रेडियो कि तरह एकदम से शुरू हो गई।और उसने जब बोलना शुरू किया तो खतम होने तक़ न मुझमे और न शारदादत्त,गोकुल या नरेन्द्र और जो भी वंहा बैठा था,उनमे से किसी की हिम्मत हुई टोका-टोकी करने की।उसकी बात पूरी होते-होते मिथिलेश का एसएमएस आ गया।उसकी बात पूरी सुनने के बाद मिथिलेश को पढा तो लगा कि जवाब पहले आ गया और सवाल उसके बाद आ रहा है।
लड़की की बातों से मेरे सोचने-समझने की ताक़त दम तोड़ने लगी थी और बची-खुची कसर मिथिलेश ने निकाल दी।मिथिलेश के सवाल सबसे ज्यादा दर्द किससे होता है के जवाब के लिये दस आप्शन इस प्रकार थे।1 ख्वाब,2 लव,3 जुदाई,4 गरीबी,5 बेबसी,6 धोखा,7 झूठ,8ज़ख्म,9 मौत,10 बेवफ़ाई।मैं उन आप्शनो पर विचार करने के पहले ही चौथे आप्शन गरीबी से आगे बढ नही पाया और फ़ुरसत मे बात करने के बहाने के साथ उसे जवाब दे दिया गरीबी।बाकी आप्शन मैंने बाद मे पढे।क्योंकि उस समय मेरे सामने खड़ी लड़की की कहानी यही जवाब बता रही थी।
उस लड़की के पिता को तीन-चार दिन पहले ही अज्ञात वाहन ने कुचल कर मौत की नींद सुला दिया था।दुर्घटना के कुछ देर बाद हम लोग भी उस ओर से गुज़रे थे।भीड़ लगी थी वंहा और पुलिस भी आ गई थी।सड़क पर एक शख्स आराम से लेटा हुआ था।शांत निश्चिंत।शायद उसे पता चल गया था कि अब वो दुनिया की भागमभाग से मुक्त हो चुका है।वो उस अभिशाप से भी मुक्त हो चुका था जिसे गरीबी,बेबसी या इस जैसी कोई चीज़ समझा जाता है।उसका शरीर सही सलामत था बस सिर नही था।वो किसी कमीने,(माफ़ करेंगे इसे अगर कोई भद्रजन गाली समझें तो)तेजरफ़्तार वाहन चालक ने सड़क पर चलने के लिये नरियल समझ कर फ़ोड़ दिया था।वो पता नही किधर से आया और किधर निकल गया।हम जैसे पत्थर दिल भी उस दृश्य को देख नही सके और तत्काल वंहा से हट लिये।
वो दृश्य मेरी आंखों के सामने फ़िर से घूम गया।वो अस्पताल मे भर्ती अपने बड़े बेटे को दवा पहुंचाने के लिये घर से निकला था।उसका बेटा अस्पताल मे उसका इंतज़ार ही करता रह गया।उसकी दोनो किड़नी खराब है।उसे बचाने के लिये उसका पिता किसी प्राईवेट कम्पनी मे कमरतोड़ मेहनत करने के बाद रात को उसे दवा देने के लिये निकला था।
मेरी आवाज़ पता नही भीगने लगी।थोड़ी देर पहले जो हालत उस लड़की की थी वैसी अब मेरी थी।मुझे थूक निगलना पड़ रहा था।मुझे आवाज़ निकालने के लिये पूरी ताक़त लगानी पड़ी और बड़ी मुश्किल से मेरे मुंह से पहला शब्द निकला "बेटा"।पता नही वो तल्खी कंहा गुम हो गई थी।वो गरज़ मिमियाने मे बदल चुकी थी वो भी एक डर और भय से दुबकी एक भीगी बिल्ली के सामने।मैने हिम्मत करके उससे पूछा कि बेटा आप पढते है क्या?वो बोली हां सर मैं एम काम प्रिवीयस कर रही हूं।मुझे लगा था कि वो स्कूल मे होगी।उसने बोलना जारी रखा था।उसने बताया कि पापा प्राईवेट कम्पनी मे नौकरी करते थे और भैया की दोनो किड़नी खराब है।उसके इलाज के लिये पैसे पुरे नही होते थे तो मै घर पर सुबह टिफ़िन बना कर देने जाती हूं और उसके बाद कालेज और लौट कर जितना समय मिलता है उतने मे घर पर ही ब्यूटी पार्लर का काम कर लेती हूं।
शायद ज़िम्मेदारी के बोझ ने उसकी बाढ के रोक दिया था।उसके चेहरे पर डर ज़रूर था मगर उसके पीछे छीपा आत्मविश्वास बदली भरा डिन ढलने के बाद शाम को छंटते बादलों के पीछे से झांकती सूर्य की किरणों की तरह फ़ैलने लगा था।उसे पता चल गया था अब भैया की दवा पापा नही लायेंगे और ये ज़िम्मेदारी भी उसे ही उठानी पड़ेगी।वो निकल पड़ी थी ज़िम्मेदारियों का पहाड़ सिर पर ढोते हुये।प्रेस क्लब आने की वजह थी अगर किसी फ़ोटोग्राफ़र को उस अज्ञात वाहन का नम्बर पता हो तो वो उसे बता दे ताकि वो उन पर हर्ज़ाना ठोक सके।
उसने कहा सर कुछ किजिये ना।मुझे कुछ समझ मे नही आ रहा था।इतना बेबस और लाचार मैंने खुद को कभी नही पाया था।मै इस निकम्मी व्यव्स्था मे कंहा से ढूंढता उस कमीने को जो पता नही कंहा किसी और कुचलने के लिये फ़िर से सड़कों का सीना रौंद रहा होगा।मुझे कुछ सूझ नही रहा था।मैं उस बेबस लड़की की भीगी आंखों से आंख मिलाने की हिम्मत नही कर पा रहा था और शायद उससे भी ज्यादा बेबस हो गया था।मैने उससे कहा बेटा मेरा नम्बर नोट कर लो और मुझ पर भरोसा करना मुझसे जो बन पड़ेगा ज़रूर करूंगा।पता नही उसे विश्वास हुआ या नही मगर उसने नम्बर नोट किया और धीरे से कहा सर देखिये ना सरकार भी कुछ नही करती।मैने कहा बेटा आप सरकार के पास गई हो?वो बोली नही।तो मैने कहा सरकार से भी बात कर लेंगे।आप जाओ।मुझसे जो बनेगा मैं करूंगा।
आप जाओ!मैने ज़ोर देकर कहा था।मैं उसकी उपस्थिति से घबरा रहा था।शायद वो समझ गई थी उसे जाना चाहिये। हो सकता है इन्हे उससे भी ज्यादा ज़रूरी काम हो।दिन भर उस लड़की की पलकों का बांध तोड़ कर बहने को बेताब आंसूओं से भरी आंखे मुझे बेचैन करती रही।रह रह कर उसकी आवाज़ मेरे कानों मे पिघला हुआ लोहा उंडेलती रही।शाम को मैने मिथिलेश को फ़ोन लगाया और उससे काफ़ी देर तक़ बात की।उसके सवाल ने भी मेरी बेचैनी बढाने मे कोई कसर नही छोड़ी थी।उसने तत्काल उस लड़की की मदद करने की बात कही जो साबित करने के लिये काफ़ी है कि वो एक अच्छा इंसान है।पता नही मैने उसके सवाल का सही जवाब दिया या नही लेकिन मुझे असली सवाल तो उस लड़की की मदद करके हल करना है।पता नही कंहा तक़ सफ़ल हो पाऊंगा?
27 comments:
अनिल जी! ऐसी अनेक घटनाएँ रोज ही घटती रहती हैं और बेचारे गरीब पिसते रहते हैं पर हम जान भी नहीं पाते उन घटनाओं के बारे में। यदि वह लड़की प्रेस क्लब में आपके पास नहीं आती तो आपने भी यह पोस्ट लिखा ही नहीं होता। और अच्छा ही होता है जो हम ऐसी सारी घटनाओं को जान नहीं पाते। आखिर जानने के बाद भी हम कर ही क्या सकते हैं सिवाय सहानुभूति जताने के? कभी कभी तो स्वाभिमानी गरीब को हमारी यह सहानुभूति भी राहत देने के बजाय कष्ट ही देती है।
विचित्र संसार है यह जहाँ ईमानदारी को सजा मिलती है और बेईमान मौज मारते रहते हैं।
मिथिलेश को ये जवाब सिर्फ और सिर्फ अनिल पुसदकर से ही मिल सकता था...वो इंसान जो ऊपर से दिखने में वज्र सा कठोर नज़र आए, बोलने में कटार की तरह कर्कश, लेकिन जिसका दिल मोम का बना है...जो अपने
बड़े से बड़े दर्द को ज़ब्त कर जाता है लेकिन दूसरे का दर्द देखते ही पिघल जाता है...
मिथिलेश से मैं जब भी संवाद करता हूं, बस आपका नाम लेकर एक ही बात कहता हूं...अच्छा लिख, ब्लॉग पर डाल...बाकी सब रामजी भला करेंगे...
और जिस लड़की का आपने ज़िक्र किया है, उसके लिए अनिल भाई आपकी अगुआई में ही ब्लॉगवुड की ओर से कोई ऐसी पहल होनी चाहिए जिससे कि वो ताउम्र फख्र के साथ अपने पैरों पर खड़ी हो सके, अपने भाई को संभाल सके...और उसे पता भी नहीं चले कि ये बदलाव उसकी ज़िंदगी में आया कैसे...सीधे पते पर आर्थिक मदद भेजने से
अच्छा है कि अनिल भाई आप उसकी पढ़ाई को भी ध्यान में रखते हुए कोई रास्ता निकालें...हम सब बिना नाम बताए, जो कुछ भी संभव हो सकेगा, वो करने के लिए तैयार हैं...रात को ग्यारह बजे के बाद फोन करता हूं...
जय हिंद...
ये पोस्ट पढने के बाद समझ नहीं आता क्या लिखु
एक तरफ़ उपरवाले से पुछ्ता हुँ कि आखिर मुसीबतें उन पर ही क्यों आती है जो पहले से ही गरीब और लाचार होते है, दुसरी तरफ़ सड़क को आकाश समझ गाडिया दोडाते उन सिरफ़िरों से पुछता हुँ कि सड़क पर चलते इन्सान को वो क्या समझते है, कोई भेड़-बकरी
स्तब्ध
खुशदीप जी से सहमत होते हुए,
बिना नाम बताए, जो कुछ भी संभव हो सकेगा, वो करने के लिए तैयार
निशब्द...
ह्म्म, जब आप उस लड़की से यह सब बातें कर रहे थे, मैं आपकी बाजू वाली कुर्सी पर बैठा आपको ही देख रहा था।
जब आपने उसे यह कहा कि " तुम्हें यहां बार बार आने की जरुरत नहीं है, यहां कई तरह के लोग आते रहते हैं"।
तब मैने सोचा कि आपने कितनी सही बात कही उसे।
वाकई यह सब कहते हुए उस लड़की की आंखें डबडबा आ रही थीं तब और गला बार बार रुंध जा रहा था।
जब वह लड़की आपसे यह सब बातें कर रही थी तब तक शारदा भैया नहीं आए थे वहां पर।
" पा" तो पांच मिनट बाद आए थे।
यदि इस लड़की के पिता ईपीएफ के सदस्य रहे होंगे तो इन बच्चों को और उनकी मां को पेंशन मिल सकती है.
अवधिया जी की बात से सहमत।
लेकिन जो भी बन पाए , मदद करनी चाहिए।
और हाँ, यह सही कहा की उसे बार बार वहां नहीं जाना चाहिए।
ये घटनाएँ न जाने कितनी बार जीवन में सामने आई हैं। जितनी हो सकी मदद भी की है। लेकिन ये फिर फिर आती हैं। आखिर क्यों आती हैं? क्यों है इतनी निरीहता समाज में। हर कोई समाज का हिस्सा है। इस सिस्टम का हिस्सा है। क्यों हम अब तक वह सिस्टम नहीं बना पाए जहाँ इस निरीहता के लिए कोई स्थान न हो? हम व्यवस्था के विरुद्ध रोज उबलते हैं। उबलते उबलते एक दिन खत्म हो जाते हैं। लेकिन व्यवस्था है कि और अधिक क्रूर और अधिक निर्मम होती जाती है। हम इसे बदल डालने की बात क्यों नहीं सोचते? उस के लिए क्यों नहीं कुछ करते।
क्या कहें!!
दुखों का कोई ओर छोर नहीं इस जहाँ में..
यदि समाज की व्यवस्था अच्छी हो .. तो गरीबी अभिशाप नहीं होती .. तेजी से आगे बढने की होड में .. और सुविधाभोगी मानसिकता के कारण हमारे नैतिक मूल्यों का जो पतन हुआ है .. उसी के परिणाम स्वरूप गरीबों को इतना कष्ट झेलना पड रहा है !!
बहुत तकलीफदेह ! हमें इस लडकी की मदद तुरंत करनी चाहिए , व्यक्तिगत तौर पर भी तैयार हूँ ! आप उसके घर जाकर स्थिति को समझने का प्रयत्न करें ! अगर कुछ आर्थिक मदद की आवश्यकता हो तो लिखियेगा !
गैर या दिखावा न समझें !!
सादर
ओह्ह पता नहीं,ऐसे हालातों से कितने लोग गुजरते हैं...पर जब तक हमारे आँखों के सामने ऐसी कोई घटना नहीं होती...हम महसूस नहीं कर पाते कुछ....पर उसके बाद की व्यथा और भी ज्यादा है...कुछ ना कर पाने का अहसास और भी तकलीफ देता है...
खुशदीप जी की बात से सहमत...जो भी बन पड़ेगा...मैं भी तैयार हूँ....उस लड़की की सहायता हमें अवश्य करनी चाहिए
ओह बहुत देर बाद ये पोस्ट पढ पाया आपकी , और पढने के बाद मैं खुद नहीं जानता कि दिमाग में कैसी सांय सांय सी होने लगी है । ये हादसे पूरी किस्मत बदल देते हैं और हमारा ये सडा हुआ कानून अभी भी दुर्घटना में चालक के लिए सिर्फ़ दो साल की सजा का प्रावधान रखे हुए है ।
अब आपके द्वारा उस बच्ची के लिए मेरा एक संदेश यदि गाडी का नाम नंबर मिल जाए तो बेहिचक मोटर दुर्घटना क्लेम डाले , यदि नहीं तो भी उपाय है मुआवजे का , वो मैं बता दूंगा , आपके पास मेरा नंबर है ही , और मैं छतीस गढ आ रहा हूं उस बच्ची के लिए मैं अभी तो सिर्फ़ इतना ही कर सकता हूं कि अपनी तरफ़ से जो भी सहायता राशि , पांच हजार , दस हजार ....मैं नहीं जानता... मैं उसे देना चाहूंगा और जो भी सहायता बन पडेगी वो भी कर पाने से मुझे संतोष मिलेगा
अजय कुमार झा
घटनाये तो रोज घटती है पर शहर के बिच और इतनी दर्दनाक की कोई तो क्या पुलिसिया इंसान भी न देख पाए कल रात ही मै राजिम से लोइट रहा था रास्ते में ३;४ ट्रके मोंत का सामान लिए फिर किसी गरीब के इंतजार में थी किसी में किसी प्रकार के इंडिकेटर नहीं थे और बिच सड़क पर आराम फरमा रहे थे हमारे शहर में सुभह से शाम तक पुलिस वाले सिर्फ दू पहिया वालो का चलन करते रहते है एन मोंत के सोदागरो पर लगाम भी तो लगनी चाहिए ताकि भविस्य में फिर कोई अभागी बेचारी गरीब न .......................................
Maafi chahta hoon bhaia lab me tha isliye der se aa paya.. sabhi ne bilkul sahi nirnay liya hai... post padh ke dil ya dimaag lagane ki jaroorat nahin padi bas aansoo aap hi nikal aaye.. jo bhi jaise bhi madad hum kar sakte hain karenge.. is waqt aap so gaye honge.. kal jaroor phone karoonga..
हम जैसे पत्थर दिल भी उस दृश्य को देख नही सके और तत्काल वंहा से हट लिये।
ओह.. ये दास्तां .. उफ़
असमर्थता / निरीहता का अहसास मैं समझ सकता हूँ ! घटित की भरपाई संभव नहीं किन्तु बिटिया को सहायता मिलनी ही चाहिये ! हमें पाबला जी से सहमत मानिये !
कमाल है, इस पोस्ट को भी कोई नापसंद कर सकता है, ज़रूर वो इनसान नहीं कोई पहुंची हुई चीज़ होगा...
अनिल भाई, रात को आपको फोन करने बैठा तो मोबाइल से न जाने कैसे आपका नंबर डिलीट हो गया है...sehgalkd@gmail.com पर भेज दें या एसएमएस कर दें...मैंने रात को पाबला जी को भी ट्राई किया था, वहां से नो रिस्पांस आ रहा था...बाकी अजय कुमार झा जी से मैं इस मुद्दे पर बात करता हूं...एक बात और अगर आप किसी सांसद से इस लड़की का पत्र अनुमोदित करा के पीएमओ भेजते हैं तो इसके भाई के इलाज का बंदोबस्त तो ज़रूर हो जाएगा...इस संबंध में मुझे
दिल्ली में कुछ करना हो तो बताइएगा...
जय हिंद...
अनिल भाई,
हम ब्लॉगिंग किस लिए कर रहे हैं, इसीलिए न कि कहीं छोटा सा ही सही कोई बदलाव आए, यहां तो उस लड़की और उसके परिवार के अस्तित्व का सवाल है...ये अच्छा मौका है ब्लॉगवुड की ओर से शुरुआत का....हम तो सब मिलकर जो हो सकता है वो करेंगे ही लेकिन मैं एक और ज़रिया सुझाता हूं...ये सौ सुनार की एक लोहार वाला
इलाज साबित होगा...मेरी इस विषय पर पाबला जी और महफूज़ से भी बात हुई है...सोनी टीवी वालों ने ऐसे ही दुखियारों की मदद के लिए एक प्रोग्राम शुरू किया है...लिफ्ट करा दे....जिसमें कोई बड़ा फिल्म स्टार भी आता है...फिर उस मदद चाहने वाले को आठ-दस लाख रुपये मिल जाते हैं...इस लड़की की पूरी कहानी सोनी टीवी वालों को नेट पर भी भेजी जा सकती है...नहीं तो हमारे मुंबई वाले ब्लॉगर भाई इस कहानी को खुद ही सोनी टीवी पर पहुंचा आएं और उनसे संपर्क करें...बाकी आप खुद ही रात को ग्यारह बजे हो सके तो फोन करिए...
जय हिंद...
kuch bhi kahne mein asmarth mehsoos kar rahi hun...........garibi se badhkar abhishap koi nhi usi ko sarthak kar raha hai ye hadsa......pata nhi uske aage aap logon ne kaise apne par kaboo paya hoga maine to jab se padhi hai tab se aansoo hi bah rahe hain ..........aap sabne uchit nirnay liya hai uske liye magar prashna ab bhi khada hai ki ye to ek hai jiske liye kuch log soch rahe hain magar us jaise na jaane kitne garib isse bhi bhayanak halaton ke shikar hote hain aur hum bebas kisi ke liye kuch nhi kar pate ..........iske liye kaun jimmedar hai ? kya sarkari tantra nhi hai jimmedar aise hadson ke liye.........bahut se prashna hain dil mein magar agar likhne baithi to yahin ek post ban jayegi.maafi chahti hun.
मिथिलेश का वह sms मुझे भी मिला था -मैं कोई जवाब दे नहीं पा रहा था -
राहत हुयी आपने जवाब दे दिया -मगर यह कैसी राहत जिसने मन को बहुत बोझिल भी कर दिया .
कुछ करें उस बेचारी के लिए -
सही कहा संजीत मगर शायद उस समय मैं खुद होश मे नही था।मुझे तो सूझ ही नही रहा था कि क्या कहूं और क्या नही।कौन मेरे पास था कौन नही।ये सब बड़ी मुश्किल से रिकाल कर पाया था मैं।उसमे अगर तुम्हारी उपस्थिति मुझसे छूट गई तो इसके मैं नही मेरी मनस्थिती ज़िम्मेदार है।क्या कर सकता था मैं।और हां सिर्फ़ उसे ही नही और भी लोगों के लिये था वो बार-बार नही आने का आग्रह्।सिर्फ़ वंहा नही पूरी दुनिया मे इंसान के रूप मे छीपे हुये भेड़िये घात लगाये बैठे हैं कब उनके सहानुभूती दिखाते हुये हाथों की उंगलियों से खूनी नाखून बाहर आते है पता ही नही चलता।फ़िर वो तो बहुत ही मासूम गांव की बच्ची है।पता नही कब समाज के सफ़ेद्पोश चील-गिद्धों की नज़र उस पर पड़ जाये,मैने तो बस उसे बुरी नज़र से बचाने कि एक कोशिश भर बस की है।आगे उसका भगवान ही है,क्योंकि गरीबों का भगवान के अलावा कोई और नही होता।
आप सभी का मै खुक्रगुज़ार हूं।आप लोगों ने मेरा उत्साह बढाया है।जैसा भी हो सकेगा उस लड़की मदद के लिये हम लोग प्रयास करेंगे।आज दीपक का भी फ़ोन आया था,अच्छा लगा,उसने भी कहा ब्लाग परिवार के लोगों को भी कुछ करना चाहिये।देखते हैं इस अच्छे काम की शुरुआत तो हो गई है आगे ईश्वर मालिक्।
Sahayog ke liye taiyar jaisa bhi ho gudiaya rani ko gam na dubane genge. anil ji main aapke sath
Sudhir Pandey 9926124801
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वायक खुशदीप जी की पोस्ट आपके ब्लॉग पर आया....पुसदकर जी शुरुआत कीजिए. शुभकार्य में देरी क्यों....अगर उस लड़की को स्वाभिमान के साथ जीने का संबल मिले तो उससे बेहतर क्या हो सकता है....
उस द्दश्य का दर्द महसूस करना आसान नहीं. जब गरीबी एक लड़की को अनजाने लोगो के सामने हाथ फैलाने के लिए बेबस कर दे..वो भी तो किसी की लाडली रही होगी.....हाय रे भारत भाग्य विधाता..बेबस लाचारयय अब भी किसी को शर्म आएगी....किसी हरामखोर नेता को..देश की ललना ऐसी मजबूर....और प्रशासन को चैन की नींद आती है...
सारी प्रतिक्रिया पढ़ने के बाद लगा कि हम कहीं भी हों किसी भी शहर में हों हम साथ-साथ हैं .. आपको मेल किया है जी मेल पर पढ़ियेगा....
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