सूत न कपास जुलाहों में लट्ठम-लट्ठा!मुहावरा आजकल सुनाई नही पड़ता,कभी स्कूल मे पढाया जाता था।ये याद ललित-अनिल प्रकरण के संदर्भ में।इस मामले में सिर्फ़ दो लोग खामोश रहे एक ललित और दूसरा मैं यानी अनिल।ललित तो अभी भी कुछ कहना नही चाहता और मैं भी,लेकिन जिस तरह से टंकी को लेकर सभी लिख रहे हैं उससे मुझे ऐसा लगा कि सच सामने आना ही चाहिये वरना भ्रम और बढता चला जायेगा।सो जो कुछ हुआ उसे आप लोगों के सामने रख रहा हूं,सच जस का तस।
ललित से पहली मुलाकात ब्लाग पर नही हुई थी,वो मेरे साथ सालों पहले एक अख़बार मे काम कर चुका है।उसके बाद सालों का गैप और फ़िर ब्लाग पर मुलाकात और फ़िर आमने-सामने भेंट।पुराने रिश्ता रिनिव होने के बाद और गहरा होता चला गया और मुलाकात-फ़ोन का सिलसिला भी बढा।वो मुझे अच्छा लगता है और उसकी साफ़गोई और संवेदनशीलता को मैं अच्छी तरह से पहचानता हूं।
इस बीच कई बार फ़ोन पर बातचीत मे मैंने उसके शहर नही आने और घर मे ही घुसे रहने पर आपत्ति की तो उसने हमेशा हंस कर यही कहा कि भैया ब्लाग से फ़ुरसत ही नही मिल पाती।वो खुद के अलग-अलग ब्लाग पर तो लिखता ही था,साथ ही अपनी चर्चा के अलावा कुछ दुसरी चर्चाओं में भी हाथ बंटाता था।
एक बार नही कई के बार इस जवाब ने, कि मुझे ब्लाग से फ़ुरसत नही मिलती मुझे थोड़ा चिंता होती थी और उस दिन भी मुझे एक मेल आया था जो ललित के नाम से था।वास्तव मे वो जवाब था मेरे मेल का।मैंने सीधे ललित को फ़ोन लगाया और उस जवाब के बारे में पूछा तो वो हमेशा की तरह हंसा और उसने कहा आपको मालूम-वालूम रहता नही किसी भी मेल को खोल देते हो,किसी साईट को आपने क्लिक किया होगा,तो उसका मेल आपकी लिस्ट के हिसाब से मेरे पास आया होगा और मैने ऐसे मेल के लिये आटो आन्सर शुरू कर रखा है जिससे आपके पास जवाब आ गया होगा।इसके बाद मैने फ़िर उससे बहुत दिनों से मुलाकात नही होने पर नाराज़गी ज़ाहिर कि तो उसका वही जवाब आया भैया देख तो रहो इसी मे लगा रहता हूं,फ़ुरसत ही नही मिलती।
बस ये जवाब मेरी चिंता को और गहरा कर गया।मुझे लगा ये इसी तरह ब्लागिंग मे इन्वाल्व रहेगा तो बाकी काम कब करेगा।इस तरह तो ये बाकी दुनिया से कटता जा रहा है।मुझे पता है इस आभासी दुनिया का आकर्षंण और नशा बहुत खतरनाक भी हो सकता है।इस बारे में खुद ललित ने कुछ समय पहले एक पोस्ट लिख मे लिखा था कि घर-परिवार वाले,दोस्त-यार रिश्तेदार सब उनसे इस ब्लागिंग के कारण नाराज रहने लगे हैं।इसके अलावा घर की शादी के दौरान भी वो पोस्ट लिखता रहा।
कुल-मिलाकर बात ये है कि मुझे उसके ब्लागिंग के नशे में डूबने का खतरा मह्सूस हुआ और उसके शुभचिंतक और बड़े भाई होने के नाते मैं इस बारे मे सोचने लगा।ललित को काम की ज़रूरत नही है।वो आर्थिक रूप से सक्षम है और अच्छा-खासा समृद्ध किसान है।लेकिन कोई भी कितना भी सक्षम हो अगर घर से न निकले हर वक्त कम्प्यूटर से चिपका रहे तो ये उसके लिये अच्छे संकेत नही है।बस इसी बात को लेकर मैंने उसे इससे थोड़ा दूर करने के लिये सोचा।मुझे मालूम था ललित ज़िद्दी है और भावुक भी,सो उसे समझाने से असर पडने वाला नही सो मैने उसके दूसरे गुण जो आजकल की दुनिया के लिये अवगुण भी हो सकता है को इस्तेमाल किया।
मैने उसको ठेस लगाने वाली टिपण्णी सोच-समझ के की ताकी वो दुःखी हो जाये और इससे अलग हो जाये।कुछ समय बाद उसे सारी बात मैं बताता।सब कुछ हुआ मेरी योजना के अनुसार टिपण्णी पढते ही ललित को झटका लगा और उसने मुझे फ़ोन किया।एक बार नही कई बार।मैने उसका फ़ोन जान-बूझकर नही उठाया ताकि उसका दुःख और बढे और वि इंटरनेट के खतरनाक हो चले नशे से दूर हो सके,ये मेरा खयाल था।मैं मान रहा था कि उसे इंटरनेट और ब्लागिंग की लत लग गई है,जैसा कि कई साथी अपनी पोस्ट मे लिख चुके हैं कि ये नशा है और ऐसा ही कुछ मैंने भी अनुभव किया है,बस इसलिये उसकी चिंता मुझे हो रही थी।खैर ललित ने मेरे फ़ोन नही उठाने पर मुझे एक एसएमएस भी किया और कहा कि आप अगर जवाब नही देंगे तो मैं ब्लागिंग छोड़ दूंगा मैं आपके स्नेह से वंचित नही होना चाहता।एसएमएस पढ कर मुझे बहुत दुःख हुआ और ऐसा लगा जवाब दे ही दूं।फ़िर मैने जैसे-तैसे खूद पर काबू पाया और उसे जवाब नही दिया।
और तब ललित ने दुःखी होकर ब्लागिंग से अलविदा कहने वाली पोस्ट डाल दी।यंहा तक़ तो सब कुछ मेरी योजना के अनुरूप ही हुआ था।ललित ने भी कमेण्ट का आप्शन बंद कर सब कुछ बंद कर दिया था मगर गलती तो हो चुकी थी।मेरा कमेण्ट उसने पढा तो जरूर मगर उसे डिलीट नही कर पाया क्योंकि उस ब्लाग पर माडरेशन नही था और एडमिन किसी और के पास था।सो जैसा की मैने सोचा था ललित कमेण्ट पढ कर उसे डिलीट कर देगा वैसा हुआ नही और वो पब्लिश हो गया।
और फ़िर ललित के चाहने वाले उस कमेण्ट तक पंहुचे और अपनी खोज़ी बुद्धी का परिचय देते हुये सब कुछ सामने लाने और ललित से हमदर्दी दिखाने के लिये होड़ मच गई।इस बीच किसी ने न तो मुझसे पूछा और शायद ललित भी इस मामले मे खामोश ही था।सबसे पहले फ़ोन आया संजीत त्रिपाठी का वो छोटा होने के कारण मुंहलगा भी सो उसाने इस मामले में पूछा और डांट खाकर चुप हो गया और फ़िर दूसरे दिन ही उसने बात की।उसके बाद फ़ोन आया बी एस पाब्ला का जिन्होने सिर्फ़ एक लाईन मे पूछा कि वो कमेण्ट आपका है और मेरे हां कहते ही ठीक है कहकर फ़ोन कट्।कोई कुछ सुनने को खाली नही ,कोई कुछ समझने को खाली नही।दंगल मच गया ब्लाग जगत में।कुछ लोगों को मौका मिल गया मुझे कोसने का और कुछ को इसमे गलतफ़हमी नज़र आई।उसके बाद से तो ये हाट टापिक हो गया ब्लाग जगत का।कुछ को तो ऐसा लगा कि मैं ललित की बढती लोकप्रियता से घबरा कर षडयंत्र करके उन्हे रवाना कर रहा हूं।कुछ को मैं पीठ मे छूरा भोंकने वाला और कुछ को गंदा नज़र आया।यंहा के लोगों को तो पता है की मैं गुस्सैल हूं लेकिन वे ये भी तो जानते हैं कि मेरा गुस्सा ज्यादा देर तक़ नही टिकता।फ़िर भी किसी ने कुछ नही पूछा।खैर मुझे किसी से कोई शिकायत भी नही थी और मैं जो चाहता था वो हो गया था,इसलिये मैने खामोश ही रहना बेहतर समझा।
मगर इस मामले के पीछे कोई और कारण है,ये बात खुशदीप सहगल समझ गये थे।उन्होने मुझे फ़ोन किया और ललित को भी।वो दोनो के बीच के रिश्ते की मधुरता को महसूस कर गये और फ़िर एक पत्रकार के दिमाग के अनुसार उन्होने मामले की तह तक़ जाना जरूरी समझा और उसे पता करने मे वे सफ़ल भी रहे।उन्होने मुझसे कहा कि इस मामले में भ्रम बढता जा रहा है आप ललित से बात करिये।मैने उन्हे बताया कि इससे तो वो फ़िर वापस आ जायेगा,तो खुशदीप ने कहा कि आप उसे समझाईये वो समझ जायेगा।मैने फ़ोन लगाया,फ़ोन उठा नही।मैने खुशदीप को एसएमएस करके बता दिया।शाम को ललित का फ़ोन आया और उसके बाद मैंने उसे सारी बात बता दी।उसने भी मेरी सद्भावना को समझा और कहा भैया मैं मैं अब ब्लाग नही लिखूंगा।
मैने उसे बताया कि सभी खाये-पीये-अधाये लोग ब्लागिंग कर रहे हैं और वे काम के बाद फ़ुरसत के समय इसे करते हैं।एक तुम हो जो सब कूछ छोड़ कर ये कर रहे हो।कितने लोगों को पता है कि इसके चक्कर मे तुम घर से बाहर तक़ नही निकल पा रहे हो।वो समझदार है जो मेरी बात समझा और मेरे उसे कडुवे कमेण्ट के पीछे छीपी मिठास को पहचान गया।इसके बाद उसनेऔर मैने खामोशी ओढ ली।मगर शेष लोगों ने इस हाट टापिक को हाट ही रखा।
दूसरे दिन पाब्ला जी का सुबह-सुबह फ़ोन आया और उन्होने शाम को मिलने की बात कही।शाम को वे दफ़्तर आये और उन्होने बताया कि ललित से मिलकर आ रहा हूं।मैं हंसा और वे भी।फ़िर इधर उधर की बाते हुई,ब्लाग पर मचे शोर की भी।इस पर उन्होने कहा कि मैं इस पर लिख देता हूं,मैने कहा जैसी आपकी मर्ज़ी।उन्होने लिखा भी और सब कुछ ठीक हो जाने की बात भी बताई और गलतफ़हमी दूर होने की घोषणा भी कर दी।उसके बाद माहुल थोड़ा ठंडा हुआ मगर पूरी तरह शांत नही हुआ।आज फ़िर मैने ललित से बात की और कहा कि मैं इस पर कुछ लिख दूं,उसने कहा जैसा आप चाहें।
ललित सच मे बेहद संवेदनशील और बढिया इंसान जिसे मैं नेट के जंगल मे खोते हुये नही देखना चाह्ता था बस इसलिये मैने वो कडा कदम उठाया था।ठीक वैसे ही जैसे एक डाक्टर लाईलाज बीमारी के लिये चीर-फ़ाड़ करता है,आप उसे तो कसाई नही कहते ना,तो फ़िर मैं कैसे कसाई हो गया?मुझे लगता है कि शायद अब इस बात को लोग समझ लेंगे और अपनी राय बनाना बंद कर देंगे।अगर ऐसा करते है तो अच्छा है नही तो फ़िर देश तो चल ही रहा है ब्लागजगत भी चलता ही रहेगा।मेरा ये लिखने ला पोस्ट किसी का भी दिल दुखाना नही है बल्कि उनसे अनुरोध करना है कि जैसा दिखता है ज़रूरी नही वो वैसा ही हो,कृपा कर उसे जांच लें।
38 comments:
आप जैसे शुभचिन्तक सब्को मिले . सच है अति हो जाती है ब्लोग्गिग मे . मै भी पीडित हू और कन्ट्रोल करने की कोशिश मे हू .
स्थिति गम्भीर पर नियंत्रण में प्रतीत होती है।
"मेरे उसे कडुवे कमेण्ट के पीछे छीपी मिठास को पहचान गया।"
अन्त भला सो भला!
ठीक है अनिल भैया ज़रूरी थी ये पोस्ट
Ha-ha-ha-ha-ha-ha-ha-ha-ah-ha-ha-ha-ha-ha-ha-ha-ha-ha-ha-ha-ha-ha-ha-ha-ho-ho-ho-ho.............
लालित शर्मा से उनके जन्मदिन पर बात हुई थी। पहली बार! काफ़ी देर। तुमसे तो कई बार बात हुई है।
जिस तरह लोगों ने पोल खोलक अभियान चलाया इस मसले पर उससे पता चला कि लोगों को कितनी रुचि रहती है दूसरों के मामले में जासूसी करने की।
उसने/किसने(?) कहा था ब्लॉग पर जिस तरह इस टिप्पणी को उछाला गया था उससे एक बार फ़िर पता कि उस ब्लॉग को चलाने वाले की रुचि किस तरह की घटनाओं में रहती है। इसके बाद तो न जाने कित्ते किस्से पढ़े।
कुल मिलाकर मियां तुम भी गजब नमूने हो! गजब यूनीक! प्रेम व्यक्त करने का खालिश तरीका।
जय हो!
अनिल जी
इस टंकी को लगता है उड़ाना ही पडेगा ! बहुत कष्ट दे रही है मौसी को :)
असली सच को जानकर प्रशन्नता हुई.
रामराम.
:) वाह आपने सच्चे दोस्त का फ़र्ज़ निभाया है…। मैंने भी अवधिया जी के ब्लॉग पर यही जिक्र किया था कि निश्चित रूप से कोई न कोई गलतफ़हमी है…। आज पता चला कि यह आपकी मीठी झिड़कीनुमा शरारत थी…। चलिये कोई बात नहीं… अन्त भला सो सब भला…। मेरा नशा उतारने के लिये अब मुझे भी ऐसे ही किसी बड़े भाई की फ़टकार चाहिये… :)
अच्छा किया जो आपने सच सबके सामने रख दिया...अन्यथा टंकी से पीछा ना जाने कब छूटता..
वैसे सच है की ब्लोगिंग नशे के समां ही है..इस पर नियंत्रण बहुत ज़रूरी है....इस पोस्ट के लिए आभार
"मैने उसे बताया कि सभी खाये-पीये-अधाये लोग ब्लागिंग कर रहे हैं और वे काम के बाद फ़ुरसत के समय इसे करते हैं। एक तुम हो जो सब कुछ छोड़ कर ये कर रहे हो। कितने लोगों को पता है कि इसके चक्कर मे तुम घर से बाहर तक़ नही निकल पा रहे हो।"
मैं भी सहमत हूं. यूं भी... नशा कोई भी हो, बुरा ही होता है (मय ब्लागिंग के). स्मैकिये की स्मैक बंद कर दो तो पेट में भयंकर स्पैम आते हैं, ललित जी मेरे भी प्रिय मित्र है, उन्हें भी ब्लागिंग से एकदम तौबा करने के बजाय समय नियमन की आवश्यकता है.
ललित जी कलाहृदयी हैं. उनकी कविताएं भावुकता से ओतप्रोत रही हैं. भावुकता शक्ति व कमज़ोरी दोनों ही होती है. विश्वास है कि वे अपने निर्णय पर पुनर्विचार करेंगे.
आप दोनों एक दूसरे की बात को समझ गए तो अन्य को क्या लेना देना।
वैसे भी कहा जाता है कि appearances are deceptive.
घुघूती बासूती
ये तो शॉक ट्रीटमेंट हो गया ।
बेशक ललित भैया बढ़िया इंसान हैं।
लेकिन ब्लोगिंग के खतरों से आगाह होना भी ज़रूरी है।
अब तो इस विषय पर एक लेख लिखना पड़ेगा।
अनिल भाई,
इस प्रकरण में जो ठीक मुझे समझ आया था, वो मैंने किया...मकसद यही था कि बस किसी तरह गलतफहमी दूर हो...हां, ये काम हो जाने पर ये मैं कतई नहीं चाहता था कि कोई जाने, आखिर हुआ क्या था और ये पहेली सुलझी कैसे...लेकिन फिर आप आप हैं...ललित भाई तो दोस्त हैं, ज़ोर देकर या छोटे भाई का हवाला देकर उनसे बात को मनवाया जा सकता है...लेकिन आप के लिए बस आज वो ही कहूंगा जो मैंने आपको एसएमएस भेजा था...पहले आप की इज्ज़त करता था, अब इबादत करूंगा...
जय हिंद...
ये मुहावरा याद आया था
आपने तो पुरानी फिल्मों की याद दिला दी..
आपकी बात बिलकुल सही लगती है -ललित जी पर तो मानो ब्लागिंग का भूत सवार हों गया था -उन्होंने मुझसे चैट पर बात शुरू की तो मैं जल्दी ही उनके ब्लागोमैनिया के लक्षणों को पहचान गया और मैंने भी खुद उनके भले के लिए उन्हें हतोत्साहित किया ...भगवान अपने भक्त का भला करने के लिए प्रत्यक्षतः कुछ ऐसा भी करते रहते हैं ...जैसा आपने किया ..मैं समझ सकता हूँ -आपकी वह ऐतिहासिक टिप्पणी पढने का इरादा है !
ऐसे अनिल भाई सभी ब्लॉगरों के पास होना चाहिये। हमें तो फ़क्र है ललित भाई पर कि अनिल भाई का इतना प्यार उन्हें मिला।
हा हा हा यह प्रकरण सौ प्रतिशत सूत न कपास जुलाहों में लट्ठम-लट्ठा!ही था. इस प्रकरण से ललित जी का टीआरपी बढी इस बात की हमें खुशी है क्योंकि हमें फगुनाहट सम्मान के बाद ललित भाई की टीआरपी कुछ कम होती नजर आई थी.
हमने भी इस प्रकरण में पोस्ट लगाई पर हमने औरों की तरह किसी को कटघरे में नहीं खडा किया बस हसी ठिठोली क्योंकि हमें पता था कि धुरंधर ब्लागर कभी ब्लागिंग छोड ही नहीं सकता.
आपने अपना दायित्व निभाया इसके लिए आभार बडे भाई.
हा हा हा यह प्रकरण सौ प्रतिशत सूत न कपास जुलाहों में लट्ठम-लट्ठा!ही था. इस प्रकरण से ललित जी का टीआरपी बढी इस बात की हमें खुशी है क्योंकि हमें फगुनाहट सम्मान के बाद ललित भाई की टीआरपी कुछ कम होती नजर आई थी.
हमने भी इस प्रकरण में पोस्ट लगाई पर हमने औरों की तरह किसी को कटघरे में नहीं खडा किया बस हसी ठिठोली क्योंकि हमें पता था कि धुरंधर ब्लागर कभी ब्लागिंग छोड ही नहीं सकता.
आपने अपना दायित्व निभाया इसके लिए आभार बडे भाई.
यह पोस्ट बहुत जरूरी थी .. मैने ललित जी को कहा भी था .. मुझे विश्वास नहीं था कि आप ऐसी टिप्पणी कर सकते हैं .. मैने ललित जी को कहा भी था .. आप जैसा शुभचिंतक सबको मिले !!
mujhe to kuchh kahne ki jaroorat hi nahin kyonki usi din aapse baat hui thi to ap ke baat karne ke andaaz me koi badlaav tha hi nahin.. haan phone jaroor bar-bar kat ja raha tha. vaise kai jagah maine ye jaroor likha ki ye aap nahin koi aur comment kar raha hai aapki taraf se, ab main koi jaasoos to hoon nahin. haan par aap par bharosa hai bhaia.
ये तो किसी हिंदी फिल्म के ट्विस्ट जैसा हो गया. खैर, आप दोनों की दोस्ती को शुभकामनाएं!
... अब क्या कहें ...भाईयों के बीच ... बोल के फ़ंसना है क्या ... हंसी-ठिठोली तो चलते रहना चाहिये !!!
भाई जी, दवा कुछ ज्यादा ही कड़वी नहीं थी ?
वैसे भी इस "धक्का मार" थिरैपी का असर ललित पर धीरे से पर औरों पर कुछ ज्यादा ही जोरों से हुआ।
इस महत्वपूर्ण पोस्ट के लिए आभार.
ट्विस्टर याद आ गया
चलिए अन्त भला सो भला.....
बस इतना ही: सही है!! :)
ant bhala to sab bhala
अनिल जी...आपको और आपके मित्रता के जज्बे को सलाम करने को जी चाहता है ...
आपके द्वारा पूरे प्रकरण का खुलासा किए जाने के बाद मन करता है कि आप जैसा शुभेच्छु दोस्त सबको मिले....
इसी प्रकरण को लेकर मैंने भी श्री रूपचंद शास्त्री'मंयक' जी के खिलाफ एक कड़वी पोस्ट लिखी थी लेकिन मुझे उसको लिखने का अफ़सोस नहीं है .... वैसे मेरा उनसे इस पोस्ट से पहले ना कोई वैर था और ना ही अब है
ब्लॉगिंग के इतिहास में इसे " अनिल-ललित प्रकरण " के नाम से याद किया जायेगा और 1000 बरस बाद कोई न कोई पुरातत्ववेत्ता इसे खोज ही निकालेगा । भाई , हमे सारी सूचनायें समय समय पर मिल रही थीं इसलिये हम तो चुप ही रहे ।
बाकी.. बहुत सारे लोगों का भला अभी आपको करना है ( यह मत कहना कि क्या मैने ठेका ले रखा है ) और उसके लिये कुछ और नये तरीके सोचने हैं । इस मनमुटाव के दूर होने पर सब की तरह मुझे भी प्रसन्नता है ।
wakayee ankhe bhar aayee anil aise dost par naz hona chaie lalit ko. par maine aap ki o tippadi ko bhi parha to uske pichhe chhupe is raaz ko jane bina bhi o tippadi bhi mujhe kharab nahi lagi. realy you are grat anil.
bahut sundar
BILKUL PARFECT HE
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
बाकियां दियां गल्लां छड्डो , दिल साफ़ होना चाहिदा।
umeed hai kuchh log is prakaran se sabak le. aur blogging ko hi puri duniya na samjhe.
भला हो जो मैं आजकल कमेंट्स सिर्फ वहीँ पढता हूँ जहाँ मुझे कमेन्ट करना होता है.. सो मुझे पता नहीं क्या हुआ और कैसे हुआ.. सिर्फ इतना पता चला कि ललित जी चले गए थे और फिर आ गए..
भैया एक अनुरोध है, ऐसा स्नेह मुझ भी बनाये रखियेगा.. :)
अच्छी खबर है, काफी बातें हो रहीं थीं ! शुभकामनायें अनिल भाई !
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