Saturday, March 6, 2010
समय मूल्यवान है किन्तु जीवन उससे अधिक!
बचपन से हाईवे पे लिखे एक सरकारी नारे को पढता आ रहा हूं।समय मूल्यवान है किन्तु जीवन उससे अधिक!पता नही किसे समझाने के लिये लिखे जाते हैं ऐसे नारे और उनका कितना असर उन लोगों पर पड़ता है।रोज़ दुर्घटनायें!रोज़ दर्दनाक मौत!खौफ़नाक मंज़र!दिल दहला देने वाली खबर!मगर फ़िर भी इस बात का किसी पर असर होता नज़र आता नही।खासकर इन महाशय पर।मौत को सामने से आते हुये देखकर भी न केवल ये अपनी जान दांव पर लगा रहे हैं बल्कि अपने परिजनों को भी मौत के मुंह मे डालने से नही चूक रहे हैं।पता नही कितनी जल्दी है साहब को और वे इस जल्दबाज़ी मे कितना समय बचा लेंगे।उनकी इस हरक़त को रायपुर के युवा फ़ोटोग्राफ़र दिनेश यदु बहुत ध्यान से देख रहे थे और उन्होने सरकारी नारों को बेअसर साबित करती इन जनाब की मूर्खता को कैमरे मे कैद कर लिया।अगर कुछ हो जाता तो इलाके के नेताओं समेत हम पत्रकार भाईयों के लिये भी एक इश्यू बन जाता।बिना फ़ाटक की रेल्वे क्रासिंग लेकिन ये महाशय या इन जैसे महाशय कभी इश्यू नही बनते।क्या करें।शायद किसी के पास टाईम नही है।अगर आपके पास हो तो बताईगे ज़रूर गल्ती किसकी है?
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25 comments:
जीवन का मोह त्याग चुके महात्मा हैं यह.
1.ग़लती सरकार की नहीं है क्योंकि सरकार ने तो पहले ही आगाह कर दिया.
2.ग़लती मोटरसाईकिल वाले की तो हो ही नहीं सकती क्योंकि उसे पक्का पता ही है कुछ हो ही नहीं सकता.
3.ग़लती हमारी है कि हम नारे याद कर लेते हैं, नाहक.
गलती ट्रेन और सरकार की जो सड़क पर ट्रेन चलती है .आज की संस्कृति है अव्यवस्था .
अनिल भाई,
एक ट्रक के पीछे ही लिखा हुआ पढ़ा था...
जिन्हें जल्दी थी, वो चले गए...
जय हिंद...
गलती रेल की है जी, उसे रुकना चाहिये ऐसे जीवट वाले मानव के सम्मान में।
लगता है यह गरीबी से तंग आ गया है ओर परिवार को लेकर.....
हर जगह सरकार तो गलत नहीं होती है..
गलती तो हम ही शुरू करते हैं और वही ये भाईसाहब कर रहे हैं..
पढ़े लिखे बेवकूफों की कमी नहीं है कहीं भी...
हम तो एक ही नियम का पालन करते है " दुर्घटना से देर भली " अपनी नौकरी के दिनो मे देर से पहुंचने पर भी कई बार इसी नियम ने सी.एल. बचाई है ।
ऐसा करते लोग रोज ही दिख जाते हैं मूर्खता की प्रदर्शनी लगाये.
दिनेश यदु की !
क्योंकि वे मोटर साइकिल सवार को बचाने के यत्न और सावधान करने के बजाये फोटो खींचने में लग गये :)
और फोटो भी गलत...रेलवे की छवि धूमिल करती...भला ट्रेन कोई धुंआ उगलता प्रदूषण फैलाता उद्योग है ?
घर पहुँचने की जल्दी हो तो ---
अत्यावश्यक पोस्ट।
यह कुछ नहीं अनुशासनहीनता है। घर पहुँच कर ये समय की कमी वाले शख्स घंटों फालतू की गपोष्ठी में जाया कर देते हैं।
हाइवे और सड़कों पर भी जरा बाइक चलाने वालों को देखिए लगता है कि बस एक मिनट देर हुए तो परमाणु बम का बटन दब जाएगा लेकिन आज तक कोई भी बाइक वाला पहले से तय समय पर मुझे नहीं मिला :(
इस साहस के पीछे यह आत्मविश्वास और खुशफ़हमी है कि यह दुर्घटनायें उनके साथ नहीं होंगी।
अजी रायपुर की छोडिये , यहाँ दिल्ली में तो इससे भी भयंकर द्रश्य नज़र आते हैं। लोग जान हथेली पर लेकर चलते हैं सड़कों पर । वैसे हमारे देश में एक ही तो चीज़ सस्ती है --इंसान की जान।
अनिल जी, यह चित्र तो बताता है कि हमारे देश के लोगों में आत्मविश्वास कूट कूट कर भरा हुआ है, इतना अधिक आत्मविश्वास है कि मौत से भी भय नहीं लगता।
अब यह बात अलग है कि कुछ लोग इस आत्मविश्वास को मूर्खता समझ बैठें।
अजी गलती तो केवल सरकार की है जो ऐसे लोगों के मरने पर मुआवजा देती है। ऐसे लोगों पर तो आर्थिक दण्ड लगाना चाहिए।
...कम-से-कम इसी बहाने "अंतर्राष्ट्रीय मंच" पर फ़ोटो तो छप गया ... वैसे पुरुस्कार भी मिलना चाहिये ... किसे,फ़ोटोग्राफ़र को ? ...अरे नहीं भाई, मोटरसाईकल वाले को !!!!!!
moorakh ko samjhawte gyan gaanth se jai. koyla hoe na oojro kitno ubtan lai..
में एक और स्लोगन भेज रहा हूँ---
" It is better to loose one minute in life than a life in one minute.
ये स्लोगन मैंने रांची-रामगढ़ मार्ग पर पढ़ा था...पिछले दिसंबर में..
बरहहाल, अच्छी पोस्ट...EYE-OPENER...
मुझे समझ नही आता कि ट्रेन को थोडा उपर आसमान में उठाकर क्युं नही चलाते?
रामराम.
तीन मिनट के लिये तीन जिन्दगियों का दाँव ! बहुत नाइन्साफी है ।
तस्वीर पर जब माला चढेगी तब और लोगो को समझ आयेगा सावधानी व्हाट सावधानी
जरूरी पोस्ट.
आज लोगों के पास सब कुछ है सिर्फ समय नहीं है.
शार्ट कट की तलाश में क्या नहीं करता इंसान !
आज की संस्कृति है अव्यवस्था ....
फोटो और लेख एक दूसरे के पूरक से लगे......बात तो ठीक है सिविल सोसाईटी ऐसे तो कम से कम नहीं बन सकती.....
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