दूसरे दिन तो दोपहर शायद कुछ और ज्यादा अलाली दिखा रही थी और शाम कुछ ज्यादा ही शर्मा रही थी।नही शर्मा रहे थे बस हम सभी भाई(दोस्त)जो समय से पहले अपने अड्डे पे हाज़िर हो गये थे।लग रहा था कि आज कुछ खास बात है।मैं,चून्नू और दिलीप दढियल थे और बाकी सब खुरदुरे लेकिन उस शाम तो सभी गज़ब के चिकने थे मेरे और चुन्नू को छोड़।दिलीप जिसकी दाढी सुबह काटो शाम को उग जाती थी ऐसे चिकना होकर आया था कि ॠषीकपूर फ़ेल था।कपड़े भी उस दिन सबके ठीक-ठाक यानी रंगबिरंगी,चितकबरी टीशर्ट और मैली-कुचली जीन्स की बजाय छक सफ़ेद कमीज़ और नीली साफ़-सुथरी जीन्स,काली पैण्ट और धारीदार कमीज हर किसी ने छैलछबिला बनने मे कोई कसर नही छोड़ी थी।मैं सबसे आखिरी मे पंहुचा तो खूश्बू के झोंको से बौरा सा गया।हर कोई बगीचे सा महक रहा था।
मैंने दिमाग पर खूब ज़ोर डाला कि कोई रिसेप्शन या शादी की दावत तो नही थी उस दिन्।जब नही याद आया तो मैने पूछ ही लिया किसके यंहा जाना है बे आज्।सब एक साथ बोले कंही नही जाना है और आप मेहरबानी करके आज ज़रा जल्दी निकल लेना।मैने पूछा क्यों तो सब एक साथ बोले अबे तेरी भाभी आने वाली है और तेरा यंहा कोई काम नही है समझा।मैं कहा,अच्छा बेटा जभी सबके सब शरीफ़ दिखने के कम्पीटिशन मे जाने वाले नज़र आ रहे हो।अबकी महमूद बोला देखो उस्ताद बहुत दिनो बाद ग्रुप मे अच्छी खबर की गुंजाईश दिख रही है,प्लीज़ डिस्टर्ब मत करो।मैं भड़का अच्छा साले अब हम डिस्टर्बिंग एलिमेंट हो गये?और साले तुम्हारा ताम-झाम सेट करने के चक्कर मे संगीत महाविद्यालय मे जब खलनायकी करते रहे तब?मेहमूद बोला देखो उस्ताद आज तो अपन लाईन में है ही नही।दोस्तो को सपोर्ट करना चाहिये यार स्पोर्ट्स्मैन होकर भी………मैने उसकी बात काट कर कहा अबे मुझे मत सीखा।
अब तक़ बाकी लोग बीच-बचाव करने लगे और हम दोनो को ही गालियां बकने लगे कुत्त्ते टाईप लड़ कर क्यों हम लोगों की ईमेज खराब कर रहे हो?दीलिप बोला भाई लाईफ़ का सवाल है,मेरी तो जात वाली भी हैऽब सब चौंके तुझे कैसे पता बे?वो बोला उसके जाने के बाद 2709 का फ़ोन आया था।2709 हमारे ग्रुप की कामन फ़्रेण्ड थी जिसे उसके घर के टेलीफ़ोन नम्बर से सब पुकारते थे।इतना सुनते ही मेहमूद बोला हो गया बेटा दीलिप का का अब तुम लोग जाओ घर जाकर कपड़े बदल कर आओ,तुम लोगों का कोई चांस नही है।सब बोले दीलिप ये गलत बात है बेटा कम्पीटिशन मे एप्रोच बेईमानी है।उसने कहा मैने किसी की एप्रोच नही लगाई बल्कि उसने 2709 की एप्रोच लगाई है।
ये गलत बात है,हम लोगों को बताना चाहिये था।मेहमुद जिसकी 2709 से बिल्कुल नही बनती थी वो बोला अबे ये 2709 घोर जातीवादी है।मैं तुम लोगों को पहले ही कहता था पर तुम लोग मानते नही थे।क्यों उस्ताद?कंही से अपनी बात पर सपोर्ट नही मिलता देख मेहमुद मेरी ओर देखने लगा।2709 से मैं भी चिढता था इसी बात को ध्यान मे रख कर उसने मेरी ओर सपोर्ट की उम्मीद से देखा था और मैने भी हमेशा की तरह उसकी हां मे हां मिला दी।लडकी के सिंधी होने और 2709 की परिचित होने के कारण चांस हाथ से जाता देख ग्रुप दो हिस्सों मे बंट गया और माहौल हमेशा की तरह गरमाने लगा।दीलिप का फ़ेवर करता देख बल्लू पर चुन्नू भडक गया और बोला साले अब आना सुबह-सुबह।
सुबह-सुबह!ये नया रह्स्योदघाटन किया था चुन्नू ने।सब चुन्नू पर पिल पड़े बोले बता साले ये सुबह का लफ़्ड़ा क्या है?वो बल्लू की तरफ़ देख कर बोला हमारी तरफ़ आ रहा है या बता दूं सबको?दीलिप बोला भगा बल्लू इन लोगों को अपन दो भाई है वो दो बहने,एडजेस्ट कर लेंगे।बल्लू पूरा सरदार था,तत्काल बोला ठीक है भाई आज से अपन साढू भाई।अबे पूछ तो ले सरदार बड़ी किसकी छोटी किसकी।इतना सुनते ही बल्लू के होश ठिकाने आ गये वो बोला अबे काका(सिंधी होने के कारण सब दिलीप को प्यार से काका कह्ते हैं आज भी)क्लीयर कर्।दिलीप बोला इनके चक्कर मे मत आ भाई ये लोग लड़वा रहे हैं।लेकिन बल्लू अड़ गया।तो दिलीप बोला तू बता ना बे सुबह-सुबह क्या करते हो।बल्लू बोला चुन्नू मत बताना।चुन्नू बोला पहले तू ये बता है किसकी तरफ़्।ये झगड़ा ज़ोर पकड़ ही रहा था कि सड़क के दूसरी ओर स्कूटर पर दोनो आती दिखी।
अब तक़ सब संभल गये और दिलीप ने सबसे कहा भाई इनके जाने के बाद आपस मे निपट लेंगे लेकिन प्लीज़ इनके सामने इज्जत का फ़ालुदा मत बना देना।सबने कहा ठीक है लेकिन ईमानदारी से काम होना चाहिये।वो बोला ठीक है लेकिन कोई भी बिचकायेगा नही।बिचकायेगा यानी डिस्टर्ब करना।दोनो जैसे ही करीब आई सबके चेहरों पर मुस्कुराहट पसर गई।लग ही नही रहा थोड़ी देर पहले सभी गली के कुत्तों की तरह लड़-झगड़ रहे थे।दोनो ने आते ही पूछा कंही जा रहे थे क्या आप लोग?नही तो!सबके सब एक साथ बोले क्यों?ऐसा क्यों लगा?नही हमने सोचा शायद आप लोग किसी पार्टी-वार्टी मे जाने की तैयारी मे हैं?नई-नई पार्टी-वार्टी मे ऐसे थोड़े ही जाते हैं,वंहा तो सज-धज के जाते हैं।इसिलिये तो कहा मैने आप लोग सज-धज के खड़े हैं?अरे नही ये तो हम लोगों का रुटीन है,हम लोग ऐसे ही रहते हैं?
मैने जैसे ही कहा अच्छा बेटा!दिलीप ने उनसे कहा आईये दुकान चलते हैं वंहा आप पेपर नोट कर लेना।और उन लोगों को लेकर वो दुकान चला गया।बाकी लोग गुस्से से भरकर मेरी तरफ़ बढे और बोले अबे जब खाना नही है तो क्या लुड्काना ज़रूरी है।मैने कहा सालों मुझे क्या बता रहे हो,उसको देखो काका को अकेला चला गया उनके साथ।और तू बे सरदार तू तो उसका साढू था ना।तेरे को क्यों नही ले गया बे।देखना अब साले वो खुद को श्रवण कुमार बतायेगा और हम सब प्रेम चोपड़ा,शक्ति कपूर गुलशन ग्रोवर बना देगा।बल्लू बोला ऐसा नही करेगा वो।आखिर उसको रहना तो अपने साथ ही है।क्यों बेटा मेरे मामले मे तुम लोग कैसे भांजी मार दिये थे,अचानक मेहमूद फ़ट पड़ा।मैंने उसका स्पोर्ट किया ये बात सही है।और उसके बाद फ़िर पांडव यानी हम लोग आपस मे बंट गये और महाभारत शुरू हो गया।
पता नही कब तक़ और लड़ते अगर तीनो वापस नही आ जाते तो।आते ही दोनो ने हम सभी की ओर देखा और कहा ठीक है हम लोग निकलते हैं आप लोगों का बहुत टाईम ले लिया।अरे नही कोई बात नही,दिलिप कोल्ड ड्रिंक वैगेरह…………नही ले चुके है सब।दिलीप भैया ने खूब खातिरदारी की है।अब सबने घूर के दिलीप को देखा।वो दोनो हंसी और बोली हम लोगों को जाने दिजीये फ़िर लड़ लेना।ये दिलीप ने बताया है क्या आपको,मैने गुस्से से पूछा?इस पर छोटी वाली ने कहा नही आपकी 2709 ने बताया है।क्या-क्या बताया है उसने?मैने दोबारा उससे सवाल किया तो वो बोली चिंता मत किजीये सब बता दिया है मगर आप की खूब तारीफ़ की है उन्होने?मुझे विश्वास ही नही हुआ और बाकी लोगों को भी।सब एक साथ बोले इसकी अकेली की क्यों तारीफ़ की उसने।इससे तो उसकी पटती भी नही है?हमारे बारे मे क्या बताया है?उसने मुस्कुरा कर कहा दिलीप भैया और बल्लू भैया से बचके रहना।मेहमूद भैया आप भी कंहा ट्राई कर रहे हो और टीटु भैया आप का चक्कर कंहा तक़ पंहुचा है,सब बता दिया है उन्होने।चून्नू जो अब तक़ चुप था अचानक़ बोला मेरे बारे मे तो उनको कुछ पता ही नही है।सब पता है मगर उन्होने कहा कि चुन्नू भैया और पवन भैया दिल के बहुत अच्छे हैं।और मेरे बारे में क्या तारीफ़ की उसने।वही जैसा दिख रहा है।क्या?यही बात-बात पे गुस्सा करता है?चिढता है तो गालियां बकता है और लड़ाई-झगड़ा भी करता है।ये तारीफ़ है?मैने कहा।उसने बड़ी मासूमियत से कंहा हां,इतना चिड़चिड़ा इंसान दिल का बहुत अच्छा हो सकता है ये तो हमको उन्होने ही बताया है।चलो दीदी देर हो रही है।मैने फ़िर पूछा कि और क्या बताया उसने?वो फ़िर हंसी और इस बार उसकी हंसी की खनक काफ़ी देर तक़ गूंजती रही।जितनी देर वो हंसी उतनी देर सभी के दिल और दिमाग कार्ल लुईस से भी तेज़ दौड़ते रहे।वो बोली अगला पेपर नही दोगे क्या दिलीप भैया?और फ़िर खिलखिलाकर हंसी।चलो ना दीदी देर हो रही है।जब तक़ उसकी दीदी स्कुटर स्टार्ट करती मैने उससे कहा आप हंसती बहुत हैं।हां और हंसना तो हर किसी को चाहिये आपको भी,क्यों बल्लू भैया।वो फ़िर हंसी और दोनो चली गई।रात भी बहुत हो चुकी है और कहानी भी लम्बी हो गई है।बाकी का किस्सा कल रात को।उसे और उसकी मासूम हंसी को भूलना आसान नही है,आज भी उसकी हंसी की खनक कानों मे मिश्री घोल देती है।
14 comments:
पढ़ रहे हैं।
are waah! badi meethi yaadein hain.
बढ़िया संस्मरण है...कल रात में बाकी का किस्सा सुनाईये.
Fir se purana rang dikha bhaia aaj.. :)
पूरा पढ़ने के बाद हमें तो यही समझ में आया कि उसने आपके मित्रमण्डली में सिर्फ आपको छोड़कर सभी को भैया कहा।
कुछ कसक ऐसी होती हैं जो जीवन भर साथ नहीं छोड़तीं।
बहुत अच्छा लगा।
बहुत बढिया ..आगे का इंतजार है.
रामराम.
रोचक संस्मरण पढ़वाने के लिए धन्यवाद!
अच्छा, फिर?
गज़ब कि लेखन शैली है ...शुरू से आखिर तक मनोरंजक.
बहुत ही मजेदार संस्मरण है...अगले किस्त का इंतज़ार है...
पढ़ कर बरबस यही मन हुआ कहने का वाह क्या ज़माना था वो भी :):) ...आगे इंतज़ार है संस्मरण का
आपका नया अंदाज़ पसंद आया ... खूब हंसाया ...धन्यवाद !
mahmud ka rool teek nahi hai
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