कहने को हमने बहुत तरक्की कर ली है मगर इक्कसवी सदी मे जब हम छुआछूत की बात करते हैं तो हमारी तरक्की की पोल खुल जाती है.इंसान होकर जब हम इंसान को सिर्फ़ एक बीमारी की वजह से अलग-थलग बस्ती बसाकर जीने पर मज़बूर कर देते हैं तो खुद हमारी इंसानियत पर सवाल खडे हो जाते हैं.तमाम सरकारी जनजागरण अभियानों के बावजूद और तमाम मोटी-मोटी डिग्रियों को हासिल करने के बाद हम अगर एक बीमारी को अभिशाप बना दे,तो हमारा पढना-लिखना व्यर्थ ही है.सच मे अनपढ-गंवारो जैसा व्यव्हार कर रहे है हम कुष्ट रोगियों के साथ,जो हमारी उपेक्षा के कारण भीख मांग कर जीने पर मज़बूर हैं.आइये ले चलता हूं हमारी अग्यानता के शिकार हमारे जैसे ही लोगों की अपनी अलग ही दुनिया में.ये काम करना चाह्ते हैं,ये भीख पर नही खुद्दारी से जीना चाहते हैं,मगर हमारे भीतर का डर उन्हे पास आने नही देता.आखिर करे भी तो क्या?क्या सच मे हमारे देश से छुआछूत मिट गया?क्या सच मे हमने तरक्की कर ली?क्या सच मे हम लोग पढे-लिखे हैं? और भी बहुत से सवाल है मेरे मन में आपके मन मे क्या है बताईयेगा जरूर.
22 comments:
हमारे यहा एक कुष्ट आश्रम है जहा के रोगी भीख नही मान्गते . उनमे से एक क बच्चा BDS कर दन्त चिकित्सक हो गया है .
हमारे यहा एक कुष्ट आश्रम है जहा के रोगी भीख नही मान्गते . उनमे से एक क बच्चा BDS कर दन्त चिकित्सक हो गया है .
हम कुछ ज़्यादा ही पढ़-लिख गए हैं न; इसीलिए.
यहाँ तो कुष्ठ रोगियों की एक अलग बस्ती है ।
और सच मानिये वहां सारी सुविधाएँ उपलब्ध हैं ।
अब छुआ छात की क्या कहें --यह तो रोग ही छुआ छात का है ।
यदि इलाज़ नहीं किया गया तो एक दूसरे को लग सकता है । इसलिए थोड़ी दूरी बनाये रखना ज़रूरी है ।
लेकिन ये लोग इलाज़ कहाँ कराते हैं । माना कि इलाज़ लम्बा होता है , लेकिन सभी सरकारी अस्पतालों में मुफ्त उपलब्ध है।
विचारणीय .... २१वी सदी में ये सब होना दुर्भाग्यपूर्ण है..आभार
भाईसाहब, हम देखना तक पसन्द नहीं करते ऐसी चीजों को.. जो हमें सुहाये वही देखते हैं, बाकी सब अनदेखा कर देते हैं..
जिस देश की राजधानी में कांग्रेस की सरकार हो और कुष्ट रोगियों के कल्याण का पैसा भी समाज कल्याण बिभाग और भ्रष्ट कांग्रेसियों के मिलीभगत से लूट लिया जाय तो उस देश में पढ़ा लिखा तो सिर्फ राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी को ही कहा जा सकता है और ये छुआ छूत भी इन कांग्रेसियों के राजनीती और कुव्यवस्था का ही नतीजा है ,विपक्ष तो वैसे ही मर चुका है ,मिडिया तो इस देश में है ही नहीं ,अब तो जन आक्रोश पे आधारित आंदोलनों की प्रतीक्षा है |
भैया...सही सवालों के साथ ...ये पोस्ट दिल को छू गई....
इस पोस्ट के लिेए साधुवाद
कुष्ट रोगी यदि पृथक रहें तो समझ आता है लेकिन क्या हमने अपनी जिन्दगी में एक अभिजात्य वर्ग नहीं बना लिया है जिसे शेष समाज से दूर रहने की आदत हो गयी है।
यह देखकर मन काँप उठता है । यह तो पतन की निशानी है ।
सार्थक पोस्ट ! विचारणीय प्रश्न ! अनुत्तरित प्रश्न
देखते हैं हम कहां जाते हैं पढ-लिखकर।
जातिगत भेदभाव हमारे आसपास इतनी तेजी से जगह बना चुका है कि इसका हल एकदम से दीखता नहीं है............ इसके अलावा एक बात और है कि जातिगत भेदभाव को अब गरीब और अमीर के खांचे में फिट करके देखा जा रहा है...........एक अमीर नेता मंत्री उद्योगपति या किसी रसूखदार के पैरों को छूते हमने बड़ी-बड़ी जाती वालों को देखा है और इसी के ठीक उलट..........
पर आपकी पोस्ट सोचने को विवश करती है...........एक बहुत पुरानी घटना याद आ गई..........अभी पहला एहसास पर पोस्ट करेंगे......पढियेगा.
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
बहुत अच्छी पोस्ट | आज ही मैने कुष्ठ पर अपनी एक कहानी पूरी की है उसका एक अन्श यहां चिपका रहा हूं ((((((((((((((((((((((( (मैं डॉकटर साहब से भिक्षावृति पर व्याख्यान सुनने के लिये कतई तैयार नहीं था । मैंने अपनी शन्का प्रकट करनी चाही “ लेकिन डॉकटर साहब, मुझे भी तो कुछ सालों बाद …” डॉकटर साहब ने तुरन्त मेरी बात काटते हुए कहा “ नहीं नहीं आपको कोई देर नहीं हुई है , यह तो शुरुआत है उँगलियों में सुन्नपन आने और चोट या जलने की वज़ह से घाव बनने की स्थिति तो पाँच छह साल बाद आती है , वह भी उस स्थिति में जब दवा न ली जाये । दवा की पहली खुराक लेते ही रोग का बढ़ना रुक जाता है और कोर्स कम्प्लीट होते ही रोग पूरी तरह ठीक हो जाता है , इसलिये दवा लीजिये और फ़ाल्तू बातें सोचना बन्द कीजिये । जितना नुकसान आपका होना था हो चुका , अब आगे नहीं होगा ।
“ मैं ठीक तो हो जाऊँगा ना डॉकटर साहब …? “ दर असल मैं बुरी तरह डर गया था । “ क्यों नहीं ठीक होन्गे “ डॉकटर साहब ने मुस्कुराते हुए कहा “ लाखों लोग ठीक हो चुके हैं फिर आप क्यों नहीं होंगे ।“लेकिन डॉकटर साहब मेरी पत्नी मेरे बच्चे ॥उन्हे भी तो … “ मुझे अब उनकी चिन्ता सताने लगी थी वैसे भी कल लौटने के बाद से मैं उनसे दूर दूर ही रह रहा था ।
“ उन्हे क्या होगा ? “डॉकटर साहब ने उसी अन्दाज में कहा ॥“ इस रोग का संक्रमण उन्हे थोड़े ही होगा । आप देख आइये उस बस्ती में । उन लोगो के बच्चे भी आम लोगो के बच्चों की तरह स्वस्थ्य और सुन्दर हैं ।इस रोग का संक्रमण हर किसी को थोड़े ही होता है ।
“लेकिन डॉकटर साहब फिर उन्हे अलग बस्ती में क्यों रखा गया है ? “ मैंने पूछा ।
“शुरू में उन्हें अलग रखा गया था इसलिये कि जनसामान्य में इस रोग के प्रति अनेक भ्रान्तियॉ थीं और मेडिकल कॉन्सेप्ट भी क्लियर नहीं थे । हालाँकि उन्हे अलग रखने का उद्देशय उनका पुनर्वास था । अब तो ढेर लोग उस बस्ती में रहते हैं और सबके सब स्वस्थ्य हैं ।“ सब मुल जुल कर अच्छी तरह से रहते हैं । डॉकटर साहब अब किसी सरकारी नुमाइन्दे की तरह बोलने लगे थे ।
लेकिन डॉकटर साहब …” मेरे मन में ढेर सारे सवाल उठ रहे थे जिन्हे मैं एक बार में ही पूछ डालना चाहता था । “ लेकिन बेकिन कुछ नहीं “ उन्होनें कहा फिर रैक से एक पुस्तक निकाली और मुझे देते हुए बोले “ आप तो पढ़े लिखे हैं ।यह किताब लीजिये , इसमें आपको सारे सवालों के जवाब मिल जायेन्गे । वह कुष्ठ रोग और उस पर प्रतिबन्धात्मक उपायो1 से सम्बंन्धित किताब थी और मैं जानता था , मेरे मन में जो सवाल उठ रहे हैं उनके उत्तर उसमें नहीं मिलेंगे ।- शरद कोकास
………………॥
bhaiya namaskar
blag dekhiyega....der se hi sahi...
shuru kar liya...kamiyan bataiega..
nishant-hota.blogspot.com
प्रणाम, आपने बेशक इस पोस्ट के माध्यम से सोचने पर मजबूर किया है की क्या सच में पढने लिखने से कोई लाभ है भी या नहीं ............अशेष शुभकामनायें !!
Nice post, but in democratic country, its easy to condemn another person. Why dont we choose right leader or politicians,
vivj2000.blogspot.com
अगर यह सब न देखें तो वाकई हम तरक्की कर चुके हैं ! और दिखाई पड़ जाए तो ऑंखें बंद भी की जा सकती हैं ! :-(
सच तो ये है की हम संवेदना विहीन होते जा रहे....आपकी ये पोस्ट मन को झकझोर गई...
सवाल स्वभाविक सा हैं पर टाल जाना हमारी आदत हैं जो लोग कर सकते हैं वो ही निकम्में बने बैठे हैं आप भी कभी सोने का नाटक करने वालो को जगाने की कोशिश करके देख लो असफल रहोगे .....सतीश कुमार चौहान भिलाई
हमारे मन यह है कि देश एक साथ कई शताब्दियों में चल रहा है। कहीं विकट उदारता , विकट सहयोग है और उसके उलट कहीं विकट संवेदनहीनता और विकट चिरकुटई है।
इन सब के बीच में और किनारे तथा दांये-बांये भी हम और आप भी हैं।
सुन्दर रपट!
Post a Comment