Friday, April 2, 2010

आमीर खान को तो हमारे शहर के कुली तक़ टक्कर दे रहे हैं!

आमीर खान को तो हमारे शहर के कुली तक़ टक्कर दे रहे हैं!जी हां बिल्कुल सच कह रहा हूं।क्या?कल की पोस्ट है ये।नही भई अप्रेल फ़ूल वाली पोस्ट नही है ये।मैं श्त-प्रतिशत सच कह रहा हूं।आमीर खान को मेरे शहर मे न केवल कुली बल्कि कोई भी ऐरा-गैरा नत्थू खैरा टक्कर दे रहा है।विश्वास नही हो रहा है ना।मुझे भी नही हुआ था लेकिन जब मैने अपनी आंखों से देखा तो मुझे विश्वास हुआ।आप भी देख लिजिये तब तो विश्वास करेंगे ना।याद है ना आमीर खान की फ़िल्म गुलाम।उसमे आमीर ने रेल को टक्कर दी थी और अब देखिये हमारे शहर के जांबाज़ो?को।
हैं ना जांबाज़ और दे रहे हैं ना टक्कर आमीर खान को।दो दो तस्वीर इसलिये कि रेल और जाबांज़ो के बीच का अन्तर कम होना बताता है कि रेल चल रही थी खड़ी नही थी।समय मूल्यवान है किन्तु जीवन उससे अधिक।सड़क वालों का ये पसंदीदा नारा है और सालों से इसे हाईवे पर लिखा हुआ देखता आ रहा हूं।उसका असर सड़क पर चलने वालों पर कितना हुआ ये तो पता नही लेकिन राजधानी रायपुर के रेल्वे स्टेशन का हाल देख कर लग रहा है कि इस नारे को अब सड़कों से ज्यादा रेल की पटरियों के पास लिखा जाना चाहिये।आदरणीय गुरूजी ज्ञान जी से भी इस बारे मे थोड़ा सा ज्ञान चाहूंगा कि क्या सच मे हमारे पास समय इतना कम बचा है कि हम जान भी दांव पर लगा दें?जान है तो जहान है जैसे मुहावरों को शायद अब विलोपित करने का समय आ गया है लगता है।सबसे हैरानी की बात तो ये है कि रेल प्रशासन करता क्या है?नेशनल लुक के फ़ोटोग्राफ़र दिनेश यदु ने ये तस्वीरे मुझे दिखाई और सवाल किया था कि इन लोगों को क्या मौत का ड़र नही है?उसके सवाल के बाद एक और सवाल मेरे दिमाग मे उथल-पुथल मचाने लगा कि क्या इन लोगों को ज़िंदगी से प्यार नही है?आप सभी ज्ञानी लोगों से मेरा यही सवाल है,जवाब ज़रूर दिजियेगा.

पोस्ट पब्लिश होने के बाद देखा तो तस्वीरे क्रम से नही आ पाई है।पहली तस्वीर की जगह दूसरी और दूसरी के स्थान पर पहली तस्वीर प्रकाशित हो गई है।कृपया इसे उसी क्रम मे देखें।

25 comments:

डॉ महेश सिन्हा said...

इन्हे रेल के चालक और उसके ब्रेक पर पूरा विश्वास है

Arvind Mishra said...

वाह रे दिलेरी

सूर्यकान्त गुप्ता said...

जान है तो जहान है, सही कहा आपने
मगर आमिर खान जी फिल्म में अदाकारी
इन्ही घटनाओं को ध्यान में रख कर पाते हैं
और भाई साहब क्या कहें अब सीरियलों का
जो क्रेज हरेक पे चढ़ा हुआ है "शाबास इंडिया"

डॉ टी एस दराल said...

तीसरी और चौथी तस्वीर में ट्रेन एक ही स्थान पर खड़ी है।
वैसे जिस देश में हर साल एक ऑस्ट्रेलिया पैदा हो जाता हो , वहां दो चार के मरने से क्या होगा। ये बात ये लोग जानते हैं।
कीड़े मकोड़ों का देश है ये ।

समयचक्र said...

बहुत सटीक पोस्ट...आपके यहाँ कुली तो हमारे यहाँ रिक्शे वाले आमीर खान को टक्कर दे रहे है ..... ..

समयचक्र said...

बहुत सटीक पोस्ट...आपके यहाँ कुली तो हमारे यहाँ रिक्शे वाले आमीर खान को टक्कर दे रहे है ..... ..

समयचक्र said...

बहुत सटीक पोस्ट...आपके यहाँ कुली तो हमारे यहाँ रिक्शे वाले आमीर खान को टक्कर दे रहे है ..... ..

संजय बेंगाणी said...

हम अनुशासनहिन है.

अन्तर सोहिल said...

ये भारत देश है मेरा

प्रणाम

Pankaj Oudhia said...

आपकी पोस्ट पढ़कर इस यू ट्यूब वीडियो की याद आ गयी|

http://www.youtube.com/results?search_query=The+Crazy+Couple+-+India+Train++oakenator&aq=f

Kulwant Happy said...

बेरोजगार होंगे, बीमा करवा रखा होगा.. पता कीजिए सर जी।

Unknown said...

शायद इन कुलियों के लिये कुछ रुपयों की कीमत जान से भी बढ़कर है।

अजित गुप्ता का कोना said...

हर आदमी मरने के लिए ही पैदा होता है, यह शाश्‍वत सत्‍य है। जब मरने के लिए लाखों का मुआवजा मिल जाए तो भला कौन ना मर जाए? मुआवजे बन्‍द करके देखिए और साथ ही दण्‍ड भी लगा दीजिए फिर एक नहीं करेगा ऐसे बहादुरी के कारनामे।

दिनेशराय द्विवेदी said...

किसी कुली के लिए यह सामान्य बात है. वह टाइमिंग जानता है। खतरनाक बात यह है कि उस की देखी अन्य लोग भी उसी समय रेल पार कर रहे हैं।

प्रवीण पाण्डेय said...

इनका भगवान ही मालिक है ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

यह भी खूव रही!
कुलियों के सिर पर लाल साफा भी तो है!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

यही अनुशासनहीनता है....सच कहा है डॉ अजीत गुप्ता जी ने मुआवजे बंद करा दिए जाएँ तो शायद लोग ऐसा ना करें..

वीनस केसरी said...

हमें तो सभी रेल इंजन स्थिर लगे और हमने तो भागती राजधानी के आगे से निकलते, भागते लोगों की वीडियो देखी है
शायद आपने भी देखी हो :)

रवि रतलामी said...

बचपन में हम लोग तीतुरडीह दुर्ग में रहते थे तो स्टेशन व पटरियाँ पार कर जाना होता था. तो ऐसे अनुभव तो रोजमर्रा की बातें थी. बहुधा लंबी लंबी 1 किलोमीटर खाली मालगाड़ियाँ पटरी पर सिगनल का इंतजार करती खड़ी रहती थीं, तो नीचे से चक्कों के बीच से पार करते थे. एकाध बार ऐसा भी हुआ कि अंदर घुसे और इंजिन ने सीटी दी. दूसरी तरफ से निकलते निकलते चक्के चलने लगते थे. दो-एक हादसा भी हो गया था उस वक्त. पर क्या करें, उस वक्त ये तो नित्याचार में शामिल था और सब सामान्य लगता था...

कडुवासच said...

.....स्टेशनों पर बहुत मारा-मारी है ... दौड-भाग ...उछल-कूद .... चढना-उतरना ... धक्का-मुक्की .... सच कहा जाये तो आमिर खान और अमिताभ बच्चनों की कमी नही है!!!!

neelima garg said...

interesting....

जितेन्द़ भगत said...

आमि‍र को एक फि‍ल्‍म के लि‍ए 30 करोड़ रू मि‍लते हैं। और कुली के एक दिन की कमाई शायद 300 रू।
यहॉं कैसे टक्‍कर लेगा:)

Ashok Pandey said...

ये लोग मजबूर कम, लापरवाह ज्‍यादा लग रहे हैं। ईश्‍वर इन्‍हें सद्बुद्धि दें।

SAMEER said...

बहुत अच्छा विषय चुना है आपने ..... लेकिन कब ये लोग ईन बातो
को समझेंगे .....शायद कभी नहीं...

शरद कोकास said...

जब तक जाँ है तब तक जाँबाज फिर..फिर क्या राम नाम सत्य है ।