क्लोज़िंग,क्लोज़िंग,क्लोज़िंग!जिससे बात करो वो बिज़ी।उधार मांगो तो क्लोज़िंग के बाद।मदद मांगो तो भी क्लोज़िंग के बाद।जिसे देखो वो क्लोज़िंग को लेकर परेशान है।बस यार एक दिन की तो बात है एड्जेस्ट कर ले।कल फ़्री हो जाऊंगा।फ़्री हो जाऊंगा?याने अभी फ़ंसा हुआ है?
जब इस क्लोज़िंग से वाकिफ़ नही हुआ था तो इसके मायने समझ मे नही आते थे लेकिन सालों सर खपाने के बाद अब जाकर समझ मे आया है कि क्लोज़िंग याने ओपनिंग होता है।टैक्स चोरी सारी एड्जेस्टमेंट का नया सिलसिला शुरू।पिछले साल का काला-पीला सब सफ़ेद करो और फ़िर से काले-पीले को सफ़ेद करने मे लग जाओ।
पहले-पहले हैरान हो जाता था अख़बारों मे खबर पढ कर्।सेठ गरीबदास के यंहा छापा करोड़ो की कर चोरी पकड़ाई।लाखों रूपये की इंकम सरेंडर्।साला दूसरे दिन जाकर देखो तो सेठ गरीबदास मज़े से गल्ले पर बैठा हुआ है।ये क्या बात हुई मामला करोड़ो की चोरी का और सेठ जेल की हवा खाने की बजाय मज़े से गल्ले पे बैठा कचौड़ी खा रहा है।मैं तो चोरी का मतलब यही समझता था पुलिस,थाना और जेल!मुहल्ले मे एक घर मे एक कामवाली बाई ने अपने बच्चे के इलाज़ के लिये जब मालकिन के पर्स से सौ रूपये चुराये थे तो बड़ा हंगामा हुआ था।पुलिस आई थी और कामवाली बाई को जेल ले गई थी।इलाज के लिये सौ रूपये चुराओ तो जेल और करोड़ो रूपये की चोरी के बाद भी जेल नही।उस समय तो नही समझा था मगर अब समझ मे आ गया है कि समरथ को नही दोष गुसाईं।
इलाज के लिये चोरी दरअसल चोरी है शुद्ध चोरी और ये सेठों की करोड़ो की कर चोरी दरअसल चोरी न होकर थ्रिल है,एडजेस्टमेंट है।अगर पकडाये तो चोर और एडजेस्टमेंट को ओपन करके दोबारा ब्लैक को वाईट करने का एडजेस्टमेंट।फ़िर सफ़ेद को काला और काले को सफ़ेद करना भला कोई चोरी है ये तो गेम है।ठीक वैसे ही जैसे सड़क पर मदारी डमरू बजा-बजा कर भीड इकट्ठा करता है और सफ़ेद कबूतर को काला कर देता है और फ़िर उसे काले से सफ़ेद कर देता है।मुझे लगता ऐसा ही कुछ होता है हम अख़बार वाले डमरू बजा-बजा कर चिल्लाते हैं कि फ़ला सेठ करोड़ो की टैक्स चोरी करते पकड़ाया।फ़िर शुरू हो जाता है एडजेस्टमेंट और काले को सफ़ेद करने का खेल।वैसे ही जैसे क्लोज़िंग होती है।क्लोज़िंग के बाद फ़िर से ओपनिंग शुरू।मैं भी फ़्री हो गया हूं और भी बहुत से लोग फ़्री हो गये होंगे।मगर सोचता हूं क्या इलाज के लिये सौ रूपया चुराने वाली कामवाली बाई को एडजेस्टमेंट करना क्यों नही आता था।
टैक्स चोरी का पुराना एकाऊंट बंद नया शुरू!
16 comments:
अब तो काम वाली बाई को भी एडजस्टमेंट आ गया है। सरकार के टेक्स की चोरी, सामान की चोरी, समय की चोरी आदि आदि ये सारी चोरी, चोरी नहीं कहलाती। यह तो हमारा अधिकार है। सरकार तो हमारी है तो कैसी चोरी?
मैं भी जानना चाहता हूँ कि इलाज के लिये सौ रूपया चुराने वाली कामवाली बाई को एडजेस्टमेंट करना क्यों नही आता।
इस रचना के माध्यम से अच्छा कटाक्ष है कर चोरी पर....विचारने योग्य बात
सन्त श्री अनिलानन्द जी के इस प्रवचन से यह शिक्षा मिलती है कि चोरी मत करो (डाका डालो)… :) भगवान भली करेंगे…।
मन में पाप तो लाओ मत, यदि आ जाये तो तिरुपति जाकर एकाध किलो सोना चढ़ा दो… फ़िर भी न धुले तो हरिद्वार जाकर गंगा स्नान कर लो… भगवान भला करेंगे… जय श्री 108 श्री अनिलानन्द जी की जय… ज्ञान चक्षु खुले हमारे…
अरे समझो
ये चोरी और वो चोरी अलग अलग है
एक चोर याने काम वाली बाई के पास है क्या देने को .
दूसरे के पास ही तो सब है, कुछ सरकार के खाते जमा करो कुछ अपने- अपने याने मिल बाँट कर खाओ
सही लिख रहे हैं. कर चोरों के लिये कोई सजा नहीं.. एक डाक्साब के यहां छापा पड़ा सत्तर करोड़ जमा किया. जय हिन्द.
हमें तो लगता है कि हर सेठ इनकम टेक्स के छापे का मोहताज़ होता है. इससे उसकी प्रतिष्ठा बढती है.
जिसे एडजस्टमेंट आ जाये वो कामवाली बाई कहां रह जाती है जी
वो भी किसी होटल में अफसरों को डिनर करवा रही होती
प्रणाम स्वीकार करें
कथन सत्य है. सम्पूर्ण सत्य नहीं है. मैं दुसरा पहलू लिख रहा हूँ...
एक समय था इंदिरा ने जो टेक्स लगाए वे 102% तक थे. यानी काम मत करो, करोगे तो घर से ही निकालना पड़ेगा. सरकारी चाकरी करो. तो आदमी क्या करेगा? कर चोरी!!
एक बार अपना व्यवसाय करें, पता चलेगा कैसे बेवकुफ सरकारी अधिकारियों के मकड़ जाल में काम करना पड़ता है. हर जगह, हर समय लाभ हो तो सभी बनिये होते.
यही नियम सबकी मानसिकता में दृढ़रूप होकर बैठ गया है । दण्ड प्रक्रिया पर अविश्वास ।
दुआ करते हैं कि कुछ और परिवर्तन आये और तो कोई तरीका नहीं सूझ रहा !
कला धन --टैक्स की चोरी --जेल कैसी।
जब कांटा ही कांटे को निकालता है।
अनिल भाई,
यहां तो पापों के खाते की क्लोजिंग हो जाएगी लेकिन वो ऊपर वाले के दरबार में जो खाता खुला हुआ है उसका क्या...
सेठ गरीब दास ये क्यों भूल जाते हैं कि कफ़न में ज़ेब नहीं होती...
जय हिंद...
काम वाई माई या कोई भूखा चोरी करे तो लोग भी ओर पुलिस भी उसे ्मार मार कर अधमरा कर देती है.... लेकिन जब कोई नेता, कोई अफ़सर,सेठ चोरी करता है तो उसे इज्जत देते है यह लोग????? क्योकि यह सब उस के तलवे चाटते है... ओर वो इन्हे एक एक टुकडा डालता है... ओर कोई कारण नही उस काम वाली माई के पास कहां होगा टुकडा जो इन कुतो को डाले वो बेचारी तो अपना पेट ही भर ले मेहनत कर के तो बहुत है
संजय भाई इसमे कोई शक़ नही कि अफ़सरशाही इस देश मे हावी है।और रहा सवाल व्यापार करके देखने का तो मैंने तो अपने प्रोफ़ाईल मे लिखा ही है ट्रांसपोर्टर्।मैं ये नही कहता कि सभी व्यापारी कर चोर हैं मगर मेरा जो मूल सवाल है वो ये है कि सौ रुपये की चोरी मे जेल और करोड़ो रूपये की चोरी मे बेल आखिर ये विसंगती क्यों?बस इस सवाल के अलावा मैं कुछ और नही जानना चाहता।
ऐसे करोड़ों से और ऐसे सरकारी कर्मचारियों से भगवान ही बचाये।
खुशखबरी !!! संसद में न्यूनतम वेतन वृद्धि के बारे में वेतन वृद्धि विधेयक निजी कर्मचारियों के लिये विशेषकर
Post a Comment