सारे देश मे हाय-तौबा मची हुई है कि कंही कुछ हो ना जाये!क्या हो जायेगा और क्यों हो जायेगा इस पर कोई बात नही बस सारे के सारे एक ही राग आलाप रहे हैं कि कुछ होना नही चाहिये!और ऐसा करने वाले छोटे-मोटे लोग नही देश को चलाने वाले ठेकेदार लोग हैं।यानी प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री और कलेक्टर से लेकर एस पी तक़्।सब के सब इसी चिंता मे दुबले हुये जा रहे हैं कि कुछ होना नही चाहिये।कमाल है अभी कुछ हुआ नही है और सारे देश मे सनसनी फ़ैला कर रख दी।कुछ हो ना जाये,कुछ हो ना जाये कह कर ऐसा लगता है कि ये ही लोग कुछ नही बहुत कुछ करवा देंगे।
अब इसे देश का दुर्भाग्य नही तो और क्या कहा जाये कि जब सालों से चले आ रहे एक विवादस्पद मामले का पटाक्षेप अदालत के ज़रिये होने जा रहा हो तब सारे के सारे लोगों का चिल्लाना कि अभी ये आखिरी फ़ैसला नही है।अभी और बड़ी अदालते हैं।अभी विचलित होने की ज़रूरत नही है।यंहा तो ठीक है लेकिन प्रधानमंत्री की तस्वीरों बाले केन्द्र सरकार के विज्ञापनों मे लोगो से किसी के भडकावे में न आने की अपील इस बात का सबूत है कि केन्द्र सरकार को आने वाले फ़ैसले के साथ-साथ भडकाने वाले लोगो के बारे में भी पूरी-पूरी जानकारी है।
अभी फ़ैसला आया भी नही और सारे देश मे फ़ैसले के आने का ह्ल्ला मच गया है।अभी कुछ भी नही हुआ है लेकिन शासन और प्रशासन इतना ज्यादा चुस्त और दुरूस्त नज़र आ रहा उतना मैं समझता हूं आज़ादी के बाद और कभी नज़र नही आया होगा।आज़ादी के बाद हुये पाकिस्तानी और चीनी हमलों के समय की बात उस समय के जानकार लोग जाने लेकिन जब से मैने होश सम्भाला है शासन-प्रशासन में ऐसी चुस्ती मैने कभी नही देखी थी।
ठीक है अच्छी बात है और इस बात की तारीफ़ ही होना चाहिये।इस बात की आलोचना करना,हमारे सडेले कुम्भकर्णी सिस्टम के जाग जाने का मज़ाक उड़ाना बेवजह की खुन्नस कहा जा सकता है लेकिन,अगर कोई ये कहे कि क्या इतनी चुस्ती इससे पहले जब देश मे बहुत कुछ हुआ तब दिखाई गई थी क्या?तो फ़िर इस सड़ेले सिस्टम के अचानक़ एक्टिव होने पर सवाल तो खड़े करता ही है।
क्या इससे पहले देश में ऐसे हालात पैदा नही हुये थे?बहुत दूर क्यों जायें।क्या कश्मीर मे जो हो रहा है या पिछले कुछ दिनो से जो चल रहा है उस पर भी ऐसी ही कुछ सख्ती-या चुस्ती नही दिखाई जानी चाहिये थी।क्या छत्तीसगढ के बस्तर,उडीसा के मल्कानगिरी और बंगाल के लालग़ढ मे जो हुआ उस पर ऐसी मुस्तैदी नही दिखाई जानी चाहिये थी?क्या पूर्वोत्तर के हालातों पर सारे देश मे ऐसी चिंता की लहरे नही उठना चाहिये थी?क्या विदर्भ और अन्य प्रदेशों मे किसानों के भूखों मरने,आत्मह्त्या करने पर सारे देश मे शासन-प्रशासन की चुस्ती-फ़ुर्ती दिखाई नही पड़नी चाहइये थी?क्या आरक्षण से झुलसते इलाकों मे सरकारों को इतना परेशान देखा गया है?क्या आनर किलिंग जैसे मामले मे सारे देश मे विचार मंथन हुआ है?क्या बेरोज़गारी और भुखमरी पर राज्य और केन्द्र सरकारो को एक साथ इतना चिंतित देखा गया है?क्या आंतकवाद और पाकिस्तानी घुसपैठ पर सरकारों मेइतनी घबराहट दिखाई दी है?क्या संसद तक़ को गोलियों और धमाकों से थरथरा देने के बाद सरकारे इतनी कंकपाती नज़र आई है?
मेरे ख्याल से सभी के सभी सवालों का जवाब एक ही होगा,नही।और अगर ऐसा है तो सरकारों और अफ़सरशाही का सिर्फ़ इस बात को लेकर सारे देश मे पैनिक क्रियेट करना उनकी अति सक्रियता को सवालों के घेरे मे खड़ा कर देता है।सारे देश मे तमाम हिस्ट्रीशीटरों की बुकिंग चल रही है।अकेले राजधानी मे इस बुकिंग का आंकड़ा 400 के आसपास पहुच गया है।तमाम रास्तों पर तैनात पुलिस और अर्ध सैलिक बलों को देखें तो ऐसा लगता है देश के बीचो-बीच बसे शांति के टापू छत्तीसगढ मे नही बल्कि घाटी यानी सुलगते कश्मीर के किसी शहर से गुज़र रहे हों।हर गाड़ी की चेकिंग,शस्त्रों के लाय्सेंस सस्पेंड करना,लायसेंसी हथियार थाने मे जमा करवाना,रोज़ सुबह-शाम मीटिंगों का दौर्।शांति समितियों से लेकर पत्रकारों तक़ से मीटिंग।आखिर ऐसा हो क्या गया है?
अच्छा हुआ कुछ भी नही।ओहो हो होओने वाला है!क्या होने वाला है भई ज़रा हम भी तो सुने।अच्छा फ़ैसला आने वाला है!किसका?राम जन्मभूमि-बाबरी मस्ज़िद विवाद का।तो उसका असर सारे देश मे पड़ सकता है?सारे देश मे कुछ हो सकता है?कुछ भी ऐसा-वैसा नही होना चाहिये?इसलिये ये सारी मशक्कत हो रही है।काश इस देश के रहनुमाओं को,इस देश के कथित खेवैयाओं को,स्वयंभू ठेकेदारों को ये भी समझ मे आ जाये कि हर समस्या पर अगर इतनी ही जागरूकता दिखायें तो शायद वो दिन दूर नही होगा जब सारे विश्व मे फ़िर से भारत का डंका बज़े। अफ़सोस मगर ऐसा होगा नही,लोग बाढ मे बहते रहेंगे,बीमारियों से मरते रहेंगे,आतंकवादी धमाकों मे इंसानी मांस के लोथड़े उड़ते रहेंगे,नक्सलवादियों की गोलियों से जिस्म छलनी होतें रहेंगे,किसान आत्महत्या करते रहेंगे,बेरोज़गार अपराध के मुंह समाते रहेंगे मगर तब शायद सरकारें सोती रहेंगी क्योंकि तब इस देश की सबसे बड़ी समस्या मंदिर-मस्ज़िद विवाद पर फ़साद होने की आशंका नही रहेगी।
लिखना तो बहुत कुछ चाहता हूं और गुस्सा भी गले तक़ भरा है मगर मैं चाहता हूं कि आप भी कुछ कहें।कहियेगा ज़रूर्।
20 comments:
यदि इतनी अफरातफरी न मचती तो संभवतः कईयों को पता भी चलता कि क्या होने वाला है?
कुछ तो है जिसकी पर्देदारी है ! शांति बनाये रखने की इतनी अपीलों से भय लगनें लगा है ! शायद गुस्सा भी !
अयोध्या एक पर्दा हो गया है जब सरकारो को अपनी नाकामी और नालायकी छुपानी हो तो खेच दिया जाता है . अयोध्या की आड मे सब मुद्दे ढक दिये जाते है चाहे नक्सल हो या कश्मीर हो या कुछ और
अब भुनभुनाने के सिवाय तो कुछ बचा नहीं है। फिर भी आशावादी हूँ तो सोच रही हूँ कि हो सकता है कि कल इस देश से साम्प्रदायिकता का जहर समाप्त होने लगे। राजनेताओं ने 60 वर्ष तक सभी को लडाया है तो हो सकता है कि ऐसा फैसला आए कि जनता आपस में लडना भूल जाए। लेकिन एक बात तो सिद्ध हो गयी है कि हमारी सरकार भी अपने न्यायालय पर विश्वास नहीं करती है तभी तो घोषणा करती है कि अभी तो सुप्रीम कोर्ट बाकी है।
चेहरे नहीं इनसान पढ़े जाते हैं,
मज़हब नहीं ईमान पढ़े जाते हैं,
भारत ही ऐसा देश है,
जहां गीता और कुरान साथ पढ़े जाते हैं...
जय हिंद...
दुर्भाग्य और दुर्भाग्य, इसके सिवा कुछ भी नहीं... नेता ....(*(*(*%%
फ़फ़ूंद बढ़ाने और रायता फ़ैलाने की शुरुआत इलेक्ट्रानिक चैनलों ने एक माह पहले से ही कर दी थी।
अब तो लोग सब्जियाँ, दूध और आटा स्टॉक कर रहे हैं… सरकार की मूर्खता, मीडिया की बेवकूफ़ी और जनता के डरपोकपन की हद है…
lagta hai.....sabko "SANSANI" machane ka rog lag gaya hai....
man me mandir...
man me masjid..
man me girja-gurudwara hai...
aasha ki bas ak deep jala lo.....
FIR CHAHUN OR UJIYARA HAI
फेसबुक में दोस्तों ने एक मुहिम छेड़ी है। शांति और एकता के लिए। आपके लिए भी इसमें शामिल होने का न्योता है। एक वीडियो को जरिया बनाया है। कृपया वीडियो पर टिप्पणी दें और इसे शेयर भी करें। दूसरों से भी इस पर टिप्पणी देने और इसे शेयर करने की अपील करें। आपका साथ चाहिए।
मेरा वाल देखिए-वीडियो एक चिडिया। (फिल्म डिविजन वाला)
कुछ नहीं होगा.... हम हज़ारों साल से खामोश हैं तो अब क्या ज़बान खोलेंगे :)
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
आभार, आंच पर विशेष प्रस्तुति, आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पधारिए!
अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-2, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
bulle shah ki ek do panktiya nazr hai...
"चल बुल्हेया चल ओत्थे चलियो, जित्ते सारे अन्ने.
ना कोई थारी जात पछाने, ना कोई जानूं मन्ने"
satik post bhaiya badhai.
फ़ेसला जो भी आये, हम लडे या आपस मे प्यार से रहे.लेकिन यह हमे लडवा कर ही चेन लेगे, लेकिन इस बार जनता को चाहिये कि सब मिल कर रहे ओर हर फ़ेसले का दिल से स्वागत करे, बस लडे नही,
सच कह रहे हैं भैया आप... अभी तक तो कुछ हुआ ही नहीं है... और लोग फ़ालतू में हल्ला मचाये हुए हैं...
एक बात तो हुई है कि केंद्र सरकार आनन फानन में इतने जल्दी कोई विज्ञापन जारी कर पाई । इस विज्ञापन को देख के मुझे भी लगा था की सरकार कहती है अफवाह फैलाना जुर्म है , अब ये फिजा किसने बनाई है ?
इसी बहाने जनता की सुरक्षा चक चौबन्द हुई नहीं तो नेताओं की सुरक्षा से फुर्सत कहाँ ।
इस देश में देश चलाने वालों का क्या कहना, जो कुछ दिख रहा है वही बहुत है. जहाँ तक विवाद की बात है तो बात की हद तो इतने से ही होती है कि इस देश के हिन्दुओं को अब सिद्ध करना पद रहा है कि राम का जन्म अयोध्या में ही हुआ था. अपने हिन्दुओं के मंदिर के लिए भी उनसे संयम रखने को कहा जा रहा है. कल को सारे देश में कब्ज़ा जमाने के बाद देशवासियों को देश का नागरिक सिद्ध करना पड़ेगा.
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
कई लोगों को ये बात हजम नहीं होगी लेकिन राम तो राजा थे उनका राजमहल ढूँढना चाहिए जो अभी की अयोध्या के 20-25 मील के दायरे में मिल जाएगा अगर कोई सरकार चाहे तो ।
सार्थक पोस्ट.......बधाई आपको !!
एक ईमानदार और सोचने वाले व्यक्ति के मन मे यह सवाल आने जायज़ हैं ।
no news is good news शायद ऐसे अवसरों के पूर्वापर लागू होता है.
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